Sunday, November 17, 2024
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क्या है AFSPA, जिसे मणिपुर में मंत्री-MLA के घरों पर हमले के बाद 6 थाना क्षेत्रों में किया गया है लागू: क्यों राज्य सरकार ने इसे हटाने के लिए केंद्र को लिखा पत्र

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को केवल अशांत क्षेत्रों में ही लागू किया जाता है। पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की सहूलियत के लिए 11 सितंबर 1958 को यह कानून पास किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो यहाँ भी 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया था। अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये भी केंद्र सरकार ही तय करती है।

मणिपुर में लापता 6 लोगों की लाश मिलने के बाद राज्य में हिंसा का एक नया दौर शुरू हो गया और तीन मंत्रियों एवं छह विधायकों के घरों पर हमला करके आग लगा दी गई। इसके बाद हिंसा प्रभावित छह पुलिस थानों में केंद्र सरकार ने ‘सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA)’ को फिर से लागू कर दिया है। शनिवार को इसकी समीक्षा करने और उसे हटाने का अनुरोध किया गया है।

केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव (गृह) को एक पत्र में कहा गया है, “राज्य मंत्रिमंडल ने 15 नवंबर को हुई बैठक में इस (AFSPA को फिर से लागू करने) पर विचार-विमर्श किया है और केंद्र सरकार को इसकी समीक्षा करने और इसे वापस लेने की सिफारिश की है।” राज्य के छह पुलिस थाना क्षेत्रों में AFSPA 1958 की धारा 3 के तहत अशांत क्षेत्र घोषित की गई है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 14 नवंबर 2024 को राजधानी इंफाल के पश्चिम जिले सेकमाई पीएस एवं लामसांग पीएस, इंफाल पूर्व में लामलाई, बिष्णुपुर में मोइरांग, कांगपोकपी में लीमाखोंग और जिरीबाम जिले के जिरीबाम पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में AFSPA को फिर से लागू कर दिया था। सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) विशेष शक्तियों वाला प्रावधान है।

बता दें कि 11 नवंबर को मणिपुर कुकी उग्रवादियों जिरीबाम जिले के बोरोबेकरा स्थित सीआरपीएफ कैंप पर हमला कर दिया था। इसके जवाब में सुरक्षाबलों ने 11 कुकी उग्रवादियों को मार गिराया था। इस हमले के बाद तीन महिलाएँ और तीन बच्चे लापता हो गए थे। माना जाता है कि कुकी उग्रवादियों ने इनका अपहरण किया था। अब इनकी लाश मिली है।

क्या है AFSPA?

सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) को केवल अशांत क्षेत्रों में ही लागू किया जाता है। पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की सहूलियत के लिए 11 सितंबर 1958 को यह कानून पास किया गया था। 1989 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो यहाँ भी 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया था। अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये भी केंद्र सरकार ही तय करती है।

यह किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में तभी लागू किया जाता है, जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को ‘अशांत क्षेत्र’ अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित करती है। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं। कानून के लगते ही सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार मिल जाता है।

अंग्रेजों के कानून को नेहरू सरकार ने भी जारी रखा

इस एक्ट को सबसे पहले अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था। उस वक्त ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए सैन्य बलों को विशेष अधिकार दिए थे। आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने भी इस कानून को जारी रखने का फैसला लिया। फिर वर्ष 1958 में एक अध्यादेश के जरिए AFSPA को लाया गया और तीन महीने बाद ही अध्यादेश को संसद की स्वीकृति मिल गई। इसके बाद 11 सितंबर 1958 को AFSPA एक कानून के रूप में लागू हो गया।

कानून को लागू करने के पीछे का तर्क

इस कानून को लागू करने के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इसे उन इलाकों में लागू किया जाता है, जिनमें उग्रवादी गतिविधियाँ होती रहती हैं। भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों तरफ कई अलगाववादी विद्रोही संगठनों के ठिकाने हैं। नागालैंड के अलावा मणिपुर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सक्रिय है, जो सेना पर हमले करती रहती है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में भी अलगाववादी संगठन सक्रिय है। इन संगठनों से निपटने और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सेना को अफस्पा के तहत विशेष अधिकार दिए गए।

इन राज्यों में लागू रहा AFSPA कानून

AFSPA को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, पंजाब, चंडीगढ़, जम्मू-कश्मीर समेत देश के कई हिस्सों में लागू किया गया था। हालाँकि, समय-समय पर परिस्थितियों को देखते हुए हटा भी दिया जाता है। नागालैंड, असम और मणिपुर में साल 2022 में AFSPA के दायरे को कम कर दिया गया था।

मणिपुर में अफस्फा के खिलाफ इरोम चानू शर्मिला ने 16 साल तक अनशन किया था। नवंबर 2000 में आयरन लेडी के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला के सामने एक बस स्टैंड के पास दस लोगों को सैन्य बलों ने गोली मार दी थी। इस घटना का विरोध करते हुए उस वक्त 29 वर्षीय इरोम ने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी, जो 16 साल तक चली।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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