आज सोशल मीडिया का जमाना है। ढाई महीने बाद ही सही, मणिपुर में 3 महिलाओं के साथ हैवानियत का वीडियो सामने आया और मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने इस पर अपने-अपने स्तर पर टिप्पणी की, कार्रवाई के लिए कहा और आरोपितों की धर-पकड़ हुई। मणिपुर में महिलाओं को नग्न घुमाए जाने और उनके साथ गैंगरेप की घटना में देर से ही सही, न्याय हो तो रहा है। लेकिन, अजमेर में अस्सी-नब्बे के दशक में जो हुआ था, उसकी नाबालिग पीड़िताएँ आज दादी-नानी बन गईं लेकिन न्याय नहीं मिला।
उस समय सोशल मीडिया का जमाना नहीं था, टीवी मीडिया का भी नहीं। रेडियो पर सिर्फ सरकारी और राष्ट्रीय खबरें चलती थीं। उस दौरान अख़बार और पत्रिकाएँ ही खबरों और विश्लेषण का सबसे बड़ा स्रोत हुआ करती थीं। इसी दौरान ‘दैनिक नवज्योति’ में कुछ ऐसी तस्वीरें छपीं जिसने सबको सन्न कर दिया। ये तस्वीरें थीं उन पीड़िताओं की, जिनकी इज्जत लूटने में दरगाह के खादिमों के परिवार वालों, सफेदपोशों और कॉन्ग्रेस नेताओं का गिरोह शामिल था।
इस अख़बार के तत्कालीन संपादक हुआ करते थे दीनबंधु चौधरी, जिनके रिपोर्टर संतोष गुप्ता इस पूरे स्कैंडल की खबर लेकर उनके पास आए थे। खबर छपी भी, लेकिन किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। असल में संतोष गुप्ता ने अजमेर के अनाज मंदिर स्थित ‘भरोसा लेबोरेटरी’, जहाँ फिल्म्स के नेगेटिव पर काम होता था, वहाँ से 4 गुना ज्यादा पैसे देकर फोटो रील्स ले जाते हुए एक व्यक्ति को देखा था। उनके साथ एक दोस्त था, जिसने शुरू में तो आनाकानी की लेकिन बाद में उन्हें 4 रील्स दी।
उन्हें देख कर वो दंग रह गए थे। ‘दैनिक भास्कर’ ने पत्रकार दीनबंधु चौधरी का इंटरव्यू लिया है और उनसे उस जमाने में हुए इस स्कैंडल के बारे में जाना। इसी क्रम में उन्होंने बताया कि अख़बार ने तस्वीरें छापने का निर्णय लिया और प्राइवेट पार्ट्स पर काली पट्टी डाल कर उन्हें प्रकाशित कर दिया गया। बार एसोसिएशन के वकील अख़बार की प्रतियाँ लेकर डीएम-एसपी के पास गए और फिर इस प्रकरण में कानूनी कार्रवाई शुरू हुई।
इन सबकी शुरुआत कहाँ से हुई, इसका किस्सा भी उन्होंने सुनाया। असल में श्रीहरि रोड पर स्थित एक कॉलेज की लड़की एडमिट कार्ड के लिए फीस के लिए पैसे न होने के कारण रोती हुई जा रही थी, जिसे वहाँ से गुजरते कुछ रसूखदार युवकों ने देखा और उसकी मदद की। उसके बाद रोज मुलाकात करते-करते उन्होंने लड़की से जान-पहचान बढ़ा ली और एक दिन वैन में बिठा कर हटूंडी स्थित अपने फार्महाउस ले गए, जहाँ उसके साथ बलात्कार किया गया और उसकी अश्लील तस्वीरें भी ले ली गईं।
फिर तो ब्लैकमेल कर-कर के आए दिन उसका रेप किया जाने लगा। एक दिन दरिंदों ने उस लड़की से अपनी दोस्त को भी लाने को कहा, मना करने पर तस्वीरें शहर भर में फैला देने की धमकी दी। इस डर से वो अपनी दोस्त को लेकर आई। उसके साथ भी वही दरिंदगी दोहराई गई। फिर दूसरी वाली लड़की को अपनी दोस्त को लाने के लिए कहा गया। इस तरह चेन बनता गया और कई लड़कियाँ इस जाल में फँस गईं। दीनबंधु चौधरी ने ये भी बताया कि कैसे उन्हें ये खबर न छपने की धमकी देते हुए हत्या की धमकियाँ आती थीं।
उन्होंने बताया कि आधी रात को उन्हें फोन कॉल्स आते थे, जिनके जवाब में वो बिना डरे कहते थे कि कायरों की तरह छिप कर बात मत करो, सामने आओ। दीनबंधु चौधरी के पिता दुर्गा प्रसाद चौधरी तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के अच्छे दोस्त थे। खुद मुख्यमंत्री ने उन्हें फोन कॉल कर के ये तस्वीरें न छपने का आग्रह किया और कहा कि इससे उनकी जान को खतरा हो सकता है। लेकिन, दीनबंधु चौधरी ने सफेदपोशों को बेनकाब करने के रास्ते पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
