राहुल गाँधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाल रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने आंदोलनजीवियों का समर्थन लिया है। योगेंद्र यादव और मेधा पाटकर से लेकर अरुणा रॉय और तुषार गाँधी जैसों ने कॉन्ग्रेस की इस यात्रा को समर्थन दिया है। राहुल गाँधी को अर्बन नक्सलियों के समर्थकों और टुकड़े-टुकड़े गिरोह से भी अपनी यात्रा को सफल बनाने के लिए समर्थन लेने में गुरेज नहीं है। अब उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान से भी प्रेरणा ली है।
2014 में इमरान खान भी कर चुके हैं कंटेनरों का इस्तेमाल, फिर बने PM
2014 में जब इमरान खान प्रधानमंत्री नहीं बने थे और आंदोलनों के जरिए वो जनता के बीच खुद को लोकप्रिय बना रहे थे, तब वो कंटेनरों में ही रहा करते थे। उसी कंटेनर में बैठ कर वो यात्रा करते थे। उसमें सारी व्यवस्थाएँ होती थीं। तब इमरान कहें ने एक कंटेंटर पर 1 करोड़ रुपए के आसपास खर्च किए थे। राहुल गाँधी भी अब 150 दिन इसी तरह के कंटेंटर में रहेंगे। कॉन्ग्रेस पार्टी को लगता है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ काफी ऐतिहासिक होने वाली है।
पार्टी को लगता है कि इससे देश की राजनीति में कॉन्ग्रेस के अच्छे दिन वापस आ जाएँगे और राहुल गाँधी ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री के पद तक पहुँचने में कामयाब होंगे, जैसे इमरान खान ने कंटेंटर में रह कर पाकिस्तानियों की सहानुभूति बटोरी थी और आम चुनाव जीता था। कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3750 किलोमीटर की यात्रा में वो कंटेंटर में ही रहेंगे और सोएँगे। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले इस कदम को कॉन्ग्रेस के वफादार ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताने में जुट गए हैं, जिसके सहारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राहुल गाँधी मुकाबला करेंगे।
कॉन्ग्रेस पार्टी ये कह कर इसका प्रचार करने में लगी है कि राहुल गाँधी इस पूरी यात्रा के दौरान किसी होटल वगैरह में नहीं रुकेंगे, बल्कि कंटेनर में ही रहेंगे। इन कंटेनरों में उनकी सारी सुख-सुविधाओं का ख्याल रखा जाएगा। उसमें सोने के लिए बिस्तर और शौचालय के अलावा AC तक की व्यवस्था रहेगी। राहुल गाँधी के अलावा अन्य नेताओं के लिए भी ऐसी ही व्यवस्थाएँ की गई हैं। कन्याकुमारी के एक गाँव में ऐसे 60 कंटेनर रखे गए हैं, जो अपने-आप में एक अलग गाँव की तरह है।
Bharat Jodo Yatra: Rahul Gandhi to sleep in container for next 150 days
— ANI Digital (@ani_digital) September 7, 2022
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इन कंटेनरों को इसी तरह प्रतिदिन रात के समय वहाँ एक गाँव की तरह बसाया जाएगा, जहाँ यात्रा रुकेगी। सुबह नित्यक्रिया के बाद वापस नेतागण यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे और ये क्रम 150 दिनों तक चलता रहेगा। 2014 में इमरान खान इसी तरह की चीजें आजमा चुके हैं, जब वो कंटेनर से घूमते हुए तत्कालीन सरकार के खिलाफ आंदोलन करते थे और इस दौरान पुलिस से भी उनके समर्थकों की भिड़ंत होती थी। तब वहाँ के प्रधानमंत्री रहे नवाज़ शरीफ के खिलाफ खुद को स्थापित करने के लिए उन्होंने ‘फ्रीडम मार्च’ निकाला था।
