कहानी 1992 नई दिल्ली उपचुनाव की, जिसके बाद 'हारे' हुए शत्रुघ्न सिन्हा को भाजपा ने वो सब कुछ दिया, जो उन्हें किसी और पार्टी में जीतने के बाद भी नहीं नसीब होता। और कहानी अब की, जब वो भीड़ भी नहीं जुटा पाते। भाजपा ने उन्हें सही तरीके से हैंडल किया।
मंच पर केजरीवाल, भगवंत मान, हरमोहन और शत्रुघ्न सिन्हा की मौजूदगी के बावजूद लोगों का रैली में न आना चर्चा का विषय है। खाली कुर्सियाँ देख बौखलाए केजरीवाल ने 7-8 मिनटों में ही अपना भाषण समाप्त कर दिया।
अपने ही बयानों से विरोधाभास की स्थिति खड़ा करने वाले शत्रुघ्न लगातार भाजपा में तानाशाही का आरोप मढ़ते रहते हैं साथ ही यह भी कहते हैं कि जो कुछ भी हो जाए पटना साहिब से ही चुनाव लड़ेंगे।
जब सांसद स्तर के लोग ही इस तरह का मखौल सरेआम उड़ाएंगे तो #MeeToo जैसा अभियान तो धरा का धरा ही रह जाएगा। ख़ामोश बाबू की ख़ामोशी से मचाए शोर कभी ऐसे अभियानों को रफ़्तार पकड़ने ही नहीं देंगे।
शत्रुघ्न के इस रवैये की वज़ह से उनके खिलाफ पार्टी द्वारा कार्रवाई भी की जा सकती है। इस पर उनका कहना है कि जिस दिन भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व उनसे पार्टी छोड़ने को कहेंगे, वो उसी दिन पार्टी छोड़ देंगे।