Saturday, November 23, 2024
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‘मुस्लिमों ने किया फेमस, वरना गोलगप्पे बेचते’: बबीता फोगाट पर भड़का ‘बकलोल’ पत्रकार

फोगाट बहनें आमिर खान के पास अपनी जीवनी लेकर नहीं गईं थी कि वे उनपर फिल्म बनाएँ। बल्कि आमिर खुद आए थे उस परिवार के पास, जिसने वाकई कुँठित समाज में बदलाव की नींव रखी।

मीडिया गिरोह में वैसे तो कई लोग हैं जिन्होंने सोशल मीडिया पर केवल अनर्गल बातें कर अपनी पहचान बनाई है। इनमें भी प्रशांत कनौजिया का अलग लेवल है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर आर्मी चीफ तक पर भ्रामक खबर फैला चर्चा में आया कनौजिया अब कुश्ती चैंपियन बबीता फोगाट के खिलाफ प्रोपेगेंडाबाजी में लगा है।

बबीता की गलती सिर्फ़ इतनी है कि उन्होंने सोशल मीडिया पर तबलीगी जमात के लोगों को, जो इस समय देश में तेजी से कोरोना संक्रमण फैलने के लिए विशेषत: जिम्मेदार हैं, उन्हें जाहिल कह दिया। बस, इसी बात पर कनौजिया भड़क गया और ऊल जलूल बातें करने लगा।

बबीता फोगाट ने ट्वीट किया, “कोरोना वायरस भारत की दूसरे नंबर की सबसे बड़ी समस्या है। जाहिल जमाती अभी भी पहले नंबर पर बना हुआ है।” अब देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए हम समझ सकते हैं कि बबीता ने यहाँ ‘जाहिल जमाती’ किन लोगों के लिए प्रयोग किया। उन्होंने उन जमातियों को जाहिल बोला, जो देश की स्थिति को जानते-समझते हुए भी छिपे बैठे हैं। अस्पताल में महिला स्वास्थ्यकर्मियों पर फब्तियाँ कस रहे हैं, उन्हें अश्लील इशारे कर रहे हैं, नंगे घूम रहे हैं। बबीता ने अपने ट्वीट में कहीं पर भी मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन प्रशांत कनौजिया ने यहाँ अपनी चालाकी से तुरंत बबीता के एक ट्वीट को हिंदू-मुस्लिम में बदल दिया और बबीता के निजी जीवन पर भी टिप्पणी करने से नहीं बाज आया।

एक पत्रकार जो खुद सोशल मीडिया पर स्टंट कर विवादित पत्रकारों की सूची में शामिल हुआ है, वो बबीता फोगाट यानी एक नेशनल चैंपियन को कहता है कि उन्हें एक मुस्लिम ने फ़िल्म बनाकर फेमस कर दिया। वरना इस देश में क्रिकेट छोड़ अन्य खिलाड़ी कई साल बाद गोलगप्पे बेचते नज़र आए हैं। यहाँ मुस्लिम शब्द प्रशांत ने शायद आमिर खान के लिए इस्तेमाल किया और बबीता को ये जताया कि बिना आमिर खान के उनका जीवन अंधकार में चला जाता। फिर भी वह आज मुस्लिमों के लिए नफरत फैला रही हैं?

अब पहला सवाल तो ये कि बबीता ने मुस्लिमों को लेकर क्या टिप्पणी की? उन्होंने किसी को लेकर क्या नफरत फैलाई? उन्होंने तो केवल उस तबके को लेकर अपना आक्रोश दिखाया, जिसकी बदसलूकियों से इन दिनों हर राज्य की सरकार परेशान है। जो अब भी जान-बूझकर जगह-जगह छिपे बैठे हैं और सरकार की अपील के बाद भी जाँच के लिए बहार नहीं आ रहा।  

दूसरी बात ये कि प्रशांत को जानने की जरूरत है कि फोगाट बहनें आमिर खान के पास अपनी जीवनी लेकर नहीं गईं थी कि वे उनपर फिल्म बनाएँ। बल्कि आमिर खुद आए थे उस परिवार के पास, जिसने वाकई कुँठित समाज में बदलाव की नींव रखी। प्रशांत को जानने की जरूरत है कि बबीता फोगाट और उनकी बहन के ऊपर आमिर ने फिल्म इसलिए बनाई क्योंकि वे खुद समाज में उन्हें प्रेरणा के रूप में देख रहे थे। कनौजिया की तरह गोलगप्पे बेचते नहीं! जानकारी तो ये भी है कि इस फिल्म ने 2200 करोड़ रुपए का कारोबार किया, मगर फोगाट परिवार को सिर्फ़ 80 लाख रुपए मिले। अब बताइए एहसान फोगाट बहनों के ऊपर हुआ या फिर फिल्म बनाने वालों के ऊपर, या फिर उस समाज के ऊपर जहाँ इस फिल्म के आते ही कई लड़कियों में आगे बढ़ने का उत्साह दिखा, उमंग दिखी।

अब मामला इसके बाद यही शांत नहीं हुआ। जाहिर है, इतनी मेहनत के बाद कोई ऐसे सवाल उठाए तो दिल दुखता है, वो भी तब जब आपने कुछ गलत न कहा हो। बबीता फोगाट ने प्रशांत को कहा कि एक फिल्म तुम्हारे जैसों के ऊपर भी बनानी चाहिए। उस फिल्म का नाम रखना चाहिए पत्थरबाजों की गैंग।

