Saturday, July 27, 2024
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‘आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी’ से बौखलाया आशुतोष का सत्यहिंदी, पूछा- क्या शिवाजी को मुस्लिमों से नफ़रत थी?

तनवीर, अपने लेख में छत्रपति शिवाजी से पीएम मोदी की तुलना को गलत साबित करने के लिए मुस्लिम महिला का जिक्र करते हैं। जिसे कैदी बनाकर उनके दरबार में ले आया गया और उन्होंने उस घटना को अपने लिए कलंक कहते हुए लड़की को आजाद किया। लेकिन शायद तनवीर यहाँ भी भूल जाते हैं कि नरेंद्र मोदी ने ट्रिपल तलाक कानून लाकर उन हजारों महिलाओं को उस घुटन के जीवन से आजादी दिलवाई, जिसे उनपर.....

हिंदू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज का साहस और उनकी शूरवीरता विश्वविख्यात है। भारतीय संदर्भ में छत्रपति शिवाजी महाराज को हमेशा एक ऐसे महानायक के तौर पर देखा जाता है, जिन्होंने इस्लामिक आक्रांताओं के दबाव में कभी स्वराज्य का झंडा झुकने नहीं दिया। जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी मराठाओं की शान को बनाए रखा और औरंगजेब जैसे बर्बर मुगल शासक का सामना कर प्रतिपल नए कीर्तिमान रचे। जाहिर है, आज के समय में अगर उनकी विशेषताओं की तुलना किसी व्यक्ति विशेष से की जाए, तो संदर्भ पूरी तरह बदला हुआ होगा। मसलन उस व्यक्ति विशेष के पास भले ही छत्रपति शिवाजी के समय जैसी वेश-भूषा और हथियार नहीं होंगे, लेकिन उसका संकल्प उतना ही दृढ़ और उसके सामने परिस्थियाँ उतनी ही चुनौतीपूर्ण होंगी, जिन्हें देखते-परखते हुए उस शख्स को छत्रपति के समतुल्य रखा गया।

‘आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी’

अभी हाल में जय भगवान गोयल नामक लेखक ने नरेंद्र मोदी पर एक किताब लिखी। जिसका शीर्षक उन्होंने- “आज के शिवाजी नरेंद्र मोदी” दिया। निःसंदेह ही ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें नरेंद्र मोदी में उस समय के छत्रपति के कुछ अंश दिखाई दिए। उन्होंने किताब को लेकर कहा भी, “जिस तरह शिवाजी महाराज मुग़लकाल में अपने स्वाभिमान को बनाए रखते हुए काम करते थे, 70 साल में पहली बार ऐसा कोई प्रधानमंत्री आया है जो उसी तरह काम कर रहा है और इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस किताब के बारे में सोचा।” लेकिन, पत्रकार से राजनेता और फिर राजनेता से पत्रकार बने आशुतोष की ‘सत्य हिंदी’ वेबसाइट को यह रास नहीं आया।

सत्य हिंदी ने उठाए आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी’ पर सवाल

मोदी नीतियों का अपने वेबसाइट के जरिए पुरजोर विरोध करने वाले सत्यहिंदी ने सवाल उठाया कि क्या शिवाजी की तुलना नरेंद्र मोदी से करना तर्क संगत है? क्या एक शासक के रूप में छत्रपति शिवाजी की नीयत और नीतियाँ वैसी ही थीं जैसी मोदी शासन में दिखाई दे रही हैं? धर्म अथवा जाति से संबंधित अनेक विवादित फ़ैसलों को लेकर आज जिस तरह देश में जगह-जगह बेचैनी व विरोध-प्रदर्शन दिखाई दे रहे हैं, क्या शिवाजी के समय भी यही स्थिति थी? क्या शिवाजी की भी मुस्लिमों के प्रति धारणा ऐसी ही थी जैसी आज के सत्ताधारियों की है?

लेख के शीर्षक में ही मढ़ दिया गया नरेंद्र मोदी पर आरोप

सत्यहिंदी पर प्रकाशित इस लेख का शीर्षक “छत्रपति की मोदी से तुलना; क्या शिवाजी को मुस्लिमों से नफ़रत थी?” दिया गया। जिसे लिखने वाले का नाम तनवीर जाफरी है। जाहिर है सत्यहिंदी के इस लेख के शीर्षक के दो मतलब हैं। एक- जो सवाल कर रहा है कि क्या शिवाजी से मोदी की तुलना का ये मतलब है कि वो शिवाजी मुस्लिमों से नफरत करते थे और दूसरा ये जो दावा कर रहा है कि मोदी मुस्लिमों से नफरत करते ही करते हैं। तभी उनकी तुलना जिससे भी होगी उसकी छवि पर सवाल उठेगा ही उठेगा।

तनवीर अपने लेख मे छत्रपति शिवाजी के जीवन से जुड़े कुछ किस्सों और तथ्यों का जिक्र करते हैं और बताने की कोशिश करते हैं कि शिवाजी महाराज में जो विशेषताएँ थी, वो नरेंद्र मोदी में बिलकुल नहीं हैं। तो आखिर कैसे नरेंद्र मोदी की तुलना हो सकती है। वो बताते हैं छत्रपति शिवाजी धर्मनिरपेक्ष शासक थे। जो दूसरे धर्म की महिलाओं की इज्जत करते थे। दूसरे समुदाय के धर्मस्थलों को युद्ध में निशाना नहीं बनाते थे। उनके करीबी मुस्लिम थे और वे अपने शासन काल में कभी पक्षपात नहीं करते थे।

