Tuesday, November 26, 2024
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OpIndia को ट्विटर ने किया सेंसर: भगवा को बदनाम करने वालों को करता है प्रमोट, पॉलिसी हिंदू-घृणा से सनी

यह पहली बार नहीं है जब बिग टेक कंपनियों ने उम्माह के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए अपने घुटने टेके हैं। भारत के प्रति NYTimes के नस्लवादी रवैये को भी याद रखने की आवश्यकता है।

माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर का दोगलापन एक बार फिर से उभर कर सामने आ गया है। दोगलेपन का ताजा शिकार ऑपइंडिया को बनाया गया है। मंगलवार, 2 नवंबर 2021 को ट्विटर ने Elle विवाद पर ऑपइंडिया द्वारा प्रकाशित एक संपादकीय कार्टून को हटा दिया। इसे हटाने के पीछे ट्विटर ने प्राइवेसी पॉलिसी के उल्लंघन का तर्क दिया है।

उक्त कार्टून को पहले ही ट्विटर ने हाइड कर दिया था, लेकिन बाद में ऑपइंडिया को कार्टून को हटाने के लिए मजबूर किया गया। ऑपइंडिया के अकाउंट को भी बंद कर दिया गया है। इस कारण से 14 घंटे से अधिक समय से आधिकारिक हैंडल से कोई ट्वीट नहीं किया जा सका है। हमने इस मुद्दे को ट्विटर के साथ उठाया, लेकिन ट्विटर की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी, इसको लेकर हमारा अनुमान उतना ही है, जितना कि आपका।

आप देखिए न 25 अक्टूबर 2021 को केरल में पहली बार गैर-हलाल रेस्तरां खोलने वाली महिला पर कथित तौर पर इस्लामवादियों द्वारा हमला किया गया था। उसे दूसरी ब्रांच नहीं खोलने के लिए भी धमकाया गया था। हालाँकि, अब केरल पुलिस ने कथित रूप से तुशारा अजीत नाम की उस महिला और उसके पति को ‘फर्जी आरोप लगाने’ के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

इस्लाम में गैर-हलाल खाना ‘हराम’ (अनुमति नहीं) है। हलाल के तहत जानवर को मारने की पूरी प्रक्रिया में केवल मुस्लिम ही शामिल हो सकते हैं और उस दौरान बिस्मिल्लाह का उच्चारण करना आवश्यक है। इस तरह, यह उन लोगों का आर्थिक बहिष्कार है, जो मुस्लिम नहीं हैं, क्योंकि हलाल खाद्य उद्योग में सिर्फ मुस्लिमों ही शामिल हो सकते हैं।

उपरोक्त कार्टून फैशन पत्रिका एली द्वारा अपने इंस्टाग्राम पेज पर साझा किए गए कार्टून की प्रतिक्रिया में था। कई नेटिजन्स ने दिवाली उत्सव के लिए साझा किए गए एली के विज्ञापनों और क्रिएटिव पर सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी अस्वीकृति व्यक्त की थी।

इनमें से कई ब्रांडों में उदास दिखने वाले मॉडल ऐसे घूर रहे थे, जैसे कि उन्हें उन्हें खाने की बीमारी है और वे अपने जीवन के विकल्पों पर सवाल उठा रहे हैं। इसको देखकर नेटिजन्स अपसेट थे, क्योंकि हिंदू त्योहार रोशनी, खुशी, हँसी और प्रसन्नता का त्योहार है। इस दिन लोग लोग नए कपड़े पहनते हैं, आभूषण, उपहार, मिठाई खरीदते हैं, दीये जलाते हैं, लक्ष्मी और भगवान राम का घर में स्वागत करते हुए रँगोली बनाते हैं। यह उत्सव का समय होता है। ऐसे समय में जब दुनिया चीन में कथित रूप से उत्पन्न कोरोना के कहर से धीरे-धीरे उबरने की कोशिश कर रही है, ऐसा लगता है कि उदास दिखने वाली ये मॉडल जीवंतता को खत्म कर रही हैं।

नीचे आप Elle का वो कार्टून देख सकते हैं जो उसने अपने इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट किया था। यह उन हिंदुओं को चित्रित करता है जो नहीं चाहते हैं कि दीवाली विरोधी कुछ नेटिजन्स की वजह से उनके त्योहार को ‘हिंसक’ प्रस्तुत किया जाए।

