जनता के साथ कौन है? स्वाभाविक सी बात है, मीडिया! आम नागरिकों को राष्ट्रीय संकट से जुड़े मुद्दे पर ‘मिनट टू मिनट’ जानकारी उपलब्ध कराना। मुद्दों पर बात करने वाले किरदारों में ऐसे लोगों की गिनती करिए जिन्हें (बीते दशकों में) वाकई मीडिया की समझ है।
ऑर्डर-ऑर्डर! पैनल का आरम्भ हो चुका है। आज का एजेंडा क्या है?
भारत में कोरोना वायरस के 70 लाख मामले सामने आ चुके हैं?
चीन की लद्दाख में घुसपैठ?
हाथरस मामले में दलित पीड़िता?
बिलकुल नहीं! अब उनके पास बात करने के लिए एक और अहम मुद्दा है। जैसा कि संकेत ने ऊपर बता ही दिया है, “यह 9 बजे होने वाली मेरे जीवन सबसे बेहद अहम बहस है।” तुम्हारी ज़िन्दगी के अहम मुद्दे पर कोई और क्यों बात करना चाहेगा संकेत और तुम इसे प्राइम टाइम में क्यों लेकर आ रहे हो?
मज़े की बात है कि जब भी उत्साह या चिंता अपने चरम पर होती है, वैसे ही एनडीटीवी के कर्मचारियों की व्याकरण की खिचड़ी बन जाती है। बहुत पहले की बात नहीं है, तमाम मीडिया मसीहा निराशा वश अपना सिर हिला रहे थे। क्यों देश असल मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रहा है? मीडिया में होने वाले विमर्शों को हो क्या गया है? वही धीर गम्भीर मीडिया अपने प्राइम टाइम पर टीआरपी के मुद्दे से बाहर ही नहीं आ पा रही है।
हमें इस बात पर गौर करना होगा कि इस तरह के तुच्छ टीआरपी विमर्शों ने हाथरस मामले को टीवी स्क्रीन्स से गायब कर दिया। मीडिया में आम नागरिकों के लिए बस इतनी ही इंसानियत और संवेदना है। मीडिया को बस इतनी फ़िक्र है सामाजिक न्याय की, दलितों की, महिलाओं की और देश की।
अगर आप मीडिया को उसके सबसे निचले दर्जे पर देखना चाहते हैं तो उसके लिए सबसे अच्छा दिन कल ही था।
क्या आप इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि महाराष्ट्र ही कोरोना वायरस के मामले में पहले पायदान पर क्यों है?
क्या आप जानते थे कि ठीक एक दिन पहले मुंबई पुलिस ने महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री शरद पवार को महाराष्ट्र स्टेट कॉरपोरेटिव बैंक 25 हज़ार करोड़ घोटाला मामले में क्लीनचिट दे दी?
लेकिन किसे फर्क पड़ता है? मुंबई पुलिस इस मुद्दे पर प्रेस वार्ता कर रही है कि टीवी की टीआरपी बढ़ाने के लिए कौन 500 रुपए दे रहा है और कौन नहीं। और यह एक ख़बर भी है न कि 25 हज़ार करोड़ के घोटाला मामले में दी गई क्लीनचिट। न तो महाराष्ट्र के 15 लाख कोरोना वायरस से प्रभावित मरीज ख़बर हैं, न ही हाथरस की दलित पीड़िता और न ही एलएसी में चीन की घुसपैठ। ख़बर सिर्फ एक है ‘टीआरपी।’
बहुत साल पहले भारत की संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था। इस हमले में भारतीय लोकतंत्र की सबसे पवित्र इमारत की रक्षा कर रहे 9 सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए थे। एक मशहूर मीडिया कर्मी ने इस दिन को शानदार बताया था। क्यों? टीआरपी की वजह से।
यही इनकी असलियत है। 2001 में संसद पर हुए आतंकवादी हमलों से लेकर हाथरस मामले तक, यह सिर्फ और सिर्फ गिद्ध ही साबित हुए हैं। यह खुद को इंसान कहते हैं, लेकिन यह असल में गिद्ध ही हैं। यही असल ख़तरा है कि उन्हें कुछ महसूस नहीं होता है। वह ऐसा दिखाते हैं कि वे सब कुछ महसूस करते हैं।
गिद्ध बने रहना भी गलत नहीं है, आखिर संविधान इन्हें गिद्ध बने रहने की आज़ादी देता है। हमें अपनी भलाई के लिए इन गिद्धों से सतर्क रहना होगा, जो कहीं और नहीं बल्कि हमारे बीच रहते हैं। हमारे देश के बारे में बहुत सी अच्छे बातें हैं, लेकिन मीडिया उनमें से एक बिलकुल नहीं है। उदाहरण के लिए, क्या आपको यूपीए सरकार का कार्यकाल याद है जब 2 लाख करोड़ रुपए का घोटाला, 1.76 लाख करोड़ का घोटाला सुनाई देता था? वह घोटालों के इस कदर भूखे हैं कि अब यह 400-500 रुपए पर आ गिरे हैं। विडंबना है कि यह ऐसी बात है जिस पर हम खुश हो सकते हैं।
(अभिषेक बनर्जी द्वारा मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए इस लेख को यहाँ क्लिक कर पढ़ सकते हैं)