जमीन पर मतदाताओं तक महागठबंधन की खबर पहुँचा पाने में बसपा कार्यकर्ता विफल रहे हैं। एक बड़ा मतदाता वर्ग हाथी न ढूँढ़ पाने के भ्रम में कमल का बटन दबा आ रहे हैं।
संभल के एसडीएम दीपेंद्र यादव ने इस मामले को गंभीर बताया। साथ ही बर्क के बयान वाली वीडियो का भी परीक्षण हुआ। प्रमाणिकता की पुष्टि होने के बाद उन्हें नोटिस जारी किया गया
रॉबर्ट वाड्रा के साले राहुल गाँधी की चुनावी तैयारियों को देखकर तो अब तक यही लग रहा है कि वो अगले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर के बजाए वो टिकटॉक की प्राचीर से राष्ट्र के नाम सम्बोधन देते हुए हुँकार भरते हुए देखे जाएँगे।
आप सोच कर भी नहीं सोच पाएँगे कि अमित शाह के बाद भाजपा का अध्यक्ष कौन बनेगा, मोदी के बाद भाजपा का पीएम कौन होगा या फिर यही देख लीजिये कि अटल जी और आडवानी जी की विरासत को कौन आगे बढ़ा रहा है?
फिलहाल बिहार महागठबंधन के सीटों की आधिकारिक घोषणा होने तक इंतजार कीजिए और ये सोच के मज़े लीजिए कि जब सीटों की ये मारामारी है तो प्रधानमंत्री पद के लिए किस हद तक जाया जा सकता है?
हिन्दी में कहें तो हताश कॉन्ग्रेस के लिए हाथ-पाँव मारकर, नदी में विसर्जन का नारियल निकालने के चक्कर में मरे हुए आदमी की काई जमी खोपड़ी का भी मिल जाना एक उपलब्धि ही है।
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कम से कम 15 प्रमुख नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। खास ख़बर ये है कि इन 15 में से 11 ऐसे नेता हैं, जिन्होंने बसपा के टिकट पर विधानसभा और आम चुनाव भी लड़ा है।
शाह ने एक ऐसा चक्रव्यूह रचा है, जिसमें उन्हें पता होता है कि विपक्षी नेता किस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने वाले हैं। उनकी पार्टी तैयार रहती है। वे 'सबूत-सबूत' चिल्लाते रहते हैं, शाह संगठन मज़बूत करने में लगे रहते हैं और एजेंडा सेट करते हैं।
जबकि, ऐसे मौक़ों पर चुप होकर देश और सेना के साथ खड़े होने का बात कहते हुए अपने वोटर बेस को बचाने की जुगत भिड़ानी थी, महागठबंधन एक तरह से भाजपा की तैयार पिच पर खेल रही है, और अपना जनाधार सेना पर सवाल खड़े करते हुए खो रही है।