Sunday, November 17, 2024
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लौट के CM ठाकरे ‘हिंदुत्व’ को आए: गणपति बाप्पा की शरण में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री

सीएम बनने के बाद आनन फ़ानन में उद्धव ठाकरे बेटे आदित्य ठाकरे और परिवार समेत भगवान सिद्धि विनायक के दर पर मौजूद हैं।

हिंदूवाद को ‘डंप’ कर उद्धव ठाकरे ने कॉन्ग्रेस और एनसीपी के साथ महा विकास अघाड़ी नाम के गठबंधन में सरकार तो बना ली है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि उन्हें खुद भी इस सरकार के ज़्यादा चलने की उम्मीद है नहीं, और ‘हिन्दू आतंकवाद’ के आविष्कारकों के साथ इस गठबंधन से हिन्दू वोट छिटकने का डर उन्हें सताना शुरू कर चुका है। यह यूँ ही नहीं है कि ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में उनके कपड़े ही नहीं, पूरा माहौल ही भगवा में रंगा हुआ था। यही नहीं, शिवाजी पार्क की जगह चुनने से लेकर शपथ लेने की महीन सूक्ष्मताओं और उसके बाद के उनके कार्यकलापों को ध्यान से देखें तो उद्धव ठाकरे की हिन्दू वोट सहेजने की जद्दोजहद सीएम बनने के कुछ ही घंटों में साफ दिख रही है। 

सीएम बनने के बाद आनन फ़ानन में उद्धव ठाकरे बेटे आदित्य ठाकरे और परिवार समेत भगवान सिद्धि विनायक के दर पर मौजूद हैं। आम परिस्थितियों में यह आम ही बता होती- आखिर ठाकरे परिवार केवल हिंदूवादी राजनीति का मज़बूत धड़ा ही नहीं रहा है, बल्कि अपने दैनिक जीवन में भी हिन्दू धर्म का अनुयायी रहा है। बालासाहेब ठाकरे साल भर भले न निकल पाते रहे हों, विजयदशमी के दिन वे शिव सैनिकों को भाषण देते ही थे। लेकिन यह परिस्थितयाँ आम नहीं हैं। 

हिंदूवादी मानी जाने वाली भाजपा के साथ चुनाव लड़ने के बाद छटक कर अलग हो जाने को ही शिव सेना का वोटर इकलौता धोखा नहीं मान रहा है। जिस कॉन्ग्रेस के साथ आज उद्धव ने सरकार बनाई है, वह तो जानी ही हिन्दू-विरोधी नीतियों के लिए जाती रही है। इंदिरा गाँधी के समय तक तो कम-से-कम कॉन्ग्रेस नेताओं के व्यक्तिगत रूप से धर्म में निष्ठावान होने की छवि थी, लेकिन सोनिया गाँधी की कॉन्ग्रेस और उसकी यूपीए सरकार तो मतांतरण-माफ़िया की सबसे बड़ी सहयोगी बन कर उभरी। ऐसे में शिव सेना का हिंदूवादी वोटर ठगा महसूस कर रहा है, और ठाकरे यह महसूस कर रहे हैं। 

इसके अलावा सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने उनके शपथ ग्रहण से कन्नी काट ली है। यह भी उद्धव के लिए शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि सोनिया शायद इस गठबंधन के लिए शुरू से ही तैयार नहीं थीं, और कमलनाथ समेत दूसरे नेताओं ने मनाया। ऐसे में ऐसा भी हो सकता है कि आसन्न दिल्ली, बिहार, झारखंड चुनावों के मुस्लिम वोट बैंक के लालच में कॉन्ग्रेस कुछ दिन में इस सरकार से समर्थन ही वापिस ले ले। वहीं एनसीपी के अजित पवार को ढाई साल सीएम बनाने की माँग भी लाख अफवाह कही जाए, लेकिन इससे कोई आधिकारिक रूप से इंकार भी नहीं कर रहा है। 

इनमें से किसी भी कारण से उद्धव की कुर्सी चली गई तो सवाल यह होगा कि वे और उनके शिव सैनिक हिंदूवादी वोटरों के पास कौन सा मुँह लेकर पहुँचेंगे। इसलिए उनका आज सिद्धि विनायक मंदिर में दर्शन के लिए जाना महज़ गणपति बाप्पा के आशीष के लिए नहीं है, बल्कि बाप्पा के भक्तों को यह भी दिलासा दिलाने की कोशिश है कि बाला साहेब के शेर ने ‘इटैलियन पट्टा’ (जोकि बाला साहेब इस तरह से मिले सीएम पद को कहते) भले ही पहन लिया हो, लेकिन उसकी गुर्राहट आज भी भगवा है। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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