44 कुल लेख
प्रो. रसाल सिंह
प्रोफेसर और अध्यक्ष के रूप में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। साथ ही, विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता, छात्र कल्याण का भी दायित्व निर्वहन कर रहे हैं। इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ाते थे। दो कार्यावधि के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद के निर्वाचित सदस्य रहे हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सामाजिक-राजनीतिक और साहित्यिक विषयों पर नियमित लेखन करते हैं।
संपर्क-8800886847
राजनैतिक मुद्दे
बुलेट का जवाब बैलेट से: जम्मू-कश्मीर में भारत, भारतीयों और लोकतंत्र की जीत, भाजपा का उदय है बड़ा संदेश
सन 2021 की ‘पूर्वसंध्या’ में आए ये चुनाव परिणाम बहुत कुछ कहते हैं और आगामी विधानसभा चुनावों की पूर्वपीठिका निर्मित करते हैं।
राजनैतिक मुद्दे
जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की नई सुबहः पहली बार शरणार्थी, गोरखा, वाल्मीकि समुदाय के लोग भी डालेंगे वोट
इतिहास में पहली बार पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थी, गोरखा और वाल्मीकि समुदाय के लोग भी मतदान कर सकेंगे। अभी तक ये अभागे और उपेक्षित समुदाय राज्य के चुनावों में मतदान के अपने लोकतान्त्रिक अधिकार से वंचित रहे हैं।
राजनैतिक मुद्दे
रोशनी एक्ट मतलब जम्मू का ‘इस्लामीकरण’: रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत में बसाने की साजिश
रोशनी एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस भूमि घोटाले और जम्मू संभाग के इस्लामीकरण की जेहादी साजिश की जाँच CBI को...
राजनैतिक मुद्दे
पंडित दीनदयाल और एकात्म मानववाद: पश्चिम की बजाय भारत को भारत की ही दृष्टि से देखना आवश्यक
दीनदयाल जी ‘राष्ट्र’ की संकल्पना में व्यक्ति को एक साधन के रूप में देखते हैं। व्यक्ति स्वयं के अतिरिक्त अपने राष्ट्र का भी प्रतिनिधित्व करता है।
राजनैतिक मुद्दे
8.5% कमीशन आढ़तिया और राज्य सरकार का…ऐसे लूटा जाता है किसान की उपज को, फिर भी घड़ियाली आँसू बहा रहा विपक्ष
इन तीनों विधेयकों की सही और पूरी जानकारी किसानों तक पहुँच नहीं पाई है। यह सरकार की विफलता ही मानी जाएगी। इतने महत्वपूर्ण और दूरगामी...
राजनैतिक मुद्दे
अब नागाओं का वास्तविक हितधारक और हितैषी नहीं है NSCN (IM): अन्य स्टेकहोल्डर्स को भी शामिल किए जाने की माँग
एनएससीएन (आईएम) को नागा हितों का एकमात्र प्रतिनिधि संगठन मानना और सिर्फ इसके साथ ही शांति-वार्ता और संघर्ष-विराम करना ऐतिहासिक रणनीतिक भूल है।
भारत की बात
मणिपुर का शेर बीर टिकेंद्रजीत सिंह: अंग्रेजों ने जिन्हें कहा था ‘खतरनाक बाघ’, दी थी खुली जगह पर फाँसी
बीर टिकेंद्रजीत सिंह को 13 अगस्त 1891 को आम जनता के सामने एक खुली जगह पर फाँसी लगाई ताकि लोगों में डर पैदा किया जा सके।
राजनैतिक मुद्दे
क्यों मिलता है किसी गिलानी को ‘निशान-ए-पाकिस्तान’: कश्मीरियत को ‘पत्थरबाजी’ बनाने का यूँ रचा खेल
अब्दुल्ला और मुफ़्ती सईद खानदान की वंशवादी राजनीति से भी जम्मू-कश्मीर का आम नागरिक त्रस्त रहा है। दोनों ही खानदानों की तीसरी पीढ़ी...