Wednesday, November 20, 2024
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‘चुनाव में सलाह देने के लेता था ₹100 करोड़+’: प्रशांत किशोर ने मुस्लिमों के आगे कबूली अपनी फीस, बोले- हमें कमजोर समझते हैं क्या आप?

जन सुराज के संयोजक और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने खुलासा किया है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी या नेता को चुनावी सलाह देने के लिए वह 100 करोड़ रुपये से अधिक फीस लेते हैं। प्रशांत ने यह बात गुरुवार (31 अक्टूबर 2024) को बिहार विधानसभा उपचुनावों के प्रचार के दौरान कही।

बिहार के बेलागंज में एक सभा को संबोधित करते हुए प्रशांत किशोर ने बताया कि लोग अक्सर उनसे पूछते हैं कि उनके चुनावी अभियान का खर्च कैसे पूरा होता है।

प्रशांत किशोर ने कहा, “मेरी रणनीतियों पर दस राज्यों में सरकारें चल रही हैं। क्या आपको लगता है कि मुझे अपने अभियान के लिए तंबू और अन्य व्यवस्थाओं का खर्च उठाने में दिक्कत होगी? बिहार में किसी ने मेरी जैसी फीस के बारे में नहीं सुना है। एक चुनाव में सलाह देकर मैं 100 करोड़ रुपये से अधिक कमा लेता हूँ, जो मुझे अगले दो साल तक अपने अभियान को चलाने के लिए पर्याप्त है।”

जन सुराज पार्टी ने आगामी उपचुनावों के लिए चार विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। बेलागंज से मोहम्मद अमजद, इमामगंज से जितेंद्र पासवान, रामगढ़ से सुशील कुमार सिंह कुशवाहा और तारारी से किरण सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है। बिहार के इन चार विधानसभा क्षेत्रों – बेलागंज, इमामगंज, रामगढ़, और तारारी – में 13 नवंबर को उपचुनाव होने हैं, और इनके नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।

प्रशांत किशोर का यह बयान चुनावी रणनीतिकार के रूप में उनकी फीस और फंडिंग को लेकर चल रहे सवालों का जवाब था।

कौन हैं प्रशांत किशोर?

प्रशांत किशोर एक जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार हैं, जिन्होंने भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनावी अभियान तैयार किए हैं। उनका करियर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार से चर्चा में आया, जब उनकी बनाई रणनीतियों ने बीजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाने में मदद की। इसके बाद उन्होंने बिहार में नीतीश कुमार, दिल्ली में आम आदमी पार्टी, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कॉन्ग्रेस और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कॉन्ग्रेस जैसे कई दलों के साथ काम किया​

प्रशांत किशोर की कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (I-PAC) ने विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों में रणनीतियाँ तैयार कीं, जिससे वे राजनीति में एक भरोसेमंद नाम बन गए। हालाँकि वे कई बार कॉन्ग्रेस में शामिल होने की अटकलों में भी रहे हैं, लेकिन आखिर में उन्होंने खुद की राजनीतिक पार्टी बनाई है।

‘औरतों की आवाज इबादत के वक्त भी सुनाई न पड़े’ : अफगान महिलाओं के लिए तालिबान का फरमान, अल्लाह-हु-अकबर और सुभानाल्लाह कहने की भी आजादी नहीं

अफगानिस्तान में साल 2021 में सत्ता सँभालने के बाद से तालिबान महिलाओं के खिलाफ एक के बाद एक फरमान जारी कर रहा है। स्कूल-कॉलेज एवं नौकरीपेशा से निकालने के बाद तालिबान ने एक और विचित्र फरमान जारी किया है। तालिबान ने कहा कि इबादत करते समय महिलाओं की आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। तालिबान ने महिलाओं की आवाज को ‘आवारा’ बताया है।

तालिबान के मंत्री मोहम्मद खालिद हनफी ने अपने फरमान में कहा कि औरतों की आवाज को आवारा माना जाता है। इसलिए उन्हें छिपकर रहना चाहिए और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी आवाज किसी के कानों में नहीं पड़नी चाहिए। महिलाओं के भी नहीं। इसलिए कुरान पढ़ते समय भी उनकी आवाज सुनाई नहीं देनी चाहिए। पूर्वी लोगार प्रांत में एक कार्यक्रम के दौरान मंत्री खालिद हनफी ने इसकी घोषणा की।

हनफी ने कहा, “जब एक वयस्क महिला प्रार्थना करती है और दूसरी महिला उसके पास से गुजरती है तो उसे इतनी ऊँची आवाज में प्रार्थना नहीं करनी चाहिए कि वह सुन सके।” म्यूजिक को लेकर उन्होंने आगे कहा, “अगर उन्हें प्रार्थना करते समय (एक-दूसरे की) आवाज सुनने की भी अनुमति नहीं है तो उन्हें गाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है, किसी और चीज की तो बात ही छोड़िए।”

हनफी ने कहा, “एक महिला के लिए किसी अन्य वयस्क महिला के सामने कुरान की आयतें पढ़ना वर्जित है। यहाँ तक कि तकबीर (अल्लाह हु अकबर) के नारे लगाने की भी अनुमति नहीं है।” उन्होंने कहा कि वे सुभानाल्लाह भी नहीं कह सकतीं। एक महिला को अजान देने की अनुमति भी नहीं है। हनफी की टिप्पणी का ऑडियो मंत्रालय के सोशल मीडिया मंच पर साझा किया गया था, लेकिन बाद में हटा दिया गया।

मंत्री ने कहा कि नैतिकता कानूनों के तहत ये नए प्रतिबंध लगाए गए हैं और उन्हें इसका पालन करना होगा। इन कानूनों के तहत महिलाओं को घर के बाहर बिना बुर्के के निकलना, ऊँची आवाज में बात करना और अपना चेहरा दिखाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। इसके अलावा, लड़कियों को छठी कक्षा के बाद पढ़ाई पर रोक और महिलाओं को नौकरियों से बाहर रखा गया है।

यह फरमान तालिबान द्वारा इस साल अगस्त में लागू किए गए उस नए कानून ठीक दो महीने बाद आया है, जिसमें महिलाओं को घर से बाहर निकलते समय चेहरे सहित पूरे शरीर को ढकने का आदेश दिया गया है। तालिबान के अधिकारी महिला स्वास्थ्य कर्मियों को बात करने से मना करते हैं, खासकर पुरुष रिश्तेदारों से।

