Tuesday, November 19, 2024
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यूपी उपचुनाव भाजपा के लिए मौका, पिछली बार 9 में से 5 सीट नहीं जीत पाई थी, गणित बदलने से हो सकता है फायदा: इस बार RLD भी साथ, जानें पूरा समीकरण

झारखंड और महाराष्ट्र के साथ ही उत्तर प्रदेश में भी सियासी पारा चढ़ा हुआ है। यूपी की 9 विधानसभा सीटों पर वर्तमान में उपचुनाव चल रहा है। इनमें से अधिकांश सीटें विधायकों के सांसद बनने के कारण खाली हुई हैं। यह उपचुनाव सत्ताधारी भाजपा के लिए एक मौके की तरह सामने आया है।

यूपी की जिन सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, उनमें से आधे से ज्यादा भाजपा पिछले चुनावों में नहीं जीत पाई थी। इसके अलावा यह उपचुनाव, लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को सही करने का एक मौका भी होगा। हाल ही में इन उपचुनाव के लिए वोटिंग की तारीख भी बदली गई है। इससे पहले 13 नवम्बर, 2024 को इन सीटों के लिए मतदान होना था जबकि अब यह 20 नवम्बर को होगा।

पिछली बार क्या था हाल, इस बार कौन आगे?

गाजियाबाद: यूपी उपचुनाव में महानगर गाजियाबाद की सदर सीट भी शामिल है। यह सीट भाजपा के विधायक अतुल गर्ग के सांसद बनने के चलते खाली हुई है। इस सीट पर भाजपा ने संजीव शर्मा को अब टिकट दिया है। सपा ने उनके सामने राज सिंह जाटव को उतारा है। 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहाँ बम्पर वोट बटोरे थे।

यहाँ भाजपा को 60% से अधिक वोट मिले थे। वहीं सपा के विशाल वर्मा को मात्र 18% जबकि बसपा के कृष्ण कुमार तीसरे नम्बर पर 13% वोट के साथ थे। भाजपा के लिए गाजियाबाद की सीट ज्यादा कठिन नहीं लग रही। बसपा ने यहाँ परमान्द गर्ग को उम्मीदवार बनाया है लेकिन भाजपा सांसद अतुल गर्ग के प्रभाव के चलते वैश्य वोट पर फर्क की बड़ी संभावना नहीं दिखती।

मीरापुर: मुजफ्फरनगर जिले की मीरापुर सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है। यह सीट भी रालोद के विधायक चंदन चौहान के बिजनौर लोकसभा सीट से सांसद बनने के कारण खाली हुई है। यहाँ 2022 में भाजपा को हार झेलनी पड़ी थी। तब रालोद, सपा के साथ गठबंधन में थी।

भाजपा यहाँ तब दूसरे नम्बर पर रही थी और उसे लगभग 37% वोट मिले थे। इस बार के उपचुनाव में यह सीट भाजपा ने रालोद को ही दी है। रालोद ने यहाँ से मिथिलेश पाल जबकि सपा ने सुम्बुल राणा को टिकट दिया है। वह पूर्व बसपा सांसद कादिर राणा की बहू हैं। बसपा ने यहाँ शाहनजर को टिकट दिया। ऐसे में यहाँ मुस्लिम वोट बंट सकता है जिससे RLD फायदे में रहेगी।

कुंदरकी: यूपी उपचुनाव में मुरादाबाद जिले की कुंदरकी विधानसभा भी हॉट सीट है। यह सीट सपा विधायक जिया उर रहमान के संभल से सांसद बनने के चलते खाली हुई है। इस सीट पर भाजपा को 2022 चुनाव में हार झेलनी पड़ी थी। भाजपा उम्मीदवार कमल कुमार को 30% वोट मिले थे।

कुंदरकी सीट पर भाजपा ने रामवीर सिंह ठाकुर को उतारा है जबकि उनके सामने सपा के हाजी रिजवान हैं। यह सीट मुस्लिम बहुल है। यहाँ पर लगभग 60% से अधिक आबादी मुस्लिम है। यहाँ बसपा ने रफतउल्ला को उतारा है। भाजपा यहाँ अभी टक्कर ले रही है। यदि मुस्लिम वोटों में बिखराव होता है, तो भाजपा यह सीट जीत भी सकती है।

खैर: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा बृज क्षेत्र में अलीगढ़ जिले की खैर सुरक्षित सीट पर भी उपचुनाव होना है। खैर सीट पर 2022 में भाजपा ने जीत हासिल की थी। 2022 में जीतने वाले अनूप प्रधान वाल्मीकि अब सांसद बन चुके हैं। भाजपा ने इस बार सुरेन्द्र सिंह दिलेर जबकि सपा ने चारू कैन को उतारा है। बसपा ने यहाँ डॉ पहल सिंह को उतारा है।

इस सीट पर भाजपा मजबूत दिख रही है। पिछले चुनाव में भी उसे 50% से अधिक वोट मिले थे। यहाँ जाट समुदाय के वोट अहम हैं। भाजपा के साथ इस चुनाव में RLD है जिसके कारण भाजपा को फायदा हो सकता है। इस सीट पर सपा-बसपा के बीच वोटों का बंटवारा भाजपा को और भी बढ़त दिला सकता है।

करहल: मैनपुरी जिले की करहल सीट भी विधायक अखिलेश यादव के सांसद बनने के कारण खाली हुई है। यह सीट सपा का गढ़ रही है। 2022 विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने यहाँ से मंत्री एसपी सिंह बघेल को उतारा था। वह इस सीट पर ठीकठाक वोट पाने में सफल रहे थे।

यहाँ लड़ाई परिवार के भीतर ही है। भाजपा ने अनुजेश यादव जबकि सपा ने परिवार से ही तेजप्रताप यादव को उतारा है। दोनों के बीच फूफा-भतीजे का रिश्ता है। भाजपा इसके चलते यादव वोट में सेंध लगाना चाहती है। उसे गैर यादव वोट में अच्छी बढ़त हासिल है। दोनों फैक्टर अगर काम कर गए तो यहाँ इतिहास बदल भी सकता है।

सीसामऊ: यूपी उपचुनाव में कानपुर की सीसमाऊ सीट भी शामिल है। यह सीट सपा विधायक इरफ़ान सोलंकी की विधायकी रद्द होने के चलते खाली हुई है। इरफ़ान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी यहाँ से सपा की उम्मीदवार हैं। भाजपा ने नसीम सोलंकी के सामने सुरेश अवस्थी को उतारा है। अवस्थी 2017 में इरफ़ान के हाथों मात्र 5500 वोट से हारे थे।

इस सीट पर वीरेंद्र कुमार शुक्ला को उतारा है। बसपा की रणनीति है कि यहाँ ब्राम्हण वोटों में सेंध लगाई जाए। इस सीट पर 2022 में भाजपा उम्मीदवार लगभग 43% वोट पाए थे। इस बार इरफ़ान सोलंकी के खुद चुनाव में ना होने चलते उनकी पत्नी की स्थिति कमजोर हो सकती है।

फूलपुर: प्रयागराज जिले की फूलपुर सीट विधायक प्रवीण पटेल के सांसद बनने के चलते खाली हुई है। भाजपा ने यहाँ दीपल पटेल जबकि सपा ने मुजतबा सिद्दीकी को उतारा है। बसपा ने यहाँ जितेन्द्र सिंह को उतारा है। फूलपुर में भाजपा ओबीसी वोटर को लामबंद करने में लगी हुई है। यहाँ भाजपा हिन्दू वोट बंटने नहीं देना चाहती जबकि सपा मुस्लिम वोट जुटाने में लगी है।

कटेहरी: यूपी विधानसभा उपचुनाव में अम्बेडकर नगर की कटेहरी सीट भी है। यह एक हाई प्रोफाइल सीट है। कटेहरी विधानसभा सपा विधायक लालजी वर्मा के सांसद बनने के चलते खाली हुई है। सपा ने यहाँ लालजी वर्मा की पत्नी सोभावती वर्मा को उतारा है। लालजी वर्मा सपा के बड़े चेहरे हैं। भाजपा ने यहाँ धर्मराज निषाद जबकि बसपा ने अमित वर्मा को उतारा है।

2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा की सहयोगी NISHAD पार्टी ने यहाँ अच्छे वोट बटोरे थे। इस बार भाजपा को यहाँ बढ़त है। एक तो कुर्मी वोटों में यहाँ बंटवारा सपा-बसपा के बीच हो रहा है। वहीं भाजपा ने निषाद उम्मीदवार देकर बढ़त बना ली है।

