Saturday, July 27, 2024
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सेना राष्ट्रवादी क्यों, सरकार से लड़ती क्यों नहीं: AAP वाले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ने ‘द प्रिंट’ में छोड़ा नया शिगूफा

HS पनाग खुद AAP में रहे हैं और वो सैन्य अधिकारियों पर रिटायरमेंट के बाद पद की लालच में सरकार का साथ देने का आरोप लगा रहे। उस नेहरू को याद कर रहे, जिनके चलते 1962 का युद्ध हम हार गए।

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) HS पनाग को लगता है कि भारतीय सेना राष्ट्रवाद की विचारधारा से प्रभावित हो रही है और ये परेशानी की बात है। वो अक्सर भाजपा के विरोध में लिखने के लिए ‘द प्रिंट’ जैसे संस्थानों का रुख करते हैं और इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया है। इसके लिए उन्होंने याद किया है कि कैसे नेहरू ने जनरल केएम करियप्पा को स्वतंत्र भारत का पहला सेना प्रमुख नियुक्त किया था और उन्होंने ही भारतीय सेना पर ‘सिविलियन कंट्रोल’ स्थापित किया था।

इसमें सबसे पहली आश्चर्य वाली बात तो ये है कि सेना राष्ट्र के लिए लड़ती है, राष्ट्र के नागरिकों की आपदा के समय सहायता करती है और राष्ट्र की सीमा की सुरक्षा करती है, तो फिर उसके राष्ट्रवादी होने से किसी को क्यों दिक्कत होनी चाहिए? क्या देशद्रोहियों के हाथ में देश की रक्षा की जिम्मेदारी दे दी जाए? राष्ट्र के लिए कार्य करने वला राष्ट्रवादी ही तो है। हर वो व्यक्ति जो देश के लिए कुछ न कुछ योगदान दे रहा है, राष्ट्रवादी ही तो है।

दूसरी चौंकाने वाली बात ये है कि भारतीय सेना को उपदेश देने के लिए पनाग ने जवाहरलाल नेहरू का नाम लिया है, जिनकी गलत नीतियों की वजह से चीन से भारत को हार मिली थी और न सिर्फ देश को अपनी भूमि गँवानी पड़ी, बल्कि कई जवानों को बलिदान भी होना पड़ा। अगर नेहरू इतने बड़े रणनीतिकार थे और सेना को उनकी बात माननी चाहिए तो फिर नेहरू ने अपने रक्षा मंत्री के साथ मिल कर जनरल KS थिमैय्या का अपमान किया था- ये बात भी सबको बताई जानी चाहिए।

पूर्व एयर मार्शल डेंजिल कीलोर दो टूक कहते हैं कि 1962 का युद्ध भारत केवल पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कारण हारा। उन्होंने उस समय एयरफोर्स का समर्थन नहीं किया। न ही सेना के जवानों को गर्म कपड़े उपलब्ध कराए। भारत यदि हारा तो उसकी वजह नेहरू थे। उन्होंने कहा था कि 1962 के युद्ध में सेना के हाथ में कुछ नहीं था। वो युद्ध बेहद राजनीतिक था, जिसे नेहरू ने हारा। शुरू भी उन्होंने किया और हारे भी वे।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने ही ‘Scrap The Army’ जैसे वाक्य कहे थे, क्योंकि तब उन्हें लगता था कि सेना की अब कोई ज़रूरत ही नहीं है। क्या HS पनाग इस बात पर भी उनका समर्थन करेंगे? उन्होंने जिक्र क्या है कि कैसे फील्ड मार्शल करियप्पा ने सेना को राजनीति से दूर रखने की बात की थी और नेहरू ने उन्हें कम प्रेस कॉन्फ्रेंस करने और ‘अर्द्ध राजनेता’ के रूप में काम न करने की सलाह लिखित में दी थी।

मतलब अब भारतीय सेना इस डिजिटल युग में भी पाषाणकालीन बनी रहे? जब दुनिया भर की सुरक्षा एजेंसियों के हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अकाउंट हैं और वो जनता से सीधे जुड़े हुए हैं, ऐसे समय में क्या हमारे सेना के जवान देश-दुनिया से कट कर रहें? अगर सेना को लेकर दुष्प्रचार फैलाया जाता है तो उसका जवाब न दिया जाए? आज हर एनकाउंटर और आतंकियों के मारे जाने के बाद सेना पर छींटाकशी होती है, क्या ये राजनीति नहीं?