हेरात में दाई का काम करने वाली एक महिला ने एक टीवी चैनल को कहा, “जब हम काम पर जाते हैं तो वे हमें चेकपॉइंट पर बात करने की भी अनुमति नहीं देते हैं और क्लीनिकों में हमें पुरुष रिश्तेदारों के साथ चिकित्सा मामलों पर चर्चा नहीं करने के लिए कहा जाता है।” दाई ने बताया कि उसने आठ सालों तक दूरदराज के स्वास्थ्य क्लीनिकों में काम किया है।

विदेश में रहने वाले अफगान कार्यकर्ताओं ने तालिबान के इस आदेश की निंदा की है। ऑस्ट्रेलियाई हजारा एडवोकेसी नेटवर्क की ज़ोहल अज़रा ने कहा, “पिछले महीने तालिबान द्वारा सार्वजनिक रूप से महिलाओं की आवाज़ और चेहरे पर प्रतिबंध लगाने के बाद स्थिति और खराब होने की कल्पना करना कठिन है। इस आदेश के साथ हमने देखा कि महिलाओं को नुकसान पहुँचाने की तालिबान की क्षमता की कोई सीमा नहीं है।”

अज़रा ने कहा, “अफगानिस्तान में सत्ता में लौटने के बाद से तालिबान ने 105 से अधिक आदेशों और फतवों को लागू करके महिलाओं और बच्चियों के सार्वजनिक जीवन को समाप्त कर दिया है। इन्हें हिंसक और मनमाने ढंग से लागू किया जाता है, जिसमें हिरासत, यौन शोषण, यातना और क्रूरता या अपमानजनक व्यवहार एवं दंड जैसे कि महिलाओं और लड़कियों को पत्थर मारना और कोड़े मारना शामिल हैं।”

पत्थरबाजी, मारपीट, फिर गाड़ियों में आग… इंदौर में हिंदू बच्चों के पटाखा जलाने पर दो पक्षों में भड़का विवाद, सड़कों पर तोड़फोड़ और नारेबाजी

इंदौर में दिवाली के अगले दिन शुक्रवार (1 नवंबर) को दो समुदायों के बीच पटाखे फोड़ने को लेकर विवाद हो गया। यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों तरफ से एक-दूसरे पर पत्थरबाजी शुरू हो गई, जिससे कुछ लोगों को मामूली चोटें आईं। पुलिस सूत्रों के हवाले से छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना छतरीपुरा थाना इलाके के रविदास पुरा में हुई।

बताया जा रहा है कि छतरीपुरा इलाके में कुछ बच्चे दोपहर में पटाखे फोड़ रहे थे। इसी दौरान “समुदाय विशेष” के कुछ लोग नाराज़ हो गए और गुस्से में आकर सड़क पर खड़ी गाड़ियों के शीशे तोड़ दिए और नुकसान पहुँचाया।

घटना की सूचना मिलते ही मौके पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया, जिसने जल्द ही स्थिति को काबू में कर लिया। घायल लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है, और पुलिस ने मामले की जाँच शुरू कर दी है। जाँच के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

जगरण की रिपोर्ट के अनुसार, डीसीपी जोन 4 ऋषिकेश मीणा ने बताया, “छतरीपुरा पुलिस थाना क्षेत्र के रविदास पुरा इलाके में कुछ बच्चे शुक्रवार (1 नवंबर 2024) दोपहर पटाखे जला रहे थे, जिस कारण दो समुदायों के पड़ोसियों के बीच विवाद हो गया। इस घटना में तीन लोग घायल हुए हैं, जिन्हें अस्पताल में इलाज दिया जा रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “इलाके में सुरक्षा बनाए रखने के लिए करीब 80 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, और फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है। हम सभी से अपील करते हैं कि किसी भी अफवाह या गलत जानकारी पर ध्यान न दें। जो लोग इस झगड़े के ज़िम्मेदार पाए जाएंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।”

घटना के बाद स्थानीय विधायक मालिनी गौर के बेटे एकलव्य गौर हिंदू संगठनों के सदस्यों के साथ छतरीपुरा थाने पहुँचे और दूसरी तरफ के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग की। मालहर्गंज, पंड्रिनाथ और सराफा थानों से अतिरिक्त पुलिस बल भी मौके पर भेजा गया है।

फरीदाबाद में हिंदू परिवार पर हमला, युवती से रेप की कोशिश

बता दें कि दिवाली की रात को फरीदाबाद के सुभाष कॉलोनी में एक हिंदू लड़का अपने घर के बाहर पटाखे जला रहा था, इसी दौरान पड़ोस में रहने वाले राज और आशिक की अगुवाई में इस्लामी कट्टरपंथियों के झुंड ने हमला बोल दिया। उन्होंने हिंदू परिवार की लड़की का रेप करने की भी कोशिश की। इस दौरान 40-50 इस्लामी कट्टरपंथियों ने जमकर तांडव मचाया।

जो मुस्लिम 1947 में पाकिस्तान गए, जमीन भी ‘साथ ले गए’: हिंदुओं का हक मारने के लिए Waqf के साथ ऐसे रचा गया षड्यंत्र… सरकारों के दम पर ही खड़ा हुआ यह लैंड माफिया

देश भर में वक्फ बोर्ड द्वारा एक के बाद एक करके सरकारी ही नहीं, निजी संपत्तियों पर दावा किया जा रहा है। कर्नाटक में किसानों की 1200 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड दावा करना और कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा उसे हस्तांतरित करने के लिए किसानों को नोटिस देने के बाद बवाल मच गया है। वहीं, केंद्रे की मोदी सरकार वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों को नियंत्रित करने कि लिए वक्फ संशोधन बिल पेश करने जा रही है, जो फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास है।

वक्फ बोर्ड भारत की तीसरी सबसे अधिक संपत्ति वाली संस्था है। इसको देखते हुए कर्नाटक के भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वक्फ संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण करने की माँग की है। अपने पत्र में पाटिल ने लिखा है कि वर्तमान कानून से शक्तिशाली बना वक्फ बोर्ड व्यक्तियों का ही नहीं, लंबे समय से चली आ रहे धार्मिक संस्थाओं, जो वक्फ से संबंधित भी नहीं हैं, उन पर भी अतिक्रमण कर रहा है।

कर्नाटक में किसानों की जमीनों पर दावा करने से पहले सितंबर 2022 में तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के पूरे गाँव और 1100 साल पुराने मंदिर पर दावा ठोक दिया था। तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड ने त्रिची के नजदीक स्थित तिरुचेंथुरई गाँव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। जब राजगोपाल नाम के व्यक्ति ने अपनी जमीन बेचने का प्रयास किया तो यह मामला समाने आया था।

क्या होता है वक्फ?

