Thursday, May 9, 2024
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मकबूल शेरवानी: Pak हमलावरों को जिसने अकेले छकाया-भटकाया, उनकी कब्र का भारतीय सेना से जीर्णोद्धार और श्रद्धांजलि

भारतीय सेना ने मकबूल शेरवानी के बलिदान को सलाम करते हुए ही जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री की दूसरी वाहिनी का नाम ‘शेरवानी पलटन’ रखा है। पाकिस्तानियों ने मक़बूल को मार कर सलीब पर टाँग दिया था, लेकिन उन्होंने मरते दम तक वतन से गद्दारी नहीं की।

उत्तरी कश्मीर में झेलम किनारे स्थित ओल्ड टाउन बारामुला में शहीद मकबूल शेरवानी की कब्र और स्मारक के जीर्णाेद्धार का काम गुरुवार (जुलाई 15, 2021) को पूरा हो गया। इस अवसर पर सेना ने बलिदानी को श्रद्धांजलि अर्पित की और प्रार्थना सभा का आयोजन किया।

शहीद मकबूल शेरवानी वही शख्स हैं, जिन्होंने 1947 में कश्मीर पर कब्जा करने के घुसे पाकिस्तानी सैनिकों को बारामुला से आगे बढ़ने से रोका था। वह उन्हें श्रीनगर तक पहुँचने का गलत रास्ता बताते रहे। हमलावरों ने उस समय बारामुला और उसके साथ सटे इलाकों में लूटमार मचा रखी थी, वह कश्मीरी औरतों के साथ दुराचार कर रहे थे, लोगों को कत्ल कर रहे थे। मकबूल शेरवानी को लगा था कि अगर यह श्रीनगर तक पहुँच गए तो फिर कश्मीर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।

मकबूल शेरवानी ने हमलावरों को श्रीनगर एयरपोर्ट तक जल्द पहुँचाने का झाँसा देते हुए उन्हें गलत रास्ते पर भटकाया। इस बीच, मकबूल शेरवानी और उसके साथियों ने कई जगह सड़कों पर अवरोधक भी लगाए और पुलों को तोड़ा ताकि पाकिस्तानी हमलावरों को ज्यादा से ज्यादा समय तक श्रीनगर से दूर रखा जा सके।

प्रसिद्ध उपन्यासकार मुल्कराज आनंद मक़बूल शेरवानी से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने उसके ऊपर एक उपन्यास लिखा जिसका शीर्षक था: Death of a Hero. इस उपन्यास में एक स्थान पर मकबूल शेरवानी से एक फैक्ट्री का मालिक सय्यद मुरातिब अली कहता है कि हालात खराब हैं और कश्मीर छोड़कर भाग जाना चाहिए। इस पर मकबूल उत्तर देते हैं कि वो नहीं भागेंगे। मकबूल कहते हैं, “यदि हमें ‘मुस्लिम कट्टरपंथियों’ से उसी तरह आज़ादी चाहिए जैसे अंग्रेज़ों की गुलामी से ली थी तो हमें संघर्ष करना होगा।”

मकबूल का यह संघर्ष उसकी साँसें चलने तक चला था। जब पाकिस्तानियों को पता चला कि एक उन्हें एक किशोर ने बेवकूफ बना दिया था तब वे लौटे और मुल्कराज आनंद के इस हीरो को वास्तव में इतना मारा कि हैवानियत की भी रूह काँप गई। मारने से पहले उन्होंने मक़बूल को पाकिस्तानी फौज में शामिल होने का न्योता भी दिया था लेकिन मकबूल ने साफ इनकार कर दिया था। तब उन्होंने मक़बूल को मार कर सलीब पर टाँग दिया था ताकि देखने वाले हमेशा ख़ौफ़ में रहें। इतने पर भी खूनी खेल खेलने से मन नहीं भरा तो उसके मृत शरीर में दस पंद्रह गोलियाँ और दाग दीं। वह सात नवंबर, 1947 को वीरगति को प्राप्त हो गए।

उनके बलिदान के लगभग दो सप्ताह बाद महात्मा गाँधी ने दिल्ली में एक प्रार्थना सभा में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की थी। भारतीय सेना ने मकबूल शेरवानी के बलिदान को सलाम करते हुए ही जम्मू कश्मीर लाइट इन्फैंट्री की दूसरी वाहिनी का नाम ‘शेरवानी पलटन’ रखा है। बलिदानी मकबूल शेरवानी को ओल्ड टाउन बारामुला में दफनाया गया था। उनकी कब्र की देखभाल भारतीय सेना ही करती आई है। बलिदानी की कब्र और स्मारक का जीर्णाेद्धार कार्य भारतीय सेना ने अप्रैल माह में शुरू किया था और अब पूरा हो गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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