मंझवा: जिला मिर्जापुर की सीट मंझवा भी 2022 में NISHAD पार्टी से विधायक बने रमेश बिंद के जीतने के बाद खाली हुई है। भाजपा ने 2017 में यहाँ से जीती सुचिस्मिता मौर्या को उम्मीदवार बनाया है। वहीं सपा ने बढ़त लेने के लिए यहाँ से ज्योति बिंद को उतारा है। बसपा ने ब्राम्हण वोट बटोरने के लिए दीपक तिवारी को टिकट दिया है।

2022 चुनाव में भी बिंद और ब्राम्हण वोटों में बंटवारा हुआ था। इस बार भाजपा चाहती है कि वह ओबीसी और ब्राम्हण वोट जुटा ले, जिससे उसको बढ़त हासिल हो।

इन सभी सीटों पर 20 नवम्बर, 2024 को वोटिंग होगी। इनके अलावा अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर भी उपचुनाव होना है, इसकी अभी तारीख घोषित नहीं हुई है। यह सीट 2022 में सपा के खाते में गई थी। इस सीट के विधायक अवधेश कुमार 2024 में फ़ैजाबाद लोकसभा सीट से सांसद बने हैं।

मंदिर जाने से पहले लो परमिशन, सुंदरकांड के लिए माँगो माफी: भोपाल के बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी में वॉर्डन आयशा का तुगलकी फरमान, ABVP का प्रदर्शन

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी में मंदिर जाने और सुंदरकांड का पाठ करने पर हॉस्टल की छात्राओं को प्रताड़ित करने और उनसे माफानामा लिखवाया गया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने इसका विरोध किया है। छात्राओं का आरोप है कि हॉस्टल की चीफ वार्डन आयशा रईस ने कहा कि अगर मंदिर जाना है तो पहले यूनिवर्सिटी प्रशासन से इजाजत लेनी होगी।

इस घटना को लेकर हिंदू संगठनों ने गहरी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि अगर इस मामले में उचित कार्रवाई नहीं की गई तो वे सड़कों पर उतरेंगे। उनका कहना है, “मोहन यादव के राज में सुंदरकांड और धार्मिक आयोजनों पर रोक नहीं सहन की जाएगी।” वहीं, भाजपा की छात्र इकाई ABVP ने इसको लेकर यूनिवर्सिटी में विरोध प्रदर्शन किया है।

ABVP से जुड़े छात्र-छात्राएँ विश्वविद्यालय के मेन गेट पर एकत्रित हुए और रामधुन का आयोजन कर प्रशासन को सदबुद्धि देने की प्रार्थना की। ABVP के एक नेता ने बताया कि छात्राओं को मंदिर जाने और धार्मिक कार्यक्रमों में भाग लेने से रोकने की यह कार्रवाई निंदनीय है और वॉर्डन के निर्देश इस तुगलकी निर्देश के खिलाफ उनका विरोध जारी रहेगा।

ABVP के राष्ट्रीय महामंत्री ने ट्वीट करके मुख्यमंत्री मोहन यादव से कहा कि यह फरमान उनकी आस्था और मान्यताओं पर सीधा प्रहार है। उन्होंने विषय की गंभीरता को ध्यान में रखकर अविलंब कार्यवाई सुनिश्चित करने की माँग की। हिंदुस्तान में इस तरह का फरमान क़तई स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसके बाद ABVP ने विरोध में पोस्टर भी जारी किया।

वहीं, विवाद बढ़ता देखकर चीफ वॉर्डन आयशा रईस ने कहा कि छात्राओं को कैंपस में आयोजित सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति दी जाती है। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि उनकी उपस्थिति और गतिविधियाँ नियमानुसार दर्ज हों। कभी-कभी छात्राओं के समय पर नहीं लौटने पर चिंता होती है। उन्होंने कहा कि यह अनुशासन और सुरक्षा से संबंधित मामला है।

उन्होंने आगे कहा, “यह मजहबी मुद्दा नहीं है। यह मुद्दा निपटा दिया गया था। मुद्दा कहीं जाने का नहीं है, मुद्दा अनुशासन का है। वाइस चांसलर ने एक कमिटी बना दी है, वह तहकीकात करेगी। बच्ची हमारी औलाद की तरह हैं। उन्हें कुछ नहीं होना चाहिए। वे अपने माँ-बाप से दूर रहते हैं। हम उन्हें इतना प्यार देते हैं। हम उन्हें सेफ्टी देते हैं, ताकि वह खुशहाली से अपनी पढ़ाई करें।”

वॉर्डन ने कहा, “इतना ही मामला है। इससे ‘बच्चियाँ’ नाराज हो गईं। हमारा काम ही है कि हम गार्जियन की तरह पेश आएँ। छात्राओं के आने-जाने के समय को लेकर हम रजिस्टर मेंटेन करते हैं। हमारी इस पर भी नजर रहती है कि बच्चियाँ समय से हॉस्टल लौट आ जाएँ। उनसे कहा जाता है कि बेटा लेट हो रहे हो, टाइम पर आ जाओ। मामला सुलझ गया है बच्च‍ियाँ मान गई हैं। उनकी एंट्री हो चुकी है।”

कहा जा रहा है कि हाल ही में यूनिवर्सिटी परिसर में सुंदरकांड का आयोजन किया गया था। उसमें छात्राएँ भी शामिल हुई थीं। आयोजन के चलते छात्राएँ देर से हॉस्टल पहुँची थीं। इसके बाद हॉस्टल की वॉर्डन आयशा ने उन्हें आगे से तय समय यानी की शाम 7:00 से 7:30 बजे के बीच हॉस्टल लौट आना है। इससे अधिक देरी होनेे पर यूनिवर्सिटी से परमिशन लेने की हिदायत दी थी।

नवाबों पर चुप्पी, लेकिन राजा-महाराजाओं के प्रति नफरत: संविधान की बात करने वाले ‘युवराज’ राहुल गाँधी को क्यों पढ़ना चाहिए ‘कॉन्ग्रेस-पुलिस-हत्या’ वाला इतिहास

कॉन्ग्रेस के नेता राहुल गाँधी पिछले कुछ समय से देश के राजा-महाराजाओं पर लगातार ओछी टिप्पणी करते आ रहे हैं। वे उन राजा-महाराजाओं के इस देश के निर्माण में दिए गए योगदान को अपने पूर्वजों- पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी की तरह ही भूल गए हैं। यही कुछ ऐसी बातें हैं, जिसने राहुल गाँधी को राजनीति का जोकर साबित कर दिया है और वे पिछले तीन दशक से इस तमगे को ढो रहे हैं।

राहुल गाँधी ये बातें अपने मन से बोल रहे हों, इसकी संभावना बेहद कम है, क्योंकि उन्हें वर्तमान की उतनी समझ नहीं है तो इतिहास की समझ क्या ही होगी। राहुल गाँधी को राजनीति का जोकर साबित करने में उनके सलाहकारों की बड़ी भूमिका नजर आ रही है, जो उन्हें कुछ इस तरह के मुद्दे थमा रहे हैं जो कॉन्ग्रेस की ताबूत में आखिरी कील साबित होते हुए नजर आ रही है। इन्हीं में से एक है भारत के राजा-महाराजाओं पर ओछी टिप्पणी।

पिछले दिनों राहुल गाँधी ने 6 नवंबर 2024 को विभिन्न समाचार पत्रों में ‘समान अवसर की माँग करता व्यापार जगत’ शीर्षक से एक लेख लिखा। इसके पहले ही पैराग्राफ में उन्होंने लिखा, “ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत की आवाज अपनी व्यापारिक शक्ति से नहीं बल्कि अपने शिंकजे से कुचली थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के राजा-महाराजाओं को डराकर-धमकाकर और उन्हें घूस देकर भारत पर राज किया।”

राहुल गाँधी का लेख यह उनकी इतिहास की समझ को दर्शाता है। हालाँकि, इस लेकर भाजपा एवं अन्य दलों ने राहुल गाँधी पर खूब निशाना साधा, लेकिन क्षत्रियों संगठनों ने उनकी समझ को समझकर इस पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी। आजादी के बाद सत्ता में आते ही अधिनायकवादी रवैया अपनाने वाली कॉन्ग्रेस की इस नई-नवेली पीढ़ी से इसकी अपेक्षा तो की ही जा सकती है।

