Monday, December 23, 2024
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जिन मोर्चों से भागती रही कॉन्ग्रेस, उन पर डटे रहे PM मोदी: OROP से अग्निपथ तक सेना को दी ताकत, 2014 में गोला-बारूद का भी था टोटा

साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में पहली बार केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी, तब देश के हालात बहुत बढ़िया नहीं थे। उस समय देश के पास ना तो पर्याप्त गोला-बारूद थे और ना ही अत्याधुनिक हथियार। पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमान अपनी अंतिम साँसें गिन रहे थे।

भारतीय सेना में एक महत्वपूर्ण सुधार के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Pm Narendra Modi) की सरकार ने अग्निपथ योजना (Agnipath Scheme) की शुरुआत की है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस सहित विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। कॉन्ग्रेस का कहना है कि कृषि कानूनों की तरह ही इसे भी वापस लेना पड़ेगा है।

कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) ने कहा कि युवाओं को भाजपा कार्यालयों में चौकीदार नहीं बनाना है, कि वे अग्निवीर बनें। कॉन्ग्रेस इसे सेना को खत्म करने की साजिश बताया है। वहीं, भाजपा इसे सेना में सुधार की प्रक्रिया में उठाया गया एक क्रांतिकारी कदम कहा है।

आज कॉन्ग्रेस भाजपा पर सेना को कमजोर और खत्म करने का आरोप लगा रही है तो हमें देखना होगा कि कॉन्ग्रेस ने सेना को मजबूत और देश की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए क्या किया है। इस देश में कॉन्ग्रेस ने लंबे समय, लगभग 40 सालों तक शासन किया है।

साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में पहली बार केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी, तब देश के हालात बहुत बढ़िया नहीं थे। हम खासतौर पर सुरक्षा हालातों की बात कर रहे हैं। उस समय देश के पास ना तो पर्याप्त गोला-बारूद थे और ना ही अत्याधुनिक हथियार। पुराने पड़ चुके लड़ाकू विमान अपनी अंतिम साँसें गिन रहे थे।

कॉन्ग्रेस शासन में सेना के पास गोला-बारूद तक नहीं थे

साल 2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार में रक्षा मामलों की संसदीय समिति ने एक रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट ने देश में सनसनी मचा दी थी। समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि सेना के पास गोला बारूद, सैन्य यंत्र, हेलीकॉप्टर, टैंकों के गोले आदि की भारी कमी है। सैनिकों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट और साजो-सामान तक नहीं हैं।

इसको लेकर तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह ने प्रधानमंत्री मनमोहन को पत्र भी लिखा था और इस पर तुरंत संज्ञान लेने की बात कही थी। तब रक्षा मंत्री एके एंटनी ने इसे अफवाह बताते हुए इसे खारिज कर दिया था। संसदीय समिति की रिपोर्ट आने के बाद एंटनी के पास देने के लिए जवाब नहीं था।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि थल सेना के विमानन प्रभाग में 18 चीता, 1 चेतक, 76 एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर (एएलएच) और 60 एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर (हथियार प्रणाली युक्त) की कमी है। गोला बारूद से जुड़ी समस्याएँ और भी बढ़ गई हैं और इतने गोला-बारूद में सिर्फ कुछ दिन ही लड़ाई लड़ी जा सकती है।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में सैनिकों के लिए 1,86,138 बुलेटप्रूफ जैकेट की कमी बताई और कहा था कि सेना की ओर से इसे बार-बार उठाया गया, लेकिन सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया। समिति ने यह भी कहा था कि वायु सेना के पास 42 की जगह सिर्फ 31 फाइटर स्क्वैड्रन रह गए हैं। इनमें से अधिकांश लड़ाकू विमान 30 साल से अधिक पुराने हैं।

कंपनियों को कॉन्ग्रेस ने किया था ब्लैकलिस्ट

रिपोर्ट में कहा गया था कि सीबीआई ने छह कंपनियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी, जिसके कारण इन्हें पिछले 10 सालों से काली सूची में डाल रखा गया था। इजराइल मिलिट्री इंडस्ट्री जैसी कंपनी को काली सूची में डाल देने से गोला-बारूद का संकट बढ़ गया है।

ये वो दौर था जब तुष्टिकरण के लिए सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रखकर फिलीस्तीन और उसके समर्थकों की गोद में खेलती नजर आती थी। भारतीय वैज्ञानिकों की लगातार हत्याएँ हो रही थीं और नंबी नारायण जैसे वैज्ञानिक पर देशद्रोह के मुकदमे चल रहे थे, लेकिन सरकार को इन सब चीजों से कोई विशेष फर्क पड़ने वाला नहीं था।

