Thursday, December 12, 2024
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क्या बोल्ला काली मंदिर में बंद हो जाएगा बलि प्रदान? कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा- इसे प्रोत्साहित न करें, लोगों को इससे दूर रहने को मनाएँ

इससे पहले हाई कोर्ट की अवकाश पीठ ने कहा था कि माना कि पशु बलि एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, लेकिन उत्तर भारत और पूर्वी भारत में आवश्यक धार्मिक प्रथा क्या है, इसमें बहुत अंतर है। पीठ ने टिप्पणी की थी, “यह विवाद का विषय है कि पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे या मांसाहारी।” पीठ ने यह भी कहा था, “यदि भारत के पूर्वी भाग को शाकाहारी बनाने का लक्ष्य है तो यह नहीं हो सकता है।"

कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से कहा है कि वह सुनिश्चित करे कि बोल्ला काली पूजा के अवसर पर मंदिर समिति पशुओं की सामूहिक बलि को प्रोत्साहित ना करे। कोर्ट ने कहा कि धार्मिक उद्देश्यों के लिए पशुओं की दी जाने वाली बलि की वैधता पर बाद में विचार किया जाएगा। इससे पहले हाई कोर्ट की समन्वय बेंच ने बलि पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

दरअसल, कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ‘रिफॉर्म्स सोशल वेलफेयर फाउंडेशन’ नाम के एक एनजीओ की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में मंदिर में पशुओं की बलि देने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने की माँग की गई थी।

याचिका पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि याचिका पर पूजा के उत्सव से एक दिन पहले सुनवाई हो रही है, इसलिए पशुओं के वध पर कोई सीधा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। हाई कोर्ट की पीठ ने आगे कहा कि पूजा समिति पशुओं के सामूहिक बलि को प्रोत्साहित नहीं करेगी और श्रद्धालुओं को भी ऐसा करने से रोकेगी।

कोर्ट ने कहा, “चूँकि यह त्योहार 22 नवंबर 2024 को शुरू होना है। इसलिए हम पूजा समिति को निर्देश देते हैं कि वे उप-विभागीय अधिकारी, बालुरघाट सदर द्वारा दिनांक 6.11.2024 को हुई बैठक में जो सहमति बनी थी, उसका सख्ती से पालन करे। यह भी सुनिश्चित करे कि सामूहिक बलि न दी जाए। यदि बलि दी भी जाए तो वह लाइसेंस प्राप्त परिसर में ही की जाए, किसी अन्य क्षेत्र में नहीं।”

कोर्ट ने कहा कि राज्य का प्राधिकारी यह भी सुनिश्चित करेगा कि पूजा समिति सामूहिक बलि को प्रोत्साहित न करे और लोगों को इस तरह की सामूहिक बलि से दूर रहने के लिए भी मनाए। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि धार्मिक उद्देश्यों के लिए पशुओं की दी जाने वाली बलि की वैधता पर बाद में विस्तृत विचार किया जाएगा।

वहीं, याचिकाकर्ता संगठन ने दावा किया कि कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन 2023 और 2024 में किया गया है। कहा गया है कि 2023 में पूजा समिति का गठन करने वाले उन्हीं पदाधिकारियों ने 2024 में भी समिति का गठन किया है और कोर्ट के कई निर्देशों का पालन नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि यदि पूजा समिति आदेश में उल्लेखित शर्त का उल्लंघन करती है तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है।

इससे पहले अक्टूबर में ‘अखिल भारतीय कृषि गो सेवक संघ’ द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विश्वजीत बसु और अजय कुमार गुप्ता की कलकत्ता हाई कोर्ट की अवकाश पीठ ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। याचिकाकर्ता ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड को राज्य के विभिन्न मंदिरों में ‘वीभत्स और बर्बर तरीके से की जाने वाली पशु बलि’ को रोक लगाने के लिए निर्देश देने की माँग की थी।

हालाँकि, हाई कोर्ट की पीठ ने कहा था कि माना कि पशु बलि एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, लेकिन उत्तर भारत और पूर्वी भारत में आवश्यक प्रथा क्या है, इसमें बहुत अंतर है। पीठ ने टिप्पणी की थी, “यह विवाद का विषय है कि पौराणिक पात्र वास्तव में शाकाहारी थे या मांसाहारी।” पीठ ने यह भी कहा था, “यदि भारत के पूर्वी भाग को शाकाहारी बनाने का लक्ष्य है तो यह नहीं हो सकता है।”

दरअसल, जस्टिस बसु जिस धारा का उल्लेख कर रहे थे उसमें कहा गया है, “इस अधिनियम में निहित कोई भी बात किसी भी समुदाय के धर्म द्वारा अपेक्षित तरीके से किसी भी पशु को मारना अपराध नहीं बनाएगी।” इसके बाद हाई कोर्ट की पीठ ने राहत देने से इनकार करते हुए आगे की सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध कर दिया।

पिछले साल मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ से भी इस संगठन ने ‘बोल्ला काली पूजा’ के अवसर पर 10,000 बकरियों और भैंसों के वध पर रोक लगाने का अनुरोध किया था। पीठ ने पशु बलि को रोकने के लिए अंतरिम राहत से इनकार कर दिया था। हालाँकि, पीठ पश्चिम बंगाल में पशु बलि की वैधता के बड़े सवाल पर विचार करने के लिए सहमत हुई।

बोल्ला गाँव बालुरघाट शहर से 20 किलोमीटर दूर बालुरघाट-मालदा राजमार्ग पर स्थित है। इस गाँव में एक ऐतिहासिक मंदिर है, जहाँ श्रद्धालु माँ काली की पूजा करते हैं। मुख्य काली पूजा रास पूर्णिमा के बाद शुक्रवार को होती है। दक्षिण दिनाजपुर जिले के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा के दौरान मंदिर में इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस दौरन तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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