Saturday, April 20, 2024
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मनदीप पुनिया की रिहाई के लिए ‘पत्रकारों’ का पुलिस मुख्यालय पर जेएनयू टाइप स्टंट

रवीश कुमार ने भी इस पर अपनी व्यथा प्रकट करते हुए टिप्पणी की। लिखा, "जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती हैं। जो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाना चाहते है वो देश को जेल में बदलना चाहते हैं।"

शनिवार (जनवरी 30, 2021) रात सिंघू बॉर्डर पर स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) के साथ दुर्व्यवहार करने के बाद हिरासत में लिए गए मनदीप पुनिया की रिहाई की माँग को लेकर ‘पत्रकारों’ ने रविवार (जनवरी 31, 2021) को दिल्ली पुलिस मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। वह कथित तौर पर बैरिकेड हटाने की कोशिश कर रहा था और उसने पुलिस के साथ दुर्व्यवहार किया, जिसके कारण उसे हिरासत में लिया गया था।

गिरफ्तारी के बारे में बताते हुए एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि पुनिया प्रदर्शनकारियों के साथ खड़ा था और उसके पास प्रेस आईडी कार्ड नहीं था। वह उन बैरिकेड के माध्यम से जाने की कोशिश कर रहा था जो सुरक्षा के लिहाज से लगाए गए थे। इस दौरान पुलिसकर्मियों और उनके बीच विवाद शुरू हो गया।

पुलिस ने कहा कि कारवाँ के पत्रकार ने पुलिस के साथ दुर्व्यवहार किया, जिसके बाद उसे हिरासत में लिया गया। बावजूद उसके समर्थन में ‘पत्रकारों’ को रविवार को दिल्ली पुलिस मुख्यालय में नारेबाजी करते हुए देखा जा सकता है। वो लोग ‘तानाशाही नहीं चलेगी’ के नारे लगा रहे थे।

स्क्रॉल के विजयता लालवानी द्वारा शेयर किए गए एक वीडियो में, प्रदर्शनकारियों में से एक को ‘बीजेपी के गुंडों’ के बारे में बात करते हुए देखा जा सकता है। वह बताता है कि पिछले दो महीनों से मनदीप प्रदर्शनकारी किसानों के साथ रहता था, उसके साथ खाता-पीता था।

पत्रकार जिस तरह से नारे लगा रहे थे, उसे देख कर जेएनयू में वामपंथी द्वारा लगाए जाने वाले नारों का दृश्य याद आता है।

गणतंत्र दिवस के दौरान दिल्ली की हिंसा के दौरान एक प्रदर्शनकारी की मौत के मामले में गलत सूचना साझा करके हिंसा भड़काने की कोशिश के लिए कारवाँ के पत्रकारों पर भी देशद्रोह के आरोप में मामला दर्ज किया गया है। मनदीप पुनिया भी कथित तौर पर इस वामपंथी मीडिया पोर्टल से जुड़ा हुआ है।

रवीश कुमार ने भी इस पर अपनी व्यथा प्रकट करते हुए टिप्पणी की। रवीश कुमार ने अपनी टिप्पणी पत्रनुमा लिखी है जिसे जेलर साहब को संबोधित किया है। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा है, “जेल की दीवारें आज़ाद आवाज़ों से ऊँची नहीं हो सकती हैं। जो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पहरा लगाना चाहते है वो देश को जेल में बदलना चाहते हैं।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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