“गाँव में लोगों ने अफवाह उड़ा दी है कि हमने दूसरे मजहब के परिवार से 2 लाख रुपए लेकर मामले को रफा-दफा कर दिया है। ये बिल्कुल गलत बात है। हमने ऐसा कुछ भी नहीं किया है और न ही करेंगे। हम तो कहते हैं कि 1 लाख रुपया मेरे से और ले लो और दोषियों को सजा दो। हमें पैसे नहीं, इंसाफ चाहिए। हमारी माँ चली गई, उनकी मौत नहीं हुई, उनकी हत्या की गई। हमारा एक जान चला गया। हम पैसा लेकर क्या करेंगे? हमें तो बस इंसाफ चाहिए।”
“यहाँ पर दो परिवार रहकर इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया। अगर यहाँ पर हिन्दुओं का सिर्फ दो परिवार होता तो ये लोग कब का उजाड़ कर मार दिए होते, घर में आग लगा दिए होते। आज हमारे साथ हुआ है। कल को किसी और के साथ हो सकता है।”
बालाजी मंदिर में प्रधानमंत्री के आह्वान पर रूकमानंद सैनी, मनोज सैनी, जीनकूदेवी, कैलाश, सुशीलकुमार तथा भागूराम द्वारा दीपक जलाए जा रहे थे। तभी अचानक सद्दाम, शाहरुख, जावेद, अरशद, एजाज, जाबिर ने आकर उनसे दीपक जलाने से मना किया। इस पर विवाद शुरू हो गया। जिसके बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उन पर पथराव शुरू कर दिया।
24 फरवरी की रात को जब दिलबर नेगी दुकान की बेकरी के गोदाम में सो रहा था, उसी समय दंगाइयों ने गोदाम में आग लगा दी। दंगाइयों ने दिलबर के हाथ-पैर काटे और अधमरी अवस्था में ही उसे आग के हवाले कर दिया। दिलबर के साथी श्याम का कहना था कि दंगाइयों ने उस पर भी हमला किया, जिससे वो गंभीर रूप से घायल हो गया।
यदि वह बिल कानून बन जाता तो आज ताहिर हुसैन पुलिस के शिकंजे में नहीं होता। उलटा दिवंगत आईबी ऑफिसर अंकित शर्मा के परिवार पर ही कार्रवाई हो रही होती। फ़ारूक़ फैसल गिरफ़्तार नहीं होता, उलटा प्राचीन हनुमान मंदिर की रक्षा के लिए जान हथेली पर रखने वाले हिन्दू ही जेल में होते।
बाइक टकराने को लेकर हुई इस झड़प को मीडिया रिपोर्ट्स में साम्प्रदायिक हिंसा का रूप देकर पेश किया जा रहा है। लेकिन ऑपइंडिया ने जब थाने में संपर्क किया तो पुलिस ने कहा कि इस घटना में साम्प्रदायिक हिंसा जैसा कोई मामला नहीं है।
दंगाइयों ने दिलबर सिंह नेगी के हाथ और पैर काटने के बाद उनके शरीर के बाकी हिस्से को जलती आग में फेंक दिया था। दिलबर सिंह नेगी उत्तराखंड के पौड़ी जिले स्थित थलीसैण ब्लॉक से सम्बन्ध रखते थे।