वक्फ अरबी भाषा के वकुफा शब्द से बना है। इसका अर्थ होता है ठहरना। वकुफा से ही वक्फ बना है। वहीं, वक्फ बोर्ड वो संस्था है जो अल्लाह के नाम पर दान में दी गई संपत्ति का रख-रखाव करता है। हालाँकि, मुस्लिमों की पवित्र पुस्तक कुरान में वक्फ शब्द का जिक्र नहीं है। फिर भी, मुस्लिम जब अपनी किसी चल या अचल संपत्ति को जकात के रूप में देते हैं तो वो संपत्ति ‘वक्फ’ कहलाने लगी।

जकात दिए जाने के बाद इस संपत्ति पर सिर्फ अल्लाह का हक माना जाता है और उसकी देखरेख ‘वक्फ-बोर्ड’ को दी जाती है। यह संस्थान उस संपत्ति से जुड़े सारे कानूनी काम को सँभालती है। इस संपत्ति को खरीदा-बेचा नहीं जा सकता, सिर्फ अधिकतम 30 वर्षों के किराए पर दी जा सकती है। एक बार संपत्ति वक्फ को दे देने के बाद वह संपत्ति कभी वापस नहीं मिल सकती।

भारत में वक्फ: पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की संपत्ति भी कब्जाया

भारत में वक्फ का सिद्धांत मुस्लिम आक्रांताओं के साथ आया। सारी संपत्ति पर मुस्लिम शासकों का अधिकार होता था तो वक्फ संपत्ति के प्रबंधन करने के लिए अलग से बोर्ड आदि जैसे संस्था आदि नहीं बने थे। भारत में वक्फ का विचार दिल्ली सल्तनत से शुरू होता है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम ग़ौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गाँव देकर इसका प्रशासन शेख उल इस्लाम को सौंपा था।

इस तरह जैसे जैसे इस्लामी शासन का प्रभाव भारत में बढ़ा वैसे-वैसे वक्फ की संपत्तियों में वृद्धि होती गई। वक्फ बोर्ड को ज्यादातर संपत्तियाँ मुस्लिम शासनकाल में मिलीं। मुगलों के शासनकाल में वक्फ संस्थाओं को मस्जिद, मदरसा, कब्रगाह के लिए बेहिसाब जमीनें मिलीं। औरंगेजब से लेकर अकबर तक तमाम बादशाहों ने मुस्लिम संस्थाओं के लिए खूब जमीनें दीं। गाँव के गाँव दे दिए।

इसके अलावा, 1947 में देश के बँटवारे के समय पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों ने अपनी संपत्तियाँ या तो अपने परिवार के नाम कर दी या वक्फ के नाम कर दीं। इस तरह भारत में शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत सरकारी कब्जे में लेने के लिए कुछ विशेष संपत्ति नहीं बची। वो संपत्तियाँ पहले ही मुस्लिमों के हाथ से निकल मुस्लिमों के हाथ में जा चुकी थीं।

वक्फ बोर्ड ने पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की संपत्तियाँ तो वक्फ बताकर ले लीं, लेकिन पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं को उनके बदले कोई जमीन नहीं दी। कायदे से यह अदला-बदली का मसला था, क्योंकि भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की संपत्ति, पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं के लिए थी। हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ। वक्फ बोर्ड सारी संपत्ति दबाए बैठा रहा।

इस समय वक्फ बोर्ड रेलवे और कैथोलिक चर्च के बाद देश का तीसरा सबसे अधिक संपत्ति वाली संस्था है। इन संपत्तियों का क्षेत्रफल करीब 9.4 लाख एकड़ है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार, वक्फ बोर्ड के पास देश भर में 8,65,646 संपत्तियाँ पंजीकृत हैं। इनमें 80,000 से ज्यादा बंगाल में हैं। इसके बाद पंजाब में 70994, तमिलनाडु में 65945 और कर्नाटक में 61,195 संपत्तियाँ हैं। साल 2009 में यह जमीन 4 लाख एकड़ हुआ करती थी, जो कुछ सालों में बढ़कर दोगुनी हो गई है।

अंग्रेजों के शासन के दौरान वक्फ

मुगलों के बाद जब भारत में अंग्रेजी शासन आया, तब भी वक्फ विवाद का विषय बन गया। वक्फ की संपत्ति को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि वह लंदन स्थित प्रिवी काउंसिल तक पहुँचा। इसके बाद ब्रिटेन में चार जजों की बेंच बैठी और वक्फ को अवैध करार दे दिया। हालाँकि, इस फैसले को ब्रिटिश भारत की सरकार ने नहीं माना और मुसलमान वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट 1913 लाकर वक्फ बोर्ड को बचा लिया।

दरअसल, शुरुआत में अंग्रेजों ने हिंदू और मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। समय के साथ इनके नियमन के लिए कानून लाया गया। 1890 के चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स एक्ट में चैरिटेबल संपत्तियों के लिए कोषाध्यक्षों की स्थापना की बात कही गई। 1920 में चैरिटेबल और धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम में इच्छुक व्यक्ति को ट्रस्टों की न्यायिक निगरानी की अनुमति दी गई। इस तरह कठोर नियंत्रण रखा गया।

सन 1894 में अब्दुल फता मोहम्मद इशाक बनाम रुसोमॉय धुर मामले में एक फैसला आया। इस फैसले में कहा गया कि परिवार को लाभ पहुँचाना तब तक अमान्य है, जब तक कि वे दान के लिए समर्पित न हों। मुस्लिमों में पारिवारिक वक्फ की भी अवधारणा थी, जिसे गिफ्ट कहा जाता है। इस फैसले से मुस्लिम असंतुष्टि हो गए। इसके बाद 1913 में मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम पारित हुआ।

आगे चलकर 1923 के मुसलमान वक्फ अधिनियम में संपत्तियों का लेखा-जोखा अनिवार्य कर दिया गया। इसके अलावा, 1934 में बंगाल वक्फ अधिनियम और बिहार वक्फ अधिनियम जैसे संशोधन पेश किए गए। इन कानूनों ने साबित कर दिया कि मुस्लिम बंदोबस्तों के प्रबंधन के लिए समर्पित कानूनों की आवश्यकता थी, जो पिछले धर्मनिरपेक्ष कानूनों के विपरीत थे।

आजादी के बाद भारत में वक्फ

सन 1947 में देश आजाद हो गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। उस समय तक 1923 का मुसलमान वक्फ अधिनियम लागू रहा। इसके बाद सन 1954 में तत्कालीन पंडित नेहरू की सरकार ने वक्फ अधिनियम 1954 पेश किया। इसमें वक्फ की संपत्तियों के प्रशासन को केंद्रीकृत कर दिया। इसने महत्वपूर्ण शक्तियों के साथ वक्फ बोर्ड भी स्थापित किए।

