Wednesday, November 20, 2024
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CTET की परीक्षा में 60% भी नहीं नंबर, फिर भी बने सरकारी मास्टर: बिहार में शिक्षकों की बहाली में घोटाला, 4000 फर्जी मिले… 24 हजार की नौकरी पर खतरा

बिहार के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के ऐसे वीडियो आए दिन वायरल होते रहते हैं जो उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं। अब शिक्षा विभाग की जाँच से जो तथ्य उभरकर सामने आए हैं, उससे लगता है कि ये शिक्षक फर्जीवाड़े के उस्ताद हैं। इस जाँच में करीब 4000 शिक्षक फर्जी पाए गए हैं।

लगभग 24000 हजार शिक्षक ऐसे हैं, जिनके कई प्रमाण-पत्र पहली जाँच में फर्जी पाए गए हैं। इनके दस्तावेजों की दोबारा से जाँच होगी। वैसे जाँच के दायरे में करीब 42 हजार वे शिक्षक हैं जिनकी काउंसलिंग नहीं हो पाई है।

रिपोर्टों के अनुसार जो 4000 शिक्षक फर्जी पाए गए हैं, उनमें से करीब 80 प्रतिशत ऐसे हैं जिन्होंने CTET की परीक्षा में तय मापदंड से कम नंबर पाने के बावजूद नौकरी हासिल कर ली थी। CTET की परीक्षा में कम से कम 60% नंबर हासिल करना अनिवार्य था।

इसके अलावा 20% ने दिव्यांगता, जाति, निवास, खेल सहित अन्य प्रमाण पत्र फर्जी पेश किए थे। अब इन शिक्षकों के खिलाफ सरकार कार्रवाई की तैयारी कर रही है। इनसे दिए गए वेतन की वसूली भी की जाएगी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक 1 से 13 सितंबर के बीच सक्षमता परीक्षा पास कर चुके कुल 1, 87,000 अभ्यर्थियों की काउंसिलिंग होनी थी। लेकिन 42000 शिक्षकों की काउंसिलिंग नहीं हो पाई। इनमें से 3000 काउंसिलिंग के दौरान गैर हाजिर थे। 10,000 शिक्षकों का बायोमैट्रिक सत्यापन नहीं हो पाया था। अब इन सभी की काउंसिलिंग छठ के बाद होगी।

जिन 24 हजार शिक्षकों की नौकरी पर खतरा बताया जा रहा है, शुरुआती जाँच में उनके दस्तावेजों में भी विसंगतियाँ मिली हैं। इनके प्रमाण पत्रों की दोबारा जाँच की जाएगी। इस दौरान फर्जीवाड़ा मिलने पर इन्हें बर्खास्त कर इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी। माध्यमिक शिक्षा निदेशक योगेंद्र सिंह ने बताया है कि सभी शिक्षकों के प्रमाण-पत्रों की जाँच के बाद सभी रिकॉर्ड सर्विस बुक में दर्ज किए जाएँगे। फिर डिजिटल सर्विस बुक बनाकर इसे ऑनलाइन कर दिया जाएगा।

इसके अलावा सीतामढ़ी जिले में जाँच के दौरान 7 शिक्षक फर्जी पाए गए हैं। इन शिक्षकों पर जालसाजी करने और सबूत मिटाने जैसे आरोपों के तहत केस दर्ज किया गया है। जाँच के दौरान इन शिक्षकों द्वारा लगाए गए प्रमाण पत्रों में गंभीर खामियाँ मिली थी। सत्यापन के लिए अधिकारियों ने इन्हे कई बार नोटिस दे कर अपने ओरिजनल प्रमाण पत्रों को जमा करने के लिए कहा था। लेकिन बार-बार रिमाइंडर के बावजूद इन शिक्षकों ने अपने कागजात जमा नहीं किए थे।

इंजीनियरों को सैलरी के नाम पर ‘चूरन’, करोड़ों में CEO का पैकेज: जो IT कंपनी कुछ महीने पहले तक थी मीम मेटेरियल, वहाँ 13000 पुराने कर्मचारी वापस लौटे

ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब आईटी कंपनी कॉग्निजेंट (Cognizant) सोशल मीडिया में मीम मेटेरियल बनी हुई थी। कैंपस हायरिंग में इंजीनियरों को महज 2.5 लाख सालाना पैकेज ऑफर करने के बाद उस पर चुटकुले बन रहे थे। वहीं कंपनी के सीईओ करोड़ों का पैकेज ले रहे थे। लेकिन अब लगता है कि इस कंपनी के दिन बदल चुके हैं।

13000 पुराने कर्मचारियों ने पिछले कुछ महीनों में कॉग्निजेंट में वापसी की है। सीईओ रवि कुमार की प्रशंसा हो रही है। कंपनी में ग्रोथ देखने को मिल रही है। ऐसा लगता है कि चुनौतियों से पार पाकर वह स्थिरता की ओर लौट गई है। 3800 कर्मचारियों को तो कंपनी ने तीसरी तिमाही में ही जोड़ा है।

कंपनी के तीसरी तिमाही में बेहतर होते परिणामों को देख रवि कहते हैं, “हमारी आस-पास चर्चा बहुत अधिक है… आप लिंक्डइन ट्रैफिक भी देख सकते हैं जो कंपनी के बारे में बात कर रहे हैं। कंपनी का जादू वापस चल गया है। जो पहले कॉग्निजेंट में काम कर चुके हैं और अब वापस आना चाहते हैं, हम अगले साल से बड़े पैमाने पर कैंपस में भी जा रहे हैं।”

कंपनी के मुख्य वित्तीय अधिकारी जतिन दलाल ने कहा कि कंपनी अपनी भर्ती जारी रखने की योजना बना रही है। उन्होंने कहा, ‘अगर आप इस तिमाही में वॉल्यूम वृद्धि को देखें तो यह निरंतर वृद्धि में 3.5 फीसदी है। अगर हम हर तिमाही में रेवेन्यू में वृद्धि दर्ज कर रहे हैं तो हमें बाजार से शीर्ष प्रतिभाओं तक पहुंचने और उन्हें नियुक्त करने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि कंपनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद लेकर खुद को बेहतर बनाने में प्रयासरत है। जब कंपनी के सीईओ से पूछा गया कि एआई कैसे उनके बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट परअसर डालता है तो उन्होंने बताया कि चूँकि एआई एक अनूठी प्रोद्योगिकी है इसलिए ये अलग-अलग सेगमेंट में कार्यों को प्रभावित करती है।

