इस पत्रकार को इमरान खान ने 'Indian Sickulars' ग्रुप से लात मार बाहर कर दिया है। एनडीटीवी ने भी उसे बाहर करने का फैसला किया है। बरखा दत्त जैसे ग्रुप एडमिन्स ने भी माना है कि जब सवाल पाकिस्तान को ख़ुश करने का हो तो फेक न्यूज़ से बचना चाहिए।
इन 10 चेहरों को देख लीजिए। इन्होंने 2019 में नकारात्मकता, जातिवाद, डर और तानाशाही का कारोबार किया है। ऑपइंडिया लेकर आया है उन 10 लोगों के नाम, जिन्होंने पूरे 2019 में केवल बुरे कारणों से ही सुर्खियाँ बनाईं। कइयों को जनता ने इस साल करारा सबक सिखाया।
वर्ष 2019 जाने वाला है और इसी के साथ ऑपइंडिया हिन्दी के भी एक साल पूरे हो रहे हैं। इस साल राजनीति और समाज से ले कर न्यायपालिका और मीडिया से जुड़ी कई ऐसी खबरें थीं, जिन्हें पाठकों ने खूब पढ़ा और पसंद किया। 2020 में हम और भी उत्साह से बने रहेंगे आपके साथ।
"इस रजिस्टर में आपका नाम ज़रूर होना चाहिए, क्योंकि ये आपके बहुत काम आएगा। एनपीआर के बहुत सारे फायदे हैं। इसके जरिए ही 'यूनिक आइडेंटिटी कार्ड' मिलेगा। ये पहचान पत्र सरकारी योजनाओं में ख़ास कर के काम आएगा।"
"कई लोगों ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। बावजूद इसके सोनिया, प्रियंका और ओवैसी साजिश के तहत लोगों को उकसाने वाले बयान दे रहे हैं। इससे जामिया में हिंसा भड़की। रवीश कुमार ने इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और अन्य जगहों पर हिंसा हुई।"
रवीश बार-बार यह बात भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में एक आम आदमी के वोट की कीमत वही होती है जो उनके जैसे परम ज्ञानियों के वोट की है। शायद यही अभिजात्यता और घमंड उन्हें हर मतदान के बाद यह कहने पर मजबूर कर देता है (भाजपा की जीत की स्थिति में) कि युवाओं को रोजगार से मतलब नहीं।
हम ये मान लें कि 'अल्लाहु अकबर' का मतलब 'गॉड इज ग्रेट' होता है? इतने मासूम तो मत ही बनो। दंगा करते वक्त ये नारा उतना ही साम्प्रदायिक है जितना 'हिन्दुओं से आजादी' और ‘हिन्दुत्व की कब्र खुदेगी' है। राजनैतिक विरोध में 'नारा-ए-तकबीर' और 'ला इलाहा इल्लल्लाह' की जगह कैसे बन जाती है?
कोई मुझे ये बता दे कि विवाह की पार्टियों में व्यस्त तेलंगाना मुख्यमंत्री केसीआर जी के पास क्या इतना समय रहा होगा कि वो उस 'डीजे… डीजे… प्रतापगढ़… छलकत हमरो जबनिया ऐ राजा' वाले शोर में साइबराबाद पुलिस से बात भी कर पाए होंगे? फिर पुलिस का मुखिया किसको फोन करेगा? जी, केन्द्र के गृह मंत्रालय को।
हैदराबाद वाला मामला मजहबी नहीं लगता लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मजहबी बलात्कार होते ही नहीं! रवीश जैसों की कोशिश यह है कि इस घटना का इस्तेमाल कर उन तमाम 'रेप जिहाद' की खबरों को चर्चा से गायब कर दिया जाए जहाँ बलात्कारी का मकसद मजहबी घृणा ही है, और कुछ नहीं।