इससे पहले अप्रैल 2024 में राहुल गाँधी ने कहा था, “राजा-महाराजा गरीबों को लूटा करते थे। उन्हें जो चीज पसंद आ जाती थी, उस पर कब्जा कर लिया करते थे।” तब पीएम ने कहा था कि राहुल गाँधी ने राजाओं-महाराजाओं को लुटेरा बताकर भारत की विरासत का अपमान किया है। पीएम ने कहा था, “तुष्टिकरण की आदत कॉन्ग्रेस को नवाबों, निजामों, सुल्तानों और बादशाहों के अत्याचारों को लेकर ऐसा ही बोलने से रोकती है।” 

पीएम मोदी ने कहा था, “कॉन्ग्रेस औरंगजेब के घोर अत्याचारों को भूल गई है, जिसने हमारे हजारों मंदिरों को नष्ट कर दिया था। शहजादे (राहुल गाँधी) उसके और अन्य लोगों के बारे में बात नहीं करते, जिन्होंने हमारे तीर्थ स्थलों को नष्ट कर दिया… उन्हें लूट लिया… हमारे लोगों को मार डाला…। कॉन्ग्रेस अब उन पार्टियों के साथ गठबंधन कर रही है, जो औरंगजेब का महिमामंडन करती हैं।”

दरअसल, उत्तराधिकार में मिली राजनीति वाले राहुल गाँधी भूल जाते हैं कि राजा-महाराजा इस देश की धरोहर हैं। यहाँ की विरासत का हिस्सा हैं। भारत की प्राचीन संस्कृति का हिस्सा हैं। भारत की विरासत को नकारना हिंदू संस्कृति को नकारना है और राहुल गाँधी लगातार इस संस्कृति को नकारते आ रहे हैं। राहुल गाँधी राजा-महाराजा की बात तो करते हैं, लेकिन बादशाहों-नवाबों की बातें नहीं करते।

कॉन्ग्रेस का इतिहास रहा है अधिनायकवादी

कॉन्ग्रेस पर कब्जा: कॉन्ग्रेस का भारतीय संस्कृति एवं उसके महत्वपूर्ण अध्याय का हिस्सा रहे राजा-महाराजाओं से खानदानी नफरत है। यहाँ तक कि कॉन्ग्रेस और उसके नेता अधिनायकवादी चरित्र को जी भरकर जिए हैं। आजादी से पहले 1939 में जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष चुने गए तो पंडित नेहरू को यह बात नहीं पची। वह महात्मा गाँधी के बेहद करीबी थे। उन्होंने महात्मा गाँधी को आगे करके नेताजी बोस को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। ये चरित्र है कॉन्ग्रेस का।

महाराजा हरि सिंह से घृणा: पंडित नेहरू को भी राजा-महाराजाओं से घृणा थी। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह को बदनाम करने के लिए शेख अब्दुल्ला का भरपूर साथ दिया। भारत में विलय करने के लिए बार-बार नेहरू को सूचित करने वाले हरि सिंह की बातों पर पंडित नेहरू ने कभी ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम ये हुआ कि जम्मू-कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पाले में चला गया।

याद रहे, महाराजा हरि सिंह के पूर्वज महाराजा गुलाब सिंह ने एक पैदल सैनिक के रूप में अपनी मातृभूमि के लिए सेवाएँ दी थीं और बाद में वे जम्मू-कश्मीर के शासक बने थे। हरि सिंह ने कश्मीर में शुद्रों को मंदिर में प्रवेश की सबसे पहले इजाजत दी थी। उनके शिक्षा के लिए प्रबंध किया था। हालाँकि, नेहरू को विकास आदि से क्या मतलब था, उन्हें तो राजनीति करनी थी।

भारत में विलय के सिंध के प्रस्ताव को खारिज किया: इतना ही नहीं, अपनी अकड़ में मस्त पंडित नेहरू ने सिंध के शासक के भारत में सम्मिलित होने के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया। उन्हें प्रधानमंत्री बनने की इतनी जल्दी थी कि वे भारत का जल्द से जल्द विभाजन करके किसी तरह प्रधानमंत्री बन जाना चाहते थे। उन्होंने इसके लिए तमाम तरीके अपनाए। इसके लिए उन्होंने वायसराय लॉर्ड माउंट बेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन तक का सहारा लिया।

पंडित नेहरू ने विलय करने वाले रियासतों के प्रमुखों का समझौता तोड़ा: स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही कुछ रियासतों को छोड़कर देश के राजा-महाराजाओं ने भारत में विलय का ऐलान कर दिया था। कई लोगों ने देश के निर्माण में अपनी सेना से लेकर संपत्ति और लाखों एकड़ भूमि तक दान दी। यह सब कुछ बिना किसी लालच के किया गया था।

उस दौरान नेहरू ने कहा था कि इन राजाओं के साथ एक समझौता किया था कि उनका राजप्रमुख का पद बरकरार रहेगा। हालाँकि, नेहरू ने इन समझौते तोड़ते हुए 1956 में राजाओं के राजप्रमुख का पद छीन लिया। इससे जयपुर के महाराजा के साथ-साथ अन्य राजा काफी खिन्न हो गए और नेहरू के असली चरित्र को पहचान गए।

जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह की रहस्यमय मौत: जोधपुर के महाराजा हनवंत सिंह कॉन्ग्रेस और नेहरू से इत्तेफाक नहीं रखते थे। उन्होंने देश के पहले आम चुनाव 1952 में मारवाड़ क्षेत्र से कॉन्ग्रेस को धाराशायी कर दिया। इस क्षेत्र के 26 सीटों में से एक भी सीट कॉन्ग्रेस को नहीं मिली। इसके बाद वे कॉन्ग्रेस और नेहरू के निशाने पर आ गए। 26 जनवरी 1952 को एक प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई। इस मौत को लेकर आज भी कॉन्ग्रेस पर सवाल उठाए जाते हैं। 

इंदिरा गाँधी में भी अधिनायकवादी रवैया

राष्ट्रपति पद की गरिमा का मर्दन: पंडित नेहरू ने अपनी विरासत को कॉन्ग्रेस के किसी अन्य नेता को नहीं, बल्कि अपनी बेटी इंदिरा गाँधी को सौंपी। पंडित नेहरू की तरह ही इंदिरा गाँधी अधिनायकवादी रूख के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने राजा-महाराजाओं को मिलने वाले ना सिर्फ प्रिवी पर्स को खत्म को किया, बल्कि कई नजदीकियों की विरोध की राजनीति करने पर उनका सार्वजनिक जीवन तक खत्म करवा दीं।

इंदिरा गाँधी ने इस देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति की गरिमा को खंडित किया। ज्ञान जैल सिंह के राष्ट्रपति रहने के दौरान उन्होंने उस पद की गरिमा का ध्यान तक नहीं रखा। इंदिरा गाँधी का अधिनायकवादी कुछ ऐसा रवैया था, उनके खिलाफ चंद्रशेखर सिंह को छोड़कर कोई बोलने तक को तैयार नहीं था।

ज्ञानी ज़ैल सिंह ने तो एक बार यहाँ तक कह दिया था कि अगर इंदिरा गाँधी कहें तो वो सड़क पर झाड़ू लगाने को भी तैयार हैं। कहा जाता है कि राष्ट्रपति से मिलने के लिए इंदिरा गाँधी कभी नहीं जाती थीं, लेकिन जरूरत पड़ने पर ज्ञानी जैल सिंह को बुलवा लेती थीं। इस वह पद के साथ-साथ सामान्य शिष्टाचार का भी पालन नहीं करती थीं।

आपातकाल: राहुल गाँधी आज संविधान की किताब लेकर घूम रहे हैं और मोदी सरकार को लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, लेकिन भूल जाते हैं कि उनकी ही दादी ने इस देश से लोकतंत्र खत्म करने की कोशिश की। इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लगातार जनता के अधिकारों को रौंद दिया। हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया और घोर यातनाएँ दी गईं, जो कभी अंग्रेज भारतीयों को दिया करते थे।

संजय गाँधी का समानांतर सत्ता: इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमंत्री थीं, लेकिन उनके छोटे बेटे संजय गाँधी देश में समानांतर सरकार चलाते थे। यह लोकतंत्र के सर्वथा विरूद्ध है। कहा जाता है कि अधिकारियों एवं मंत्रियों तक की नियुक्ति में भी उनका बड़ा दखल होता है। कई योजनाओं को वो जबरन लागू करवाते थे। संजय गाँधी के अधिनायकवादी रुख को लेकर कई घटनाएँ हैं।

जबरन नसबंदी: ये संजय गाँधी ही थे, जिन्होंने देश में जनता को विश्वास में लिए बिना हजारों लोगों का जबरन नसबंदी करवा दिया था। साल 1976 के सितंबर महीने में उन्होंने देश भर में पुरुष नसबंदी का करवाने का आदेश दिया। एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि एक साल में 60 लाख से ज्यादा लोगों की जबरन नसबंदी की गई, जिनमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्गों तक शामिल थे।