कारगिल में पाकिस्तानी हमले के बाद कारगिल पर गठित समिति ने कई सिफारिशें की थीं, लेकिन कॉन्ग्रेस सरकार ने उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया था। कॉन्ग्रेस का लक्ष्य सिर्फ वोट की राजनीति करना रह गया और देश की सुरक्षा उसकी प्राथमिकता में कभी रहा ही नहीं।

तख्ता पलट का आरोप लगाकर सेना को बदनाम करने की कोशिश

कश्मीर में लगातार सैनिक मारे जा रहे थे, देश भर में आतंकी हमले हो रहे थे, चीन अरुणाचल में घुसपैठ कर रहा था, फिर भी कॉन्ग्रेस सरकार राजनीति करने में व्यस्त थी। यहाँ तक कॉन्ग्रेस ने उसकी बात नहीं मानने वाले सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह पर तख्ता पलट करने का आरोप लगाकर सेना को बदनाम करने की कोशिश की थी।

विश्व को लोकतंत्र देने वाला भारत बीसवीं सदी के अंत में लोकतंत्र की अकर्मण्य सरकारों की त्रासदी का शिकार बन गया था। 21वीं सदी का पहला दशक बीतते-बीतते भारत तुष्टिकरण, लोक-लुभावन वादों और राजनीति के कारण हर क्षेत्र में पिछड़ता चला गया। दो तरफ से उत्पाती पड़ोसी मुल्कों से घिरे होकर भी वह दृष्टिहीन सरकारों के कारण सुरक्षा के लिए भगवान भरोसे रह गया था।

साल 2014 में पीएम मोदी के सामने चुनौतियाँ

साल 2014 में जब भाजपा की सरकार बनी तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमा पर घात लगाए खड़े दुश्मनों से देश की सुरक्षा के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए। मोदी सरकार ने सबसे पहले चीन सीमा और पाकिस्तान सीमा पर सड़क और अन्य आधारभूत संरचनाओं के विकास पर जोर देना शुरू कर दिया। इसके अलावा, हथियारों की पर्याप्त खरीद के लिए बजट का आवंटन किया।

मोदी सरकार ने चीन से लगी 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा पर सड़क से लेकर रेल, वायुमार्ग का तेज गति से विकास किया गया। दुर्गम रास्तों पर सेना को पहुँचाने के नदियों पर पुलिस और पर्वतों पर सुरंगें एवं सड़कें बनाई गईं। विमानों को लैंड कराने के लिए एयरपोर्ट डेवलप किए गए।

आत्मनिर्भरता के लिए मेक इन इंडिया प्रोग्राम

मोदी सरकार ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए भारत में मेक इन इंडिया कार्यक्रम की शुरुआत की। सरकार ने रक्षा क्षेत्र को निजी उद्यमियों के लिए खोला। इसके साथ ही विदेशी कंपनियों के साथ तकनीकी साझेदारी को लेकर पार्टनरशिप पर फोकस किया। रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने FDI को 100 प्रतिशत कर दिया।

मोदी सरकार ने अग्नि सीरीज की कई मध्यम रेंज और ब्रह्मोस जैसी मध्यम एवं दूर रेंज की मिसाइलों का सफल परीक्षण कर इन्हें सेना में शामिल किया। इसके अलावा आकाश मिसाइल को सफलतापूर्वक शामिल किया गया है। भारत ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन को विकसित किया। इसके अलावा, स्वदेशी स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को वायुसेना में शामिल किया जा चुका है। 

भारत में निर्मित जंगी जहाजों और पनडुब्बियों के माध्यम से नौसेना की मारक क्षमता को कई गुना बढ़ाया गया। सेना के पास अब भारत में बने टैंक, मिसाइल और हैंड ग्रेनेड हैं। इसके साथ ही DRDO द्वारा विकसित मारीच सिस्टम का सफलतापूर्वक परीक्षण हो चुका है। यह भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड 850 करोड़ की लागत से नौसेना के लिए तैयार करेगा।

सरकार ने सेना के लिए 1.86 लाख बुलेट प्रुफ जैकेट्स स्वदेशी रक्षा निर्माताओं से खरीदे। इसके साथ ही यूपी के अमेठी में 5100 करोड़ का प्रोजेक्ट लगाया, जिसमें एके-203 राइफलें बनायीं जाएँगी। ये मेक इन इंडिया के लिए शानदार उपहार है। 