इस अधिनियम में स्वतंत्रता से पहले के कई कानूनों को निरस्त कर दिया गया था और वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को बड़े पैमाने पर बदल दिया। इस कानून के तहत पंडित नेहरू की सरकार ने बँटवारा के बाद भारत से पाकिस्तान गए मुस्लिमों की जमीनें वक्फ बोर्डों को दे दी। इसके साथ ही पंडित नेहरू ने तुष्टिकरण की राजनीति का एक अप्रतिम उदाहरण पेश किया था।

सन 1964 में वक्फ अधिनियम 1954 के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की गई। यह केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक सांविधिक निकाय है। इसे केन्द्र सरकार के सलाहकार निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। वक्फ परिषद को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राज्य वक्फ बोर्डों को सलाह देने का अधिकार है। परिषद का अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री होता है।

सन 1984 में वक्फ जाँच समिति ने एक रिपोर्ट दी, जिसके बाद वक्फ (संशोधन) अधिनियम पारित हुआ। इसका उद्देश्य वक्फ प्रशासन का पुनर्गठन करना और वित्तीय एवं परिचालन संबंधी खामियों को दूर करना था। हालाँकि, मुस्लिम समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया। वक्फ आयुक्त को दी गई शक्तियों के कारण इस अधिनियम को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका।

नरसिम्हा राव की सरकार ने वक्फ को दी असीमित शक्तियाँ

1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुँचने लगा। इसका परिणाम हुआ। कि 1992 में अयोध्या के बाबरी ढाँचे को गिरा दिया गया। उस समय देश में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। इसके कारण मुस्लिम समुदाय कॉन्ग्रेस से नाराज हो गए। मुस्लिम समुदाय का कॉन्ग्रेस में विश्वास बढ़ाने के लिए नरसिम्हा राव ने वक्फ अधिनियम 1995 पारित करके कई शक्तियाँ दीं।

पीवी नरसिम्हा राव की कॉन्ग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियाँ दे दीं। वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चैरिटेबल) परोपकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी।

वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 3 में कहा गया है कि यदि वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई भी भूमि किसी मुस्लिम की है तो वह उसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता है। इसके लिए वक्फ या उससे जुड़े व्यक्ति को कोई रिकॉर्ड पेश करने की जरूरत नहीं होगी। वहीं, जिस व्यक्ति की जमीन को वक्फ ने अपनी संपत्ति घोषित की है, वह अपने पक्ष में रिकॉर्ड दिखा सकता है।

इसके अलावा, वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। इन शक्तियों को जोड़ने के साथ ही इसमें सन 1984 के प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा गया था। इस तरह वक्फ बोर्ड एक पावरफुल संस्था बनकर उभरा और वह किसी भी जमीन पर हक जमाने लगा।

UPA सरकार ने 2013 में इन शक्तियों को और बढ़ाया

इतनी शक्तियाँ मिलने के बाद भी मुस्लिम खुश नहीं दिखे। इसके बाद सन 2013 में वक्फ कानून में कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने एक और संशोधन पेश किया। इसमें वक्फ बोर्ड को स्वायत्ता और असीमित शक्तियाँ दी गईं। यहाँ तक कि कलेक्टर भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते।

आपको वक्फ बोर्ड से गुहार लगानी होगी। जब वह नहीं मानता है तो तो वह आप वक्फ ट्रिब्यूनल में जा सकते हैं। वक्फ एक्ट की धारा 85 कहता है कि ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है। नए संशोधन के तहत वक्फ बोर्ड बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपनी संपत्तियों का प्रबंधन कर सकते हैं।

इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों के विवादों के निपटान के लिए एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गई। तत्कालीन सरकार ने इसे वक्फ संपत्तियों के विवादों को तेजी से निपटाने की दिशा में उठाया गया कदम बताया था। इसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम बनाया गया। इसमें वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है।

मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश

मार्च 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने दिल्ली-एनसीआर की 123 प्रमुख संपत्तियाँ दिल्ली वक्फ बोर्ड को दे दीं। देश की हर सरकारों ने वक्फ बोर्ड को दिल खोलकर अनुदान दिया है। सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नियम बनाया है कि अगर वक्फ की जमीन पर स्कूल, अस्पताल आदि बनते हैं तो इसका पूरा खर्च सरकार को देना होगा।

यह निर्णय मुख्तार अब्बास नकवी के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहते लिए गए थे। इस तरह हर सरकार ने वक्फ बोर्ड को फायदा पहुँचाकर मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश की। हालाँकि, मोदी सरकार ने वक्फ की असीमित शक्तियों को कम करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। बता दें कि देश में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 32 स्टेट बोर्ड हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सेंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है।

प्रमुख विवाद

साल 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के पूरे थिरुचेंदुरई गाँव को वक्फ संपत्ति बताते हुए उस पर अपना दावा ठोक दिया। यहाँ 1500 साल पुराना एक मंदिर है। उसे भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दी। इस तरह वक्फ बोर्ड ने 369 एकड़ भूमि पर अपना दावा ठोका है। गाँव के लोगों का कहना है कि इन जमीनों के कागजात उनके पास मौजूद हैं।

वहीं, बेंगलुरु का ईदगाह मैदान भी एक बड़ा विवाद है। सन 1950 में वक्फ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति बताते हुए अपना दावा ठोक दिया था। वक्फ का दावा है कि यह 1850 के दशक से वक्फ की संपत्ति थी, इसलिए यह अब हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति है। हालाँकि, यह विवाद अदालत में है और इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है। इसी तरह बेंगलुरु में आईटीसी विंडसर होटल पर भी वक्फ ने दावा ठोका है।

इसी तरह का मामला अप्रैल 2024 में हैदराबाद से आया था। तेलंगाना वक्फ बोर्ड ने राजधानी के एक नामी 5 स्टार होटल मैरियट को ही अपनी जागीर घोषित कर दिया था। हालाँकि, हाई कोर्ट ने उसके इस मंसूबे को धाराशायी कर दिया था। दरअसल, साल 1964 में अब्दुल गफूर नाम के एक व्यक्ति ने तब वायसराय नाम से चर्चित इस होटल पर अपना हक जताते हुए मुकदमा कर दिया था।

