Friday, April 19, 2024
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गंगा किनारे समाधी दी गई लाशों की सच्चाई ‘गिद्ध’ मीडिया प्रोपेगेंडा से कहीं अलग: कई हिन्दू भी दफनाते हैं मृत शरीर

हिन्दू धर्मं में भी मृत लोगों की लाश को पवित्र गंगा नदी के किनारे जमीन के अंदर समाधी देने या दफनाने की प्रथा उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में पाई जाती है। 1988 के पहले तो लाशों को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह प्रथा बंद हो गई।

भारत परंपराओं और मान्यताओं का देश है। इन्हीं परंपराओं को अक्सर पश्चिमी जगत, लिबरल्स, वामपंथी और मीडिया के सदस्य समझ नहीं पाते हैं और इसे छलावा करार देते हैं। हालाँकि इन सबको समस्या मात्र हिन्दू धर्म से ही है। हिंदुओं की परम्पराएँ इन लिबरल्स और वामपंथियों को फूटी आँख नहीं सुहाती और शायद वो यह भी स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि हिंदुओं में मृत देह की अंतिम संस्कार के लिए भी कई विधियाँ हो सकती हैं।

हिन्दू धर्मं में भी मृत लोगों की लाश को पवित्र गंगा नदी के किनारे जमीन के अंदर समाधी देने या दफनाने की प्रथा उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में पाई जाती है। 1988 के पहले तो लाशों को गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यह प्रथा बंद हो गई। परंपराओं के अनुसार कई बार जब व्यक्ति साँप के काटने से मरता है, त्वचा रोग से ग्रसित होता है, नवजात होता है या साधु होता है तो उसे जलाया नहीं जाता बल्कि जमीन में दफनाया जाता है। 

इसके अलावा कई प्राचीन परंपराओं से जुड़े परिवारों में भी मृत सदस्य को जलाने के स्थान पर गंगा के किनारे दफनाया जाता रहा है। प्रयागराज का फाफामऊ घाट और शृंगवेरपुर घाट में भी यह प्रथा अपनाई जाती है, जहाँ मृत शरीर को दफनाकर उसे बाँस और रामनामी गमछे से ढँक दिया जाता है। अभी तक हिंदुओं की इन प्रथाओं से अनजान रहने वाले मीडिया समूह अचानक Covid-19 के समय इन घाटों पर प्रकट हो गए हैं। इन मीडिया के अवसरवादियों ने ये लाश दिखाकर यह बताना शुरू कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में Covid-19 संक्रमण के कारण होने वाली मौतें इतनी ज्यादा हैं कि लोग मृत सदस्यों का दाह संस्कार तक नहीं कर पा रहे हैं और उन्हें दफना रहे हैं।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी बताया इस प्रथा के बारे में

इसमें कोई दो राय नहीं कि कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान मौतें पहले से ज्यादा हुई हैं लेकिन प्राचीन परंपरा को प्रोपेगेंडा में घसीटना भी सही नहीं है। 26 मई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट शेयर करते हुए कहा कि तीन साल पहले जब कोरोना नहीं था तब भी घाट पर ऐसी तस्वीरें देखने को मिलती थीं। जागरण की इस रिपोर्ट में विस्तार से इस प्रथा के बारे में बताया गया है, जहाँ मृत व्यक्ति को गंगा नदी के किनारे दफनाया जाता है।

लिबरल मीडिया का नैरेटिव

हालाँकि, कुछ लोग इस प्रथा के बारे में जानते होंगे लेकिन उनके लिए यह केंद्र सरकार को दोष देने का एक जरिया बन गया। 24 मई को ही मोजो स्टोरी यूट्यूब चैनल चलाने वाली ‘पत्रकार’ बरखा दत्त ने एक रिपोर्ट शेयर की। इस रिपोर्ट में घाट पर दफनाई गई लाशों को दिखाते हुए कहा गया कि कुछ लाशें गंगा में तैरती हुई आई हैं तो कुछ यहीं घाट पर दफनाई गई हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया कि लगभग 1000 लाशें गंगा से बहकर तट पर आ गई हैं।  

रिपोर्ट में बताया गया कि संभव है कि इन लाशों को या तो पैसों की कमी के चलते या तो कोविड के कारण जलाने से मना किया गया है। अपने ही वीडियो चैनल की एक रिपोर्ट में बरखा खुद कहती हैं, “हम यह नहीं कहते हैं कि लाशों को दफनाने की प्रथा नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश के जिन घाट पर हम गए हैं वहाँ के स्थानीय लोगों ने बताया कि यहाँ लाशों में बढ़ोत्तरी देखी गई है।“

अलग कहानी कहती जागरण की रिपोर्ट :

जागरण की रिपोर्ट में बताया गया है कि सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें 2018 की है, जब 2019 में होने वाले कुंभ की तैयारियों के लिए घाट की साफ सफाई हो रही थी। ये तस्वीरें जागरण के फोटो पत्रकार मुकेश कनौजिया ने ली थीं। रिपोर्ट में 85 वर्षीय पुजारी राममूरत मिश्रा का बयान भी है जिन्होंने बताया कि वो बचपन से लोगों को दफनाते हुए देखते आ रहे हैं। मिश्रा ने कहा कि जिनको त्वचा रोग होता है या जो साँप के काटने से मरते हैं उन्हें यहाँ दफनाया जाता है।   

पत्रकार मुकेश कनौजिया का एक वीडियो भी है जिसमें वो बताते हैं कि यहाँ और भी ऐसी लाशें हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अभी ही कुछ हुआ है। उन्होंने बताया कि जब उन्हें गंगा किनारे दफनाई जाने वाली लाशों पर रिपोर्ट बनाने के लिए कहा गया था तब भी उन्होंने कई लाशें देखी थीं लेकिन तब तो कोरोना भी नहीं था।

प्रयागराज रेंज के आईजी केपी मिश्र ने 17 मई को टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया था कि सभी कोविड से मरने वालों का दाह संस्कार किया गया है। उन्होंने बताया कि स्थानीय पुलिस, जल पुलिस और SDRF के सदस्य लगातार यमुना और गंगा के घाटों पर निगरानी कर रहे हैं। दाह संस्कार के लिए पैसों की कमी पर उन्होंने कहा कि हमारी टीम ऐसे लोगों की सहायता भी करती है।

गिद्ध पक्षी लवारिस पड़ी मृत लाश को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखता है लेकिन मीडिया के गिद्ध इन लाशों पर अपना नैरेटिव चलाकर अपने पाठकों और दर्शकों के दिमाग को दूषित कर रहे हैं। मीडिया और लिबरल्स वामपंथियों के लिए जो शॉकिंग या अजीब हो सकता है वह कई हिन्दू परिवारों के लिए परंपरा की तरह है।   

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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