वीर सावरकर ने एक बार लंदन में लेनिन को 3 दिन तक शरण दी थी। कम्युनिस्ट यह स्वीकार नहीं कर पाते कि सावरकर को कई प्रमुख वामपंथियों ने वीर कहने का साहस किया था।
झा लियू के ट्वीट पर चीन से ही जुड़े एक ट्विटर यूज़र ने चीन की सरकार पर कटाक्ष करते हुए लिखा- "हाँ हम जानते हैं कि यह बस एक गंभीर सर्दी-जुकाम मात्र है और हम इससे डरे हुए नहीं हैं। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि फिर भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने लगभग हर इंसान को घर में कैद कर रखा है
सीएए और एनआरसी के खिलाफ बिहार में चल रहे प्रोपेगेंडा के तहत गाँव-गाँव घूम रहे सीपीआई के नेताओं को ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा। इस दौरान लोगों ने सीपीआई नेताओं को काले झंडे तो दिखाए ही साथ ही काफ़िले में मौजूद कन्हैया कुमार के ख़िलाफ़ जमकर मुर्दाबाद के नारे भी लगाए।
"तुम जो ये कर रहे हो, तुमने ये फैसला कर लिया है कि सिर्फ मुसलमानों को बदनाम करने के लिए तुम डिबेट करोगे और सरकार की जूतियाँ सीधी करोगे। मैं दीपक चौरसिया तुझे चैलेंज करता हूँ.... भ*वे पत्रकार!"
"मुस्लिमों के लिए एक देश बनाया गया है- पाकिस्तान। मगर भारत में ऐसा नहीं है, और अगर भारत में ऐसा है तो सिर्फ बहुसंख्यक हिन्दुओं की वजह से। भारत को हिन्दू जैसे धर्म की जरूरत है। अगर भारत सेक्युलर है तो हिन्दू की वजह से।"
अगर मामला सिर्फ विचारधारा के आधार पर किसी के समर्थन और किसी के विरोध का है, और जेएनयू एवं FTII जैसे संस्थानों के वाम मजहब के छात्र “शिक्षा का भगवाकरण” कहकर किसी नियुक्ति का विरोध कर सकते हैं, तो वही अधिकार आखिर BHU के छात्रों को क्यों नहीं मिलना चाहिए? समस्या की जड़ में यही दोमुँहापन है।
जेएनयू छात्रों की हड़ताल में जर्मन कोर्स की एक छात्रा शामिल नहीं होना चाहती थी, इसलिए वह क्लास करने के लिए जर्मन फैकल्टी की ओर बढ़ी। उसका नाम था मेनका गाँधी- संजय गाँधी की पत्नी और इंदिरा गाँधी की बहू।