शिवलिंग क्या होता है? इसकी पूजा क्यों की जाती है? भगवान शिव से इसका क्या सम्बन्ध है? क्या वेदों में कहीं शिवलिंग का उल्लेख है? आज इन सब सवालों पर चर्चा आवश्यक हो गई है, क्योंकि इस्लामी कट्टरपंथी शिवलिंग को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियाँ फैला कर हिन्दू धर्म को बदनाम कर रहे हैं। ज्ञानवापी विवादित ढाँचे में प्राचीन शिवलिंग के सामने आने के बाद से वो बौखलाए हुए हैं। लेकिन, अफ़सोस ये कि शिवलिंग को लेकर अधिकतर हिन्दुओं को ही कुछ खास पता नहीं है।
जब हमें अपने प्रतीकों, देवी-देवताओं और पवित्र स्थलों के बारे में अच्छे से पता होगा, फिर कोई हमें भ्रम में नहीं डाल सकता। उससे भी ज्यादा ज़रूरी है कि आज की युवा पीढ़ी का, आज के बच्चों का ये जानना, ये बताया जाना कि हम हिन्दू हैं और हिन्दुओं के प्रतीक चिह्नों व साहित्य का क्या महत्व है, इनमें क्या है। शिवलिंग को लेकर भी अश्लील बातें की जा रही हैं, मजाक बनाया जा रहा है। ऐसे में हमें इस जंजाल को काटने की ज़रूरत है।
शिवलिंग को लेकर ऐसे हिन्दू धर्म को बदनाम कर रहे हैं इस्लामी कट्टरपंथी
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में इतिहास के एसोसिएट प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत रतन लाल ने फेसबुक पर एक लिंक साझा करते हुए लिखा, “यदि यह शिव लिंग है तो लगता है शायद शिव जी का भी खतना कर दिया गया था। साथ ही पोस्ट में चिढ़ाने वाला इमोजी भी लगाया – 😜 .वहीं तस्वीर का क्रेडिट ‘लल्लनटॉप’ को दिया गया। विरोध के बावजूद ये प्रोफेसर अपने बयान पर कायम हैं और कह रहे हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सपा नेता मोहसिन अंसारी ने लीची के फल को काटकर उसके बीज की तुलना शिवलिंग से की। इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। एक अन्य घटना हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित पावंटा साहिब से सामने आई, जहाँ शिवलिंग की तुलना टॉयलेट सीट से करने के मामले में दो लोग गिरफ्तार किए गए। सपा नेता दानिश कुरैशी ने शिवलिंग को लेकर अश्लील बातें की, जिसके बाद गुजरात पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।
इसी तरह पत्रकार सबा नकवी ने ‘भाभा अटॉमिक रिसर्च सेंटर’ की तुलना शिवलिंग से कर डाली और इसे व्हाट्सएप्प फॉरवर्ड बताया। बाद में उन्होंने ट्वीट डिलीट कर के माफ़ी माँग ली। AIIMS में रहे डॉक्टर श्रीनिवास राजकुमार ने एक घटिया अश्लील फेसबुक पोस्ट शिवलिंग को लेकर शेयर किया। ‘न्यूज़ 1 इंडिया’ को नगमा शेख नाम की अपनी एक एंकर को बरखास्त करना पड़ा, क्योंकि उसने भी कुछ इसी तरह की बातें की थीं।
कुछ जाहिल लोग डंडों की फ़ोटो, फ़व्वारों की फ़ोटो, फलों के बीज की फ़ोटो, अंडे के छिलकों की फ़ोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करके पूछ रहे हैं कि कहीं ये भी तो तुम्हारे शिवलिंग नहीं हैं ?
— Anuraag Muskaan (@anuraagmuskaan) May 17, 2022
किसी और धर्म या इष्ट का ऐसी बेहूदा मज़ाक़ उड़ा पाना संभव है क्या ?
