सुशांत सिंह राजपूत की मौत को आत्महत्या कहना इस घटना का बेहद सतही आँकलन कहा जा सकता है। जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ रही है, इसमें हर दिन और हर पल नया खुलासा हो रहा है। इस केस में अभी तक मौन रहने का कारण यह भी था कि महज कॉन्सपिरेसी थ्योरी के आधार पर बॉलीवुड में व्याप्त नेपोटिज्म, माफियाराज आदि निष्कर्ष पर पहुँचना भी जायज नहीं था।
इस प्रकरण में अब सुशांत सिंह राजपूत की मौत से भी ज्यादा महत्वपूर्ण दो बातें होतीं चली गईं – सुशांत सिंह राजपूत का ‘बिहारी’ होना, और मुंबई पुलिस का बिहार पुलिस के साथ ‘बिहारी पुलिस’ जैसा बर्ताव किया जाना! उन्हें ‘बिहारियों’ के साथ होते रहने वाले सदियों पुराने माइंडसेट के चलते ही नीच और घटिया समझकर उनके साथ हेय बर्ताव करते हुए उन्हें जाँच से रोका गया, लेकिन बिहार पुलिस की जाँच में समस्या क्या थी?
सुशांत सिंह राजपूत की मौत को पीछे रखकर उनके मानसिक स्वास्थ्य को ही मुख्य विषय बनाने में मीडिया ने पूरी भागीदारी निभाई है। जस्टिस लोया की मौत, जो कि उनके परिवार द्वारा भी नैसर्गिक बताई गई थी, रवीश कुमार जैसे प्रपंचकारी आज तक सवाल खड़े करते हैं, तो फिर जिस सुशांत सिंह की मौत पर, और अब इसकी जाँच पर इतना बवाल है, उस पर रवीश कुमार क्यों सवाल नहीं कर रहे?
इस पूरे प्रकरण में सुशांत सिंह राजपूत की मौत, नेपोटिज्म पर बहस, सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की मौत, महाराष्ट्र सरकार का हस्तक्षेप, बिहार और मुंबई पुलिस के बीच टकराव, सुशांत की पुरानी मित्र अंकिता लोखंडे के खुलासे, इन सभी बातों पर विस्तार से ऑपइंडिया के सम्पादक अजीत भारती का विवरण आप इस यूट्यूब लिंक पर देख सकते हैं।