जानकारी के अनुसार कॉग्निजेंट में प्रतिवर्ष 2 मिलियन लाइन का कोड एआई एल्गोरिदम और प्लेटफॉर्म द्वारा लिखा जाता है। कुमार ने यह बताते हुए माना कि भविष्य एआई का असर कुछ नौकरियों पर पड़ सकता है, लेकिन उनके अनुसार इससे और अवसर पैदा होंगे क्योंकि हर प्रक्रिया में एआई एजेंट होंगे, और जब वे एजेंट मानवीय प्रयासों को स्वचालित करेंगे, तो नौकरियाँ पैदा होंगी।

बता दें कि कंपनी ने पिछले साल के अंत में AI और GenAI में बिलियन डॉलर से अधिक निवेश की घोषण की थी और उसके बाद पता चला था कि उनके पास 225 प्रोजेक्ट काम करने को थे। अब कंपनी ने तीसरी तिमाही में 5 बिलियन डॉलर का राजस्व दर्ज किया जो कि पिछले साल की तुलना में 3% ज्यादा है।

छिंदवाड़ा के गणेश मंदिर में घुस मूर्तियों को तोड़ने लगा मोहम्मद तौफीक, रोकने पर महिला को दी जान से मारने की धमकी: हैदराबाद के मंदिर में भी तोड़फोड़

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और हैदराबाद से मंदिरों में तोड़फोड़ की घटना सामने आई है। दोनों ही मामलों में पुलिस ने जाँच कर रही है। छिंदवाड़ा में मोहम्मद तौफीक को पकड़ा गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक छिंदवाड़ा के जुन्नारदेव वार्ड नंबर 7-8 में मौजूद भगवान गणेश का मंदिर आसपास के हिन्दुओं की श्रद्धा का केंद्र है। रविवार (3 नवंबर 2024) को मोहम्मद तौफीक इस मंदिर में घुस गया। उसने मूर्तियों को तोडना शुरू कर दिया। घटना की चश्मदीद एक बुजुर्ग महिला ने जब तौफीक को रोका तो उन्हें जान से मार डालने की धमकी दी। इसके बाद महिला ने शोर मचा कर मोहल्ले वालों को जमा किया।

बुजुर्ग महिला की आवाज सुन आसपास के लोग जमा हुए। उन्होंने मोहम्मद तौफीक को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया। हिन्दू संगठनों ने घटना में एक अन्य युवक के शामिल होने का आरोप लगाया है। तौफीक का चालान कर दिया गया है। दूसरे आरोपित की संलिप्तता के आरोपों की जाँच चल रही है। विश्व हिन्दू परिषद बजरंग दल ने इस घटना पर आक्रोश जताते हुए सोमवार (4 नवंबर) को बंद रखा। स्थानीय व्यापारियों ने इसका समर्थन करते हुए दुकानें बंद रखी।

हैदरबाद में भी मंदिर बना निशाना

छिंदवाड़ा की ही तरह हैदराबाद में भी एक हिन्दू मंदिर को निशाना बनाया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक यह घटना शमशाबाद के एयरपोर्ट कॉलोनी की है। मंगलवार (5 नवंबर) की सुबह जब श्रद्धालु पूजा-पाठ करने पहुँचे तो उन्होंने मंदिर को क्षतिग्रस्त हालात में पाया। मूर्तियों को तोड़ कर बिखेर दिया गया था। इस घटना से स्थानीय हिन्दुओं में रोष फ़ैल गया। घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

मामले की जानकारी मिलते ही पुलिस फ़ौरन मौके पर पहुँची। स्थानीय लोगों को समझाबुझा कर शांत किया। अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है। मामले की जाँच व अन्य जरूरी कानूनी कार्रवाई की जा रही है। आंध्र प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष विष्णु वर्धन रेड्डी ने इस घटना को शर्मनाक बताते हुए कॉन्ग्रेस सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि जिस देश में हिन्दू बहुसंख्यक हैं, वहाँ कॉन्ग्रेस शासित राज्य में ऐसी घटनाएँ हो रही हैं।

ऑपइंडिया के डोजियर के बाद Wikipedia को भारत सरकार का नोटिस, ‘राजनीतिक पूर्वाग्रह’ से ग्रसित बताया: हाई कोर्ट ने खुद को ‘इनसाइक्लोपीडिया’ कहने पर प्लेटफार्म से पूछे सवाल

ऑपइंडिया द्वारा विकिपीडिया के भारत विरोधी रुख पर विस्तृत डोजियर जारी करने के कुछ दिनों बाद भारत सरकार ने इस विदेशी प्लेटफॉर्म को नोटिस जारी किया है। वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने ANI को सरकार का प्रोपेगेंडा टूल बताने के मामले में विकिपीडिया को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि उसे खुद को विश्वकोश नहीं कहना चाहिए।

सरकार द्वारा जारी नोटिस में विकिपीडिया पर प्रदर्शित बड़े पैमाने पर अशुद्धियों और पूर्वाग्रह के कई उदाहरणों को उजागर किया गया है। नोटिस में कहा गया है कि लोगों के एक छोटे समूह के पास प्लेटफॉर्म के कंटेंट का संपादकीय नियंत्रण है। सरकार ने पूछा कि विकिपीडिया को मध्यस्थ के बजाय प्रकाशक के रूप में क्यों नहीं माना जाना चाहिए।

ऑपइंडिया ने विकिपीडिया द्वारा गलत सूचना परोसने और भारत के खिलाफ राजनीतिक रूप से प्रेरित पूर्वाग्रह पर एक विस्तृत डोजियर जारी किया है। इस इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है। ऑपइंडिया के शोध में पता चला है कि विकिपीडिया ने मुट्ठी भर लोगों को असीमित शक्तियाँ दे रखी हैं, जिन्हें ‘प्रशासक’ कहा जाता है।

पूरी दुनिया में विकिपीडिया के केवल 435 सक्रिय प्रशासक हैं। इन प्रशासकों के पास संपादकों पर प्रतिबंध लगाने, स्रोतों को ब्लैकलिस्ट करने, योगदानकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाने और लेखों पर किए जाने वाले संपादनों को वापस लेने का निर्णय लेने की शक्ति है।

ऑपइंडिया द्वारा डोजियर जारी करने के तुरंत बाद एक अन्य वामपंथी प्लेटफॉर्म फेसबुक ने डोजियर को प्रतिबंधित कर दिया, ताकि इसके दर्शकों की संख्या सीमित हो सके। फेसबुक पर अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप करने और एक खास विचारधारा के राजनीतिक हित को आगे बढ़ाने के कई आरोप हैं।