झुग्गियों पर जबरन बुलडजोर चलवाया: संजय गाँधी का रवैया इतना तानाशाही था कि ‘उनका वचन ही शासन’ था। उनके मन में जो आ जाता उसे लागू हो जाता। आपातकाल के दौरान उन्होंने दिल्ली की झुग्गियों पर बुलडोजर चलाने का निर्देश दिया। दिल्ली के तुर्कमान गेट पर खुद खड़े होकर उन्होंने बुलडोजर चलवाया। लोगों ने विरोध किया था तो उन पर गोलियाँ चलवाई गईं, जिनमें दर्जनों लोग मारे गए।

इस पुलिस फायरिंग में कितने लोग मारे गए, इसका सही आँकड़ा आज भी लोगों के पास नहीं है। उस दौरान कॉन्ग्रेस के भी कई नेता उस घटनास्थ पर मौैजूद थे। उस समय मीडिया को इस इवेंट को कवर करने की इजाजत नहीं दी गई थी। ऐसा कुछ तानाशाही रुतबा था संजय गाँधी का, जो उन्हें इंदिरा गाँधी से विरासत में मिली थी।

इंदिरा गाँधी और उनके उत्तराधिकारियों ने विरोधियों को खत्म करने के लिए हर हथकंडे अपनाए

महाराजा प्रवीर भंजदेव की हत्या: कॉन्ग्रेस की आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ बस्तर के महाराजा प्रवीर भंजदेव खुलकर खड़े हो गए। उन्होंने आदिवासियों के साथ होने वाले अन्याय को असहनीय बताया। वे कॉन्ग्रेस से अलग लगातार चुनाव जीत रहे थे। उनका प्रभाव कई विधानसभा सीटों पर था। इससे नाराज होकर कॉन्ग्रेस की सरकार ने 1966 में पुलिस फायरिंग में उनकी हत्या करवा दी।

उन्होंने नौ आदिवासियों को विधानसभा भेजकर उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लेकर आए थे। उस समय मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा थे। कहा जाता है कि राजा प्रवीर भंजदेव को 25 गोलियाँ उनके महल में मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उनके परिवार की अनुमति के बिना उनके शव को जला दिया गया था। उनके परिवार के सदस्यों को आमंत्रित तक नहीं किया गया था।

महारानी गायत्री देवी का उत्पीड़न: जयपुर की महारानी गायत्री देवी एक समय इंदिरा गाँधी की सहेली हुआ करती थीं, लेकिन इंदिरा गाँधी के तानाशाही रवैये ने महारानी को उनका विरोधी बना दिया। 1975 में इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल महारानी गायत्री देवी ने विरोध किया था। इसके बाद इंदिरा ने आयकर विभाग से राजघराने की आय और संपत्ति की जाँच का आदेश दिया।

इंदिरा गाँधी ने सेना भेजकर राजस्थान में उनके महल की खुदाई कराकर कई ट्रकों में उनकी संपत्तियों को निकाला लिया गया। यहाँ तक महारानी गायत्री देवी को इंदिरा गाँधी ने तिहाड़ जेल में डलवा दिया और वह 6 महीने तक यहाँ रहीं। बाद में इंदिरा गाँधी से व्यवहार से दुखी होकर राजमाता के नाम से विख्यात गायत्री देवी ने राजनीति ही छोड़ दी।

भरतपुर के महाराजा और सीटिंग MLA का पुलिस एनकाउंटर: 20 फरवरी 1985 को भरतपुर के महाराजा और सीटिंग निर्दलीय MLA राजा मान सिंह को राजस्थान तत्कालीन कॉन्ग्रेस मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने पुलिस एनकाउंटर में हत्या करवा दी थी। कहा जाता है कि माथुर के सामने डीग से राजा मान सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। इससे माथुर नाराज थे।

माथुर के समर्थक कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने डीग के किले पर लगा राजशाही झंडा उतारकर कॉन्ग्रेस का झंडा लगा दिया था। इस हरकत से राजा मान सिंह नाराज हो गए और अपनी जीप से माथुर की चुनावी सभा में जा पहुँचे। उन्होंने माथुर के हेलीकॉप्टर में टक्कर मार दी। इसके बाद उनके खिलाफ FIR दर्ज करवाकर माथुर ने उनका पुलिस एनकाउंटर करा दिया।

राजा-महाराजाओं ने जो इस देश को अपना सर्वस्व दिया

इस देश की आजादी का इतिहास सिर्फ 1947 से नहीं शुरू होता। इस देश का इतिहास 700 ईस्वी से पहले भी शुरू होता है, जब मुस्लिम आक्रमण की शुरुआत नहीं हुई थी। बप्पा रावल से लेकर महाराणा प्रताप ने विदेशी आक्रांताओं से मुकाबला किया और इस देश के जनमानस को सुरक्षित रखा। राहुल गाँधी भले ही राजा-महाराजाओं को गाली दें, लेकिन इस देश के कण-कण में उनका त्याग और बलिदान छिपा है।

जब देश आजाद नहीं हुआ, तब भी राजाओं ने अपनी प्रजा के लिए जो काम किए, वो आज भी चमत्कार से कम नहीं है। कॉन्ग्रेस की सरकार 70 साल में देश के लोगों के पीने के लिए स्वच्छ जल नहीं उपलब्ध करा पाई, लेकिन राजा-महाराजाओं ने एक-एक मील पर कुँआ, तालाब, बावड़ी, नहर, धर्मशालाएँ आदि बनवाए, ताकि प्रजा को बेसिक चीजों की कमी ना हो।

आज गरीब मर जाए, लेकिन उसे हर चीज में टैक्स देना होता है। राजा-महाराजाओं के काल में कभी भूख से मौत नहीं होती थी। अकाल के समय राजा-महाराजा अपने गोदाम खोल देते थे और जनता को तब तक भोजन उपलब्ध कराते थे, जबकि अगली बार फसल ना हो जाए। लगान एवं मालगुजारी उस साल माफ कर दी जाती थी। आज आधुनिक उपकरण होने के बावजूद एक पूल 2 महीने में गिर जाता है।

शायद राहुल गाँधी ने इस देश के इतिहास एवं मिट्टी की गंध को महसूस करने की कोशिश नहीं की। इसी देश में राजा-महाराजाओं ने असंभव को संभव करके दिखाया है। रेगिस्तान में गंग नहर बनाने का काम कोई प्रजापालक ही कर सकता है। कहा जाता है कि पानी को संचित करने और उस साल आए भयंकर अकाल में लोगों को रोजगार देने के लिए गंग नहर का निर्माण शुरू हुआ था और राजा गंगा सिंह खुद इसमें हाथ बँटाते थे।

इसी तरह अकाल में रोजगार देने के लिए मारवाड़-राठौर राजवंश के महाराजा उम्मेद सिंह ने अपनी उम्मेद भवन महल का निर्माण शुरू करवाया था। यह महल सन 1943 में बनकर तैयार हुआ था। जब यह बना था, तब यह दुनिया के सबसे बड़े राजपरिसरों में से एक था। इसी तरह मध्य प्रदेश के कोरिया के राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने 1924 के अकाल के समय कोरिया पैलेस का निर्माण कराया, ताकि लोगों को रोजगार मिले।

इससे पहले यह राजपरिवार मिट्टी के घरों में रहता था। इस पैलेस के निर्माण से सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला। इसकी पहली मंजिल का काम लगभग सात साल बाद यानी 1930 में पूरा हुआ। इसके बाद राजपरिवार के सदस्य महल में रहने आ गए। इससे पहले राजपरिवार के सदस्य बैकुंठपुर स्थित धौराटीकरा में मिट्टी के बने घर में रहते थे। 1942 में फिर से अकाल पड़ा दो मंजिला पैलेस बनने के बाद ऊपर कुछ कमरे और बनवाए गए।

भारत के इतिहास में ऐसी लाखों कहानियाँ भरी पड़ी हैं। बस राहुल गाँधी को इनकी जानकारी नहीं है। जब देश आजाद हुआ था तो इन्हीं राजाओं ने लाखों एकड़ भूमि सरकार को मुफ्त में दी थी। इतना ही नहीं जब भूदान आंदोलन शुरू हुआ तो लोगों को इन्हीं राजाओं ने जमीनें दान दीं। आज उन्हीं दान की हुई जमीनों पर भारत के विकास की नींव खड़ी है, लेकिन राहुल गाँधी में उसे देखने की दूरदर्शिता नहीं है।

