आपने अक्सर इस्लामी आतंकियों के बचाव में लिबरलों को ये तर्क देते हुए सुना होगा कि वो ये सब शिक्षा की कमी के कारण करते हैं। लिबरलों के मुताबिक मुस्लिम युवकों को देश में सही तालीम नहीं मिल पाती है इसलिए वो कट्टरपंथी संगठनों के बरगलाने पर कट्टरपंथ का रास्ता चुनकर आतंकी बन जाते हैं… लेकिन हकीकत क्या सच में ऐसी है जैसी हमें इतने सालों से लिबरल गिरोह के लोग दिखाना और समझाना चाहते हैं या फिर जमीनी सच्चाई कुछ और है।
अभी हाल में रामेश्वर कैफे ब्लास्ट का मामला लेते हैं। NIA ने बम धमाके में गिरफ्तार आतंकियों से पूछताछ के बाद जिन लोगों के यहाँ छापेमारी की है उनमें एक आंध्रप्रदेश जिले का रिटायर्ड हेडमास्टर अब्दुल और उसका सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटा सोहैल भी है। सोहेल को लेकर कहा जा रहा है कि वो इस हमले के मास्टरमाइंड अब्दुल मतीन से सपर्क में था। इसके अलावा 2 डॉक्टरों के ठिकाने पर भी रेड पड़ी है। ये दोनों ही प्रोफेशन ऐसे हैं जिसमें बिना पढ़ाई लिखाई किए कोई नहीं घुस सकता। फिर जवाब क्या है कि इन्होंने ऐसा क्यों किया। शिक्षा की कमी के कारण या नौकरी न मिलने की वजह से…?
लिबरलों ने सालों से इस्लामी आतंकियों के छवि निर्माण के लिए जो भूमिका बनाई थी वो अब आए दिन इसीलिए ध्वस्त हो रही है क्योंकि सोशल मीडिया के कारण लोगों को पता चलने लगा है कि जिन आतंकियों का प्रोफेशन बताकर, परिवार की दुर्दशा बताकर संवेदना बटोरी जा रही है, वो असल में किस खतरनाक मानसिकता के साथ पोषित होते हैं।
बात सिर्फ रामेश्वर ब्लास्ट की नहीं है। आप याद करिए कुछ दिन पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरा टेरर मॉड्यूल का भंडाफोड़ हुआ था। आतंकियों को पकड़कर उनकी लिस्ट बनना शुरू हुई तो प्रोफेशन वाले कॉलम में किसी के आगे प्रोफेसर लिखा जा रहा था था, किसी के पीएचडी स्कॉलर तो किसी के में इंजीनियर।
इसी तरह जब मध्यप्रदेश पुलिस की आतंक निरोधी दस्ते ने हिज्ब उत् तहरीर आतंकी संगठन पर कार्रवाई की थी तो अलग-अलग जगह से ताबड़तोड़ आतंकियों की गिरफ्तारी हुई थी। छानबीन में पता चला था कि गिरफ्तार किए गए आरोपितों में कंप्यूटर इंजीनियर, टेक्नीशियन, टीचर, व्यवासायी, जिम ट्रेनर, कोचिंग सेंटर संचालक, ऑटो ड्राइवर, दर्जी आदि शामिल थे।
इसी तरह 2021 में सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) के 12 आतंकियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इनमें से कई आतंकी इंजीनियरिंग के छात्र थे। छानबीन में सबका कनेक्शन आतंकी संगठन मुजाहिद्दीन से पाया गया था। वहीं इनके पास से आधुनिक गैजेट्स जैसे लैपटॉप, फोन, पेन ड्राइव आदि सब बरामद हुए थे। पूछताछ में ये भी बताया गया था कि ये लोग अपने संगठन से लोगों को जोड़ उन्हें बम बनाने की ट्रेनिंग भी देते थे।
2022 में हुए गोरखनाथ मंदिर पर हमला करने वाला मुर्तजा अब्बासी याद है क्या। पीएसी जवानों को धारदार हथियार से घायल करके मंदिर में घुसने जा रहा था और रोके जाने पर अल्लाह-हू-अकबर चिल्ला रहा था। छानबीन में सामने आया था कि उस मुर्तजा अब्बासी ने केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की हुई थी।
ये मुर्तजा अब्बासी या सोहैल कोई 1, 2, 3 या 10 उदाहरण नहीं है। ऐसे तमाम कट्टरपंथियों की लिस्ट है जिनका उद्देश्य पढ़ लिखकर भी सिर्फ जिहाद करना और काफिरों को मारना तक रहा। इसी का उदाहरण है कि आज आतंकियों के आतंक करने का तरीका सिर्फ कहीं घुसकर गोलीबारी या बमबारी करना नहीं रह गया है। ये लोग अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल करके अपने आतंक के तरीकों को अपग्रेड करते हैं।
