समस्या केवल नेताओं के बहके बोल ही नहीं है। बचाव में गढ़े जाने वाले तर्क बताते हैं कि इस पार्टी के लिए कामुक टिप्पणियॉं कितनी आम बात है। पार्टी आलाकमान के घर की पढ़ी-लिखी सांसद रह चुकी बहू महिला के अंडरवियर का रंग बताए जाने को ‘छोटी सी बात’ बताती हैं।
वायरल हो रहे इस वीडियो में MLA नाहिद हसन समुदाय विशेष को सन्देश देते हुए कह रहे हैं कि उनके जैसे लोगों के सामान खरीदने से ही भाजपाइयों की दुकान और उनका घर चलता है। अगर वो लोग उनकी दुकान से सामान नहीं खरीदेंगे, तो उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाएगी।
नाहिद जिन लोगों के हक और रोजगार की बात के लिए लड़ाई लड़ने और हक के लिए आवाज उठाने की बात कह रहे हैं, वो लोग कैराना के सराय इलाके में अवैध रुप से रह रहे थे। प्रशासन का कहना है कि यह सरकारी जमीन है, जिस पर केवल सरकार का अधिकार है ।
पुलिस ने हनीफ, मतलूब, नब्बू, जुम्मा, नासिर, नाजिम, मुस्तकीम, शरीफ की तहरीर के आधार सांसद आजम खान और पूर्व सीओ आलेहसन के खिलाफ आईपीसी की धारा 342, 384, 447, 506 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है।
नीरज शेखर 2 बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने अपने पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निधन के बाद 2007 में बलिया सीट से पहली बार जीत हासिल की थी और बाद में वो 2009 में फिर से सांसद निर्वाचित हुए थे। 2014 में हार का मुँह देखने के बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया।
2013 में BSP सांसद रहते हुए उन्होंने वंदे मातरम का बहिष्कार करने के लिए संसद से वॉकआउट किया था। इससे पहले बर्क ने 1997 में संसद के 50 साल पूरे होने पर आयोजित स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में भी वंदे मातरम का बहिष्कार किया था।
CBI द्वारा अवैध खनन के मामले में 11 लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया जा चुका है। सीबीआई ने हमीरपुर जिले की पूर्व कलेक्टर और आईएएस अधिकारी बी. चंद्रकला, खनिक आदिल खान, भूवैज्ञानिक/खनन अधिकारी मोइनुद्दीन, समाजवादी पार्टी के नेता रमेश कुमार मिश्रा, उनके भाई दिनेश कुमार मिश्रा, राम आश्रय प्रजापति, हमीरपुर के खनन विभाग के पूर्व क्लर्क संजय दीक्षित, उनके पिता सत्यदेव दीक्षित और रामअवतार सिंह के नाम प्राथमिकी में शामिल हैं।
ऐसे समय में जब लोग अपनी ग़लती को सुधारने के लिए तैयार हैं और आगे की तरफ बढ़ रहे हैं, इस तरह की फ़िल्में जातिगत पहचान के पुराने ढकोसले को अपने गले से नीचे उतारने का एक बेशर्म प्रयास है, जिसकी जितनी निंदा की जाए वो कम है।
एक जाँच अधिकारी ने आरोपित के ख़िलाफ़ 2011 में हलफनामा दर्ज करवाया था, लेकिन सही प्रक्रिया फॉलो न करने के कारण उसे प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया गया था। इसके बाद ये मामला उस समय सुर्खियों में आया जब दोबारा मनोज को 2012 में सपा से टिकट मिला और साथ ही उन्हें मंत्री भी बनाया गया।