अपनी प्रजा के लिए पहले के राजाओं की क्या सोच थी, इसका उदाहरण जोधपुर नरेश महाराज हनुवंत सिंह की सरदार पटेल के साथ एक घटना से समझा जा सकता है। सन 1949 में जब सरदार पटेल अपने सहोयगी वीपी मेनन के साथ जोधपुर के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर के लिए पहुँचे तो उन्होंने कहा जोधपुर की जनता को खाने की दिक्कत ना हो ऐसे में भारत यहाँ, खासकर अकाल के समय में अनाज की आपूर्ति की ज़िम्मेदारी लेगा।

इसके साथ ही जोधपुर को काठियावाड़ से रेल द्वारा जोड़ा जाएगा, ताकि जोधपुर में व्यापार फल-फूल सके। इसके लिए सरदार पटेल और मेनन तैयार हो गए। इसी दौरान युवा हनवंत सिंह ने पेन वाली अपनी रिवॉल्वर मेनन की करके चेतावनी देते हुए कहा कि अपनी बात से पीछे हटने का अब रास्ता नहीं बचा है। इसी दौरान माउंटन बेटन वहाँ आ गए और महाराजा ने आग्रह किया तो उन्होंने अपनी पिस्तौल नीचे कर दी।

राहुल गाँधी को ना इतिहास की जानकारी और संस्कृति की समझ

राहुल गाँधी ने इस देश की जनता, उसकी संस्कृति से लेकर उसके व्यवहार को समझने की कोशिश नहीं की। ना ही एलीट वर्ग में पैदा हुए मोतीलाल नेहरू से लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी ने ऐसी कोशिश की। इन लोगों ने इस देश की निरीह जनता को जैसे चाहा, वैसे हाँका। कभी जातियों में बाँटा तो कभी धर्म की राजनीति की और समाज में भेदभाव पैदा किया।

कॉन्ग्रेस की राजनीति कभी देश को जोड़ने वाली रही ही नहीं। देश की आजादी से पहले वह मुस्लिमों से अलग रूख अपनाकर सांप्रदायिक राजनीति की। जब देश आजाद होकर बँटवारा हो गया तो जाति की राजनीति की और 70 सालों तक इस देश को गरीब लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा और खुद घोटाले पर घोटाले करके मलाई खाते रहे।

बिजली-पानी-सड़क-स्वास्थ्य-शिक्षा जैसी बुनियादी चीजों का समाधान शुरूआती 2 दशक में पूरे हो जाने चाहिए थे, लेकिन कॉन्ग्रेस के नेताओं पर अधिनायकवाद का ऐसा नशा सवार था कि वे अपने विरोधियों को निपटाने पर तुले थे और देश की जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया। आज राहुल गाँधी इस देश के कण-कण में विद्यामान राजा-महाराजाओं को क्रूर बताने का कुत्सित प्रयास कर रहे हैं।

राहुल गाँधी अपने पूर्वज पंडित नेहरू और इंदिरा गाँधी के ही रास्ते पर ही जा रहे हैं, जिन्हें आम लोगों से नफरत थी। देश के लोगों के काम करने वालों से नफरत थी। जैसे कि महाराज प्रवीर भंजदेव इसके उदाहरण हैं। कॉन्ग्रेस को जी-हजूरी करने वाले दरबारियों से घिरे रहने की आदत सी थी। राहुल गाँधी आज भी जमीन पर उतरने के बजाय अपने दरबारियों के सलाह पर बयान दे रहे हैं। यह उनकी पार्टी की विनाश का संकेत है।

आजादी के वक्त जिस घर में लगी आग, आज भी उसे अमृतसर में खोजते हैं CJI: संजीव खन्ना से जुड़ा किस्सा चर्चा में, शपथ लेकर बने देश के 51वें मुख्य न्यायाधीश

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना अब देश के नए मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने 11 नवंबर 2024 ही देश के 51वें सीजेआई के तौर पर पद की शपथ ली। उनके मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद लोग उनके जीवन की उपलब्धियाँ, पारिवारिक बैकग्राउंड, उनकी शिक्षा, करियर के अलावा उनसे जुड़े एक ऐसे किस्से की चर्चा कर रहे हैं जो बेहद भावुक करने वाला है।

ये किस्सा सीजेआई के पुराने घर से जुड़ा है जिसे आज भी वो अमृतसर जाने के बाद को तलाशते हैं और जो उनको बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिलता।

बता दें कि संजीव खन्ना के किसी करीबी ने इस किस्से का खुलासा किया था और अब उनके सीजेआई बनने के बाद हर जगह इस पर बात हो रही है। संजीव खन्ना का वो पुराना घर उनके बाऊजी यानी दादाजी सरव दयाल ने कटरा शेर सिंह में खरीदा था। लेकिन अब चूँकि इलाका बदल गया है तो वो उस घर को नहीं पहचान पाते।

जानकारी के मुताबिक, सीजेआई खन्ना के दादा एक मशहूर वकील थे। साथ ही 1919 के जलियांवाला बाग कांड के लिए गठित कॉन्ग्रेस की कमेटी में भी वो शामिल थे। उस जमाने में उन्होंने दो घर खरीदे थे। एक घर तो डलहौजी में था और दूसरा अमृतसर के कटरा शेर सिंह में।

डलहौजी वाला घर आज भी संजीव खन्ना ने संभालकर रखा है। वहाँ वह छुट्टियों में जाते भी है। मगर कटरा शेर सिंह वाला घर अब केवल यादों में है। स्वतंत्रता के समय 1947 में जब कटरा शेर सिंह वाले घर में तोड़फोड़ हुई तो उस घर को दोबारा से ठीक कराया। बाद में उनके बेटे देवराज खन्ना अपने पाँच साल के बेटे संजीव खन्ना को वहाँ लेकर गए और एक निशानी जिसपर बाऊजी लिखा था उसे लेकर भी आए।

बाद में 1970 के समय अमृतसर का वो घर बेच दिया गया। लेकिन सीजेआई खन्ना की स्मृतियों से वो घर नहीं निकला। आज भी जब संजीव खन्ना अमृतसर जाते हैं तो कटरा शेर सिंह जरूर जाते हैं और कोशिश करते हैं वो उसी घर को पहचान सकें। मगर नक्शा बदलने के बाद अब कुछ याद नहीं आता।

हरिद्वार की जिस हर की पैड़ी पर गैर हिन्दू की एंट्री बैन, वहाँ मुस्लिम विधायकों को जिला प्रशासन ने दिया न्योता: विरोध के बाद अब नहीं आएँगे

उत्तराखंड के हरिद्वार में सोमवार (11 नवम्बर, 2024) को दीपोत्सव के आयोजन में मुस्लिम विधायकों को न्योता दिए जाने पर विवाद हो गया है। मुस्लिम विधायकों को उस हर की पैड़ी पर आमंत्रित किया गया है, जहाँ गैर हिन्दू का जाना वर्जित है। यह न्योता देने पर हरिद्वार जिला प्रशासन पर प्रश्न उठे हैं। विवाद के बाद हर की पैड़ी पर गैर मुस्लिमों का प्रवेश रोक दिया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सोमवार शाम को हर की पैड़ी पर दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा। यह कार्यक्रम उत्तराखंड राज्य की स्थापना के 25 वर्ष पूरे होने पर रजत जयंती महोत्सव के अंतर्गत किया जा रहा है। इसमें हरिद्वार के लोगों को दीप जलाने के लिए कहा गया है।

इस कार्यक्रम में 3 लाख दीए जलाए जाने की योजना है। इसके साथ ही 500 ड्रोन से कार्यक्रम भी होगा। इसके अलावा भजन संध्या का आयोजन भी किया जाएगा। कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी आमंत्रित किया गया है।

इसी कार्यक्रम में हरिद्वार जिला प्रशासन ने विधायकों को भी आमंत्रित किया है। हरिद्वार जिला प्रशासन ने इसी कड़ी में पिरान कलियर से कॉन्ग्रेस विधायक फुरक़ान अहमद, लक्सर से बसपा विधायक मोहम्मद शहज़ाद और मंगलौर से कॉन्ग्रेस विधायक क़ाज़ी निज़ामुद्दीन को न्योता भेजा था।

इन तीन विधायकों को न्योता भेजे जाने पर श्रीगंगा सभा ने ऐतराज जताया। यह सभा ही हर की पैड़ी पर गंगा आरती और बाकी कार्यक्रमों को आयोजित करती है। श्रीगंगा सभा ने कहा है कि हर की पैड़ी पर गैर हिन्दू नहीं आ सकते हैं, ऐसे में प्रशासन को उनका यहाँ बुलाना ठीक नहीं है।

