Monday, November 18, 2024

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Media Hypocrisy

गंगा किनारे समाधी दी गई लाशों की सच्चाई ‘गिद्ध’ मीडिया प्रोपेगेंडा से कहीं अलग: कई हिन्दू भी दफनाते हैं मृत शरीर

सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें 2018 की है, जब 2019 में होने वाले कुंभ की तैयारियों के लिए घाट की साफ सफाई हो रही थी। 85 वर्षीय पुजारी राममूरत मिश्रा बताते हैं कि वो बचपन से लोगों को दफनाते हुए देखते आ रहे हैं।

PM मोदी के खिलाफ विदेशी मीडिया गिरोह और उसका प्रोपेगेंडा: कभी ‘डिवाइडर इन चीफ’ तो कभी Covid के ‘एकमात्र जिम्मेदार’

मीडिया गिरोह और भारत के राष्ट्रवादी लोगों का युद्ध बहुत आगे तक चलने वाला है। इस युद्ध में इतना तो निश्चित है कि मीडिया, हिंदुओं और भारत के हितों पर जोरदार प्रहार करने वाला है और उसके सामने खड़े हैं प्रधानमंत्री मोदी और उनका समर्थन करने वाले करोड़ों हिन्दू।

प्लेन से उतार रवीश को सरकार ने किया अरेस्ट: बाल्टी पर बरखा ने की रिपोर्टिंग, ‘वल्चर’ राजदीप ने कहा- शाम बन गई

"रवीश कुमार हिंदी पत्रकारिता के बरखा दत्त थे... भारत की आवाज़ थे। किसी ने उनसे सवाल पूछा तो जवाब में उन्होंने उसे ब्लॉक कर दिया।"

‘अल्लाह-हू-अकबर’ के साथ दंगे, आतंक, जबरन धर्म-परिवर्तन पर चुप्पी… लेकिन ‘जय श्रीराम’ नारे पर सबूत माँग रहा गैंग

आपने यदि यह बताने की कोशिश कर दी कि केवल भारत में ही नहीं पूरे विश्व में एक कट्टरपंथी विचारधारा एक नारे का प्रयोग कर रही है तो...

इजरायल का Iron Dome वाशिंगटन पोस्ट को खटका… तो आतंकियों के हाथों मर ‘शांति’ लाएँ यहूदी?

सोचिए, अगर ये तकनीक नहीं होती तो पिछले दो हफ़्तों से गाज़ा की तरफ से रॉकेट्स की जो बरसात की गई है उससे एक छोटे से देश में कितनी भीषण तबाही मचती!

हिन्दू जिम्मेदारी निभाएँ, मुस्लिम पर चुप्पी दिखाएँ: एजेंडा प्रसाद जी! आपकी बौद्धिक बेईमानी राष्ट्र को बहुत महँगी पड़ती है

महामारी को फैलने से रोकने के लिए यह आवश्यक है कि संक्रमण की कड़ी को तोड़ा जाए। एक समाज अगर सतर्क रहता है और दूसरा नहीं तो...

हनुमान भक्ति से सरप्लस ऑक्सीजन… लेकिन विज्ञापन में फोटो सिर्फ सीएम साहब की: मंत्री जी की प्रेस कॉन्फ्रेंस

"जनता तो कुछ भी मान लेती है। जनता तो यह भी मान लेती है कि हल्ला क्लिनिक विश्व स्तरीय है। अमेरिकी सरकार उसकी नक़ल करके..."

स्वाति चतुर्वेदी पर HT के पत्रकार ने लगाया ‘कंटेंट चुराने’ का आरोप, हिमंत बिस्वा सरमा पर NDTV में लिखा था लेख

HT के पत्रकार जिया हक़ ने ट्विटर के माध्यम से दोनों ही लेखों का स्क्रीनशॉट शेयर किया और उस पैराग्राफ के बारे में बताया, जिसका उन्होंने कॉपी करने का आरोप लगाया।

हिंसा वही जो पिया मन भाए?

"जो है उसमें से अपने मतलब का सीन ही देखना है" से चलकर "कुछ नहीं दिख रहा है" - यही है वाम-तंत्री रिपोर्टिंग का क्रमिक विकास।

यूपी पर स्विच ऑन, बंगाल हिंसा पर स्विच ऑफ: मेनस्ट्रीम मीडिया का ये संतुलन क्या कहलाता है

मीडिया भय, लालच, स्वार्थ या मोह के कारण सच न दिखाए तो लोकतंत्र कैसे ज़िंदा रहेगा? क्या बंगाल को लेकर ऐसा ही नहीं हो रहा?

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