Elle की इंस्टाग्राम पोस्ट

मुगलों और दीवाली का रोमांटिककरण इसे हल्के ढंग में प्रस्तुत करने का बकवास मात्र है। मुगलों द्वारा हिंदू मंदिरों को नष्ट और लूटे जाने और बर्बर लोगों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन के पर्याप्त ऐतिहासिक विवरण उपलब्ध हैं। यह बताता है कि हमारे त्योहार इसलिए नहीं बचे कि मुगलों ने इसे शानदार बनाया, बल्कि मुगल तो भारत से हिंदुओं और हिंदुत्व को पूरी तरह नष्ट करना चाहते थे।

बावजूद इसके ‘भगवा आतंक’ को चित्रित करने के लिए इन्हें मुफ्त पास मिलता है, लेकिन अगर आप इस्लामवादियों के असली रंग दिखाते हैं तो आप एक इस्लामोफोबिया से ग्रसित माने जाते हैं। एक महिला द्वारा गैर-हलाल रेस्तरां खोलने के लिए कट्टरपंथियों द्वारा हमले का आरोप लगाना ‘फर्जी समाचार’ के रूप में लेबल किया जाता है और इस पर रिपोर्टिंग करना ‘अभद्र भाषा’ है, लेकिन हिंदुओं की निंदा न केवल सामान्य है, बल्कि ‘धर्मनिरपेक्ष’ दिखने के लिए प्रोत्साहित भी की जाती है।

जब इस बड़ी टेक कंपनी की बात आती है तो कट्टरपंथी इस्लामिस्ट के चरमपंथी बर्ताव के बारे में कहने पर आपको हेट स्पीच के दायरे में डाल दिया जाता है। इसीलिए ऑपइंडिया के संपादकीय कार्टून को ट्विटर पर ‘पॉलिसी वॉयलेशन’ के लिए फ्लैग किया जाता है और हमारा अकाउंट लॉक कर दिया जाता है, क्योंकि एक महिला इस्लामवादियों के हमले की बात कहती है और उम्माह के कारण आईएसआईएस के टॉयलेट टिश्यू को रोल करने वाले उसे झूठा बताते हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी हिंदुओं का मजाक उड़ाया था

हालाँकि, यह पहली बार नहीं है जब बिग टेक ने उम्माह के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए अपने घुटने टेके हैं। भारत के प्रति NYTimes के नस्लवादी रवैये को भी याद रखने की आवश्यकता है।

2014 में भारत मंगलयान मिशन के तहत पहले प्रयास में मंगल पर पहुँचने वाला दुनिया का पहला देश था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संरक्षण में सितंबर 2014 भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए ऐतिहासिक था। रोस्कोस्मोस (रूस), नासा (यूएसए) और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (22 यूरोपीय सदस्य राज्यों) के बाद भारत की इसरो चौथी अंतरिक्ष एजेंसी थी, जो मंगलयान (मंगल ग्रह की कक्षा) के साथ मंगल पर पहुँची थी।

इस मिशन की सबसे दिलचस्प बात यह थी कि यह सबसे किफायती मंगलयान था। इसे लगभग 450 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया था। भारत ने इस मामले में चीन को भी पीछे छोड़ दिया था, क्योंकि चीन और जापान अपने मंगल मिशन में असफल रहे थे। लेकिन, NYTimes ने क्या किया? हैरानी की बात है कि इसने एक नस्लवादी संपादकीय कार्टून प्रकाशित किया।

न्यूयॉर्क टाइम्स का नस्ली कार्टून

कार्टून में धोती-पगड़ी पहने और बगल में भैंस लिए नंगे पाँव वाला एक आदमी ‘एलीट स्पेस क्लब’ के दरवाजे पर दस्तक देता नजर आ रहा है। तो ठीक है ना F*ck you, NYTimes और तुम्हारे कुलीन क्लब को। भले ही हँगामे के बाद तुमने माफी माँग ली हो।

