30 अक्टूबर को बीजेपी विधायक दल के नेता का चुनाव होना है। इसके लिए भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मुंबई जाएँगे। कयास हैं कि विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद वे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिल सकते हैं।
“बीजेपी रोटेशन आधारित सीएम पद के लिए सहमत नहीं होगी। उपमुख्यमंत्री का पद शिवसेना को दिया जा सकता है। आदित्य ठाकरे के लिए उपमुख्यमंत्री पद पर शिवसेना को मान जाना चाहिए। फडणवीस मुख्यमंत्री का पद सँभाले।”
क्षेत्र विशेष तक सीमित शिव सेना को एहसास है कि हालिया उभार मोदी की लोकप्रियता की बदौलत है। भाजपा से अलग होने का नतीजा भी वह 2014 के विधानसभा और 2017 के बीएमसी चुनाव में भुगत चुकी है। देर-सबेर उसका लौटना तय है। तब तक उसके राजनीतिक फुफकार के मजे लीजिए!
भाजपा केवल शिवसेना के भरोसे बैठे नहीं रहना चाहती। बताया जा रहा है कि 15 निर्दलीय और कई छोटी पार्टियॉं उसके साथ आने को तैयार हैं। निर्दलीयों में ज्यादातर ऐसे हैं जिन्होंने टिकट नहीं मिलने पर बीजेपी से ही बगावत की थी।
यूॅं ही नहीं कहते बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। 44 सीटें जीत चौथे पायदान पर रही कॉन्ग्रेस भी शिव सेना के साथ मिल सरकार बनाने के ख्वाब बुन रही है। जबकि 54 सीटें जीतने वाली उसकी साझेदार एनसीपी बार-बार कह रही कि हम विपक्ष में बैठेंगे।
समीकरण कि अगर भाजपा को सत्ता से बाहर रखना ही ध्येय है तो शिव सेना के 56, कॉन्ग्रेस के 44 और एनसीपी के 54 की सरकार आराम से बहुमत के लिए ज़रूरी 145 विधायकों के सामने 154 खड़े कर सकती थी। लेकिन.....
अभी भी भाजपा और शिवसेना का गठबंधन बड़े आराम से बहुमत के लिए ज़रूरी 145 के आँकड़े के पार दिख रहा है, लेकिन शिवसेना ने साफ़ कर दिया है कि वह भाजपा से और दबने वाली नहीं है।
चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में भी सतारा की एक रैली में शरद पवार ने पार्टी में हुई दलबदल का ज़िक्र किया था। उनके निशाने पर भाजपा में शामिल हो जाने वाले उदयराज भोंसले रहे थे।