ANI को ‘सरकार का प्रोपेंगेडा टूल’ बताने पर कोर्ट में विकिपीडिया

वहीं, भारतीय मीडिया एजेंसी ANI को विकिपीडिया की वेबसाइट पर सरकार का प्रोपेगेंडा टूल बताने के मामले में कोर्ट में सुनवाई चल रही है। दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार (1 नवंबर) को एएनआई के बारे में विकी पेज पर किए गए अपमानजनक संपादनों को हटाने की माँग में बाधा डालने के लिए आड़े आने पर कड़ी फटकार लगाई।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि विकिपीडिया को अपमानजनक संपादनों का बचाव करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वह केवल मध्यस्थ होने का दावा करता है। जज ने कहा, “यदि आप मध्यस्थ हैं तो आपको क्यों परेशानी हो रही है? यदि किसी और ने संपादन किया है और वह बिना किसी आधार के है तो उसे हटा दिया जाता है।”

कोर्ट ने आगे कहा, “यदि आप केवल एक प्लेटफॉर्म हैं और किसी और ने उन पर चीजें लिखी हैं, लेकिन वे अदालत में आने के लिए तैयार नहीं हैं तो मुझे आपकी बात क्यों सुननी चाहिए। मैं केवल यह देखूँगा कि आपके विश्वकोश में दी गई राय सही तस्वीर पेश नहीं करती है, क्योंकि लेख (हाइपरलिंक स्रोत) का सही प्रतिनिधित्व नहीं है।”

कोर्ट ने कहा कि यह ‘परेशान करने वाला’ है कि विकिपीडिया खुद को एक विश्वकोश के रूप में प्रस्तुत कर रहा है, जबकि वह दावा करता है कि वह इस मंच पर लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। जज ने एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका जैसे प्रकाशन का उदाहरण देते हुए कहा कि विश्वकोश आमतौर पर प्रामाणिकता के साथ आते हैं।

कोर्ट ने पूछा, “विश्वकोश कहने के बाद क्या आप यह कह सकते हैं कि आप एक्स-वाई द्वारा मेरे विश्वकोश पर कही गई बातों का बिना इसकी सामग्री की पुष्टि किए मैं इसका समर्थन नहीं करता। ‘विकिपीडिया, मुक्त विश्वकोश’ यह आपका पहला वाक्य है, इससे आपका क्या मतलब है?”

आगरा के जिस पार्क से ताजमहल को निहारते थे सैलानी, उसकी 6 बीघा जमीन एक किसान ने ट्रैक्टर से जोत दी; बाड़ लगा प्रवेश किया प्रतिबंधित: जानिए क्यों

आगरा के ताजमहल के पास स्थित 11 सीढ़ी पार्क विवादों के घेरे में है। इस जगह से सैलानी सूर्यास्त के समय ताजमहल को निहारा करते हैं। एक स्थानीय किसान ने इस पार्क के एक बड़े हिस्से को निजी जमीन बताते हुए ट्रैक्टर से जोत दिया है। साथ ही बाड़ लगाकर सैलानियों का प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया है।

इस किसान का नाम मुन्ना लाल है। उनका कहना है कि पार्क के अंदर 6 बीघा जमीन उनकी निजी भूमि है। इसको लेकर वे लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने और इस पर अधिकार हासिल करने का भी दावा कर रहे हैं। आगरा की कमिश्नर ने मामले की जाँच के आदेश दिए हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 11 सीढ़ी पार्क की जमीन पर दावा करने वाले किसान मुन्ना लाल, कछपुरा के नगला देवजीत गाँव के मूल निवासी हैं। कथित तौर पर इस पार्क की करीब 6 बीघा जमीन पर कभी मुन्ना लाल के चाचा और पिता खेती किया करते थे। जमीन के कागजातों पर भी उन्ही के नाम हैं। साल 1976 की सीलिंग में यह जमीन मुन्ना लाल के परिवार के हाथ से निकल गई। इसके बाद जमीन वापस पाने के लिए मुन्ना लाल ने 40 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी।

मुन्ना लाल का कहना है कि साल 1998 और 2020 के जिला न्यायालय के दस्तावेजों में इस जमीन का ट्रांसफर ऑफ ओनरशिप उनके पक्ष में दर्ज हुआ। साल 2020 में SDM ने भी इस जमीन पर मुन्ना लाल के स्वामित्व की पुष्टि की थी। साथ ही यह जमीन रेवेन्यू रिकॉर्ड में भी अपने नाम पर दर्ज होने का वे दावा कर रहे हैं।

मुन्ना लाल का कहना है कि इस जमीन पर उनके स्वामित्व का अदालती आदेश है। उन्होंने ट्रैक्टर से पार्क में अपने कथित हिस्से को न सिर्फ जुतवा डाला है, बल्कि उसकी घेराबंदी भी कर दी है। इस क्षेत्र में अब आम लोगों का आना-जाना प्रतिबंधित है। आगरा की कमिश्नर ऋतु माहेश्वरी का कहना है कि जमीन आगरा विकास प्राधिकरण (ADA) के अधीन आती है। इस पार्क की देखरेख का भी जिम्मा ADA का है। उन्होंने मुन्ना लाल के दावों की जाँच के आदेश जारी किए हैं। बताते चलें कि साल इसी पार्क में साल 2023 में ताज महोत्सव का आयोजन हुआ था। यहीं 1997 में ग्रीक संगीतकार यन्नी का कॉन्सर्ट भी हुआ था।

हर निजी संपत्ति ‘सामुदायिक संसाधन’ नहीं, सरकार भी नहीं ले सकती: प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सुप्रीम कोर्ट ने खींची नई लक्ष्मण रेखा, जानिए अनुच्छेद 39(B) की अपनी ही व्याख्या क्यों बदली

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मंगलवार (5 नवंबर 2024) को कहा कि अनुच्छेद 39(B) के तहत सभी निजी संपत्तियों को ‘सामुदायिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता, जिसे सरकार जब चाहे ‘सामान्य भलाई’ के लिए ले ले। कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक संसाधन के लिए किसी निजी संपत्ति को सार्वजनिक उपयोग योग्य बनाने के लिए पहले उसे कुछ परीक्षणों को पूरा करना होगा।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली जस्टिस हृषिकेश रॉय, बीवी नागरत्ना, सुधांशु धूलिया, जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा, राजेश बिंदल, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह वाली संविधान पीठ ने इस पर फैसला सुनाया। इस मामले में कुल तीन फैसले लिखे गए हैं, जिसमें CJI चंद्रचूड़ ने 6 अन्य न्यायाधीशों के साथ बहुमत से यह फैसला सुनाया।

