'क्रांतिकारी' पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने ट्विटर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और इच्छाधारी आंदोलनकारी योगेन्द्र यादव को मशविरा दिया है।
क्या किसान आंदोलनों से आ रहीं किसानों की मौत की खबरें वास्तव में धरना-प्रदर्शन से जुड़ी हुई मौत हैं? नोटबंदी के दौरान भी '32 दिन में 100 मौत' का चलन देखने को मिला था।
HDFC के चेयरमैन दीपक पारेख इससे पहले केंद्र सरकार के बदलावों की सराहना कर चुके हैं। उन्होंने कृषि में बदलावों और श्रम कानून में आए बदलावों में भी सरकार का समर्थन किया था।
मध्य प्रदेश में दोस्तों की आपसी लड़ाई में देवराज अनुरागी की मौत हो गई। मीडिया इसे 'दलित युवक' को भोजन छूने पर 'ऊँची जाति के लोगों ने' पीट-पीटकर मार डाला, बताकर बेच रहा है।
“समस्या यह है कि पूरा तंत्र ऐसा बना हुआ है जिसमें देश विरोधी ताकतों को फलने-फूलने का मौक़ा मिलता है। इस भ्रष्ट तंत्र के विरुद्ध हमारी संख्या बहुत कम है लेकिन मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूँ कि एक न एक दिन बदलाव आएगा।"
द वायर सरीखे एजेंडापरस्त मीडिया समूहों के लिए इस श्रेणी का गिरगिटनुमा विश्लेषण या दावा कोई नई बात नहीं है। प्रोपेगेंडा ही इनका एकमात्र उद्देश्य है भले उसके लिए स्क्रीन पर कुछ अनर्गल ही क्यों न परोसना पड़े।