जैसे कुछ समय पहले खबर आई थी कि भारत में इस्लामिक स्टेट रोबोट से आतंकी हमले की साजिश रच रहा था और इसके लिए आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने मुस्लिम युवाओं को रोबोटिक्स की पढ़ाई करने के हुक्म दिए थे…अब जो कट्टरपंथी इस्लामी ISIS की विचारधारा से प्रभावित होगा तो क्या वो इस हुक्म का पालन नहीं करता… करता और किया भी।
जानकारी के अनुसार, ISIS के मकसद को पूरा करने के लिए माज मुनीर अहमद, सैयद यासीन, रीशान थाजुद्दीन शेख, माजिन अब्दुल रहमान और नदीम अहमद नाम ने रोबोटिक्स कोर्स स्टार्ट कर दिया था। इसके अलावा इन्होंने आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए बी मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। ये पूरा खुलासा राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के सप्लीमेंट्री चार्जशीट ने किया था।
मालूम हो कि जिहाद के नाम पर आतंक फैलाने के काम में सिर्फ भारत के पढ़े-लिखे कट्टरपंथी नहीं शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यही हाल है। अमेरिका में 9/11 हमने का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन के बारे में मीडिया बताता है कि वो अच्छे बिजनेसमैन परिवार से था और इंजीनियर था। जाहिर है उसके पास न पैसे की कमी थी, न शिक्षा की… फिर भी वो कुख्यात आतंकी संगठन का सरगना बना क्योंकि उसके जहन में कट्टरपंथ घुस गया था। उसे तालीम लेकर अपने लिए या अपने परिवार के लिए कुछ नहीं करना था बल्कि उसे मजहब के नाम पर जिहाद करना था और उसकी इसी सोच ने अमेरिकी के ट्विन टॉवर्स और पेंटागन पर हमला कराया, जिसमें 3000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। ये हमला सबसे बड़े आतंकी हमलों में गिना जाता है, मगर बावजूद ऐसी तमाम घटनाओं के ISIS में शामिल होने के लिए युवक अमेरिका और ब्रिटेन से पढ़कर जाते हैं। वहाँ उनके लिए आत्मघाती ड्रोन बनाते हैं। ऐसी तकनीक सिखाते हैं जिससे दहशत बड़े पैमाने पर फैल सके और खुद आतंकी बन जाते हैं।
इतनी लंबी लिस्ट होने के बावजूद ये मीडिया गिरोह के लोगों द्वारा आतंकियों के प्रोफेशन का महिमामंडन चलता रहता है। कभी बुरहान वानी के अब्बा के हेडमास्टर होने की बात जनता को बताकर ये संवेदनाएँ बटोरते हैं तो आतंकी जाकिर मूसा के बाइक, सिहरेट, हेयर स्टाइल, डियोडरेंट, जूते पर फिदा हो जाते हैं। उसके बाद प्रोपगेंडा फैलाया जाता है कि इस्लामी कट्टरपंथ को खत्म करने का एक मात्र तरीका शिक्षा है, जबकि हकीकत तो ये है कि कट्टरपंथ से लड़ने के लिए हम जिस शिक्षा को अंतिम उपाय मान रहे हैं, कट्टरपंथी उसी शिक्षा का प्रयोग करके आतंकी बन रहे हैं और आतंकी संगठनों को मजबूत बना रहे हैं।
ऊपर इतने उदाहरणों का जिक्र ही इसलिए है ताकि समझ आ सके कि आज के समय में सिर्फ भारत नहीं, बल्कि दुनिया का सारा फोकस कट्टरपंथ मिटाने पर होना चाहिए। इसी कट्टरपंथ के चलते छोटे-छोटे बच्चों को बरगला कर पहले पत्थरबाज बनाया जाता है, फिर बंदूक थमाकर आतंकी और इसी कट्टरपंथ के चलते कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों का ब्रेनवॉश होता है और वो आतंकी संगठनों के कमांडर बनने लगते हैं। उनके लिए शिक्षा का अर्थ समाज में पहचान बनाना नहीं होता, बल्कि देश और दुनिया से काफिरों का खात्मा होता है।