वहीं, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत से आंशिक रूप से सहमति व्यक्त की और जस्टिस धूलिया ने इस पर अपनी असहमति जताई। CJI चंद्रचूड़ की बहुमत वाली पीठ पीठ ने कहा, “हम मानते हैं कि किसी व्यक्ति के स्वामित्व वाले प्रत्येक संसाधन को केवल इसलिए समुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता, क्योंकि वह भौतिक आवश्यकताओं की शर्त को पूरा करता है।”

कोर्ट ने कहा, “अनुच्छेद 39(बी) के अंतर्गत आने वाले संसाधन के बारे में जाँच विवाद-विशिष्ट होनी चाहिए और संसाधन की प्रकृति, विशेषताओं, समुदाय की भलाई पर संसाधन के प्रभाव, संसाधन की कमी और निजी खिलाड़ियों के हाथों में ऐसे संसाधन के केंद्रित होने के परिणामों जैसे कारकों की एक गैर-संपूर्ण सूची होनी चाहिए। इस न्यायालय द्वारा विकसित सार्वजनिक ट्रस्ट सिद्धांत भी उन संसाधनों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जो समुदाय के भौतिक संसाधन के दायरे में आते हैं।”

वहीं, अपना फैसला पढ़ते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि उन्होंने कुछ मुद्दों पर सीजेआई के नेतृत्व वाले बहुमत से सहमति जताई थी और जस्टिस धूलिया के फैसले के जवाब में कुछ राय लिखी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “निजी स्वामित्व वाले भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण वाले संसाधनों को सामुदायिक संसाधनों में किस तरह बदला जाए, जिससे आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम तरीके से किया जा सके, यही मेरे फैसले का सार है।”

फैसले पर असहमति जताते हुए जस्टिस धूलिया ने कहा कि भौतिक संसाधनों को कैसे नियंत्रित एवं वितरित किया जाए, यह देखना संसद का विशेषाधिकार है। बता दें कि 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने 2 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए दो विरोधी विचारों के संदर्भ में उत्पन्न हुआ।

क्या है मामला?

इस मामले में मुख्य याचिका मुंबई स्थित संपत्ति स्वामियों के संघ (POA) द्वारा 1992 में दायर की गई थी। पीओए ने महाराष्ट्र आवास एवं क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय VIII-A का विरोध किया था। यह कानून सरकार को उन भवनों और जमीन, जिस पर वे निर्मित हैं, उसे अधिग्रहित करने का अधिकार देता है, यदि उसमें रहने वाले 70% लोग जीर्णोद्धार के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।

अध्याय VIIIA में सरकार को संबंधित परिसर के लिए मासिक किराए के सौ गुना के बराबर दर पर भुगतान की आवश्यकता होती है। अधिनियम की धारा 1A में कहा गया है कि इसे संविधान के अनुच्छेद 39(बी) को लागू करने के लिए बनाया गया है। अधिनियम। की धारा 1A को 1986 के संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया है। इसमें पूरा संदर्भ संविधान के अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या से संंबंधित था।

कर्नाटक राज्य बनाम रंगनाथ रेड्डी एवं अन्य (1978) में दो निर्णय दिए गए थे। न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर द्वारा दिए गए निर्णय में कहा गया था कि समुदाय के भौतिक संसाधनों में सभी संसाधन शामिल हैं – प्राकृतिक और मानव निर्मित, सार्वजनिक और निजी स्वामित्व वाले। न्यायमूर्ति उंटवालिया द्वारा दिए गए दूसरे निर्णय में अनुच्छेद 39(बी) के संबंध में कोई राय व्यक्त करना आवश्यक नहीं समझा गया।

हालाँकि, निर्णय में कहा गया कि अधिकांश जज न्यायमूर्ति अय्यर द्वारा अनुच्छेद 39(बी) के संबंध में लिए गए दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं। न्यायमूर्ति अय्यर द्वारा लिए गए दृष्टिकोण की पुष्टि संजीव कोक मैन्युफैक्चरिंग बनाम भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (1982) के मामले में संविधान पीठ ने की थी। मफतलाल इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम भारत संघ के मामले में एक निर्णय द्वारा भी इसकी पुष्टि की गई थी।

वर्तमान मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 39(बी) की इस व्याख्या पर इसे नौ जजों की पीठ के पास पुनर्विचार किए भेज दिया। पीठ ने कहा- “हमें इस व्यापक दृष्टिकोण को साझा करने में कुछ कठिनाई है कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन निजी स्वामित्व वाली चीज़ों को कवर करते हैं।” तदनुसार, मामले को 2002 में नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था।

अपीलकर्ताओं का तर्क

अपीलकर्ताओं का तर्क यह था कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत ‘भौतिक संसाधन’ शब्द की व्याख्या किसी भी ऐसे संसाधन के रूप में की जानी चाहिए जो समुदाय की व्यापक भलाई के लिए वस्तुओं या सेवाओं के माध्यम से धन पैदा करने में सक्षम हो। यदि कानून का उद्देश्य ‘भौतिक संसाधनों’ के अर्थ में निजी संसाधनों को शामिल करना था तो मसौदा तैयार करने वाले ने भविष्य में किसी भी संभावित गलत व्याख्या से बचने के लिए ऐसा किया होता।

वहीं, भारत सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि अनुच्छेद 39(बी) की व्याख्या निरंतर विस्तारित हो रहे संवैधानिक सिद्धांतों के दृष्टिकोण से होनी चाहिए, न कि किसी विचारधारा से। संसाधन को समझने के संदर्भ में केंद्र सरकार ने आग्रह किया कि यह समुदाय की गतिशील क्रिया है, जो ‘भौतिक संसाधन’ के अर्थ को आकार देती हैं।

केंद्र ने कहा कि एक समुदाय में अलग-अलग व्यक्तियों के बीच अलग-अलग अंतःक्रियाएँ और व्यापारिक लेन-देन होते हैं। यह एक समुदाय की कुल संपत्ति का योग बनाता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने आर्थिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से योगदान देता है। इस प्रकार अनुच्छेद 39बी के तहत ‘संसाधन’ का अर्थ एक सामान्य आर्थिक आधार है।

संविधान के अनुच्छेद 39(B) को लेकर असमंजस

इससे संबंधित याचिकाएँ सबसे पहले 1992 में आई थीं। इसके बाद साल 2002 में इसे नौ जजों की पीठ के पास भेज दिया गया था। लगभग 22 साल बाद इस पर फैसला आया है। इसमें तय किया जाने वाला मुख्य प्रश्न यह है कि क्या अनुच्छेद 39(बी) (राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में से एक) में कही गई बातों को लेकर है।

राज्य के नीति निर्देश सिद्धांतों से जुड़ी संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) में कहा गया है कि सरकार को सामुदायिक संसाधनों को सामान्य हित यानी सार्वजनिक हित के लिए निष्पक्ष रूप से साझा करने के लिए नीतियाँ बनानी चाहिए। इसमें इस पर सवाल था कि समुदाय के भौतिक संसाधन में निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हैं और क्या सरकार किसी भी निजी संपत्ति को सार्वजनिक हित के नाम पर ले सकती है?