उस दौरान इंटरनेट पर एक तस्वीर भी वायरल हुई थी, जिसमें इमरान खान इसी तरह के एक कंटेनर में सोते हुए दिखे थे। उनकी पार्टी PTI के कार्यकर्ताओं के साथ इन लोगों ने पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की तरफ मार्च किया था। अब समय-समय पर विदेश यात्राओं पर छुट्टियाँ मनाने जाने वाले राहुल गाँधी भी इसी तरह के तिकड़म आजमाएँगे। भारतीय राजनीति में भी चंद्रशेखर और इंदिरा गाँधी समेत तमाम नेताओं ने यात्राएँ निकाली हैं, अब राहुल गाँधी को वैसी ही सफलता की उम्मीद है।
अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि जब 60 कंटेनर और हजारों लोग एक साथ सड़क से गुजरेंगे, जिनमें हो सकता है कि कई नेताओं की गाड़ियाँ भी हों, तब ट्रैफिक जाम के कारण जो अफरा-तफरी मचेगी, उसका जिम्मेदार कौन होगा? 60 कंटेनर बहुत बड़ी संख्या हैं और जहाँ से भी राहुल गाँधी गुजरेंगे, वहाँ कॉन्ग्रेस के स्थानीय नेता-कार्यकर्ता उनके साथ चलेंगे। ऐसे में परिवहन में बड़ी समस्या आने की संभावना है, खासकर बड़े शहरों से गुजरते वक्त।
कहीं कॉन्ग्रेस की कुछ ऐसी ही तो योजना नहीं है कि जिस तरह किसानों ने एक साल तक दिल्ली को बंधक बना कर रखा और शाहीन बाग़ वालों ने जैसे लाखों लोगों को राष्ट्रीय राजधानी में महीनों परेशान किया, वैसा ही कुछ करने से कॉन्ग्रेस पार्टी को लोगों की सहानुभूति मिलेगी और वो मीडिया की नजरों में भी आएगी? ‘किसान आंदोलन’ के कारण तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े केंद्र सरकार को। CAA के नियम अब तक नहीं बने हैं।
क्या पूरे देश में दोहराया जाएगा शाहीन बाग़ और किसान आंदोलन वाला मॉडल?
क्या कॉन्ग्रेस पार्टी उस माहौल को पूरे देश में ले जाना चाहती है, जो दिल्ली को झेलना पड़ा? आंदोलनजीवियों के साथ और ये 60 कंटेनर्स से तो ऐसा ही लगता है। पाकिस्तान में तब विपक्ष में रहे इमरान खान की रैलियों में भी हिंसा होती थी, पुलिस को आँसू गैस के गोले छोड़ने पड़ते थे और कार्यकर्ताओं-पुलिस में भिड़ंत होती थी, क्या इस रणनीति के सहारे भारत को राहुल गाँधी अब पाकिस्तान में तब्दील करेंगे? जो आंदोलनजीवी उनके साथ इस यात्रा में हैं, वो सब तो यही करने के विशेषज्ञ हैं।
योगेंद्र यादव कभी किसान तो कभी मुस्लिम एक्टिविस्ट बन जाते हैं। अरुणा रॉय सोनिया गाँधी की उस सलाहकार समिति में रही हैं, जो यूपीए काल में देश चलाती थी। मेधा पाटकर ने पर्यावरण के नाम पर कच्छ को दशकों पानी के लिए तरसाए रखा। बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज बीजी कोलसे पाटिल ने मुस्लिमों को भड़कते हुए उन्हें पुलिस से न डरने को कहा था। वामपंथी आतंकियों का बचाव करने वाले तुषार गाँधी भी उनके साथ हैं। कन्नड़ लेखक देवानुरा महादेव पीएम मोदी पर उद्योगपतियों का साथ देने का आरोप लगा चुके हैं।
इसी तरह मजदूरों, मुस्लिमों, आदिवासियों और सामाजिक मुद्दों के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले ऐसी लोगों को राहुल गाँधी ने इस यात्रा को सफल बनाने के लिए अपने साथ जोड़ रखा है, जो केंद्र सरकार को अस्थिर करने को अपना एकमात्र उद्देश्य समझते हैं और भीड़तंत्र व अराजकता के सहारे बात मनवाने के आदी है। इस यात्रा में ‘लव जिहाद’ और इस्लामी-मिशनरी धर्मांतरण गिरोहों पर तो बात होगी नहीं, जो असली समस्या देश को कमजोर कर रही है।
एक और बात जानने लायक है कि अगस्त 2014 में इमरान खान और PTI कार्यकर्ताओं को रोकने के लिए इस्लामाबाद में पुलिस ने कंटेनर्स का ही इस्तेमाल किया था। सैकड़ों स्टील के बड़े-बड़े बक्से सड़क पर रख दिए गए थे। पाकिस्तानी मौलवी उल-कादरी भी तब कंटेनरों में ही घूमा करते थे और उसकी खिड़की से जनता को संबोधित करते थे। कंटेनरों की इस अराजक राजनीति से तब पाकिस्तान में बड़ी अस्थिरता पैदा हो गई थी। एक बार तो इमरान खान को