अब रही बात जवाब देने की, तो इस्लाम मजहब, पैगंबर महम्मद या काबा को लेकर टिप्पणी करने वालों का हाल किसी से छिपा नहीं है। कभी ‘शार्ली हेब्दो’ मैगजीन के दफ्तर में घुस कर लोगों को मार डाला जाता है, कभी लखनऊ में कमलेश तिवारी की बेरहमी से हत्या हो जाती है। हिन्दू धर्म में किसी भी अन्य संप्रदाय पर ओछी टिप्पणी करने के लिए नहीं सिखाया जाता, लेकिन इस्लाम को लेकर टिप्पणी ही काफी है, अच्छी हो या बुरी। गला रेत दिए जाते हैं।
अथर्व वेद में भी मिलता है शिवलिंग की मूल कथा का जिक्र
लिंग का एक अर्थ स्तम्भ भी होता है, जिसे वेदों में ‘स्कम्भ’ भी कहा गया है। इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय और सनातन संस्कृति वेदों से ही निकली है और इसीलिए ऋषि-मुनियों ने किसी भी चीज को सही-गलत ठहराने के लिए सबसे पहले वेदों में झाँकना उचित समझा। आज भी हम अपनी संस्कृति की जड़ और सभ्यता का मूल वेदों में ही पाते हैं। इसी तरह अथर्व वेद में ‘स्कम्भ’ का वर्णन है, जहाँ से शिवलिंग की पूजा शुरू होने के संकेत हैं।
अथर्व वेद के दसवें काण्ड के सातवें मंत्र में इस ‘स्कम्भ’ का जिक्र है, जिसे समस्त संसार का मूल भी माना गया है। अतः, लिंग का शाब्दिक अर्थ हम ‘स्कम्भ’ या स्तम्भ भी ले सकते हैं। इसमें ब्रह्म को ‘स्कम्भ’ के रूप में ही वर्णित किया गया है। इसके बाद इस जिज्ञासा को शांत किया गया है कि इस ‘सर्वाधार स्कम्भ’ के किस हिस्से का क्या महत्व है। ध्यान दीजिए, इसमें वर्णित इस ‘स्कम्भ’ का न आदि है और न ही अंत। ईश्वर की ही परिकल्पना इस रूप में की गई है।
आगे ब्रह्म की जिज्ञासा करते हुए पूछा गया है कि ‘स्कम्भ’ रूप वाले ईश्वर के किस अंग में अग्नि दीप्त होती है, कौन से अंग से वायु चलती है और चन्द्रमा किस अंग से प्रकाश फैला रहा है? भूमि और अंतरिक्ष से लेकर बाकी के संसार इसमें कहाँ हैं? जिसमें सूर्य, वायु और जल निरंतर गतिमय हैं, उन्हें ही ‘स्कम्भ’ के रूप में चित्रित किया गया है यहाँ। फिर कहा गया है कि जिस आधार में ऋतुएँ, संवत्सर, मास और अर्धमास चल रहे हैं, वही ‘स्कम्भ’ हैं।
संपूर्ण सृष्टि की कल्पना इसी ‘स्कम्भ’ के अंदर की गई है। उन्हें काल से परे बताया गया है। 33 प्रकार (8 वसु, 12 रूद्र, 11 आदित्य, इंद्र और प्रजापति) के देव भी यहीं निवास करते हैं – ऐसा बताया गया है। अमृत, मृत्यु और समुद्र भी इसी ‘स्कम्भ’ अर्थात, ईश्वर में समाहित है। यज्ञ कार्य का मूल उन्हें ही बताया गया है। पूरे ब्रह्माण्ड को उनके अंगों के रूप में परिकल्पना की गई है। ‘स्कम्भ’ रूपी ईश्वर के स्तुति की सलाह दी गई है।
शिवलिंग को कैसे परिभाषित करते हैं आज के साधु-संत और आध्यात्मिक गुरु
सद्गुरु जग्गी वासुदेव बताते हैं कि लिंग का अर्थ होता है ‘The Form’, अर्थात रूप या आकार। उनका कहना है कि निराकार जब आकार लेता है, या जब सृष्टि की रचना शुरू हुई तो उसने सबसे पहले ‘Ellipsoid’ (दीर्घवृत्ताकार/अंडाकार) आकृति ली। इसीलिए, लिंग को ही प्रथम और अंतिम रूप माना गया। वो इसे ऊर्जा को समाहित रखने वाले वाला एक रूप भी बताते हैं, जिसके पास ये शक्ति है। दक्षिण भारत में पंचभूतों (पृथ्वी, जल, वायु, आकाश और अग्नि) की आराधना के लिए पाँच अलग-अलग लिंग स्थापित हुए।