इसी तरह गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम की बिल्डिंग पर ही दावा ठोक दिया। अब यह वक्फ की संपत्ति है, क्योंकि इस बिल्डिंग से जुड़े किसी भी दस्तावेज को अपडेट नहीं किया गया था। वक्फ के अनुसार, मुगल काल के दौरान सूरत नगर निगम की इमारत एक होटल थी और हज यात्रा के दौरान इस्तेमाल की जाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान संपत्ति तब ब्रिटिश साम्राज्य की थी। 

इसी तरह कोलकाता के टॉलीगंज क्लब और रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब को भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बताई है। इसके अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसी संपत्तियाँ हैं, जिन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा ठोकता है और उन्हें वक्फ संपत्ति बताता है। ये सारे मामले विवाद के घेरे में हैं। अब इन संपत्तियों के राष्ट्रीयकरण की माँग होने लगी है।

चुनाव आयोग पर केस करेगी कॉन्ग्रेसी, कहा- इज्जत से बात नहीं करते: हरियाणा की हार नहीं पचा पा रही पार्टी

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस अपनी हार पचा नहीं पा रही है। उसने हरियाणा चुनाव के बाद चुनाव आयोग के साथ पत्र युद्ध चालू कर दिया है। चुनाव आयोग को कॉन्ग्रेस ने कानूनी एक्शन तक की धमकी दे डाली है। चुनाव आयोग ने हाल ही में कॉन्ग्रेस के आरोपों पर कहा था कि पार्टी बिना सबूत के हवा हवाई दावे कर रही है।

शुक्रवार (1 नवम्बर, 2024) को कॉन्ग्रेस ने चुनाव आयोग को एक पत्र लिख कर जवाब दिया है। कॉन्ग्रेस ने लिखा, “हमने हमारी शिकायतों पर आपके जवाब को पढ़ा है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि चुनाव आयोग ने खुद को क्लीन चिट दे दी है। हम आमतौर पर इस मामले को आगे नहीं बढ़ाते। हालाँकि, चुनाव आयोग के लहजे के चलते हम इसका जवाब दे रहे हैं।”

कॉन्ग्रेस ने आगे लिखा, “हम नहीं जानते कि आयोग को कौन सलाह दे रहा है या उसका मार्गदर्शन कर रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि आयोग यह भूल गया है कि वह संविधान के तहत स्थापित एक संस्था है और इसे कुछ महत्वपूर्ण काम सौंपे गए हैं।” कॉन्ग्रेस ने कहा कि चुनाव आयोग ने उन्हें जवाब देकर कोई जहमत नहीं उठाई बल्कि उनका यह कर्तव्य है।

कॉन्ग्रेस ने कहा कि वह चुनाव आयोग को जब कुछ लिखती है तो सम्मान से बात करती है जबकि चुनाव आयोग उसे इज्जत नहीं देता। कॉन्ग्रेस ने कहा कि चुनाव आयोग उसके नेताओं और पार्टी पर निजी हमले करता है। कॉन्ग्रेस ने कहा कि अगर चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता खोने का प्रयास कर रहा है, तो वह एकदम सही राह पर है।

चुनाव आयोग को कॉन्ग्रेस ने कानूनी कार्रवाई का रास्ता अख्तियार करने की धमकी भी दे दी। कॉन्ग्रेस ने कहा कि अगर चुनाव आयोग ने पार्टी के प्रति अपनी भाषा नहीं बदली तो उसके पास कानूनी रास्ता अपनाने के अलावा कोई चारा नहीं होगा।

कॉन्ग्रेस ने आरोप लगाया कि उसकी शिकायतों पर चुनाव आयोग पीएम मोदी पर कोई एक्शन नहीं लेता है। कॉन्ग्रेस ने हरियाणा चुनाव के दौरान EVM की बैटरी 99% होने वाला मुद्दा भी उठाया। कॉन्ग्रेस का कहना है कि बैटरी के मुद्दे पर चुनाव आयोग के जवाबों से संतुष्ट नहीं है। पत्र में कॉन्ग्रेस ने लिखा कि चुनाव आयोग ने खुद को क्लीन चिट दी है, जो कि संभावित था।

यह जवाब कॉन्ग्रेस ने चुनाव आयोग के जवाब पर दिया है। चुनाव आयोग ने कॉन्ग्रेस को 29 अक्टूबर, 2024 को एक पत्र भेजा था जिसमें हरियाणा चुनाव पर उठाए गए प्रश्नों का जवाब दिया गया था। चुनाव आयोग ने कॉन्ग्रेस को ऐसे आधारहीन आरोप लगाने से बचने को कहा था।

चुनाव आयोग ने अपने जवाब में कॉन्ग्रेस को लिखा था कि आयोग चुनाव प्रक्रिया करवाने के लिए कर्तव्यबद्ध है लेकिन गिनती के दिन आधारहीन दावों के सहारे उसकी छवि खराब करने का प्रयास किया जा रहा है। आयोग ने कहा था कि इससे माहौल बिगड़ने की आशंका रहती है।

गौरतलब है कि कॉन्ग्रेस ने हरियाणा चुनाव के बाद EVM की बैटरी की चार्जिंग और परिणामों को धीमे अपडेट किए जाने का मुद्दा उठाया था। हालाँकि, चुनाव आयोग ने इस पर कारण सहित जवाब दे दिया था। हालाँकि, कॉन्ग्रेस अब इस मामले को लगातार खींच रही है।

FREE के नाम पर राहुल गाँधी करते हैं झूठे वादे, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष ने ही खोली पोल: BJP ने कहा- जनता से माफी माँगें

कर्नाटक में कॉन्ग्रेस सरकार की वादाखिलाफियों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हमला बोल दिया है। दरअसल, कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कॉन्ग्रेस सरकार की योजनाओं की आलोचना करते हुए सुझाव दिया कि वादे उतने ही किए जाएँ, जितने पूरे हो सकें।

खरगे का ये बयान उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के एक बयान के बाद आया, जिसमें उन्होंने कर्नाटक की “शक्ति योजना” की समीक्षा करने का संकेत दिया था। इस योजना के तहत महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा का लाभ दिया जाता है, लेकिन कुछ महिलाओं की ओर से इसके लिए भुगतान करने की इच्छा जताने के बाद इसकी समीक्षा की बात कही गई।

खरगे के बयान को लेकर बीजेपी ने कॉन्ग्रेस पर निशाना साधा। बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कॉन्ग्रेस अध्यक्ष का बयान इस बात को साबित करता है कि कॉन्ग्रेस चुनावी वादों के जरिए जनता को मूर्ख बनाती है। प्रसाद ने खरगे के बयान को कॉन्ग्रेस की स्वीकारोक्ति बताया और कहा कि कॉन्ग्रेस ने हमेशा से ही झूठे वादों के बल पर जनता को गुमराह किया है। उन्होंने कॉन्ग्रेस के पुराने “गरीबी हटाओ” नारे का भी उल्लेख करते हुए कहा कि कॉन्ग्रेस ने 1971 में ये नारा दिया था, लेकिन गरीबी हटाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए।

