कुछ ऐसे भारतीय पत्रकार हैं, जिनका पेशा बड़ा ही ‘निराला’ है। उनका एक ही काम है- विदेशी मीडिया संस्थानों में भारत और मोदी को इतनी गालियाँ दो कि हमारे देश की भी सीरिया जैसी इमेज बन जाए। विदेश में बैठे लोगों को लगे कि यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा। ये ऐसा माहौल बनाने के लिए लिखते हैं, जिससे लगे कि मोदी सरकार लोकतान्त्रिक नहीं। तानाशाही सरकार है। इनमें बरखा दत्त, सदानंत धुमे और राणा अयूब शामिल हैं। इनमें एक विद्या कृष्णन भी हैं, जिनके लेख में भारत के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया है।
उन्होंने ‘द अटलांटिक’ में एक लेख लिखा है, जिसमें बताया गया है कि सरकार कोरोना वायरस से निपटने के लिए बेरहम तरीके अपना रही है। इस लेख को लिखा तो गया है कोरोना के ऊपर लेकिन इसकी शुरुआत होती है सीएए को गाली देने से। साथ ही मोदी सरकार को ‘हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार’ कह कर सम्बोधित किया गया है, जो इनलोगों का फेवरिट टर्म है। दिल्ली में हुए दंगों का भी जिक्र किया गया है। बताया गया है कि ये एक सुनियोजित दंगा था, जिसमें मरने वाले अधिकतर समुदाय विशेष से थे। हालाँकि, ये नहीं बताया गया है कि कट्टरपंथियों ने अपने छतों से किस तरह पत्थर और बम बरसाए।
शरजील इमाम की चर्चा नहीं की गई है, जिसे भड़काऊ बयान दिए। ताहिर हुसैन की चर्चा नहीं की गई है, जिसने हज़ारों की भीड़ के साथ दंगे किए और अंकित शर्मा सहित कइयों को मार डाला। शाहरुख़ की चर्चा नहीं की गई है, जो बन्दूक लहराते हुए सड़कों पर घूम रहा था। फैसल फ़ारूक़ के राजधानी स्कूल की चर्चा नहीं की गई है, जिसे भीड़ ने अटैक बेस बनाया। कॉन्स्टेबल रतन लाल के हत्यारों की चर्चा नहीं की गई है। मंदिरों पर हमले के बारे में चुप्पी साध ली गई है। इसका अर्थ है कि बिना सोचे-समझे, बिना किसी सबूत के, प्रोपेगंडा फैलाने की कोशिश की गई है।
कहा गया है कि जनवरी 30 को भारत में पहला मामला आया लेकिन सरकार जाएगी नहीं। लेकिन, इससे पहले ‘वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन’ भी तो कह रहा था कि इससे कोई खतरा नहीं है? सच्चाई ये है कि 7 जनवरी को चीन ने इसके बारे सूचना सार्वजनिक की और 8 जनवरी को भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के टेक्निकल एक्सपर्ट्स कमिटी की बैठक हुई। सबसे बड़ी बात कि तुलनात्मक रूप से भारत सभी देशों से काफ़ी बेहतर कर रहा है, फिर भी इस लेख में जबरदस्ती कहा गया है कि मोदी ने कुछ नहीं किया।
Once again this lady Vidya pic.twitter.com/t51tdI4tD7
— krutika Varu (@VaruKrutika) March 28, 2020
साथ ही पहले कहा गया है कि मोदी सरकार ने कुछ नहीं किया, बाद में पूछा गया है कि मोदी सरकार ने क्यों किया? लॉकडाउन के निर्णय को गाली दी गई है और कहा गया है कि बिना किसी चेतावनी के लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई। ऐसे में इस सवाल का उठना ज़रूरी है कि लॉकडाउन से पहले अगर चेतावनी दी जाती तो क्या और बड़े स्तर पर पलायन नहीं होता? लोग एक जगह से दूसरे जगह भागने लगते और जिसे नहीं भी ज़रूरत थी, वो भी घर जाना चाहता और चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल होता। लेकिन, विद्या का दावा है कि सब जल्दी-जल्दी में किया गया जबकि ‘जनता कर्फ्यू’ के दिन एक तरह से प्रैक्टिकल हो चुका था।
अगर आप इस लेख में लगी तस्वीर को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि इसमें तिरंगे झंडे का अपमान किया गया है। बीच में सफ़ेद पट्टी पर अशोक चक्र की जगह कोरोना वायरस को दिखाया गया है। यानी अशोक चक्र की तुलना कोरोना वायरस से की गई है। लेखिका लोगों के घरों में रहने, ट्रांसपोर्ट बंद होने और दफ्तरों पर ताला लगने को भयावह बता रही हैं। जबकि अगर ये क़दम नहीं उठाए जाते और कोरोना के कारण लाशें गिर रही होतीं, तब भी ये पत्रकार ऐसे ही लेख लिख कर फलाँ-चिलाँ देशों से भारत को सीखने की सलाह दे रहे होते।
विद्या ने दावा किया है कि भारत में दवा की दुकानें बंद हैं, जबकि फ्रांस वगैरह में खुली हैं। सच्चाई ये है कि दवाओं और ज़रूरी वस्तुओं की दुकानें खुली हुई हैं। दवा की दुकानों को तो पूरे 24 घंटे खुले रहने की अनुमति है। बावजूद इसके झूठ फैलाया गया है। साथ ही ब्रिटेन और स्पेन सरकार के पैकेजों का जिक्र करते हुए दावा किया गया है कि भारत सरकार ने काफ़ी कम राहत पैकेज की घोषणा की। हालाँकि, ये नहीं बताया गया है कि ब्रिटेन और स्पेन की जनसंख्या और भारत को जनसंख्या व जीडीपी में क्या अंतर है। साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है अन्य देशों का पैकेज अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने के लिए है, जबकि भारत सरकार ने गरीबों को राहत देने के लिए इसकी घोषणा की है। अर्थव्यवस्था सहित अन्य मोर्चे की परेशानी देने के लिए लगातार फैसले लिए जा रहे हैं। मुमकिन है कि आने वाले वक्त में सरकार किसी कंप्लीट पैकेज का ऐलान करेंगे।
लेख के एकाध पैराग्राफ में विद्या ने अपनी बड़ाई करते हुए बताया है कि कैसे वो ‘द हिन्दू’ के लिए हेल्थ कवर करती रही हैं और उनके पास 17 सालों का अनुभव है, इसीलिए उनकी बातें सही हैं। साथ ही पीएम मोदी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस न करने पर सवाल उठाया गया है जबकि पीएम ने मीडिया, जनता और प्रबुद्ध जनों से लगातार संवाद किया है और सबसे सीधे जुड़ कर हालचाल जाना है। भारत ने किस तरह अपने नागरिकों को विदेश से निकाला, इस बारे में भी पूरी तरह चुप्पी साध ली गई है।