एक तरफ है करीब 1000 साल से चल रहा छल, प्रपंच और जोर। दूसरी तरफ है हिंदुओं का वह नैतिक बल, जिसका पहला पड़ाव सोमनाथ का पुनरुद्धार था। वह भारतीय चेतना, जिसकी अप्रतिम ऊर्जा अयोध्या है। वह सनातनी संस्कृति, जिसका प्रकाश पुंज मथुरा-काशी है।
आज खुद को श्रीराम से अलग बताने का समय नहीं। आत्मविश्लेषण करते हुए पूछने का समय है कि आज आपकी ख़ुशी में आपके कितने मुस्लिम और सेक्युलर मित्र आपके साथ खुश हैं?
कई लोग अगस्त में ही दीपावली मानाने की तैयारी में भी दिखते हैं। वैसे इससे हमें दूसरा वाला नारा - काशी-मथुरा बाकी है, याद आ जाता है, मगर उससे दीयों के बजाए कुछ और ही जलने लगेगा! नहीं?