अनुच्छेद 39(बी) में इस प्रकार लिखा है: “राज्य, विशेष रूप से, अपनी नीति को इस प्रकार निर्देशित करेगा कि – (बी) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए कि यह सामान्य भलाई के लिए सर्वोत्तम हो।”

सीरियल ब्लास्ट की साजिश, कोल्लम कलेक्ट्रेट में खड़ी जीप को टिफिन बम से उड़ाया… अब्बास, करीम और दाऊद को केरल की अदालत ने ठहराया दोषी

केरल के कोल्लम में 2016 में हुए एक आईईडी ब्लास्ट में तीन लोग दोषी ठहराए गए हैं। इनके नाम हैं अब्बास अली, शमसून करीम राजा और दाऊद सुलेमान। एक अन्य को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है।

कोल्लम की जिला अदालत ने सोमवार (4 नवंबर 2024) को यह फैसला सुनाया। इन सभी को मंगलवार (5 नवंबर) को सजा सुनाई जाएगी। इस घटना में कोल्लम कलेक्ट्रेट में खड़ी एक जीप को उड़ा दिया गया था। जांच से यह बात भी सामने आई थी कि पूरे राज्य में सिलसिलेवार धमाकों की साजिश रची गई थी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक धमाका 15 जून 2016 को किया गया था। टिफिन बॉक्स में आईईडी बम को छिपाकर कलेक्ट्रेट परिसर में खड़ी जीप में रखा गया था। घटनास्थल के पास ही मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का कोर्ट भी था। सुबह 10:45 पर हुए इस धमाके की वजह से अदालत आया एक 61 वर्षीय बुजुर्ग घायल हो गया। पुलिस ने ब्लास्ट वाली जगह से 15 बैटरी, 17 फ्यूज, तार और एक बैग बरामद किया था।

जाँच के बाद पुलिस ने कुल 5 संदिग्धों को गिरफ्तार किया था। इनमें दोषी करार दिए गए तीन लोगों के अलावा मोहम्मद अयूब और शमशुद्दीन भी थे। इनके आतंकी संगठन अल कायदा से जुड़े होने की बात भी सामने आई थी। आरोपितों के खिलाफ UAPA एक्ट, विस्फोटक अधिनियम व हत्या के प्रयास की धाराओं सहित अन्य सेक्शनों में कार्रवाई की गई थी। बाद में मोहम्मद अयूब सरकारी गवाह बन गया था।

दोषी करार दिए गए सभी लोग तमिलनाडु में मदुरै के निवासी हैं। पूछताछ में यह भी पता चला था कि केरल में सीरियल ब्लास्ट की साजिश रची जा रही थी। पुलिस ने साल 2019 में इस मामले में कोर्ट में चार्जशीट लगाई। साल 2023 में इस केस पर सुनवाई शुरू हुई। इस सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने 63 गवाह पेश किए। इसके अलावा कोर्ट में 119 अलग-अलग कागजात व 24 अन्य सबूत भी रखे गए।

इस मामले की सुनवाई प्रधान सत्र न्यायाधीश जी गोपकुमार की अदालत में हुई। बचाव पक्ष ने भी दलीलें पेश की। इसके बाद सोमवार को अदालत ने 31 वर्षीय अब्बास अली, 33 साल के शमशुन करीम राजा और 27 साल के दाऊद सुलेमान को दोषी करार दिया। शमशुद्दीन को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है।

कनाडा की सड़कों पर सनातनियों का सैलाब, लगे ‘जय श्रीराम’ के नारे: हिंदू मंदिर पर हमले को लेकर PM मोदी ने दिया सख्त संदेश, हिंसा में अब तक 3 गिरफ्तारी

कनाडा के ब्रैम्पटन में हिंदू मंदिर पर हमले के बाद जगह-जगह इस घटना के खिलाफ रोष जाहिर किया जा रहा है। पुलिस ने तीन आरोपितों को गिरफ्तार किया है मगर इससे हिंदुओं की नाराजगी शांत नहीं है। उन्होंने कनाडा में मार्च निकाल अपनी सुरक्षा के लिए चिंता जाहिर की। इस दौरान जोर-जोर से नारेबाजी हुई। वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस हमले की कड़ी निंदा की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नाराजगी व्यक्त करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा, “मैं कनाडा में हिंदू मंदिर पर हुए जानबूझकर किए गए हमले की कड़ी निंदा करता हूँ। हमारे राजनयिकों को डराने की कायराना कोशिशें भी उतनी ही भयावह हैं। हिंसा के ऐसे कृत्य भारत के संकल्प को कभी कमजोर नहीं कर पाएँगे। हम उम्मीद करते हैं कि कनाडा सरकार न्याय सुनिश्चित करेगी और कानून के शासन को कायम रखेगी।”

मालूम हो कि हिंदू मंदिर में श्रद्धालुओं पर खालिस्तानी हमले के बाद कनाडा में हिंदू समुदाय के हजारों लोग भी सड़कों पर उतरे दिखे। इस दौरान उन्होंने मार्च निकालते हुए खुलेआम खालिस्तान मुर्दाबाद और जय श्रीराम के नारे लगाए। मार्च की वीडियो सोशल मीडिया पर हर जगह मौजूद है।

कनाडाई हिंदू संगठन ‘कोएलिशन ऑफ हिंदू ऑफ नॉर्थ अमेरिका’ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर विरोध प्रदर्शन की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा, “हिंदू मंदिरों पर लगातार हो रहे हमलों के खिलाफ हजार से ज्यादा कनाडाई हिंदू ब्रैम्पटन में इकठ्ठा हुए हैं। कल (रविवार) को पवित्र दिवाली वीकेंड के दौरान इस तट से दूसरे तट तक कनाडा के हिंदू मंदिरों पर हमला किया गया। हम कनाडा से इस हिंदू फोबिया को तुरंत रोकने के लिए कहते हैं।”

