जिसने वोट दिया अपना टॉर्च जलाए, माँग कर जलाए लेकिन हमारे लिबरल और सेकुलर लोगों का क्या? हमारी तो अभी से ही सुलगने लगी है, और पाँच तारीख तक तो हवा का बहाव सही रहा तो आग भी जल जाएगी।
प्रोफेसर कौशल किशोर ने रवीश कुमार को सलाह देते हुए कहा कि वो थोड़ी सकारात्मक बातें भी करें। जब प्रधानमंत्री देश की जनता की परेशानी के लिए क्षमा माँग रहे हैं, ऐसे में रवीश क्या कहते हैं कि देश की सारी जनता मर जाए?
आप ही बताइए कि क्या प्रधानमंत्री के बोलने से कोरोना मर जाएगा? तब तो हर देश के प्रधानमंत्री को माइक ले कर, संबोधन दे देना चाहिए, कोरोना मर जाएगा। जबकि हमारे फैजान मुस्तफा बताते हैं कि IPC और संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि भाषण देने से कोरोना मर जाता है।
वे 'देवानंद' बनना चाहते थे, लेकिन बन गए कुंठित पत्रकार। सो, खीझ होनी स्वभाविक है। इसलिए ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि राजदीप सरदेसाई को अब रवीश कुमार भी दुकानदार बता रहे हैं। कह रहे हैं मैं उनकी तरह बैलेंसवादी नहीं हूॅं।
शाहीन बाग़ ने अपने चहेते मीडियाकारों के साथ मिलकर रोज थोड़ा-थोड़ा प्रयासों से दिल्ली में हिन्दुओं के खिलाफ नरसंहार की तैयारियाँ शुरू की। बीस साल के दिलबर नेगी की मौत हो, चाहे आईबी अधिकारी अंकित शर्मा का चार सौ बार चाकुओं से गोदा गया शरीर हो, इस सबकी पटकथा शाहीनबाग ने ही आधार दिया इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए।
"सोशल मीडिया पर यूजर्स का कहना है कि शाहरुख की गिरफ्तारी के बाद एनडीटीवी पर मातम छा गया है। रवीश ने बहुत मेहनत की थी उसे अनुराग मिश्रा बताने में। लेकिन अब हकीकत का खुलासा होने के बाद हो सकता है कि रवीश कुमार स्क्रीन काली कर दे।"
पोस्ट में पहले रवीश कुमार लादेन कि फोटो को फोटोशोप बता रहे थे। अंत में रवीश कुमार ने पाठकों के लिए नोट में लिखा कि यह पोस्ट अब अपडेट कर ली गई है। इस बीच जो 5 बार एडिटिंग की गई - असली खबर यहीं छुपी है और मजेदार भी - सब स्क्रीनशॉट में कैद कर लिया गया है।
26 फरवरी को रवीश कुमार ने जिस तरह से तथ्यों को प्राइम टाइम में पेश किया वह इस बात का सबूत है कि मेनस्ट्रीम मीडिया दंगाई के मुस्लिम होने पर न केवल उसका नाम छिपाता है, बल्कि उसे क्लीनचिट भी देता है।