"हमने बार-बार पाक से कहा है कि वह अपनी सेनाओं से 2003 के सीजफायर समझौते का पालन करने और नियंत्रण रेखा तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए कहे। भारतीय बल अधिकतम संयम बरतते हैं और आतंकवादी घुसपैठ पर जवाब देते हैं।"
पुलिस ने बताया कि इस ग्रुप के सदस्य बंदूक और विस्फोटकों के बारे में बातें किया करते थे। खुफिया दल को सूचना मिली थी की तीनों बांग्लादेशी हैं और उनके आतंकियों से संबंध हैं। जॉंच से पता चला कि तीनों संदिग्ध पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं।
मजहब को टोपी-चादर के नाम पर लुभाने की राजनीति अब देश की सरकार को झूठा बता पाकिस्तानी प्रोपगेंडा को हवा देने तक पहुॅंच गई है। ऐसे लोगों को न तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद दिखाई दे रहा और न ही बलूचिस्तान का नरसंहार। पूरा का पूरा लिबरल गिरोह और मानवाधिकार के कथित पैरोकार मौन हैं।
पाकिस्तानी प्रोपगेंडा का राग अलापते हुए इमरान ने कहा, "कश्मीर में 80 लाख मुस्लिम पिछले लगभग छह सप्ताह से कैद हैं। भारत पाकिस्तान पर आतंकवाद फैलाने का आरोप लगा दुनिया का ध्यान इस मुद्दे से भटकाना चाहता है।"
शेख रशीद ने कहा कि वह जेल में बंद किसी भी नेता को मिली AC या TV की सुविधा हटाने के विरोध में नहीं हैं लेकिन वह नवाज़ शरीफ सहित अन्य नेताओं को टेप रिकॉर्डर और मुकेश के गानों की सीडी देने के पक्ष में ज़रूर हैं।
पाकिस्तानी सेना अपने ही सैनिकों की लाशों के साथ जातीय भेदभाव करती रहती है। मारे जाने वाले सैनिक कश्मीरी (या नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के होते हैं तो उनकी लाशें लेने में हिचकता है, जबकि मजहब विशेष के पंजाबी सैनिकों की लाशें वह हर कीमत पर पाने का प्रयास करता है।
सैयद ज़ैनुल आबेदीन ने कहा कि भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर कश्मीर मुद्दे को लगभग हल कर लिया है। हर भारतीय को सरकार के फैसले पर गर्व होना चाहिए। कुछ लोग इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं, जो गलत है। यह किसी भी तरह से धर्म से संबंधित नहीं है।
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद से ही पाकिस्तान बौखलाहट भरी प्रतिक्रिया दे रहा है। इसके बावजूद एससीओ के कॉन्फ्रेंस में उसे आमंत्रित किया गया था। सम्मेलन में 27 विदेशी और 40 भारतीय अधिकारियों ने हिस्सा लिया था।
इस दौरान महिला सांसदों के साथ भी धक्का-मुक्की की गई। गो नियाजी गो से पाकिस्तानी संसद गूँजती रही, मार्शलों को भी मामला शांत करवाने के लिए बुलवाया गया, लेकिन नेता अपने काबू से बाहर होकर एक दूसरे पर लात-घूसा चलाते रहे।
"इस्लामाबाद में भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ कभी हिंसा, नरसंहार, असाधारण हत्या, अपहरण, बलात्कार, धर्म परिवर्तन जैसे मामलों के रूप में भेदभाव होता हैं। जिनमें पाकिस्तानी हिंदू, ईसाई, सिख, अहमदिया और शिया उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों में से एक हैं।"