Wednesday, November 6, 2024

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Sabarimala

बैरंग घर लौटेंगी तृप्ति देसाई, अय्यप्पा स्वामी को चुनौती देने की अकड़ साल भर में दूसरी बार हवा

“चाहे मुझे सुरक्षा मिले या न मिले, हम आज मंदिर जाएँगे।” कोच्चि पहुँचने पर तृप्ति देसाई ने यही कहा था, लेकिन उनका मंसूबा अय्यप्पा भक्तों ने पूरा नहीं होने दिया। अब तृप्ति का कहना है कि पुलिस उन्हें सुरक्षा नहीं दे रही है इसलिए...

‘सबरीमाला तो ठीक… लेकिन अजान पर भी तो आया था कोर्ट का फैसला, उसका क्या?’

कॉन्ग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड को प्रोपेगेंडा किए बगैर चैन नहीं पड़ रहा। उसने खबर यह फैलाई कि सुबह की अज़ान और डेसीबल स्तर के बारे में आया फैसला लागू नहीं किया गया, अतः महिलाओं के सबरीमाला में प्रवेश से संबंधित फैसला भी लागू नहीं होना चाहिए।

सबरीमाला दर्शन से दो हफ्ते पहले केरल की वामपंथी सरकार का फिर यू-टर्न: कहा- रजस्वला महिलाएँ करेंगी मंदिर में प्रवेश

सबरीमाला के भक्तों पर अत्याचार करने के बाद केरल के वामपंथियों ने जून 2019 में केंद्र सरकार से सबरीमाला के रीति-रिवाजों की रक्षा करता एक कानून बनाने को कहा था। जबकि यू-टर्न ले लेने के बाद अब वही वामपंथी कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट 2018 का फैसला मानेंगे

ईसाईयों ने सबरीमाला को 1950 में आग लगा दी थी, आज भी नफरती चिंटुओं की नज़र पर है आस्था

सवाल यह भी है कि क्या हम खुद अपने मंदिरों पर जारी हमलों को उसी तरह देखने और बयान करने की हिम्मत जुटाएँगे जैसा वो सचमुच हैं? सेकुलरिज्म का टिन का चश्मा हम अपनी आँख से उतारेंगे क्या?

कॉन्ग्रेस में ‘G’ प्रथा को तोड़िए चिदंबरम जी, सबरीमाला-राम मंदिर आपसे न हो पाएगा

प्रथा वो है, जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी की विचारधारा लीन है। ‘परिवारवाद’ है प्रथा चिदंबरम जी... और अगर ये प्रथा नहीं है तो ‘राहुल गाँधी’ ही क्यों कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं... आप बन जाइए!

सबरीमाला पर केरल सरकार का फ़र्ज़ीवाड़ा: 51 की सूची में नाम, लिंग, उम्र हर चीज से खिलवाड़

सूची में कई नामों के सामने गलत उम्र लिखा गया है। 60 वर्ष उम्र की महिलाओं को 50 से कम उम्र की महिलाओं के रूप में दिखाया गया है

सबरीमाला विवाद: जेंडर इक्वालिटी, धार्मिक परम्पराएँ और धर्म

समाज और धर्म को एक ही मानकर, मंदिर को पूर्णतः पर्यटन स्थल मानकर उसमें जेंडर इक्वालिटी का तड़का मत लगाइए। हर बात, हर जगह लागू नहीं होती। अगर हो पाती तो मुस्लिम महिलाएँ भी हर मस्जिद में नमाज़ पढ़ पातीं और एक एनजीओ इसी सुप्रीम कोर्ट में इसे लागू करने के लिए लगातार प्रयत्न करती रहती।

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