बीजेपी ने कॉन्ग्रेस पर केवल कर्नाटक ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में भी झूठे वादों के आधार पर वोट लेने का आरोप लगाया। प्रसाद ने कहा कि कॉन्ग्रेस की ऐसी घोषणाओं का असलियत से कोई लेना-देना नहीं होता और ये केवल कागजों पर ही रहती हैं। बीजेपी नेता ने कहा कि कॉन्ग्रेस ने कर्नाटक की जनता को पांच गारंटी का वादा किया था, लेकिन अब “शक्ति योजना” की समीक्षा की बात कहकर एक गारंटी पर पुनर्विचार कर रही है। बीजेपी के मुताबिक, कॉन्ग्रेस को अपने वादों पर कायम रहने की सीख लेनी चाहिए और जनता के सामने माफी माँगनी चाहिए।

रविशंकर प्रसाद ने आगे कहा कि कॉन्ग्रेस को अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र और झारखंड में भी झूठे वादों से जनता को गुमराह करने से बचना चाहिए। उन्होंने बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शुरू की गई योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी पार्टी अपने वादों को पूरा करती है। प्रसाद ने लाडली लक्ष्मी योजना, किसान सम्मान निधि, गरीब कल्याण, और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं का उदाहरण दिया और कहा कि ये योजनाएं कॉन्ग्रेस के चुनावी वादों से अलग हैं जो पूरी की जाती हैं।

ये दोहरा चरित्र नहीं पुराना DNA है… जम्मू-कश्मीर के स्थापना दिवस में नहीं शामिल हुए उमर अब्दुल्ला और उनके विधायक, महबूबा ने ‘काला दिन’ बताया

जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने के 5 साल पूरे होने पर कल राज्य में 5वाँ स्थापना दिवस मनाया गया। इस मौके पर जश्न से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने दूरी बनाई और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के सदस्य भी नदारद रहे। सत्ताधारी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं की ओर से कहा गया कि वे जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश मानते ही नहीं। वहीं महबूबा मुफ्ती की पीडीपी ने इस दिन को काला दिन बताया।

क्षेत्रीय नेताओं की इस प्रकार बयानबाजी सुनने और दूरी देखने के बाद केंद्र शासित प्रदेश के एलजी मनोज सिन्हा भड़क गए। उन्होंने इस तरह आधिकारिक कार्यक्रम के बहिष्कार को एनसी और कॉन्ग्रेस नेताओं का दोहरा चरित्र बताया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने राज्य में चुनाव जीतने के बाद सबके सामने संविधान की शपथ ली है। वे ऑफिशियल इवेंट का बहिष्कार कैसे कर सकते हैं। एक तरफ वे शपथ लेकर विधायक बने, दूसरी तरफ आधिकारिक कार्यक्रम का बहिष्कार कर रहे हैं। यह इनका दोहरा चरित्र दर्शाता है।

बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश की स्थापना दिवस का विरोध करते नेशनल कॉन्फ्रेंस या पीडीपी को देखना सवाल उठाने लायक जरूर है लेकिन चौंकाने वाला बिलकुल नहीं है। आर्टिकल 370 के रहते जिन लोगों को ‘भारतीय सेना’ दुश्मन लगती थी, हिंदुस्तानी सरकार फासीवादी लगती थी, वही आज केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता पर हैं… ऐसे में उन्हें अगर जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने से दिक्कत नहीं होगी तो किसे होगी।

जम्मू-कश्मीर में स्थानीय पार्टियों की समस्या शायद यही रही है कि जम्मू-कश्मीर में बिन उनके दखल और प्रचार के पत्ता भी न मिले। अगर लालचौक तिरंगे के रंग में दिखता है। घाटी का कोई इलाका आतंकवाद मुक्त घोषित होता है, किसी क्षेत्र में शांति लौटती है तो इन्हे लगता है कि ऐसा कैसे और क्यों हो रहा है।

इनके लिए प्रदेश का अर्थ उसी 10 साल पुराने कश्मीर से है जहाँ हर मुद्दे पर सरकार का विरोध करना ही उनकी ‘आजादी’ थी और पत्थर चलाना ही उनके ‘विशेषाधिकार’ थे। ये बदलता कश्मीर इनके लिए अब भी चुनौती है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद 5 सालों ने कश्मीर का रंग-रूप बदला है। जिस कश्मीर में कभी भारत से आजादी के नारे लगते थे वहाँ खुद सीएम अब्दुल्लाह तो ‘रन फॉर यूनिटी’ जैसे कार्यक्रम आयोजित कराने पड़ रहे हैं। जिन कश्मीर में विकास एक सपने जैसा हो गया था वहाँ ढेरों प्रोजेस्ट सफलतापूर्वक पूरे हो रहे हैं।

जिस कश्मीर में आतंकी आए दिन सेना को निशाना बनाते थे और पत्थरबाज उनपर पत्थर चलाते थे वहाँ आतंकवाद को मिटाने के लिए त्वरित कार्रवाई हो रही है, युवाओं को सही रास्ते पर लाने के लिए मौके दिए जा रहे हैं…। वहाँ युवाओं को बरगलाने की तरह ‘मिशल यूथ’ के जरिए शिक्षा, कौशल विकास, वित्तीय सहायता और तकनीकी प्रशिक्षण मिल रहे हैं। रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं, चुनाव में भागीदारी बढ़ रही, राजनैतिक रूप से लोग जागरूक हो रहे हैं, मजहबी कट्टरपंथ की जगह आर्थिक विकास को चुन रहे हैं, सामुदायिक सहयोग देकर समाज में परिवर्तन लाने का कारण बन रहे हैं।

इस तरह के बदलते कश्मीर में उन लोगों को तो समस्या होनी जाहिर ही है जिनके पास अनुभव 10 साल पुराने कश्मीर को देखने का है। इसलिए सवाल ये नहीं है कि इन्होंने स्थापना दिवस का बहिष्कार क्यों किया। सवाल ये है कि जब संवैधानिक रूप से जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में होने में नेशनल कॉन्फ्रेंस, कॉन्ग्रेस और पीडीपी को इतनी समस्या है तो फिर इन्होंने उस केंद्रशासित प्रदेश के विधायकों और मुख्यमंत्री पद के तौर पर शपथ क्यों ली।

