Friday, October 18, 2024

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द प्रिंट

द प्रिंट की ‘ज्योति’ में केमिकल लोचा ही नहीं, हिसाब-किताब में भी कमजोर: अल्पज्ञान पर पहले भी करा चुकी हैं फजीहत

रेमेडिसविर पर 'ज्ञान' बघार फजीहत कराने वाली ज्योति मल्होत्रा मिलियन के फेर में भी पड़ चुकी हैं। उनके इस 'ज्ञान' के बचाव में द प्रिंट हास्यास्पद सफाई भी दे चुका है।

भारत-विरोधी फंडिंग का खुलासा, The Print ने ‘गलती’ से छाप भी दिया… बाद में चुपके से किया डिलीट

शेखर गुप्ता के 'द प्रिंट' ने ग्रेटा वाली टूलकिट के भारतीय मीडिया संस्थानों से लिंक को उजागर करने वाले वीडियो को हटाए जाने के सम्बन्ध में प्रकाशित एक रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट से हटा दिया है।

ट्वीट के बदले रिहाना को मिले थे ₹18 करोड़, खालिस्तानी कनेक्शन भी आया सामने: रिपोर्ट

सूत्रों का मानना ​​है कि स्काईरॉकेट ने ट्वीट करने के लिए पॉप स्टार रिहाना को 18 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान किया।

ThePrint को रूसी विदेश मंत्रालय से पड़ी लताड़, भारत-रूस का नाम ले फैला रहा था फेक न्यूज

रूसी विदेश मंत्रालय ने शेखर गुप्ता की 'द प्रिंट' को जम कर लताड़ लगाई। उसने भारत-रूस के बीच होने वाली वार्षिक बैठक को लेकर फेक न्यूज़ फैलाई थी।

सेना राष्ट्रवादी क्यों, सरकार से लड़ती क्यों नहीं: AAP वाले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ने ‘द प्रिंट’ में छोड़ा नया शिगूफा

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) HS पनाग पनाग चाहते हैं कि सेना को लेकर जम कर राजनीति हो, उसे बदनाम किया जाए, दुष्प्रचार हो, लेकिन सेना को इसका जवाब देने का हक़ नहीं हो क्योंकि ये राजनीतिक हो जाएगा।

दीप्रिंट वालो! ‘लव जिहाद’ हिन्दू राष्ट्र का आधार नहीं, हिन्दू बच्चियों को धोखेबाज मुस्लिमों से बचाने का प्रयास है

लव जिहाद कोई काल्पनिक राक्षस नहीं है। ये वीभत्स हकीकत है। मेरठ में हुआ प्रिया का केस शायद जैनब ने पढ़ा ही नहीं या निकिता के साथ जो तौसीफ ने किया उससे वो आजतक अंजान हैं।

पत्रकारों पर हमला और शेखर गुप्ता बॉलीवुड के साथ: कौन सी ‘जर्नलिज्म’ के दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं एडिटर्स गिल्ड के चीफ?

अभिव्यक्ति की आजादी को तहस-नहस करने वाले बाहर निकल कर आ रहे हैं और बॉलीवुड की सराहना कर रहे हैं ताकि अपने प्रतिद्वंदियों की आवाज को दबाव सके।

हुई गवा? करवा ली बेइज्जती? ‘दी प्रिंट’ ने पहले थूका, फिर पकड़े जाने पर चाटा

'द प्रिंट' ने 'लव जिहाद' के बारे में 'एक अभियान चलाने' के लिए भी स्वाति गोयल को निशाना बनाया और कहा कि उन्होंने 'लव' में 'जिहाद' देखा।

उच्च कोटि का मादक पदार्थ लेते हैं The Print वाले, सुषमा स्वराज की तुलना सुब्रमण्यम स्वामी से करने पर कम से कम यही महसूस...

ऐसा लगता है कि The Print के लोग उच्चतम क्वालिटी का गाँजा ग्रहण करते हैं। शेखर गुप्ता के मीडिया के लेख इस बात के प्रमाण हैं।

एक लेख में 8 बार बु* शब्द का प्रयोग बताता है कि ‘दि प्रिंट’ का दिमाग कहाँ घुसा हुआ है

ऐसे लेखों का औचित्य क्या है? इससे किसका भला हो रहा है? क्या इसका औचित्य भोजपुरी बोलने वालों को नीचा दिखाना नहीं है।

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