तथाकथित ‘किसान’ आंदोलन के टुकड़े-टुकड़े होते नज़र आ रहे हैं। ख़ासकर, 26 जनवरी 2021 को प्रदर्शन की आड़ में हुए उपद्रव के बाद। लेकिन वामपंथी जमात ‘प्रदर्शन की चिंगारी’ को उन्माद की हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। ऐसी ही उन्मादी तत्परता नज़र आई ‘क्रांतिकारी’ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी में, जब उन्होंने ट्विटर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और इच्छाधारी आंदोलनकारी योगेन्द्र यादव को इस मुद्दे पर मशविरा दिया।
पुण्य प्रसून ने अपने ट्वीट में लिखा कि AAP के मुखिया किसान आंदोलन का समर्थन करते हैं। योगेन्द्र यादव किसान आंदोलन के नेता हैं लेकिन दोनों एक-दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। लिब्राट समुदाय के विराट पत्रकार वाजपेयी जी ने सुझाव दिया कि दोनों को अपने मतभेद भुलाकर साथ आना चाहिए तभी यह आंदोलन सफल होगा। इसके बाद वाजपेयी जी ने ट्वीट में लिखा, “बंटने से बचें, मौकापरस्ती छोड़ें और साथ आएँ। तभी सफल होंगे।”
केजरीवाल किसान आंदोलन के हक में है
— punya prasun bajpai (@ppbajpai) January 29, 2021
योगेन्द्र यादव किसान आंदोलन के नेता है..
पर केजरीवाल-योगेन्द्र एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं
बंटने से बचे..मौक़ापरस्ती छोड़े..साथ आये..
तभी सफल होगें
हाल ही में गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई हिंसा के बाद तमाम कृषि संगठनों ने ‘किसान’ आंदोलन से पल्ला झाड़ा और प्रदर्शन स्थल को अलविदा कह दिया। लाल किले पर तिरंगे का अपमान करने के बाद आस-पास के स्थानीय लोगों ने भी प्रदर्शनकारियों का खुल कर विरोध किया। विरोध-प्रदर्शन दो महीने से जारी है जिसकी वजह से कई बड़े रास्ते भी जाम हैं, नतीजतन स्थानीय लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दो दिन पहले हरियाणा के कई गाँव वालों ने दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर प्रदर्शनकारियों को अल्टीमेटम जारी किया कि वह जल्द से जल्द आवागमन का रास्ता खाली करें। बीते दिन (29 जनवरी 2021) को सिंघु बॉर्डर पर स्थानीय लोगों और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव की घटना हुई थी। यह वही स्थानीय लोग हैं जो प्रदर्शनकारियों को खाने और पानी की मदद देकर आंदोलन का समर्थन कर रहे थे।
ऐसी ख़बरें सामने आने का सीधा अर्थ है कि आंदोलन की ज़मीन खोखली हो रही है। यानी पुण्य प्रसून वाजपेयी सरीखे वामपरस्त पत्रकारों की चिंता में इज़ाफा। इसलिए उन्होंने देश के इच्छाधारी और अवसरवादी राजनेताओं को सलाह देना शुरू कर दिया है।
योगेन्द्र यादव आम आदमी पार्टी के नेता और इसके राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रह चुके हैं। इन्होंने 2014 के आम चुनावों में आप के टिकट पर गुरुग्राम संसदीय क्षेत्र से चुनाव भी लड़ा था, जिसमें इनकी जमानत जब्त हो गई थी। कुछ समय बाद अरविन्द केजरीवाल और योगेन्द्र यादव के रिश्तों में खटास आ गई थी और इच्छाधारी आंदोलनकारी को 2015 में ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के चलते बाहर कर दिया गया था। इनके साथ साथ पार्टी के वकील प्रशांत भूषण को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, जब उन्होंने केजरीवाल के ‘तानाशाही रवैये’ पर खुल कर बात की थी।
पुण्य प्रसून वाजपेयी को तब से ‘क्रांतिकारी’ कहा जाता है जब उन्होंने केजरीवाल के साक्षात्कार की व्याख्या करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था। वह केजरीवाल को साक्षात्कार के बाद इसके बारे में बता रहे थे, हालाँकि सब कुछ कैमरे में रिकॉर्ड हो गया था। वीडियो वायरल हुआ और दोनों की ‘संयुक्त क्रांति’ धराशायी हो गई।