सभा ने कहा है कि मुस्लिम विधायकों को बुलाया जाना नियमों का अपमान है और यह नहीं होने दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन को हर की पैड़ी के नियमों की जानकारी नहीं है और गैर मुस्लिमों को प्रतिबंधित करने का नियम 100 वर्षों से अधिक पुराना है।

इसी के चलते राज्य के पूर्व मुस्लिम राज्यपाल अजीज कुरैशी और ईसाई मारग्रेट अल्वा ने भी हर की पैड़ी से अलग दूसरी जगह से पूर्व के कार्यक्रम में भाग लिया था। बताया गया है कि यह नियम 1916 से ही लागू है और इसे मदन मोहन मालवीय ने आरती का प्रारम्भ करवाने के समय अंग्रेजो से लागू करवाया था।

वहीं मामले में स्थानीय सूत्रों ने बताया है कि आपत्ति के बाद प्रशासन ने हर की पैड़ी पर किए जाने वाले आयोजन में गैर हिन्दुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी है। यह रोक हरिद्वार के जिलाधिकारी ने लगाई है। बजरंग दल ने इसे अपनी बड़ी जीत बताया है।

9 साल की बच्ची से करो निकाह, ‘अनैतिक सेक्स संबंधों’ से बचाने का तर्क: इराक की मुस्लिम सरकार ला रही कानून

इराक की सरकार निकाह कानून में एक महत्वपूर्ण संशोधन करने की योजना बना रही है, जिसके तहत लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र को 9 साल तक कम किया जाएगा। यह प्रस्ताव को इराकी संसद में चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया है और यदि इसे पारित किया जाता है, तो पुरुषों को 9 साल की उम्र तक की लड़कियों से विवाह करने की अनुमति मिलेगी।

यह कदम इराक के ‘व्यक्तिगत स्थिति कानून’ को पलटने का एक प्रयास है, जिसे ‘कानून 188’ के रूप में जाना जाता है और जिसमें महिलाओं के अधिकार आदि देने की भी बात है। इस कानून को 1959 में लागू किया गया था। इसे मध्य पूर्व में सबसे प्रगतिशील कानूनों में से एक माना जाता था, क्योंकि यह सभी धार्मिक समुदायों के लिए समान नियम लागू करता था।

हालाँकि अब इराकी सरकार ने इस कानून में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा है। बता दें कि इराक अपने कानून में यह संशोधन उस समय कर रहा है जब इराक में पहले से ही उच्च बाल विवाह की दर चर्चा में रहती है। वहाँ कम उम्र में निकाह किया जाना विशेष रूप से गरीब और अति-रूढ़िवादी शिया समुदायों के लोगों में आम है।

बताया जाता है कि वर्तमान में, लगभग 28% इराकी लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है। अब प्रस्तावित बदलावों का उद्देश्य इस्लामी शरिया कानून की सख्त व्याख्या के अनुरूप बताया जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि यह युवा लड़कियों को “अनैतिक संबंधों” से बचाने के लिए आवश्यक है।

संसद में कॉन्ग्रेस, सड़क पर मुस्लिम भीड़: वक्फ संशोधन बिल रुकवाने के लिए लग रहा एड़ी-चोटी का जोर: कॉन्ग्रेसी नेता बोले- मंदिर के सोने को बेचो

वक्फ संशोधन बिल अधिनियम को रोकने के लिए कॉन्ग्रेस सड़क से संसद तक पूरा जोर लगा रही है। सड़क पर उसके नेता भीड़ इकट्ठा करके नफरती बयान देने वाले मौलानाओं के साथ बैठ रहे हैं। यह मौलाना लोगों को भड़का रहे हैं। वहीं उसके सांसद संयुक्त संसदीय कमिटी (JPC) में बिल को आगे नहीं बढ़ने दे रहे। दूसरी तरफ उसके नेता मंदिरों के सोने को बेचने की बात कह रहे हैं।

इसी कड़ी में सहारनपुर से कॉन्ग्रेस सांसद इमरान मसूद ने राजस्थान के जयपुर में एक बड़ी मुस्लिम भीड़ को इकट्ठा किया। यह भीड़ रविवार (10 नवम्बर, 2024) को इकट्ठा की गई। इस दौरान मुस्लिमों को वक्फ बिल से डराया गया। इस जलसे में मौलाना तौकीर रजा को बुलाया गया, जो नफरती बयान देता रहा है।

सांसद इमरान मसूद ने इसे मुस्लिमों पर सबसे बड़ा हमला करार दे दिया। इमरान मसूद ने जयपुर में कहा कि उन्हें यह बोल मंजूर नहीं है। गौरतलब है कि इमरान मसूद वक्फ बिल पर बनी JPC के सदस्य हैं। वह JPC में लगातार बिल का विरोध करते रहे हैं। उनके साथ और भी मुस्लिम सांसद मौजूद थे।

जयपुर में इकट्ठा मुस्लिमों से मौलाना तौकीर रजा ने कहा कि उन्हें अपनी ताकत दिखानी होगी। मौलाना तौकीर रजा ने मुस्लिमों से संसद घेर कर अपने मर्जी के कानून बनवाने को कहा है। उन्होंने वक्फ बिल लाने को गुस्ताखी बताया और यहाँ तक कि सरकार के लोगों की गिरफ्तारी की बात कह डाली।

मौलाना तौकीर रजा ने धमकी के अंदाज में कहा कि हमारी माँगे नहीं मानी गई तो ऐसी ताकत से आएँगे कि सरकार की रूह काँप जाएगी। मौलाना ने यह ऐलान खुले मंच से किया जहाँ और कई मुस्लिम मौलाना और बड़े नेता बैठे हुए थे।

जहाँ एक तरफ मौलाना यह भाषण दे रहा है वहीं टीवी पर कॉन्ग्रेस के लोग मंदिरों के सोने को बेचने की बातें कह रहे हैं। कॉन्ग्रेस के नेता कमरुज्जमान चौधरी ने एक टीवी डिबेट में कहा है कि मंदिरों के सोने को बेच दिया जाए। चौधरी कह रहे हैं कि इससे देश का कर्जा माफ़ हो जाएगा।

वक्फ को लेकर कॉन्ग्रेस का यह रवैया तब है जब वह खुद ही कर्नाटक में वक्फ का प्रकोप झेल रही है। हाल ही में कर्नाटक में वक्फ बोर्ड ने किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन को लेकर नोटिस भेज दिया था। इसको लेकर सिद्दारमैया सरकार कठघरे में आ गई थी।

सिद्दारमैया सरकार ने वक्फ द्वारा भेजी गई नोटिस को हाल ही में वापस लेने का भी आदेश दिया है। कर्नाटक में वक्फ के कब्जे के और भी मामले सामने आ रहे हैं। इसी को लेकर हाल ही में एक झडप भी हो गई थी। इसमें कई लोग घायल हुए थे। हालाँकि, तब भी कॉन्ग्रेस नेता सड़क पर मुस्लिमों को इकट्ठा करने में जुटे हैं और उसके सांसद JPC में वक्फ को रोकना चाहते हैं।

जो देश को बनाना चाहते हैं इस्लामी मुल्क, उनका समर्थन प्रियंका गाँधी को: केरल CM पिनराई विजयन भड़के, जमात-ए-इस्लामी की सच्चाई बताई

केरल के वायनाड सीट से कॉन्ग्रेस की प्रियंका गाँधी लोकसभा का उपचुनाव लड़ रही हैं। यहाँ पर जमात-ए-इस्लामी को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन कॉन्ग्रेस-यूडीएफ गठबंधन की उम्मीदवार प्रियंका गाँधी से भिड़ गए। विजयन ने आरोप लगाया है कि प्रियंका गाँधी जमात-ए-इस्लामी के समर्थन से चुनाव लड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि जमात की विचारधारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है।

विजयन ने यह आरोप सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के उम्मीदवार सत्यन मोकेरी के चुनाव प्रचार के दौरान कलपेट्टा में लोगों को संबोधित करते हुए लगाया। यहाँ से भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने नव्या हरिदास को मैदान में उतारा है। नव्या हरिदास फिलहाल केरल के कोझिकोड की निगम पार्षद हैं।

विजयन ने कहा, “प्रियंका गाँधी जमात-ए-इस्लामी के समर्थन से चुनाव लड़ रही हैं। हमारा देश जमात-ए-इस्लामी से अपरिचित नहीं है। इसका दृष्टिकोण लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्ष में नहीं है… वे लोकतांत्रिक व्यवस्था को महत्वपूर्ण नहीं मानते। जमात-ए-इस्लामी के लिए, दुनिया भर में इस्लामी शासन ही महत्वपूर्ण है। वे इस्लामी शासन के पक्ष में हैं।”

