1970 के दशक की बात है। इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थीं। एक महिला अपने दो बच्चों के साथ दिल्ली आती है और उसका दावा है कि वह अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह की वारिस हैं। उस औरत ने अपना नाम विलायत बेग़म बताया। उस महिला ने अपने बच्चों का नाम राजकुमार रज़ा महल और राजकुमारी सकीना बताया। एक रिपोर्ट के मुताबिक, उस महिला ने दावा किया कि एक समय उसका परिवार बेहद आलीशान जिंदगी जिया करता था। उसने सरकार से माँग रखी कि नई दिल्ली के चाणक्यपुरी में बसा मालचा महल उसे रहने के लिए दे दिया जाए।
महिला ने दावा किया कि उसके पति अवध की रियासत के नवाब वाजिद अली शाह के वंशज थे, सम्प्रदाय से वह लोग शिया थे और अवध रियासत के आखिरी नवाब के खानदान से ताल्लुक होने के चलते इसपर उनका हक है। बता दें कि नवाब वाजिद अली शाह को 1856 में अंग्रेजों ने कलकत्ता के पास माटियाबुर्ज में क़ैद कर दिया था।
न्यू-यॉर्क टाइम्स की एक खबर की मानें तो इस महिला ने इंदिरा गाँधी को चकमा देकर सरकार से दिल्ली के मालचा महल की संपत्ति ही हथिया ली। जब विलायत बेग़म ने अपनी माँग को लेकर इंदिरा सरकार पर दबाव डाला तो यूपी सरकार ने भी इस बात पर जोर दिया कि उसकी माँग को मान लिया जाए अन्यथा शिया समुदाय इसे अपनी तौहीनी समझेंगे। इसके बाद खुद इंदिरा गाँधी को अपनी सरकार के प्रति शिया समुदाय के विश्वास की चिंता होने लगी और उन्होंने इस मामले में घुटने टेकना ही मुनासिब समझा।
अपने दावे को और मज़बूत करने के लिए वह महिला विदेशी संवाददाताओं से मिलती जिनके ज़रिये उसकी कहानी दुनिया तक फैलती रही। 1984 आते-आते विलायत बेग़म ने भारत सरकार से समझौता करते-करते मालचा महल ले लिया। इंदिरा गाँधी ने भी इसको लेकर पूछे जाने पर सफाई पेश करते हुए कहा कि विलायत बेग़म ने सबसे कम लोकप्रिय मोनुमेंट मालचा महल को अपने रहने के लिए चुना है। बता दें कि यह खँडहर एक ज़माने में फ़िरोज़शाह तुगलक का हंटिंग लॉज हुआ करता था। तुगलक जब शिकार पर निकलते थे तो यहीं ठहरते थे। 1993 के बाद इस मालचा महल को लेकर कई जनश्रुतियाँ प्रचलित हुईं जिनमे कहा गया कि इस महल में रहने वाली विलायत बेग़म ने हीरे को पीसकर निगल लिया और आत्म-हत्या कर ली।
अवध के राजपरिवार का मालचा महल दरअसल नई दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि वर्ष 2016 में इस खानदान के राजकुमार प्रिंस साइरस और प्रिंस अली रजा की मौत के बाद से ही यह इमारत खाली और वीरान पड़ी है। अभी तक यही माना जाता रहा है कि विलायत बेग़म के पति वाजिद अली शाह के खानदानी थे। लेकिन, न्यू-यॉर्क टाइम्स की एक पत्रकार एलेन बैरी ने यह दावा किया कि यह महज़ एक ढोंग था। खुद को बेग़म कहने वाली विलायत और उसके बच्चों ने जो दावे किए वह झूठे थे।
‘Royal family of Awadh’ living in Malcha Mahal turns out ordinary https://t.co/X40WjtOsha
— Republic (@republic) November 25, 2019
दरअसल विलायत बेग़म की शादी लखनऊ में हुई थी मगर बँटवारे के वक़्त हुई हिंसा के बाद उनके पति पाकिस्तान में जा बसे। एलेन के मुताबिक, पति की मौत के बाद दिन-प्रतिदिन विलायत की हालत वहाँ बिगड़ने लगी। लखनऊ से बाहर निकलने के बाद वह खुद को संभाल नहीं पाई थी। उसकी हालत इस कदर बिगड़ती चली गई कि एक बार तो उसने पाकिस्तान के पीएम को थप्पड़ तक मार दिया था (हालाँकि एलेन ने पीएम के नाम का ज़िक्र नहीं किया है)।
इस हरकत के लिए विलायत को बड़ी सज़ा से बचाने के लिए लन्दन के एक मेंटल हॉस्पिटल में 6 महीने के लिए डाल दिया गया। उसे वहाँ मेंटल करार दे दिया गया, रोज़ इंजेक्शन लगाए जाते। विलायत ने वहाँ से निकलकर नई दिल्ली की ट्रेन पकड़ी और अपने चार बच्चों के साथ 1970 में हिन्दुस्तान भाग आई। अपने और अपने चार बच्चों से जुड़े कोई भी वैध दस्तावेज़ उस महिला के पास नहीं थे। न ही भारतीय प्रशासन ने इसके लिए उस महिला की कोई जाँच की।
उस महिला ने भारत में दाखिल होते ही कहा कि वह एक नवाब की खानदानी है और इंदिरा सरकार ने उसकी यह माँग मान ली। दिल्ली के मालचा महल में जाने से पहले उसने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफोर्म पर भी कुछ साल बिताए किसी ने भी इस मामले को लेकर एक सवाल तक नहीं किया।