हिंदू मंदिर पर हमला

बता दें कि 3 नवंबर को हिंदू सभा मंदिर में भारतीय कांसुलर कैंप चल रहा था। इस बीच खालिस्तानियों की भीड़ आई और उनपर हमला बोल दिया। इस दौरान बच्चे और महिलाएँ भी निशाना बनाई गईं। घटना के बाद पुलिस ने इस मामले में अब तक तीन गिरफ्तारियाँ की है। वहीं एक पुलिसकर्मी को सस्पेंड किया गया है। हिंसा मामले में गिरफ़्तार किए गए लोगों की पहचान मिसिसॉगा के 43 वर्षीय दिलप्रीत सिंह बौंस, ब्रैम्पटन के 23 वर्षीय विकास और मिसिसॉगा के 31 वर्षीय अमृतपाल सिंह के तौर पर हुई है।

लक्ष्मी-गणेश विसर्जन जुलूस पर पथराव, मीडिया की रिपोर्टों में प्रतिमा क्षतिग्रस्त होने का भी दावा… लेकिन ‘अफवाह’ बता रही है सिद्धार्थनगर पुलिस

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में सोमवार (4 नवंबर 2024) को लक्ष्मी-गणेश प्रतिमा विसर्जन जुलूस पर पत्थरबाजी से नाराज श्रद्धालुओं ने प्रदर्शन की है। पथराव में प्रतिमा क्षतिग्रस्त होने की बात कही जा रही है। पुलिस ने मौके पर पहुँचकर हालत को काबू किया। हालाँकि, जिले के एडिशनल एसपी ने पत्थरबाजी होने से साफ इनकार किया है और किसी के भी घायल होने की खबरों को अफवाह बताया है।

हिंदुस्तान और न्यूज़ 18 के मुताबिक, घटना सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज थाना क्षेत्र की है। यहाँ श्रद्धालुओं ने सोमवार को भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की प्रतिमा का विसर्जन जुलूस निकाला था। जुलूस में DJ पर धार्मिक भजन बज रहा था। थोड़ी देर में यह जुलूस मुस्लिम बहुल गाँव माली मैनहा के आगे से गुजरा। इस दौरान जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने पथराव का आरोप लगाया।

कुछ लोगों का यह भी आरोप है कि जुलूस में शामिल 2 महिला श्रद्धालुओं को चोटें आई हैं। इससे लोगों का गुस्सा और भड़क गया। जैसे ही यह बात जिले के सीनियर अधिकारियों को पता चली वो फ़ौरन ही भारी फ़ोर्स के साथ मौके पर पहुँचे। श्रद्धालुओं को समझा-बुझाकर शांत कराया और विरोध में लगाए गए जाम को हटवाया गया। इसके बाद यह जुलूस अपने तय मार्ग से विसर्जन के लिए आगे बढ़ गया।

हालाँकि, श्रद्धालु पत्थरबाजी करने वाले आरोपितों को चिन्हित करके उन पर कार्रवाई की माँग पर अड़े हैं। इसमें एक व्यक्ति को हिरासत में लेने की बात कही जा रही है। वहीं, मीडिया के दावों के एकदम विपरीत सिद्धार्थनगर पुलिस ने पत्थरबाजी और किसी के घायल होने की खबरों को कोरी अफवाह बताया है। पुलिस का कहना है कि अफवाह उड़ाने वाले लोगों की तलाश की जा रही है।

जिले एक एडिशनल एसपी ने अपने आधिकारिक बयान में बताया कि ऊहापोह की स्थिति जुलूस में शामिल किसी व्यक्ति के द्वारा अफवाह उड़ाने से हुई थी, जिसे सँभाल लिया गया है। वहीं, भाजपा नेता एवं डुमरियागंज से पूर्व विधायक राघवेंद्र सिंह ने ऑपइंडिया को बताया कि वो हंगामे के असली कारणों की अपने स्तर से पड़ताल करवा रहे हैं। जो भी बात सामने आएगी, उसके अनुसार कार्रवाई होगी।

करेंट से श्रद्धालुओं की मौत पर 7 पुलिसकर्मी सस्पेंड

वहीं, सिद्धार्थनगर के ही एक अन्य थाना क्षेत्र शोहरतगढ़ में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा को विसर्जित करने जा रहे श्रद्धालुओं का वाहन बिजली के तार की चपेट में आ गया। धनगढ़िया गाँव की इस घटना में एक बच्चे की मौत हो गई है, जबकि 13 अन्य लोग घायल हो गए हैं।

जिले की पुलिस अधीक्षक प्राची सिंह ने इस घटना के बाद 2 सब इंस्पेक्टर सहित कुल 7 पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया है। पुलिस द्वारा विद्युत विभाग के कर्मचारियों पर भी कार्रवाई के लिए पत्र लिखा गया है। यह घटना शनिवार (2 नवंबर 2024) की है।

नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ सूर्य उपासना का 4 दिन का अनुष्ठान: विस्तार से जानिए क्यों होता है छठ, क्या हैं इसके तात्पर्य

लोक आस्था का महापर्व छठ भगवान सूर्य और उनकी दो पत्नियों ऊषा और प्रत्यूषा को समर्पित है। ‘छठ’ नामकरण के पीछे इसका अमावस्या के छठे दिन या षष्ठी को होना है। इस बार आज मंगलवार (5 नवंबर, 2024) से नहाय-खाय के साथ सूर्योपासना के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत हो चुकी है। 7 नवंबर तारीख को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही 4 दिन के महापर्व का समापन हो जाएगा।

पहले दिन छठ व्रतियों ने सुबह-सुबह नदियों में स्नान किया। शनिवार को खरना पर पूरे दिन उपवास कर शाम में सूर्य देव की पूजा कर प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। वहीं 7 नवंबर रविवार की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद सोमवार 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर आयु-आरोग्यता, यश, संपदा का आशीष लेते हुए पर्व संपन्न होगा।

सूर्य देव और छठी मईया (ऊषा देवी के लिए प्रयुक्त नाम) इस पर्व के आराध्य हैं। इसकी तैयारी अत्यंत श्रमसाध्य और सघन होती है। ऊषा और प्रत्यूषा सूर्य देव की दो शक्ति मानी जाती हैं और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। संध्या काल में दिया जाने वाला पर्व का प्रथम अर्घ्य उनकी अंतिम किरण प्रत्यूषा को दिया जाता है और प्रातः काल का अर्घ्य सूर्य की प्रथम किरण ऊषा को।