पनाग चाहते हैं कि सेना को लेकर जम कर राजनीति हो, उसे बदनाम किया जाए, भ्रम फैलाया जाए, दुष्प्रचार हो, लेकिन सेना को इसका जवाब देने का हक़ नहीं हो क्योंकि ये राजनीतिक हो जाएगा। पनाग आज लिख रहे हैं कि सेना सरकार के पक्ष में बयान देती है और उन्हें चेताने की बजाए उनके बयानों की प्रशंसा होती है। उनका कहना है कि जनरल नरवणे ने ये कह कर गलती की कि सेना का आधुनिकीकरण पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का हिस्सा है।

असल में 2019 लोकसभा चुनाव से पहले राफेल-राफेल चिल्लाने वाले विपक्षी नेता स्वप्न देख रहे थे कि भारतीय सेना भी उनके सुर में सुर मिलाए। सेना कहे कि उन्हें राफेल कि जरूरत ही नहीं है। सेना कहे कि राफेल में घोटाला हुआ है। सुप्रीम कोर्ट और आम जनता, दोनों की अदालतों में पटखनी खाने वाले ये विपक्षी नेता हर मौके पर भारतीय सेना को बदनाम करने में लगे रहते हैं। हर घटना पर अफवाह फैलाई जाती है।

हाल ही में लोयापुरा में 3 आतंकवादियों का एनकाउंटर हुआ। मानवाधिकार की दुहाई देने वाले आरोप लगाने लगे कि सेना के जवान ने इनाम के चक्कर में ‘निर्दोष और निहत्थे नागरिकों’ को मार डाला। क्या सेना इस दुष्प्रचार के सबूत न पेश करे और जवाब न दे? जम्मू-कश्मीर पुलिस ने वीडियो शेयर कर के बता दिया कि तीनों आतंकियों को 2 दिन तक घेर कर आत्मसमर्पण के लिए कहा गया, लेकिन वो गोलीबारी करने लगे और जवाबी कार्रवाई में मारे गए।

‘द प्रिंट’ में HS पनाग का लेख

ये तो बस एक उदाहरण था। विपक्षी नेताओं, मानवाधिकार एक्टिविस्ट्स और वामपंथी मीडिया संस्थानों की वजह से हर साल ऐसे हजार मौके आते हैं। भारतीय सेना चुप बैठी रहेगी और सच्चाई को सामने नहीं लाएगी तो देश-दुनिया में उसकी नकारात्मक छवि बना दी जाएगी। जब ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान हमारे देश के लिए है और भारतीय सेना इसमें सहभागिता कर रही है तो क्या गलत है? वो किसी और देश की सेना तो नहीं!

पनाग ने आरोप लगाया है कि सेना प्रमुख वित्त मंत्री को बजट के लिए धन्यवाद देते हैं और पीएम मोदी की योजना की बात करते हैं। उन्होंने उन पर सरकार के मंत्री की तरह व्यवहार करने का आरोप मढ़ दिया। उनका कहना है कि रिटायरमेंट के बाद पोस्ट का लालच देकर सेना के अधिकारियों से राजनीतिक दल अपनी विचारधारा का अनुसरण करवा रहे हैं। उन्होंने इसे राष्ट्रवाद का दोहन और सेना की कमजोरी करार दिया।

लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) HS पनाग से बस एक सवाल है। राजेश पायलट को राजनीति में कौन लेकर आया था और उससे पहले वो कहाँ कार्यरत थे? कैप्टन अमरिंदर सिंह ने रिटायरमेंट के बाद कौन सी पार्टी ज्वाइन की? उस समय कौन सा राष्ट्रवाद था और किस पार्टी का? खुद HS पनाग ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली थी और अपनी बेटी अभिनेत्री गुल पनाग के लिए जम पर चुनाव प्रचार किया था।

इस तरह से तो खुद HS पनाग का लिंक एक राजनीतिक पार्टी से जुड़ गया? फिर ऐसे में उन्हें क्यों न किसी खास विचारधारा के लिए काम करने वाले व्यक्ति माना जाए, अगर उनके ही तर्क को यहाँ लगाएँ तो? इसके लिए उन्होंने अमेरिका का उदाहरण दिया है कि वहाँ डोनाल्ड ट्रम्प और सेना आमने-सामने आ गए थे। तो क्या वो चाहते हैं कि सेना गैर-राजनीतिक भी बनी रहे और राजनेताओं से लड़ाई-झगड़े भी करती रहे? ये कैसा तर्क है।

भारत अब अमेरिका के कानून के हिसाब से तो नहीं चलेगा न। अमेरिका में क्या कभी ओबामा, क्लिंटन या बुश को किसी ने सत्ता से बाहर होने के बाद सेना को गाली देते हुए देखा है? क्या किसी अमेरिकी मीडिया में अपनी सेना को निर्दोषों को मार डालने को लेकर कोई लेख देखा है? जबकि उनकी सेना कई देशों में फैली हुई है। अमेरिका में न ‘द प्रिंट’ जैसे संस्थान हैं और न ही HS पनाग जैसे दोहरे रवैये वाले लोग जो खुद किसी पार्टी में चले जाएँ और दूसरे ऐसा करें तो पूरी सेना को ही बदनाम करने में लग जाएँ।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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