अब हेडलाइन को ध्यान में रखते हुए अगर पूरे लेख को पढ़ा जाए तो समझ आएगा कि छत्रपति शिवाजी की हर विशेषता पर किस्सा सुनाने वाले लेखक शिवाजी के सभी गुणों का उल्लेख कर प्रधानमंत्री के व्यक्त्तिव को उसके उलट बता रहे हैं। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या वाकई परिस्थियों में और दौर में बदलाव आने के बाद ये सवाल वाजिब है। क्या वाकई तनवीर के सवाल सही है और लेखक जय भगवान गोयल का दृष्टिकोण गलत? शायद नहीं। क्योंकि छत्रपति शिवाजी के समय में जिन उद्देश्यों को लेकर उन्होंने संघर्ष किया और विजय प्राप्त की। आज नरेंद्र मोदी भी देश को बचाए रखने के साथ भारतीय संस्कृति-सभ्यता को संरक्षित रखने के लिए उसी तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। जिसके कारण उन्हें मीडिया गिरोह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

तनवीर के छिपे सवालों का जवाब

अपने लेख में तनवीर कहते हैं कि मोदी से छत्रपति शिवाजी की तुलना गलत है। क्योंकि छत्रपति धर्मनिरपेक्ष थे। लेकिन, शायद तनवीर भूल रहे हैं कि एक मोदी सरकार को लगातार ऐतिहासिक जीत दिलाकर दूसरी बार सत्ता में बिठाने वाली जनता धर्मनिरपेक्ष देश की जनता है। जिसने लोकतांत्रिक तरीके से नरेंद्र मोदी को अपना प्रतिनिधि चुना।

तनवीर, अपने लेख में छत्रपति शिवाजी से पीएम मोदी की तुलना को गलत साबित करने के लिए मुस्लिम महिला का जिक्र करते हैं। जिसे कैदी बनाकर उनके दरबार में ले आया गया और उन्होंने उस घटना को अपने लिए कलंक कहते हुए लड़की को आजाद किया। लेकिन शायद तनवीर यहाँ भी भूलते हैं कि नरेंद्र मोदी ने ट्रिपल तलाक कानून लाकर उन हजारों महिलाओं को उस घुटन के जीवन से आजादी दिलवाई, जिसे उनपर मजहब के नाम पर थोपा गया और उसके नाम पर प्रताड़ित किया गया।

तनवीर लेख में शिवाजी द्वारा लड़ाई में मस्जिद को नुकसान न पहुँचाए जाने वाले आदेश का जिक्र करते हैं। लेकिन फिर भूल जाते हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार ने भी अपने नेतृत्व में मुस्लिमों के लिए हज का कोटा 2 लाख करवाया। क्या ये मुस्लिम समुदाय के लिए तोहफा नहीं हैं?

तनवीर अपने लेख में शिवाजी के विश्वासपात्रों में उनके निजी सचिव मुल्ला हैदर का जिक्र करते हैं। लेकिन मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मंत्री मुक्तार अब्बास नकवी और प्रवक्ता शहनवाज हुसैन जैसे लोगों को भूल जाते हैं। जो मुस्लिम होने के बावजूद ईमानदारी के साथ भाजपा से जुड़े हुए और समय-दर समय पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त भी करते हैं।

मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों का रोडमैप

इन सभी बिंदुओं के अलावा मोदी सरकार ने बहुत से ऐसे काम किए हैं। जो प्रधानमंत्री को भले ही शिवाजी जितना महान न बना पाए। लेकिन एक ऐसी प्रधानमंत्री की छवि जरूर देते है। जिन्होंने वाकई धर्म-जाति-ऊँच-नीच से उठकर देश के लिए काम किया।

उनके नेतृत्व में ही बीते 11 जून को मौलाना आजाद नेशनल एजुकेशन फाउंडेशन की 112वीं गवर्निंग बॉडी की बैठक में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों का रोड मैप सामने रखा। जिसमें ड्रॉप-आउट बच्चों को ब्रिज कोर्स करवा कर मेनस्ट्रीम एजुकेशन में लाया जाने की बात उठाई गई। साथ ही मुख्यधारा में लाने के लिए वहाँ हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स और साइंस की शिक्षा दिए जाने की बात कही गई। मोदी सरकार के काल में ही अल्पसंख्यक वर्ग के पांच करोड़ छात्रों को अगले 5 साल में छात्रवृत्तियाँ देने की भी योजना तैयार हुई, ताकि अल्पसंख्यक बच्चे इसमें भाग ले पाएँ। इसके अलावा समुदाय विशेष की वक्फ प्रॉपर्टी का विकास करने की योजना भी मोदी सरकार ने ही बनाई।

इतने सबके बावजूद बीते दिनों सीएए-एनआरसी को लेकर विरोध के नाम पर समुदाय विशेष के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपनी कुंठा और नफरत जमकर निकाली। तनवीर जैसे अन्य कई बुद्धिजीवियों ने सरेआम सड़कों पर उनके पोस्टर जलाए, उनके ख़िलाफ़ नारे लगाए गए, उनके मरने-मारने तक की बातें हुईं। लेकिन किसी ने भी एक बार नरेंद्र मोदी सरकार के उन कार्यों पर नजर नहीं डाली। जिसे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने सिर्फ़ अल्पसंख्यक समुदाय को समाज में ऊपर उठाने के लिए किया।।।।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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