Thursday, May 9, 2024
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अनुपम कुमार सिंह

चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

‘मणिकर्णिका’ आजकल के समीक्षकों के संकीर्ण दायरों से परे है

राजनैतिक अंधविरोध में पागल हो चुके समीक्षकों को आजकल सबकुछ उलटा ही नज़र आता है, जिसके परिणामस्वरूप हो सकता है कि उन्हें अंग्रेज़ों की पितृसत्तात्मकता 'कूल' लगी हो और रानी का विधवा आडंबरों को धता बताना रास न आया हो।

कितने करप्ट हैं हम: 5 वर्षों में 16 स्थान ऊपर चढ़ा भारत, कम हुआ भ्रष्टाचार

जहाँ उस समय अंतरराष्ट्रीय एजेंसियाँ बड़े पैमाने पर हो रहे भ्रष्टाचार की बात करती थी, अब भारत को पॉजिटिव नजरों से देखते हुए ऐसे देशों की सूची में रखती है, जिनका प्रदर्शन बेहतर होने की उम्मीद है।

एक वीर और भी था… गाँधीजी के साथ जिनकी पुण्यतिथि हर वर्ष मनाई जानी चाहिए

उनका एक हाथ जा चुका था। एक ही आँख से देख पाते थे, दूसरी युद्ध की बलि चढ़ गई थी। एक ही पाँव से ठीक से चल पाते थे, दूसरा अपाहिज हो चुका था। फिर भी...

सिर्फ आतंकवाद या Pak ही नहीं, भारत को है और भी ‘खतरा’: USA की ख़ुफ़िया वार्षिक रिपोर्ट

USA की World Threat Assessment रिपोर्ट का विस्तृत विश्लेषण। इस रिपोर्ट में भारतीय लोकसभा चुनाव से लेकर आतंकवाद और भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान रिश्ते पर बात की गई है।

जावेद अख़्तर : स्क्रिप्ट-राइटर और गीतकार से लेकर ट्रोल तक का सफ़र

जावेद अख्तर ने फ़िल्म लेखक, गीतकार, सांसद और न जाने कितनी भूमिकाएँ निभाई है, लेकिन अब वह एक हास्यास्पद ट्विटर ट्रोल के किरदार में उतर आए हैं। उनके भाषा से वह शालीनता गायब हो गई है, जो उनके गीतों में दिखती थी।

बाल लिंगानुपात: सिक्किम, छत्तीसगढ़ अव्वल तो दक्षिण भारतीय राज्य फिसड्डी

10 सालों में नागालैंड ने पहली बार 900 के आँकड़े को पार किया है। 2015 में 897 से 2016 में सीधा 967 पर आना यह दिखाता है कि राज्य के लोग 'बेटी बचाओ' के नारे को सचमुच गंभीरता से ले रहे हैं।

उत्तेजित मीडिया मोशाय, शांत हो जाइए; प्रियंका कभी अपने ही गढ़ में फेल हो चुकी हैं

2012 में 15 दिनों से भी ज्यादा दिन के गहन प्रचार-प्रसार के बाद प्रियंका ने अकेले अपने दम पर अमेठी-रायबरेली में कॉन्ग्रेस के सीटों की संख्या 7 से 2 पहुँचा दी थी।

जज साहब डर गए क्या? आख़िर उंगली उठते ही भागकर किसका भला कर रहे हैं आप?

CBI डायरेक्टर, सेना प्रमुख, CJI- नेताओं ने अपनी घटिया राजनीतिक बयानबाज़ी में संवैधानिक पदों पर बैठे उच्चाधिकारियों को भी घसीट लिया है। उन पर बिना सबूत घटिया लांछन लगाए जाते हैं- अपनी राजनीति चमकाने के लिए।