इसके बाद कनौजिया ने लिखा, “तुम जो ये शब्द लिख पा रही हो उसके पीछे भी सावित्री-फातिमा है। जब उन दोनों ने पहला महिलाओं का स्कूल खोला था जब आरएसएस-भाजपा के पूर्वज उनपर पत्थर फेंकते थे। बाकी दादरी वालों ने ठीक नहीं किया।” गौरतलब है कि बीते साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बबीता भाजपा की तरफ से दादरी से मैदान में उतरीं थी।

अब जिन्होंने दंगल देखी है वे इस बात को समझ पाएँगे कि जिस इलाके से बबीता और गीता आती हैं, वहाँ पर कई नायिकाओं के उदाहरण जीवंत होते हुए भी समाज पिछड़ा हुआ और लड़कियाों के मामले में तो मानो मृत था। नतीजतन उन्हें भी पहले लीक से हटकर चलने पर समाज के ताने सुनने पड़े। लेकिन कुछ दिनों बाद दोनों बहनें खुद एक उदाहरण बनकर उभरीं, जिनके जीवन का संघर्ष बाकी किसी नायिका से कम नहीं थीं। हम मानते हैं कि सावित्री-फातिमा के योगदान के बिना आज स्त्री शिक्षा का कोई आधार नहीं है। मगर, बबीता और उनके परिवार के संघर्षों को खारिज करना, वो भी अपना एजेंडा चलाने के लिए केवल मूढ़ होने का का प्रमाण है।

प्रशांत कनौजिया इसके बाद बबीता के पक्ष में बोलने वालों को भी जवाब देता है। फिर धीरे-धीरे वीर सावरकर की बात बीच में ले आते हैं और पूछते हैं उसने कौन सा तीर मारा था? सवाल है कि उन्होंने अगर देश के लिए कुछ नहीं किया था तो फिर इंदिरा गाँधी ने उनका उल्लेख वीर सपूत कहकर अपने पत्र में क्यों किया था? क्या हर चीज के ज्ञाता सिर्फ प्रशांत कनौजिया हो चले हैं? बाकी किसी की प्रतिक्रिया का कोई महत्व नहीं है? बाकी किसी के योगदान का कोई मोल नहीं है।

कनौजिया, इसके बाद फिर एक जवाब में बबीता की मिल्खा सिंह और पान सिंह तोमर के साथ तुलना करता है और कहता है कि सबने देश का मान बढ़ाया। मगर बबीता समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ बोलकर सिर्फ़ जहर उगलकर पार्टी से मेडल चाहती हैं। खुद सोचिए! बबीता के एक पार्टी मात्र से जुड़ जाने से कनौजिया उनकी प्रतिक्रिया पर कितने हमलावर हो गए? क्या ये प्रतिक्रिया स्वभाविकता के साथ उस समय भी बाहर आती अगर बबीता एक ‘जाहिल हिंदू’ या ‘जाहिल श्रद्धालु’ कहती? शायद नहीं। क्योंकि तब कनौजिया को बबीता अपने करीबियों की तरह महसूस होतीं। और उनका समर्पण, उनकी काबिलियत, उनकी सोच समाज के लिए मानक होती।

आज बबीता फोगाट पर प्रशांत कनौजिया द्वारा हमलावर होने पर कई मीडिया गिरोह इस खबर को कवर कर रहे हैं। कारंवाँ भी इस क्रम में एक नाम हैं। जो अपनी खबरों से ये नैरे़टिव बना रहा है कि समुदाय विशेष देश के हित के कामों में लगा हुआ है, मगर बबीता फोगाट जैसे लोग उनके ख़िलाफ़ नफरत फैला रहे हैं। पर इस बात को कोई नहीं समझ रहा कि देश आज भी उन मुस्लिमों की कद्र करता है, उनके सेवाभाव को सलाम कर रहा है जो मजहब से उठकर मानवता के प्रति खुद को समर्पित कर चुके हैं। गाली सिर्फ़ उन्हें पड़ रही है, गुस्सा सिर्फ़ उनपर उतारा जा रहा है, जो सब जानते-समझते हुए, समाज के लिए खतरा बने हैं। प्रशांत कनौजिया जैसे लोग इन्हीं का बचाव कर अपने प्रोपेगेंडा की रोटियॉं सेंकते हैं। ज्ञात हो कि बबीता ने अपने ट्वीट में किसी एक समुदाय को नहीं टारगेट किया था उन्होंने वही शब्द इस्तेमाल किया था जिसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है।

बता दें, 2 अप्रैल को एक अन्य ट्वीट पर भी बबीता को घेरा गया था, तब भी उन्होंने यही जवाब दिया था कि “डॉक्टर, पुलिस, नर्स जो इस संकट के समय देश की ढाल बनकर खड़े हैं उन पर हमला करने वालों को और क्या संज्ञा दूँ। इसमें मेरा किसी धर्म, जाति विशेष के खिलाफ लिखने का कोई मकसद नहीं है। मैंने इस ट्वीट में सिर्फ कोरोना सेनानियों पर हमलावरों के खिलाफ लिखा है और आगे भी लिखती रहूँगी”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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