मुख्यमंत्री विजयन ने कहा कि जमात-ए-इस्लामी हिंद की राजनीतिक शाखा ‘वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया (WPI)’ संगठन के लिए एक ‘ढाल’ की तरह है। उन्होंने इस दौरान जम्मू-कश्मीर के जमात-ए-इस्लामी का भी उल्लेख किया। यह जमात-ए-इस्लामी हिंद से अलग इकाई है, जो केरल सहित भारत के अन्य हिस्सों में संचालित होता है।

जम्मू-कश्मीर में जमात-ए-इस्लामी UAPA के तहत प्रतिबंधित है। विजयन ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में जमात हमेशा से चुनावों के खिलाफ रही है। बता दें कि WPI ने केरल के वायनाड लोकसभा सीट पर 13 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) को अपना समर्थन दिया है। यहाँ सोमवार (11 नवंबर) की शाम को प्रचार थम जाएगा।

विजयन ने कहा, “कभी-कभी यहाँ (केरल में) जमात-ए-इस्लामी कहती है कि वह जम्मू-कश्मीर के जमात-ए-इस्लामी से अलग हैं, लेकिन जमात की एक ही नीति है और वह है इस्लामी दुनिया की स्थापना। वे किसी भी तरह की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को स्वीकार नहीं करते। जमात के माध्यम से चरमपंथी वर्ग ‘इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग’ (UDF का एक घटक) में प्रभाव हासिल करने की कोशिश कर रहा है।”

विजयन के बयान पर जमात-ए-इस्लामी हिंद के केरल अध्यक्ष पी मुजीब रहमान ने कहा, “हाल के लोकसभा चुनावों में जमात ने तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और राजस्थान में सीपीआई(एम) का समर्थन किया था। केरल में हम 2004 से सीपीआई(एम) का समर्थन करते रहे हैं। 2020 तक सीपीआई(एम) ने WPI के समर्थन से कई स्थानीय निकायों पर शासन किया।”

बता दें कि जमात-ए-इस्लामी लोकतंत्र व्यवस्था को खारिज करती है। वह शरियत के सिद्धांतों को लागू करने की वकालत करती है। जमात को कट्टरपंथी संगठन माना जाता है। जमात को समाज में धार्मिक विभाजन और कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है। जमात-ए-इस्लामी पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि वह राजनीतिक उपयोग के लिए धार्मिक भावनाओं का उपयोग करती है।

साकेत गोखले ने जहाँ बंद करवाया जागरण, वहाँ भजनों के बिना हुई आरती, भंडारा में भी आने से डर रहे थे स्थानीय: ऑपइंडिया से बोले पीड़ित- आज चुप रहे तो ये होली-दीवाली भी बंद करवाएँगे

देश की राजधानी दिल्ली में शनिवार (9 नवंबर 2024) को पुलिस ने डॉक्टर विश्वंभर दास मार्ग पर शुरू होने जा रहे माँ दुर्गा के जागरण को जबरन बंद करवा दिया। यह कार्रवाई तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) पार्टी के सांसद साकेत गोखले के फरमान पर हुई। श्रद्धालुओं ने साकेत गोखले से अपनी आस्था की दुहाई देकर तमाम मिन्नतें की, लेकिन उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

आखिरकार वहाँ से लोगों को हटा दिया गया और पूरा पंडाल रात भर सन्नाटे में रहा। इस कार्यक्रम का आयोजन मंत्रियों और सांसदों के लिए नियुक्त सहायकों द्वारा किया गया था। वहाँ के हालात कुछ ऐसे बन गए कि लोगों को बिना भजन आदि के ही आरती करके पूजा का समापन करना पड़ा। ऑपइंडिया ने घटनास्थल पर जाकर पूरे मामले और ताजा हालातों की जानकारी ली।

जहाँ रोकी गई माँ दुर्गा की पूजा वो जगह CRPF के अंडर में

दिल्ली के विश्वम्भर दास मार्ग पर एमएस फ़्लैट है। यहाँ सिंधु और गोमती नाम के 2 अलग-अलग ब्लॉक सहित एक अन्य हिस्सा एमएस फ़्लैट का है। सिंधु और गोमती ब्लॉक में सांसदों और कई केंद्रीय मंत्रियों के आवास हैं। वहीं, इन लोगों के मिले घरेलू सहायक एमएस फ़्लैट में हैं। यह अति विशिष्ट इलाका माना जाता है। इसके तीनों हिस्से 24 घंटे CRPF की निगरानी एवं सुरक्षा में रहते हैं।

क्या थी पूरी घटना

एमएस फ़्लैट के निवासियों ने ऑपइंडिया से बताया कि वो पिछले 2 दशक से से भी अधिक समय से उस जगह पर दुर्गा पूजा का आयोजन करते आए हैं। नवरात्रि से शुरू होने वाली यह पूजा 35 दिनों तक चलती थी। एमएस फ़्लैट के निवासी 35 दिनों तक व्रत रखते हैं। शनिवार को जागरण के बाद रविवार को भंडारा प्रस्तावित था। सोमवार को माँ दुर्गा की प्रतिमा विसर्जित हो जाती।

जागरण के दिन एमएस फ़्लैट के लोग जुटे थे जिनमें महिलाएँ, बच्चे, युवा और वृद्ध शामिल थे। जागरण की शुरुआत शाम 5 बजे हुई। म्यूजिक सिस्टम में भजन बजे हुए 15 मिनट ही बीते होंगे कि जागरण स्थल पर पुलिस पहुँच गई। कार्यक्रम को तत्काल बंद करने का फरमान सुना दिया गया। लोगों इसे बंद कराने की वजह पूछी तो बताया गया कि TMC (तृणमूल कॉन्ग्रेस) के सांसद ने कार्यक्रम पर आपत्ति जताई है।

वहाँ मौजूद कुछ लोगों ने इसे आस्था का अपमान बताया तो पुलिस ने उन्हें जेल भेजने बात कहकर हड़का दिया। आखिरकार डर कर लोगों ने म्यूजिक सिस्टम को बंद कर दिया। इसके बाद श्रद्धालुओं ने पुलिस से मिन्नत की कि उन्हें ताली बजाकर ही माता रानी के भजन गाने की अनुमति दी जाए। पुलिस इस पर भी तैयार नहीं हुई। श्रद्धालुओं को वापस लौटा दिया गया और पंडाल रात भर सूना पड़ा रहा।

मनाने गए तो डाँटकर भगाया

जब श्रद्धालुओं को पता चला कि पुलिस ने उनका कार्यक्रम साकेत गोखले के फरमान पर रोका है तो वो सभी एकजुट होकर साकेत गोखले को मनाने पहुँचे। कुछ बड़े बुजुर्ग और वो स्टाफ भी गए, जो लम्बे समय तक साकेत गोखले के साथ काम कर चुके हैं। आरोप है कि इन सभी को कह दिया गया कि कार्यक्रम किसी भी हाल में चलने नहीं दिया जाएगा। मिन्नत करने पर सभी को डाँटकर भगा दिया गया।

आरोप है कि गोखले ने मिन्नत करने गए कर्मचारियों को जेल भेजवाने और उनके घरों को खाली करवाने की भी धमकी दी। अपने पूर्व स्टाफ को भी गोखले ने खूब हड़काया। अब लिफ्ट ऑपरेटर से लेकर रिसेप्शनिस्ट तक की नौकरी करने वालों की नौकरी खतरे में है। उनका मानना है कि गोखले उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। सबने मीडिया के जरिए गोखले से कर्मचारियों की नौकरी बख्शने की गुहार लगाई ।

इसी दौरान साकेत गोखले ने माँ दुर्गा के भंडारे और जागरण में शामिल होने का निमंत्रण पत्र भी लेने से ठुकरा दिया। एमएस फ़्लैट के निवासियों के मुताबिक, ऐसा करने वाले साकेत गोखले इकलौते सांसद हैं। हालाँकि, लोग ये भी नहीं समझ पा रहे हैं कि दिल्ली पुलिस साकेत गोखले के फरमान का पालन करवाने के लिए इतना सक्रिय कैसे हो गई, जबकि वहाँ कोई गैर-कानूनी काम नहीं हो रहा था।