जिस संविधान से उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने हैं उसी संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गया है। फिर इस मामले पर सरकारी कार्यक्रम का विरोध कितना उचित है? क्या ये रवैये ये नहीं दर्शाते कि जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियाँ की सोच अब भी नहीं बदली है? उन्हें मजबूरन भारतीय संविधान का सम्मान करना पड़ रहा है।

राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कार्यक्रम में खुद कहा है कि सब चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले और जब वो मिलेगा तब भी इसी तरह का जश्न होगा। मगर क्या, उमर अब्दुल्ला या उनकी पार्टी को उस वक्त तक प्रदेश में हुए विकास के नाम पर सरकारी कार्यक्रमों में शामिल नहीं होना चाहिए… ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर में आतंकी दोबारा से गैर कश्मीरियों में भय भरने का काम कर रहे हैं, कभी सेना को निशाना बनाया जा रहा है तो कभी मजदूरों को परेशान कर रहे हैं तब सरकार बेरुखी दिखाना क्या उन तत्वों को मजबूती नहीं देंगे जो इस फिराक में है कि किस तरह केंद्र शासित प्रदेश की शांति को भंग किया जाए।

अब्बा ने ही अपनी 10 साल की बेटी को मार डाला: रीढ़ की हड्डी में थे 10 फ्रैक्चर, दोनों कंधे, दोनों हाथ की हड्डियाँ टूटी हुईं… जलाता था गर्म लोहे से

ब्रिटेन में 10 साल की सारा शरीफ की हत्या का मामला जैसे-जैसे अदालत में खुलता जा रहा है, उसके साथ ही दिल दहलाने वाली सच्चाई भी सामने आ रही है। सारा की हत्या का दोष उसके अपने अब्बू उरफान शरीफ और उसकी सौतेली अम्मी बेनाश बटूल पर लगा है। घटना के बाद यह दोनों अपने एक रिश्तेदार के साथ पाकिस्तान भाग गए। घर पर पुलिस को सारा शरीफ का शव मिला और उसके शरीर पर चोटों के 71 निशान पाए गए। यह साफ हो गया कि सारा को कई दिनों तक बेरहमी से प्रताड़ित किया गया था।

हत्या के बाद भागा पाकिस्तान

डेलीमेल की रिपोर्ट के मुताबिक, सारा का शव 10 अगस्त 2023 को वोकिंग स्थित उसके घर में पाया गया। शव मिलने से कुछ ही घंटे पहले उरफान शरीफ, उसकी दूसरी बीवी बटूल और भाई फैसल मलिक सीसीटीवी फुटेज में हीथ्रो एयरपोर्ट पर देखे गए थे। वहाँ से ये तीनों लोग पाकिस्तान के लिए फ्लाइट पकड़ते हुए दिखाई दिए।

ब्रिटेन के अधिकारियों का कहना है कि सारा के अब्बू ने हत्या के बाद पाकिस्तान भागने की योजना पहले से ही बना रखी थी। पाकिस्तान पहुँचने के बाद उरफान ने पुलिस को फोन करके खुद ही अपनी बेटी की हत्या की बात कबूल की। उसने फोन पर कहा, “मैंने उसे सज़ा दी, जो बहुत ज्यादा हो गई और वह मर गई।”

अदालत में सामने आई दरिंदगी

अदालत में पेश सबूतों से पता चला कि उरफान ने सारा के साथ बेहद क्रूर व्यवहार किया था। सारा के शव पर जो निशान मिले, उनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह किस हद तक अत्याचार सहन कर रही थी। सारा शरीफ के शरीर पर कई भयानक चोटें पाई गईं। उसकी रीढ़ की हड्डी में दस फ्रैक्चर थे।

इसके अलावा, उसके दाहिने कॉलर बोन, दोनों कंधों, दोनों बाजुओं, दोनों हाथों की हड्डियाँ और कलाई के पास की हड्डियाँ भी टूटी हुई थीं। उसके तीन अलग-अलग उंगलियों, दो पसलियों और गले की हड्डी में भी फ्रैक्चर थे। कहा जा रहा है कि उरफान ने सारा को गर्म लोहे से जलाया था और बार-बार उसकी पिटाई की थी।

गुस्से की वजह से बेटी की जिंदगी को नरक बनाया

सारा की सौतेली अम्मी बटूल ने अदालत को दिए अपने बयान में कहा कि उरफान का गुस्सा बहुत भयानक था और उसकी वजह से सारा की जिंदगी नर्क बन गई थी। बटूल ने कहा कि उरफान बहुत छोटी-छोटी बातों पर बेकाबू हो जाता था। एक बार जब गलती से गरम चाय गिर गई, तो उसने घर में चीजों को तोड़फोड़ कर दिया। उसने कई तस्वीरों के फ्रेम और पर्दे फाड़ दिए। बटूल ने कहा कि उरफान के गुस्से के ये हमले सारा को सहन करने पड़ते थे और वह बार-बार उससे पिटती थी। बटूल के अनुसार, कई बार सारा के शरीर पर इतने काले-नीले निशान पड़ जाते थे कि वह ठीक से चल भी नहीं पाती थी।

बच्ची को पूरी रात उठक-बैठक करवाता था उरफान

उरफान की दरिंदगी यहीं खत्म नहीं होती थी। उसने कई बार सारा को पूरी रात उठक-बैठक करने की सज़ा दी थी। यह सिर्फ छोटी-छोटी गलतियों पर दी जाने वाली सज़ा थी। एक बार सारा ने गलती से घर की चाबियाँ छुपा दी थीं, जिस पर गुस्साए उरफान ने उसे पूरी रात बिना सोए उठक-बैठक करने के लिए मजबूर किया था। बटूल ने कहा कि उरफान का गुस्सा इतना खतरनाक था कि कई बार वह सारा का हाथ या पैर तोड़ने पर आमादा हो जाता था।

हत्या के बाद उरफान ने अपने हाथ से एक नोट लिखा, जिसमें उसने कहा कि उसने अपनी बेटी को मारा लेकिन उसका इरादा उसे मारने का नहीं था। नोट में उसने लिखा कि वह डर की वजह से भाग रहा है। यह नोट पुलिस को सारा के शव के पास ही मिला। उरफान ने यह नोट इस उम्मीद में छोड़ा था कि शायद पुलिस इस बात को उसकी गलती मानकर माफ कर देगी।

ब्रिटेन के कानून अधिकारियों ने पाकिस्तान से उरफान शरीफ, बटूल और फैसल को प्रत्यर्पित करने की माँग की है ताकि उन्हें यहाँ सज़ा दी जा सके। सारा शरीफ की हत्या ने समाज को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कैसे एक बाप अपनी ही बेटी के साथ इतनी बेरहमी कर सकता है। यह मामला सिर्फ ब्रिटेन ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान और दुनियाभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब अदालत इस पर फैसला सुनाएगी कि सारा को इंसाफ मिलेगा या नहीं।