हैरानी की बात यह है कि किसी ने इसे सेंसर नहीं किया और न ही उसे नस्लवादी कहा। इसी साल जुलाई में तो यह एक कदम आगे बढ़कर यह दुष्प्रचार के लिए हिंदू-विरोधी, मोदी-विरोधी उम्मीदवार को नौकरी के लिए खोजने लगा। अपने विज्ञापन में न्यूयॉर्क टाइम्स का विशिष्ट उद्देश्य उन उम्मीदवारों से अपील था, जो केंद्र सरकार के खिलाफ लिख सकें और एक ऐसे अभियान में योगदान दे सकें, जिसे केवल शासन परिवर्तन ऑपरेशन कहा जा सकता है।

खास बात यह है कि भारतीयों और उसमें भी हिंदुओं के खिलाफ इसके नस्लवाद को वैधता और स्वीकृति मिलती है। लेकिन अगर कोई तथाकथित शांतिपूर्ण समुदाय के बारे में थोड़ा असहज सच कहता है तो उसे ‘नफरत करने वाला’ करार दिया जाता है।

अफसोस की बात है कि यह नस्लवादी, अभिजात्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन घरानों के लिए कोई अनोखी बात नहीं है। भारत में तथाकथित उदारवादी भी हिंदुओं पर नफरत फैलाने के लिए काल्पनिक परिदृश्यों को अपनाते हैं, क्योंकि यह ‘सुरक्षित’ है और सभी हिंदू नेटिजन्स ऑनलाइन ही अपना गुस्सा जताते हैं। हिंदुओं का यह गुस्सा ही पूरे हिंदू समुदाय को असहिष्णु के रूप में चित्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया को मसाला देता है।

डिक्शनरी में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है धर्म और धार्मिक विचारों के प्रति उदासीन, अस्वीकृति या बहिष्कार, लेकिन यहाँ भारत में ‘धर्मनिरपेक्षता’ का एक त्वरित उदाहरण है। इसी तरह से एक ‘व्यंग्यवादी कार्टूनिस्ट’ सतीश आचार्य हैं। वह सत्ता से सच कहना तो पसंद करे हैं, लेकिन वह खुद की आलोचना सहन नहीं कर सकते। इसी साल जुलाई में जब भारत वैक्सीनेशन कार्यक्रम को तेज कर रहा था तो उस दौरान आचार्य ने यह बताने की कोशिश की थी कि भारत में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट ज्यादातर हिंदुओं में है।

अपने कार्टून में आचार्य ने एक व्यक्ति को नर्स से पूछते हुए दिखाया कि टीके का ‘गोत्र’ क्या है, क्योंकि वह इसे अपनी कुंडली से मिलाना चाहता है। यह काफी मनोरंजक है, क्योंकि टीका लगवाने के दौरान किसी भी हिंदू से इस तरह के अनुरोध के बारे में कभी किसी ने नहीं सुना होगा। हालाँकि, एक समुदाय का एक वर्ग ऐसा भी है, जो वैक्सीन लेने में केवल इसके निर्माण के तरीके के कारण हिचकिचाहट दिखा रहा है। हालाँकि, आचार्य ने उन लोगों का मजाक नहीं उड़ाया जो टीकों के लिए हलाल का दर्जा चाहते थे। कोई भी शार्ली हेब्दो नहीं बनना चाहता।

हलाल वैक्सीन

इस्लामोफोबिया के रूप में असली इस्लामी आतंक का मुकाबला करने के लिए ‘हिंदू तालिबान’ और ‘हिंदू आतंक’ की कहानी बनाने का इन पर जबरदस्त दबाव है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता यह तभी मान्य है, जब आतंकवादी इस्लामवादी हों। अन्य धर्म के लोगों द्वारा किए गए अपराधों के लिए अपनी धर्मनिरपेक्ष साख को बनाए रखने के लिए पूरे समुदाय को बदनाम किया जाता है।

यहीं पर ट्विटर जैसी बिग टेक कंपनियाँ इस कहानी को आगे प्रमोट करने में मदद करती हैं। अपने त्योहारों के सार्थकता के सवाल पर ऑनलाइन हिंदुओं के एक समूह द्वारा नाराजगी व्यक्त करने पर उन्हें असहिष्णु दंगाई के रूप में दोषी महसूस कराया जाता है, भले ही उन्होंने एक पत्थर भी ना फेंका हो और न ही एक भी ‘काफिर’ का सिर काटा गया हो।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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