कोरेगांव की लड़ाई की प्रशंसा ब्रिटेन की संसद तक में हुई थी और कोरेगाँव में एक स्मारक भी बनवाया गया था जिस पर उन 22 महारों के नाम भी लिखे हैं जो कम्पनी सरकार की ओर से लड़े थे। यह प्रमाणित होता है कि कोरेगाँव की लड़ाई दलित बनाम ब्राह्मण थी ही नहीं, यह तो दो शासकों के मध्य एक बड़े युद्ध का छोटा सा हिस्सा मात्र थी।
सब कुछ विश्लेषण करने के बाद अपनी ज़मीन वापस पाने के लिये 13 अप्रैल 1984 को बाकायदा ऑपरेशन मेघदूत चलाया गया जिसकी नायक थे लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून और लेफ्टिनेंट कर्नल डी के खन्ना। तब से हमारी सेनाएँ सियाचिन की रखवाली कर रही हैं।
विस्थापितों की अधिकांश जनसंख्या को शेख अब्दुल्ला ने रोक लिया और उन्हें यह भरोसा दिलाया कि उन्हें राज्य में सब कुछ दिया जाएगा। सब कुछ देने के नाम पर पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को 1954 में अनुच्छेद 35-A का संवैधानिक छल उपहार स्वरूप दिया गया।
प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारियों की तरह दीक्षित की पहुँच सोनिया गाँधी तक नहीं थी। वे जब भी मिलने की इच्छा जताते तो सोनिया गाँधी की तरफ से नकारात्मक उत्तर ही मिलता। वास्तव में मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनते ही NSA पद के लिए झगड़ा प्रारंभ हो चुका था।
दो युवतियों के लिए अपनी सीट स्वेच्छा से छोड़कर ट्रेन की फर्श पर सोने वाला नेता आज देश का प्रधानमंत्री है। ट्रेन की गंदगी ही नहीं बल्कि समूचे देश के मानस में व्याप्त गंदगी उसने देखी है और उसका अनुभव किया है इसीलिए वह व्यक्ति साफ़ सफाई का आग्रह कर पाता है।
भारत ने अफ्स्पा के अंतर्गत सेना को जो विशेषाधिकार दिए हैं वह उन क्षेत्रों में दिए हैं जहाँ वास्तविक शत्रु अपने देश का नागरिक नहीं बल्कि दूसरे देश का मज़हबी घुसपैठिया है।
उन बुद्धिजीवियों के मुँह पर भी तमाचा पड़ा है जिन्हें मई 1988 में किए गए ऑपरेशन शक्ति पर आपत्ति थी। भारत तकनीकी विकास में कभी पीछे नहीं रहा। हमने अपने बलपर वह प्रत्येक तकनीक विकसित की है जो विश्व हमें नहीं देना चाहता था।
अरविन्द केजरीवाल के कारनामों का ताजा उदाहरण है उनका एक ट्वीट जिसमें एक प्रतीकात्मक चित्र में झाड़ू लिया हुआ व्यक्ति ‘स्वस्तिक’ चिह्न को खदेड़ कर भगा रहा है। इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस प्रकार का हिन्दू विरोधी चित्र केजरीवाल की टीम ने खुद बनाया हो।