छठ पर्व और सूर्य देव की पूजा का उल्लेख भारत के दोनों महाकाव्यों महाभारत और रामायण में है। श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद देवी सीता के अयोध्या के राजपरिवार के कुल देवता के रूप में सूर्योपासना और महाभारत में इंद्रप्रस्थ की महारानी द्रौपदी के इस पर्व को मनाने के बारे में लिखित प्रमाण हैं। सूर्य पुत्र कर्ण महाभारत के प्रमुखतम किरदारों में एक है। यही नहीं, देवी ऊषा स्वयं वैदिक काल की देवी मानी गईं हैं, जिनकी उपासना में कई वेद मन्त्र और ऋचाएँ हैं।

समकालीन परम्परा की बात करें तो दीवाली खत्म होते ही विभिन्न राज्यों में बसे आस्थावानों के साथ ही खास तौर से बिहार के लोग 6 दिन बाद होने वाले छठ की तैयारियों में लग जाते हैं। राज्य के हर कोने में छठी मईया के गीत गाए जाते हैं। सबसे प्रचलित गीत बिहार की अपनी बेटी और पद्मश्री से सम्मानित शारदा सिन्हा के होते हैं। “उग हो सुरुज देव” से लेकर “मारबो रे सुगवा धनुष से” तक इन गीतों का जुड़ाव हर बिहारी से होता है।

गाँव-कस्बों में साफ़-सफाई चालू हो जाती है, जो एक सामुदायिक प्रक्रिया होती है। केवल पगार पाने वाले सफाई कर्मचारी ही नहीं, छठ के दौरान साफ़-सफाई पूरे बिहार का जिम्मा होता है। घर से लेकर घाट तक, जहाँ पानी के किनारे अर्घ्य देना होता है, कंकड़-पत्थर, गंदगी, घास-फूस का नामोनिशान मिटा दिया जाता है।

पहला दिन: नहाय-खाय

इस दिन व्रतिन (व्रती महिलाएँ) सुबह-सवेरे नहा कर मौसमी सब्ज़ियों, चावल और दाल का भोजन करती हैं। दाल में अमूमन चना सबसे अधिक प्रचलित है, जबकि सब्ज़ियों में लौकी (जिसे ‘कद्दू’ के नाम से जाना जाता है); साथ में चने का साग भी होता है। व्रतिन का बिना नमक का भोजन प्रसाद होता है, जिसे बाद में पूरा परिवार ग्रहण करता है।फ़ैमिली वेकेशन पैकेज

इसी दिन (या अगले दिन, सुविधानुसार) व्रतिन अपने घर के अन्य लोगों की मदद से सूर्य देवता को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद को बनाने में प्रयुक्त होने वाले गेहूँ को धोकर सूखने के लिए फैला देती हैं। घर के बच्चों की ज़िम्मेदारी होती है ध्यान रखना कि गेहूँ में कोई गंदगी न गिर जाए या चिड़िया जूठा न कर दे या बीट न कर दे।

इस दिन सबसे चर्चित मिठाई ठेकुआ की भी तैयारी जम कर होती है। गेहूँ को या तो घर ही में जाँते में पिसा जाता है या पास की चक्की से पिसवाया जाता है। इसी आटे से मिठाइयाँ, रोटी, पूड़ी आदि बनती हैं।

दूसरा दिन: खरना

व्रतिन का पूरे दिन उपवास होता है- वह भी निर्जला। इसके अलावा उन्हें स्वच्छता, शौच-अशौच के भी कठोर नियमों का पालन करना होता है। शाम को वही घर वालों के लिए भोजन भी बनाती हैं, जिसमें पूड़ी और तस्मई (गुड़ या शक़्कर की खीर) प्रमुख होते हैं। तस्मई में एक बूँद पानी का प्रयोग नहीं होता है और दूध उसी गाय का इस्तेमाल किया जाता है जिसका बछड़ा जीवित रहता है।

शाम को भोजन बनाने से खाली होकर व्रतिन पूजा पर बंद कमरे में बैठती हैं। विभिन्न देवताओं, जिनमें ग्राम और कुल के भी देवी-देवता शामिल होते हैं, को नैवेद्य का भोग लगता है। इस नैवेद्य में रोटी, तस्मई और केला होता है, और यह भोग केले के पत्ते पर ही लगता है।

व्रतिन जब पूजा करतीं हैं तो पूरा घर दम साधे बैठे रहता है ताकि उनका ध्यान भंग न हो जाए। उसके बाद वे प्रसाद ग्रहण कर अपने उपवास का पारण करती हैं। वे अपने थाल में कुछ खाना छोड़ कर उठतीं हैं, जिसे घर के बाकी सदस्य प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। कई बार तो घरों में इस प्रसाद को ग्रहण करने के लिए आपस में होड़ लग जाती है, क्योंकि यह माँ के प्रसादों में सबसे अनुपम माना जाता है। इस नैवेद्य के प्रसाद के बाद पूरा घर तस्मई और पूड़ी ग्रहण करता है।

तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन व्रतिन का उपवास फिर शुरू हो जाता है जो लगभग 36 घंटे चलता है। यह भी निर्जला ही होता है। इस दिन परिवार के बच्चे या युवा डलिया और सूप तैयार करते हैं जिनमें ठेकुआ, लडुआ, साँच और घर के पास उगने वाली कोई भी फसल (गन्ना, संतरा, सेब से लेकर मूली, केला, मूँगफली, मकई तक) हो सकते हैं। घर के पुरुष इन डलियों को सिर पर लेकर घर से घाट तक जाते हैं। रास्ते भर में सफाई, पानी के छिड़काव आदि से स्वच्छता और शुचिता बरकरार रखे जाते हैं।

डलिया को घाट पर खोल कर रख दिया जाता है। व्रतिन जल में स्नान कर ढलते सूर्य और प्रत्यूषा की वंदना करती हैं। इसके बाद वे हर डलिया को एक दिए के साथ हाथ में लेतीं हैं और वे और परिवार के अन्य सदस्य डलिया में जल और दूध द्वारा अर्घ्य देते हैं।

इसके बाद व्रतिन फिर एक बार स्नान करतीं हैं और उसके बाद घाट पर पूजा होती है। इसमें आराधना, पुष्पांजलि, धूप चढ़ाना और अगरबत्ती जलाना शामिल होते हैं। डलिया को पुरुष सदस्य वापिस घर ले आते हैं और इसे सहेज कर रात भर के लिए ऐसी जगह स्थापित किया जाता है जहाँ गलती से स्पर्श, पैरों का लगना आदि न हो।

चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य

शाम के अर्घ्य की ही प्रक्रिया इसमें दोहराई जाती है। डलिया लेकर घाट पर पहुँचा जाता है, जहाँ व्रतिन पानी में उतर कर सूर्योदय का इंतज़ार करतीं हैं। जैसे सूर्य देव देवी ऊषा के साथ प्रकट होते हैं, युगल को जल और दूध का अर्घ्य शाम की ही भाँति पहली किरण के साथ दिया जाता है।

इसके बाद डलिया को वापिस घर ले जा कर परिवार के लोगों और पड़ोसियों में प्रसाद वितरित होता है। व्रतिन के जलाशय से बाहर आने तक पूरा परिवार भी उनके साथ खाली पेट प्रतीक्षा करता है।

व्रतिन जलाशय से बाहर आकर नए वस्त्र धारण करतीं हैं और घर की अन्य महिलाओं के साथ वापिस घर जातीं हैं। रास्ते में खेतों में वे मृदा (मिट्टी) की भी पूजा करतीं हैं। इसे भूमि की उर्वरा शक्ति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन माना जाता है।

जब व्रतिन घर पहुँचती हैं तो घर के सभी सदस्य उनके चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। उन क्षणों में जब वे अपनी सभी इन्द्रियों और अंगों के आवेश को स्थिर किए हुए होतीं हैं, तो उनकी वाणी में माता उषा या छठी मईया का निवास माना जाता है।

डलिया के प्रसाद के अलावा इस वक्त का मुख्य भोजन कद्दू (लौकी)-भात होता है।

डलिया की सामग्री की महत्ता

हर परिवार में अलग-अलग संख्या में डलिया होती हैं। एक, दो, तीन से लेकर किसी-किसी परिवार में संख्या दस के परे भी जा सकती है। यह संख्या इस पर निर्भर करती है कि घर के लोगों ने छठी मईया से कितनी डलिया की मनौती मानी थी।

कई बार मान लीजिए कि कोई अगर गंभीर रूप से बीमार है तो घर की वयोवृद्ध दादी-नानी कुछ वर्षों (या हो सकता है हमेशा के लिए भी) एक निश्चित बड़ी संख्या की मनौती मान लें। इसमें कई बार तो ऐसा भी होता है कि लोग अपने ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों के लिए मनौती मान लेते हैं, जैसे, “हे छठी मईया, मेरा ये बेटा (गाँव का मुखिया, जिसका मान लीजिए एक्सीडेंट हो गया था) बिस्तर से उठ खड़ा हो, तो मैं जब तक ये जिएगा, एक डलिया फल हर साल चढ़ाऊँगी।”

‘कष्ट लेना’

यह अर्घ्य के दो दिनों की शाम और सुबह में काफी आम है। कई लोग, अमूमन पुरुष, छोटी चाकू या ऐसी ही किसी धातु वाली वस्तु के साथ सूर्य की ओर चेहरा कर दंड प्रणाम करते हुए घाट तक जाते हैं।

असल में वे क्या कर रहे होते हैं:

वे अपने घर से निकल कर सूर्य को प्रणाम करते हैं, और ज़मीन पर लेट कर अपने शरीर की लम्बाई जितनी दूरी नापते हैं। इस दूरी का वे ज़मीन पर कील या चाकू आदि से निशान लगा देते हैं। उसके बाद वे उठ कर फिर से सूर्य को प्रणाम करते हैं, निशान वाली जगह पैर जमा कर फिर ज़मीन पर लेट जाते हैं, सिर की जगह पर निशान लगाते हैं… यह प्रक्रिया घाट पहुँचने तक जारी रहती है।

यह केवल सुनने में ही नहीं, करने में भी बहुत ही कठिन प्रक्रिया है। इसे करने वाला या तो खुद इसकी मन्नत माना होता है, या उसके लिए उसकी माँ, दादी-नानी ने उसके कल्याण के लिए यह मन्नत मानी होती है। इस आराधना विधि को ‘कष्ट लेना’ कहा जाता है।

यह इतना दुष्कर और जटिल है कि इस मन्नत का उपयोग केवल बहुत ही बड़ी विपत्ति के उपाय में किया जाता है- जैसे अगर किसी का एक्सीडेंट हो गया है, या किसी अन्य कारण से प्राण संकट में पड़ गए हों। तभी इस कष्ट के अर्पण के बदले देवताओं से सहायता माँगी जाती है।

हालाँकि यह ‘कष्ट लेना’ क्रिया अमूमन केवल पुरुष ही करते हैं, लेकिन इससे मिलता-जुलता एक संस्करण स्त्रियों के लिए भी होता है। उन्हें उसके लिए जलाशय में सबसे पहले पहुँच जाना होता है, उन महिलाओं के पहले जो ‘कष्ट’ वाली मनौती नहीं किए होतीं हैं और अर्घ्य की प्रक्रिया समाप्त होने पर उनसे बाद में निकलना होता है। अक्टूबर अंत-नवंबर के कड़ाके की ठंड में सूर्योदय के पहले से ऐसा करना बेहद मुश्किल होता है।

बिहार में सबसे प्रचलित छठी मईया से मॉं, दादी, नानी हमेशा ही प्रार्थना करती रहती हैं। ऐसी मान्यता है कि माँ उषा अपने बच्चों का सदैव ध्यान रखतीं हैं। यह ‘कष्ट’ माँ उषा की संतान होने के प्रति आभार प्रकट करने का एक ज़रिया है।

विश्वास ही हम सब को एक सूत्र में पिरोता है। छठ पूजा पूरे परिवार को साथ ले आती है। व्रतिन को घर में सबसे अधिक सम्मान दिया जाता है और बच्चों में उनके थके हाथ-पैर दबाकर, सिर पर मालिश कर उनका आशीर्वाद लेने की होड़ लगी रहती है।

यह पर्व पृथ्वी पर साक्षात् दिखने वाले एकमात्र देवता को धन्यवाद करने का एक तरीका है, जिनके अनुग्रह से पृथ्वी पर जीवन और प्राण का संचार होता है। यह उन सूर्य देव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका है, जिनकी किरणों के बिना पूरा ब्रह्माण्ड मृत हो जाएगा। वे केवल जीवन ही नहीं देते। अपनी किरणों से व्याधियों का नाश कर पालन भी करते हैं। छठ पर हम उन्हें और उनकी शक्तियों ऊषा और प्रत्यूषा को अपना आभार ज्ञापित करते हैं।

(पहली बार मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित पूर्व संपादक अजीत भारती के इस लेख में जरुरी एडिटोरियल बदलाव किए गए हैं।)