300 मीटर दूर, फिर भी भजन से शोर

साकेत गोखले मनाने आए लोगों से इस बात पर अड़े रहे कि उन्हें भजन के शोर से दिक्कत हो रही है। उन्होंने डॉक्टरों की सलाह का हवाला दिया और शोर को नापसंद बताया। लोगों ने दावा किया कि उनके घर से माता दुर्गा का पंडाल 300 मीटर दूर था। लोग ताली बजाकर भी भजन गाने को तैयार थे। तालियों की आवाज उन तक नहीं जाती। इसके बावजूद गोखले ने साफ कहा कि वे कार्यक्रम नहीं चलने देंगे।

आस्था को कुचला गया

रविवार (10 नवंबर) को ऑपइंडिया की टीम सुबह 10 बजे उस पंडाल के पास पहुँची, जहाँ साकेत गोखले के फरमान पर माँ दुर्गा की पूजा रोक दी गई थी। बमुश्किल 1 दर्जन लोग हमें पंडाल के आसपास दिखे। पंडाल खाली था। उसमें कुछ नाबालिग बच्चे माँ दुर्गा के भजन धीमी आवाज में गा रहे थे। बड़ी मुश्किल से उन एक दर्जन लोगों में कुछ लोग हमसे बात करने को तैयार हुए।

बातचीत की शुरुआत में ही उन्होंने कहा, “हमारी धार्मिक भावनाएँ आहत की गई हैं।” हमें बताया गया कि TMC सांसद के डर से हालात ऐसे हो गए हैं कि भंडारा शुरू करने से पहले खिलाई जाने वाली 9 कन्याएँ भी पंडाल में आने के लिए तैयार नहीं हो रही हैं। पंडाल में बच्चों को बैठाकर भजन सिर्फ इसलिए करवाया जा रहा था, जिससे पुलिस आए भी तो उन्हें नाबालिग समझ कर छोड़ दे।

वहाँ के लोगों ने यह भी कहा कि अब भजन भी माइक के बजाय मुँह से गाए जा रहे हैं, वो भी फुसफुसाहट की तरह। हालाँकि, लगभग 1 बजे कुछ कन्याएँ और श्रद्धालु घरों से बाहर निकले और उन्होंने आरती भंडारे को सम्पन्न करवाया। इसके बावजूद लोगों के मन में यह बात खटकती रही कि उनकी आस्था का सम्मान किसी ने नहीं किया।

देश के हर हिस्से से पीड़ित, अधिकतर दलित समुदाय से

TMC सांसद साकेत गोखले के तुगलकी फरमान से प्रभावित लोग देश के लगभग सभी राज्यों से हैं। इनमें बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि प्रमुख हैं। TMC सांसद से पूजा करने की मिन्नत करने गए अधिकतर श्रद्धालुओं में दलित (SC) वर्ग के लोग थे। इन सभी के निराश होकर लौटने के बाद माँ के भजन गाने आईं इनके घरों की महिलाएँ रोते हुए गईं।

आज जागरण रोका, कल होली-दिवाली का भी नंबर

ऑपइंडिया से बात करते हुए तमाम स्थानीय लोगों ने खुद को सांसदों और मंत्रियों का नौकर बताया। उन्होंने डर जताया कि सम्भवतः उनका इंटरव्यू प्रकाशित होने के बाद उनमें से कई लोगों की नौकरी खतरे में आ सकती है। हालाँकि, बोलना भी उन लोगों ने अपनी मजबूरी बताया। उन्होंने कहा, “अगर चुप रहे तो आज जागरण रोका गया, कल यही काम होली-दिवाली जैसे अन्य पर्वों के खिलाफ भी किया जाएगा।”

एक महिला श्रद्धालु ने कहा कि ममता बनर्जी झुग्गी वालों को घर दे रही हैं और उनका सांसद अपने स्टाफ की भी छत छीनने पर आमादा है। महिला ने कहा कि पिछले कई वर्षों से वो उसी जगह पर घंटी, शंख, ढोल और मंजीरे आदि बजाकर माता दुर्गा की पूजा करती आ रही हैं, लेकिन इस बार ताली भी बजाने नहीं दिया गया। पीड़िता ने कहा, “मीडियाकर्मियों को देखकर हम लोग बोलने की हिम्मत जुटा पाए हैं।”

वहीं करवाएँगे जागरण, कोई रोक कर दिखाए

जिस क्षेत्र में साकेत गोखले ने माँ दुर्गा का जागरण बंद करवाया था, वहाँ दिल्ली भाजपा नेता आदेश गुप्ता पहुँचे। आदेश गुप्ता ने गोखले की करतूत को TMC की पार्टी लाइन बताया और इस घटना की निंदा की। उन्होंने एलान किया है कि जिस जगह पर तृणमूल कॉन्ग्रेस के सांसद ने जागरण बंद करवाया है, वहाँ पर सप्ताह भर के अंदर एक भव्य जागरण का आयोजन किया जाएगा।

आदेश गुप्ता ने चुनौती देते हुए कहा कि जिसे रोकना हो वो रोक कर दिखाए। उन्होंने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री एवं AAP के प्रमुख अरविन्द केजरीवाल को भी इस मुद्दे पर आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी राजनीति की एक ही लाइन पर चल रहे हैं। परोक्ष रूप से आदेश गुप्ता ने अरविन्द केजरीवाल को भी इस साजिश में शामिल बताया।

मौके पर पहुँची भाजपा की सांसद बाँसुरी स्वराज ने ऑपइंडिया से कहा कि वो इस मुद्दे पर नजर रखे हुए हैं और पूरे मामले को समझ कर जल्द ही अपनी प्रतिक्रिया देंगी। इस मौके पर एक जनसमूह ने ‘अरविन्द केजरीवाल मुर्दाबाद’ और ‘तृणमूल कॉन्ग्रेस मुर्दाबाद’ के नारे भी लगाए।

स्विट्जरलैंड में 1 जनवरी से नहीं पहन सकेंगे बुर्का-नकाब, मुँह ढकने पर देना पड़ेगा 97000 रुपए तक जुर्माना: नया कानून बना, जानें क्या होंगे नियम

स्विट्जरलैंड ने हाल में ‘बुर्का, नकाब’ जैसी मुँह ढकने वाली चीजों पर प्रतिबंध लगाते हुए एक कानून पारित किया है। ये कानून स्विस संसद के निचले सदन में 151-29 वोट से पारित हुआ है। इससे पहले इसे उच्च सदन में मंजूरी मिली थी। अब यह संघीय कानून बन गया है।

जानकारी के मुताबिक अगर कोई इस कानून के नियमों का उल्लंघन करेगा तो उसपर करीबन 1000 स्विस फ्रैंक का जुर्माना लगेगा जो कि 97 हजार रुपए के आसपास की रकम है।

बता दें कि स्विट्जरलैंड में यह कानून 2021 में हुए जनमत संग्रह के परिणामस्वरूप बना है, जिसमें स्विस मतदाताओं ने सार्वजनिक स्थलों पर मुँह ढकने के प्रतिबंध का समर्थन किया था। 51.2% स्विस मतदाताओं ने इस प्रतिबंध के पक्ष में मतदान किया था।

इस कानून को बनाने का उद्देश्य स्विट्जरलैंड में सार्वजनिक सुरक्षा और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। इस कानून में यह है कि कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक जगहों पर या आसानी से आने जाने वाली बिल्डिंगों में मुँह, नाक या आँख नहीं ढेकगा।

अब इस कानून के बनने के बाद इसे मुस्लिम संगठनों द्वारा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। वो भी तब जब स्विस सरकार ने कानून बनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि विमान या राजनयिक और वाणिज्य दूतावास भवनों में चेहरा ढकने पर प्रतिबंध लागू नहीं किया जाएगा।

इसके अलावा, मजहबी स्थलों में भी अपना चेहरा छिपाना जायज़ रहेगा। प्रशासन के अनुसार, पारंपरिक कारणों, स्वास्थ्य और सुरक्षा या मौसम संबंधी कारणों से चेहरा ढकने की अनुमति होगी। इसके साथ किसी क्रिएटिव या मनोरंजन से जुड़े काम के लिए भी इसे परमिशन दी जाएगी।

कानून में यह भी है कि अगर संबंधित प्राधिकारी पहले से चेहरा ढकने की अनमुति देते हैं और सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहती है तो भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संबंध में चेहरा ढकने की अनुमति होगी।

मालूम हो कि स्विट्जरलैंड से पहले यह कदम अन्य यूरोपीय देशों जैसे बेल्जियम और फ्रांस में भी उठाया जा चुका है। उन्होंने पहले ही इसी तरह के प्रतिबंध लागू किए हैं। अब स्विट्जरलैंड में ये कानून 1 जनवरी 2025 से लागू होगा।