बालिका गृह से गायब दाे किशोरियॉं आखिर कहॉं गईं? जिन दो बच्चियों की हत्या की बात उनके साथियों ने कही थी, उनके शव ब्रजेश ठाकुर एंड कंपनी ने कहॉं ठिकाने लगाया? दो बड़े सवाल जिनका सीबीआई नहीं दे पाई जवाब।
JNU उपद्रव के बाद मीडिया द्वारा खुद को विक्टिम दिखाना। पुलिस-प्रशासन को विलेन बता, सोशल मीडिया पर लिखना। अगर यही सारे पत्रकार नक्सलियों द्वारा गला रेत लाश टाँगने की रिपोर्टिंग करने गए होते तो खबर गायब हो जाती और प्राइम टाइम होता अर्द्धसैनिक बल वाले सरदार की गाली और रिपोर्टरों की चाशनी में लिपटे प्रोपेगेंडा पर।
पद यात्रा, मुंडन, धरना-प्रदर्शन के बाद ही शुरू हो पाई नियुक्ति प्रक्रिया। फिर भी मेरिट लिस्ट में आईं आरक्षित वर्ग की महिलाओं को नहीं दिया नियुक्ति पत्र। अतिथि विद्वान भी भविष्य को लेकर सशंकित।
वक्त है चेत जाने का। खुद की आवाज बनने का। गिरोह घात लगाए बैठा है। उसे नहीं कुचला तो वह गजवा-ए-हिंद के ख्वाब बुनने वालों के पीठ पर हाथ फेरेगा और आपको भगवा आतंकवादी घोषित कर देगा।
यूॅं तो नॉर्थ ब्लॉक ने कई गृह मंत्री देखे हैं। पटेल से लेकर शाह तक। पर ज्यादातर के नाम भी याद नहीं आते। कड़े फैसलों की वजह से पटेल याद किए जाते हैं। शाह भी उसी राह पर हैं। लेकिन, कुछ ऐसे भी हुए हैं जो आतंकी हमले के वक्त भी हर घंटे सूट बदल रहे थे।
CAA के विरोध में जिस तरह का मजहबी उन्माद आज दिख रहा है, कुछ ऐसा ही 2001 में दिखा था। हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। छोटी-छोटी बच्चियों का रेप किया गया। अगवा कर धर्मांतरण करवाया गया। संपत्ति पर कब्जा कर हिंदुओं की हत्या की गई।
उस भूल के लिए अब सुप्रीम कोर्ट ने भी राहुल गॉंधी को बख्श दिया है। मोदी ने तो शायद आम चुनावों के नतीजों के बाद ही माफ कर दिया हो। लेकिन, क्या वे कॉन्ग्रेसी और वामपंथी राहुल गाँधी को कभी मन से माफ कर पाएँगे जिनके सपने में वे आज भी शपथ लेते रहते हैं?
इस यात्रा ने सत्ता में भाजपा को स्थापित करने के बीज बोए। आज उसकी जड़ें इतनी फैल गई हैं कि जो नेहरू कभी राम को बेदखल करने पर अमादा थे, आज उनकी ही राजनीति के वारिस मंदिर-मंदिर प्रदक्षिणा को मजबूर हैं। बाकायदा मुनादी की जाती है उनके जनेऊधारी हिन्दू होने की।