सद्गुरु कहते हैं कि ज्योतिर्लिंगों की स्थापना भी इसी क्रम में एक निश्चित प्राकृतिक प्रक्रियाओं के जरिए हुई, जो मानवीय सोच से परे है। महाकाल को वो ‘Ultimate Time Machine’ बताते हैं। अमरनाथ जैसे शिवलिंगों को ‘स्वयंभू’ कहते हैं, अर्थात ऐसे शिवलिंग जो स्वयं प्रकट हुआ और किसी ने बनाया नहीं। सद्गुरु ये भी बताते हैं कि कैसे दिव्य ‘स्तम्भ’ से ॐ की ध्वनि निकल रही थी और किसी देवी-देवता को इसका आदि-अंत का पता नहीं था। ये भी एक पौराणिक कथा है।
शैव संत रमेशभाई ओझा, जिन्हें ‘भाईश्री’ भी कहा जाता है, उनसे एक बार सवाल पूछा गया था कि शिव को जब निर्गुण और निराकार वर्णित किया गया है शिव महापुराण में, फिर उनका ये आकार कैसे? वो लिंग को पुरुष और प्रकृति के मिलन का प्रतीक बताते हुए जवाब देते हैं कि मनुष्य को हमेशा कोई न कोई प्रतीक चाहिए होता है। उन्होंने भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण के हवाले से बताया कि निराकार की आराधना कठिन है, इसीलिए शिवलिंग के माध्यम से उस तत्व की पूजा हम करते हैं, जो निराकार है।
श्री श्री रविशंकर कहते हैं कि लिंग का अर्थ हुआ, ‘पहचान’। एक ऐसा प्रतीक चिह्न, जिसके माध्यम से आप सत्य और वास्तविकता को पहचान सकते हैं। वो बताते हैं कि लिंग वो चीज है, जिसके माध्यम से अदृश्य को भी पहचाना जा सकता है। वो कहते हैं, “किसी बच्चे के जन्म के समय वो स्त्री है या पुरुष, ये उसके शरीर के एक खास अंग से पहचाना जाता है। इसीलिए, उसे भी लिंग कह दिया गया।” प्रकृति और इसके निर्माता, दोनों का प्रतीक शिवलिंग है जो अति-प्राचीन है, निराकार का आकार है।
शिवलिंग का इतिहास: दुनिया के कई हिस्सों में मिले, हजारों वर्षों से होती रही है पूजा
शिवलिंग का इतिहास काफी पुराना है और वाराणसी के पास एक गाँव में मिले एक शिवलिंग को 4000 साल पुराना बताया गया। सिंधु घाटी सभ्यता में भी भगवान शिव और शिवलिंग की पूजा के प्रमाण मिले हैं। इस आकर के कई पत्थर मिले हैं सिंधु घाटी सभ्यता के और ‘पशुपति सील’ भी मिली। भगवान शिव का एक नाम पशुपति भी है। इससे ये भी पता चलता है कि उस समय योग की भी प्रधानता थी। भगवान शिव की पूजा उससे पहले से होती आई है।
भारत ही नहीं, दुनिया के कई अन्य हिस्सों में भी खुदाई के दौरान शिवलिंग मिले हैं। रोम में कई ऐसे शिवलिंग मिले हैं, जो हजारों साल पुराने हैं। वियतनाम में एक शिवलिंग मिला, जिसे नौवीं सदी का बताया गया। इसी तरह यहूदियों द्वारा भी शिवलिंग की पूजा के प्रमाण मिले हैं। कज़ाख़स्तान में भी इतिहास में भगवान शिव की पूजा के प्रमाण मिले हैं। मेसोपोटामिया में भी शिवलिंग की पूजा का दावा किया जाता है। सनातन संस्कृति में ‘लिंग पुराण’ में शिवलिंग की महत्ता की चर्चा की गई है।