आईएनएस कलवारी एस-21 स्कोर्पीन क्लास पनडूब्बी, करंज और वेला पनडूब्बी नौसेना को देकर उसके हाथ मजबूत किए गए। इसके अलावा, रक्षा क्षेत्र में स्टार्टप्स को सरकार ने बढ़ावा दिया। परिणाम ये हुआ कि ड्रोन बनाने के क्षेत्र में भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है।

अत्याधुनिक हथियारों की खरीद

पिछले आठ सालों में सेन को सबल बनाने में मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले साल मोदी सरकार ने 6,000 करोड़ रुपए की रक्षा खरीद और घरेलू क्षेत्र से खरीद के लिए 70,000 करोड़ रुपए की मंजूरी दी। सेना की वायु रक्षा बंदूकों के आधुनिकीकरण मंजूरी दी गई।

मोदी सरकार ने अमेरिका से चिनूक और रोमियो जैसे खतरनाक हथियार खरीदे। वहीं, फ्रांस से राफेल फाइवर जेट खरीदा गया। भारत ने वायु रक्षा प्रणाली S-400 खरीदने के लिए रूस के साथ समझौता किया। इसके अलावा, भारत ने रूस से ही 70,000 AK-203 असॉल्ट राइफलों की खरीद के लिए एक समझौता किया, जिन्हें अमेठी में बनाया जाएगा।

सेना में मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री के लिए 156 कॉम्बैट वाहन बीएमपी-2 का अधिग्रहण किया गया। नौसेना के जहाजों की एंटी-सबमरीन वारफेयर क्षमता बढ़ाने के लिए एडवांस्ड टॉरपीडो डेकॉय सिस्टम के अधिग्रहण की मंजूरी दी गई। ये तमाम ऐक्शन सेना के हथियारों को उन्नत बनाने और एक शक्तिशाली सेना बनाने की दिशा में किया गया काम था।  

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना आज के आधुनिक तकनीकों से लैस विश्व की बेहतर सैन्य व्यवस्था है। भारत के पास अमेरिका, रूस, फ़्रांस और इसराइल में बने अत्याधुनिक हथियार मौजूद हैं। इतना ही नहीं, भारत अब सैन्य साजो-सामान का प्रमुख निर्यातक देश के रूप में भी उभरा है।

सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए सैन्य ताकत का प्रदर्शन

उरी पर आतंकी हमले के ठीक मोदी सरकार ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान सहित दुश्मनों को चेतावनी दी और साथ ही सेना के मनोबल को उठाया। साल 2016 में सितंबर 28-29 को इस स्ट्राइक में भारत ने आतंकियों के कई शिविरों को नष्ट कर दिया था।

इसके बाद लद्दाख में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में काफी हानि उठाने के बाद भी चीन किसी तरह का दुस्साहस करने की कोशिश नहीं कर सका। हालाँकि, इस झड़प में भारत को भी नुकसान हुआ था, लेकिन ताकत का प्रदर्शन एक मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ।

CDS की नियुक्ति और आपातकाल में रक्षा खरीद का अधिकार

मोदी सरकार ने तीनों सेना के बीच समन्वय के लिए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) की नियुक्ति का एक बड़ा फैसला लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में स्‍वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले से इस पद के सृजन की घोषणा की थी। तब पीएम मोदी ने कहा था कि CDS सेना के तीनों अंगों- थल सेना, वायु सेना और नौसेना के अध्यक्षों से वरीयता क्रम में ऊपर होगा। 

जनवरी 2020 में थलसेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के सेवानिवृत होने के बाद उन्हें पहला CDS नियुक्त किया गया था। दिसंबर 2021 में एक दुर्घटना में निधन होने तक वे इस पद पर बने रहे थे। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद हाईब्रिड वारफेयर की दुनिया में अहम माना जाता है। इस पद के सृजन की बात 1999 में कारिगल युद्ध के बाद दी गई थी।

ऑर्डिनेंस कंपनियों का एकीकरण

मोदी सरकार ने आपातकाल में कल-पुर्जे और गोला-बारूद की खरीद करने की ताकत भी सेना को दे दी। अब कोई भी सर्विस हेडक्वार्टर्स 300 करोड़ रुपए तक की खरीद खुद कर सकता है। वहीं, अब रक्षा मंत्रालय को भी 2,000 करोड़ रुपए तक की रक्षा खरीद के लिए कैबिनेट की मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है।

