Tuesday, December 10, 2024
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जिस मस्जिद को मुगल आक्रांता औरंगजेब ने केशवदेव मंदिर को तोड़कर बनवाया, वह मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़े एक और मामले में बना पक्षकार: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दी अनुमति

हिंदू पक्ष का दावा है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब ने 1670 में फरमान जारी करके मथुरा में भगवा केशवदेव के मंदिर को तोड़ने के लिए फरमान जारी किया था। इसके बाद वहाँ शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई। इस मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए औरंगजेब खुद भी आया था। इसका जिक्र कई अंग्रेज इतिहासकारों ने भी किया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मस्जिद मुकदमा संख्या-3 में पक्षकार बनने की मथुरा के शाही ईदगाह मस्जिद के आवेदन को स्वीकार कर लिया है। इस मामले में एक पक्षकार ठाकुर केशव देवजी महाराज विराजमान और केशवदेव मंदिर कटरा केशवदेव हैं। इस मुकदमे में केशवदेव मंदिर परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की भी माँग की गई है।

वाद दायर करने वाले हिंदू पक्ष का कहना है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब ने सन 1670 में कटरा केशदेव मंदिर को ध्वस्त कर दिया था। मस्जिद में स्थित बहुमूल्य सोने एवं हीरे के आभूषण लूट लिए थे। इसके साथ ही भगवान केशवदेव के विग्रह को मुगल साम्राज्य की तत्कालीन राजधानी आगरा में स्थित जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर दबा दिया गया था।

शाही ईदगाह मस्जिद के सचिव तनवीर अहमद ने आवेदन में तर्क दिया कि वह इस मुकदमे में एक आवश्यक पक्ष हैं, क्योंकि वादी (हिंदू पक्ष) के दावों का कोई आधार नहीं है। मस्जिद पक्ष ने दावा किया कि मस्जिद के नीचे या उसके मंच या सीढ़ियों पर इस प्रकार की कोई मूल्यवान मूर्ति या प्रतिमा नहीं दबाई गई है। मस्जिद पक्ष ने तर्क दिया कि अगर उसे पक्षकार नहीं बनाया जाता है तो उसके हित प्रभावित होंगे।

ईदगाह मस्जिद के आवेदन का विरोध करते हुए हिंदू पक्ष ने कहा कि मुगल आक्रांता औरंगजेब हिंदू विरोधी था। उसने मूल्यवान आभूषण आदि लूटकर केशवदेव जी के विग्रह को आगरा की बेगम साहिबा मस्जिद की सीढ़ियों में दफनाए थे। इसलिए मथुरा के शाही मस्जिद ईदगाह को इस मुकदमे में पक्षकार बनने का अधिकार नहीं होना चाहिए।

दोनों पक्ष की दलीलों को सुनने के बाद जज राममनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने कहा कि आवेदक ईदगाह मस्जिद अधिकांश मुकदमों में प्रतिवादी है और वह अधिकांश मुकदमों में प्रभावी ढंग से मुकदमा लड़ रहा है। इसलिए ईदगाह मस्जिद को वाद संख्या 3 में भी प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। इसके साथ ही जज मिश्रा ने मस्जिद के आवेदन को स्वीकार कर लिया।

बता दें कि मथुरा के एक आरटीआई के जवाब में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर कहा था कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि को तोड़कर औरंगजेब ने शाही ईदगाह ढाँचा खड़ा करवाया था। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के रहने वाले अजय प्रताप सिंह ने देश भर के मंदिरों के बारे में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से आरटीआई के तहत जानकारी माँगी थी।

आरटीआई में दिए गए जवाब में कहा गया है कि अंग्रेजों के शासन के दौरान सन 1920 में इलाहाबाद से प्रकाशित गजट में यूपी के विभिन्न जिलों के 39 स्मारकों की सूची दी गई है। इसमें 37 नंबर पर कटरा केशवदेव भूमि पर श्रीकृष्ण जन्मभूमि का उल्लेख है। उसमें कहा गया है कि मस्जिद के स्थान पर पहले कटरा टीले पर केशवदेव मंदिर था, जिसे ध्वस्त करके मस्जिद बनाया गया है।

दरअसल, मथुरा का केशवदेव मंदिर अति प्राचीन मंदिर है। कहा जाता है कि जिस जगह पर कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से भगवान विष्णु के परमावतार श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, कालांतर में वहीं पर केशवदेव मंदिर का निर्माण हुआ था। श्रीकृष्ण के प्रपौत्र व्रज और व्रजनाभ ने राजा परीक्षित के सहयोग से इस मंदिर का निर्माण कराया था। जिसे समय-समय पर अन्य राजाओं ने इसका जीर्णोद्धार कराया।

हिंदू पक्ष का दावा है कि मुगल आक्रांता औरंगजेब ने 1670 में फरमान जारी करके मथुरा में भगवा केशवदेव के मंदिर को तोड़ने के लिए फरमान जारी किया था। इसके बाद वहाँ शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई। इस मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए औरंगजेब खुद भी आया था। इसका जिक्र कई अंग्रेज इतिहासकारों ने भी किया है।

मथुरा का यह विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक से जुड़ा है। श्रीकृष्ण जन्मस्थानभूमि के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है, जबकि ढाई एकड़ जमीन शाही ईदगाह मस्जिद के पास है। हिंदू पक्ष इस पूरी जमीन पर अपना दावा करता है। हिंदू पक्ष ईदगाह ढाँचे को हटाकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर बनाने की भी माँग करता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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