हमारे देश में जब लोकसभा चुनाव का दौर आता है तो वो देश का हर नागरिक अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की पूरी कोशिश करता है। हालात चाहे जो भी हों लेकिन लोकतंत्र के इस महापर्व में अपने कर्तव्य का पालन करना प्राथमिकता बन जाती है। दंतेवाड़ा के कुआकोंडा क्षेत्र में बीते मंगलवार (9 अप्रैल) की शाम को नक्सलियों द्वारा किए गए विस्फोट में भाजपा के विधायक भीमा मंडावी की मृत्यु हो गई थी और चार जवान वीरगति को प्राप्त हुए। इसके बाद बुधवार (10 अप्रैल) की शाम को उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की गई।
विधायक की मृत्यु से पूरे परिवार में मातम पसरा हुआ था लेकिन उनकी अंत्येष्टि के अगले दिन ही यानि गुरुवार (11 अप्रैल) को दु:ख की इस घड़ी में भी परिजनों ने लोकतंत्र के प्रति अपने दायित्व से मुँह नहीं मोड़ा। मंडावी के परिवारवालों ने मतदान के लिए अपने क़दम आगे बढ़ाए। वोट डालकर परिजनों ने देश में यह संदेश पहुँचाने का काम किया कि हालात कुछ भी हों लेकिन देश सबसे पहले है। परिजनों ने अपने इस कर्तव्य को न सिर्फ़ निभाया बल्कि देश के सभी नागरिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बना।
भाजपा विधायक मांडवी के परिवार में की उनकी पत्नी ओजस्वी, उनकी माँ और परिवार के छह अन्य सदस्य 40 डिग्री की भीषण गर्मी में वोट डालने के लिए कतार में खड़े थे। मतदान के लिए अपनी बारी का इंतज़ार करने वाला यह पूरा परिवार देश की मज़बूती में अपना योगदान देने को तत्पर दिखा।
माओवादियों ने वहाँ की जनता को डराने के लिए विस्फोट किया और पूरा प्रयास किया कि क्षेत्र के लोग मतदान के लिए आगे न बढ़ें, ऐसे में विधायक के परिवार की हिम्मत की दाद देनी होगी। विधायक के पिता लिंगा मंडावी की आँखें डबडबाई हुई थी, उनकी पत्नी ओजस्वी का गला रुँधा हुआ था, फिर भी लोकतंत्र के इस पर्व में परिवार का शामिल होना देश के प्रति उनकी सच्ची आस्था को प्रकट करता है।
दंतेवाड़ा के दहशत भरे माहौल को बयाँ करते हुए एक महिला ने कहा कि लोकतंत्र का प्रचार करने वाले विधायक मांडवी को अपना जीवन खोना पड़ा, कम से कम हम मतदाताओं के रूप में अपने कर्तव्य को तो पूरा कर ही सकते हैं। जहाँ एक तरफ दंतेवाड़ा में मतदाताओं का यह हिम्मत भरा क़दम दिखा तो वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओवादियों का डर देखने के मिला। वहाँ लोगों ने मतदान तो किया, लेकिन मतदान के बाद ऊँगली पर लगे निशान को मिटाने का भी काम किया, जिससे यह पता न चल सके कि उन्होंने मतदान किया है।
बुलेट और बैलेट में से मतदान को चुनकर, बस्तर लोकसभा सीट के 57% से अधिक मतदाताओं ने माओवादियों की धमकियों से डरने की बजाए मतदान में अपना योगदान दिया। बस्तर के 11 लाख मतदाताओं में से छह लाख से अधिक महिलाएँ हैं। अपना वोट डालने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही एक बुजुर्ग आदिवासी महिला ने कहा कि वह मांडवी की हत्या से आहत थी। पूरे क्षेत्र में माओवादी धमकियों के बावजूद, वह मतदान केंद्र पर गईं। उनका कहना था कि यदि हम वोट नहीं देंगे, तो हम अपनी सरकार को फिर से कैसे चुनेंगे? सरकार ने हमारे लिए और हमारे विकास के लिए बहुत कुछ किया है।