उद्धव के सांसद ने शिवसेना नेत्री को बताया ‘इम्पोर्टेड माल’, जवाब में शाइना एनसी बोलीं- महिला हूँ, माल नहीं: पुलिस को दी शिकायत

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सांसद अरविन्द सावंत ने शिवसेना की नेत्री शाइना एनसी पर विवादित बयान दिया है। उन्होंने एक चुनाव अभियान के दौरान शाइना एनसी को ‘इम्पोर्टेड माल’ करार दिया। इसके बाद शाइना एनसी ने उनको करारा जवाब दिया है, उन्होंने इस संबंध में पुलिस में शिकायत भी दी है।

अरविन्द सावंत ने मुंबई में शाइना एनसी को लेकर कहा, “उनकी हालत देखों ना भैया, जिन्दगी भर वो भाजपा में रहीं, अब कहीं नहीं मिला तो दूसरी पार्टी में गईं। इम्पोर्टेड माल नहीं चलता है यहाँ, हमारे यहाँ ओरिजिनल माल चलता है। ओरिजिनल माल है हमारा।”

अरविन्द सावंत ने बयान शाइना एनसी को मुंबई कि मुंबादेवी सीट से विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाए जाने के बाद की। उन्हें शिवसेना (शिंदे) से टिकट दिया गया है। वह यहाँ महायुति की संयुक्त उम्मीदवार हैं, उनके सामने कॉन्ग्रेस के अमीन पटेल हैं जो अभी इस सीट से विधायक हैं।

शाइना एनसी ने इस अरिवन्द सावंत द्वारा ‘इम्पोर्टेड माल’ करार दिए जाने पर करारा जवाब दिया है। उन्होंने कहा, “ये महिलाओं का ऑब्जेक्टिफिकेशन उनकी मानसिकता उजागर करता है। उनके साथ कॉन्ग्रेस MLA मौजूद थे और हंस रहे थे। मैं उनको बताना चाहती हूँ हम उन पर कानूनी कार्रवाई करेंगे।”

शाइना एनसी ने एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “महिला हूँ, माल नहीं।” शाइना एनसी ने अरविन्द सावंत के बयान पर मुंबई के नागपाडा थाने में शिकायत दर्ज करवाई है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र चुनाव में महा विकास अघाड़ी का बुरा हाल होने वाला है।

शिवसेना कार्यर्क्ताओं ने अरविन्द सावंत के इस बयान पर नागपाड़ा थाने के बहर प्रदर्शन भी किया है। शिवसेना की महिला कार्यकर्ताओं ने अरविन्द सावंत से माफ़ी माँगने को कहा है। अरविन्द सावंत ने अपने बयान पर सफाई दी है। उन्होंने कहा कि उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया है और शाइना एनसी बाहरी हैं।

हेमंत सोरेन: 5 वर्षों में जिनकी उम्र बढ़ गई 7 साल, प्लॉट 2 से हो गए 23… BJP के आरोपों से झारखंड चुनाव में गरमाया माहौल

झारखंड विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की उम्र और संपत्ति को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। 2019 के चुनावी हलफनामे में हेमंत सोरेन ने अपनी उम्र 42 साल बताई थी, लेकिन इस बार 2024 में दाखिल हलफनामे में उन्होंने अपनी उम्र 49 साल बताई है। यह देखकर राजनीतिक हलकों में बवाल मच गया है कि पाँच साल में उनकी उम्र सात साल कैसे बढ़ गई। इस मुद्दे पर विपक्षी पार्टी बीजेपी ने सोरेन की उम्मीदवारी रद्द करने की माँग की है।

बीजेपी ने न केवल हेमंत सोरेन की उम्र पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उनके संपत्ति के ब्योरे पर भी सवाल खड़े किए हैं। बीजेपी नेता शहजाद पूनावाला ने JMM पर निशाना साधते हुए कहा कि जेएमएम पार्टी में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं, और हेमंत सोरेन ने हलफनामे में भी गड़बड़ी की है।

हेमंत सोरेन के दो हलफनामे (फोटो साभार: इंडिया टीवी)

बीजेपी प्रवक्ता शाहजाद पूनावाला ने कहा कि मुख्यमंत्री ने अपने हलफनामे में संपत्ति की जानकारी छिपाई है। 2019 में जहाँ उन्होंने सिर्फ दो भूखंडों का जिक्र किया था, वहीं इस बार 23 भूखंडों का जिक्र किया है। यह भूखंड 2006 से 2008 के बीच खरीदे गए थे, लेकिन पिछले हलफनामे में उनका कोई उल्लेख नहीं था। बीजेपी ने इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग को उनकी उम्मीदवारी रद्द करनी चाहिए। शहजाद ने कहा, “जेएएम का मतलब ‘झोल, मुस्लिम अपीजमेंट और माफिया’ है।”

इस मुद्दे पर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि वह हार के डर से यह विवाद खड़ा कर रही है। JMM प्रवक्ता मनोज पांडेय का कहना है कि सभी दस्तावेज चुनाव आयोग के पास हैं, और रिटर्निंग ऑफिसर ने हेमंत सोरेन का नामांकन स्वीकार कर लिया है। उनका कहना है कि बीजेपी हार की बौखलाहट में जनता का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के आरोप लगा रही है।

इस बार बरहेट सीट से बीजेपी ने गमालिएल हेम्ब्रोम को अपना उम्मीदवार बनाया है। हेम्ब्रोम का कहना है कि बरहेट के लोगों को अभी भी बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, पानी और बिजली की कमी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि वह इन मुद्दों को हल करने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। हेम्ब्रोम ने 2019 में आजसू पार्टी के टिकट पर बरहेट से चुनाव लड़ा था और अब वह बीजेपी के टिकट पर सीएम के खिलाफ मैदान में हैं।

गौरतलब है कि झारखंड में कुल 81 विधानसभा सीटों के लिए 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में मतदान होगा। पहले चरण में 13 नवंबर को 43 सीटों पर मतदान होगा, जिसमें 743 उम्मीदवार मैदान में हैं। दूसरे चरण में 20 नवंबर को शेष 38 सीटों पर वोटिंग होगी। उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जाँच पूरी हो चुकी है और 1 नवंबर तक उम्मीदवार अपने नामांकन वापस ले सकते हैं। मतगणना 23 नवंबर को होगी।