अक्टूबर 2021 में 41 ऑर्डिनेस कंपनियों को एकीकृत कर 7 नयी कंपनियाँ बनायी गईं, जिनमें से 6 कंपनियों ने मुनाफा कमाना शुरू कर दिया है। इसके अलावा, मोदी सरकार ने 100 करोड़ रुपए का एक कॉर्प्स फंड बनाया है। इसका प्रयोग रक्षा उत्पादन में लगे भारतीय उद्योग, खासकर मध्यम और सूक्ष्म उद्योग रक्षा उत्पादों के भारतीयकरण पर काम कर सकें।

वन रैंक वन पेंशन को लागू करना

एक महत्वपूर्ण सुधार के तहत मोदी सरकार ने दशकों से लंबित वन रैंक वन पेंशन को लागू कर दिया। इसके तहत 20.6 लाख पेंशन धारकों या उनके परिवार वालों को बकाया राशि दी गयी। इस योजना पर सरकार सालाना लगभग 7,123 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

इसके साथ ही सरकार ने स्पर्श योजना शुरुआत की, जिसके तहत पेंशन धारकों को उनके बैंक खाते में सीधे पैसा मिलने लगा। इस स्पर्श प्लेटफॉर्म पर 5 लाख से ज्यादा पेंशन धारक है, जिन्हें 2021-22 में 11,600 करोड़ रुपए दिए गए।

अग्निपथ: सेना को जवान बनाए रखने की कोशिश

कारगिल समीक्षा समिति की रिपोर्ट के आधार पर सैन्य सुधारों को आगे बढ़ाते हुए मोदी सरकार ने अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीरों की नियुक्ति की मंजूरी दी है। यह सुधार तीन मायनों में प्रमुख है। पहली बात, सेना पर से खर्च का दबाव कम करना ताकि वह अपने आधुनिकीकरण पर ध्यान दे सके। दूसरे, सेना की औसत आयु को कम करना, ताकि सेना हमेशा जवान और फिट बनी रहे। तीसरा, आपातकालीन स्थिति में देश में प्रशिक्षित लोगों की तैयार करना, जो जरूरत पर देश के काम आए।

अग्निपथ योजना के तहत सरकार ने तीनों सेनाओं में अग्निवीरों की भर्ती का ऐलान किया है। यह भर्ती सिर्फ 4 वर्षों के लिए की जाएगी। इसके लिए 17.5 साल से 21 साल की उम्र निर्धारित की गई है। इन चार वर्षों में अग्निवीर सेवा से अलग नहीं हो सकते। अगर ऐसा करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें शीर्ष अधिकारियों की स्वीकृति लेनी पड़ेगी।

सैन्य सुधार के लिए करगिल रिव्यू कमिटी की सिफारिशें

सैन्य सुधारों की दिशा में करगिल रिव्यू कमिटी की सिफारिशें महत्वपूर्ण थी। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था, “सेना को हर समय जवान और फिट रहना चाहिए। इसलिए 17 साल की सेवा (जैसा कि 1976 से नीति रही है) की वर्तमान प्रथा के बजाय, यह सलाह दी जाएगी कि सेवा को सात से दस साल की अवधि तक कम कर दिया जाए। इसके बाद अधिकारियों और जवानों को देश के अर्धसैनिक बलों में सेवा के लिए मुक्त कर दिया जाए।”

समिति ने महसूस किया था कि 1999-2000 में सेना का ₹6,932 करोड़ का पेंशन बिल कुल वेतन बिल का लगभग दो-तिहाई था और यह हर साल तेजी से बढ़ रहा था। इस वर्ष के बजट में रक्षा के लिए ₹5.25 लाख करोड़ आवंटित किए गए हैं। इनमें से ₹1,19,696 करोड़ अकेले पेंशन के लिए आवंटित किए गए हैं। इसका अर्थ है कि रक्षा बजट का लगभग 25% केवल पेंशन के भुगतान के लिए खर्च किया जाता है। वन रैंक वन पेंशन (OROP) योजना के लागू होने के बाद सेना की पेंशन में तेजी से वृद्धि हुई है।

कारगिल समिति ही नहीं, भारतीय सेना ने भी जनशक्ति लागत को बचाने के लिए अग्निपथ योजना के समान एक भर्ती योजना का प्रस्ताव दिया था। सेना ने 2020 में युवाओं को 3 साल के लिए भर्ती करने के लिए ‘टूर ऑफ ड्यूटी’ योजना का प्रस्ताव दिया था। मौजूदा योजना में इस प्रस्ताव के साथ कई समानताएँ हैं। हालाँकि, सेना द्वारा प्रस्तुत योजना में सेवा अवधि 4 साल के बजाय 3 साल तय की गई थी।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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