उन्हें सुरक्षा के लिए 2 गनर भी मुहैया कराए गए, लेकिन उन्होंने ये भी ठुकरा दिया। आज दीनबंधु चौधरी कहते हैं कि अगर उन्होंने सुरक्षा ले ली होती तो ये सन्देश जाता कि वो डर गए हैं। उन्हें रूट बदल कर ऑफिस जाने-आने की सलाह दी गई। इस घटना की शिकार अधिकतर लड़कियाँ नाबालिग थीं, जिनकी उम्र 16-17 साल थी। लड़कियों को धमकाया जाता था कि किसी को इस बारे में कुछ भी बताने पर ये तस्वीरें लीक कर दी जाएँगी।
लेकिन, जिस लैब में रील्स दिए गए थे तस्वीरें निकलवाने के लिए, उन्होंने इसकी कॉपियाँ अपने पास रख लें। लैब कर्मचारियों की नीयत बिगड़ गई और उनके माध्यम से ही ये तस्वीरें शहर भर में सर्कुलेट होने लगीं। 6 लड़कियों ने आत्महत्या का कदम उठा लिया था। अजमेर यूथ कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती और जॉइंट सेक्रेटरी अनवर चिश्ती का नाम इसमें सामने आया। CID को जाँच की जिम्मेदारी मिली, 18 आरोपित बनाए गए।
पीड़िताओं में कई लड़कियों के बारे में कुछ पता ही नहीं चला कि वो कहाँ गईं, कुछ ने नाम-पहचान बदल लिया और कुछ परिवार के साथ कहीं और शिफ्ट हो गईं। ये लड़कियाँ नहीं चाहती थीं कि उनकी पहचान बाहर आए। अजमेर की लड़कियों के रिश्ते होने बंद हो गए थे। बदनामी के डर से वो पीछे हट गई थीं। 12 लड़कियों को केस दर्ज कराने के लिए एक NGO ने राजी किया, लेकिन लगातार धमकियों के कारण 10 पीछे हट गईं। बची हुई 2 ने 16 आरोपितों की पहचान की, उनमें से भी 11 ही गिरफ्तार हुए।
जिन 18 आरोपितों का नाम FIR में था, वो हैं – हरीश दोला (कलर लैब का मैनेजर), फारुख चिश्ती (तत्कालीन यूथ कॉन्ग्रेस प्रेसिडेंट), नफीस चिश्ती (तत्कालीन यूथ कॉन्ग्रेस वाइस प्रेसिडेंट), अनवर चिश्ती (तत्कालीन यूथ कॉन्ग्रेस जॉइंट सेक्रेटरी), पुरुषोत्तम उर्फ बबली (लैब डेवलपर), इकबाल भाटी, कैलाश सोनी, सलीम चिश्ती, सोहैल गनी, जमीर हुसैन, अल्मास महाराज, इशरत अली, मोइजुल्लाह उर्फ पूतन इलाहाबादी, परवेज अंसारी, नसीम उर्फ टारजन, महेश लोदानी (कलर लैब का मालिक), शम्सू उर्फ माराडोना (ड्राइवर), जऊर चिश्ती (लोकल नेता)।
अजमेर रेप कांड : कुछ लड़कों का एक गिरोह जो कॉलेज जानी वाली लड़कियों को जाल में फंसाता और उनका बलात्कार करता….
— Dr. Sudhanshu Trivedi ᴾᵃʳᵒᵈʸ (@Sudanshutrivedi) July 17, 2023
आओ जानते अजमेर रेप कांड के बारे जो कि बहुत लोगों को पता भी नहीं है….. क्यों कॉंग्रेस की वज़ह से…!!!
अजमेर का एक और चिश्ती फिर से सुर्खियों में हैं। सलमान चिश्ती… pic.twitter.com/ek0yh1dHlj
इनमें से एक सलीम चिश्ती तो इस घटना के सामने आने के 2 दशक बाद 2012 में धराया, बुर्के में। उसे जमानत भी मिल गई। नफीस को पकड़ने में भी पुलिस को 11 साल लग गए थे, वो 2003 में धराया था। सोहैल गनी चिश्ती भी 26 साल तक पुलिस की पहुँच से दूर रहा। उसने दिसंबर 2018 में आत्मसमर्पण किया। उसे भी बेल मिल गई। इकबाल भाटी भी 13 साल बाद 2005 में पकड़ाया और उसे भी जमानत मिल गई। अल्मास महाराज का आज तक कोई अता-पता नहीं है, जबकि उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी है।
नसीम उर्फ़ टार्जन जमानत मिलने के बाद कहाँ फरार हुआ, कोई अता-पता नहीं है। मुख्य आरोपित फारूक चिश्ती ने खुद को ‘सिजोफ्रेनिया’ का मरीज बता कर मानसिक रोगी घोषित करवा दिया। राजस्थान हाईकोर्ट ने उसे ये कहते हुए बरी कर दिया कि उसने पर्याप्त सज़ा काट ली है। एक आरोपित पुरुषोत्तम उर्फ़ बबली ने आत्महत्या ही कर ली। उस समय भी सोशल मीडिया होता तो शायद इन आरोपितों की त्वरित गिरफ़्तारी होती और इनका ये खेल इतना लंबा नहीं चलता।