Tuesday, November 19, 2024
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गौ तस्करों ने गौशाला पर किया हमला, महंत की पिटाई के बाद 3 गाय लेकर हुए फ़रार

राजस्थान के भरतपुर में मंगलवार (18 जून) को मवेशी तस्करों ने कथित रूप से एक गौशाला (गाय-आश्रय) पर हमला किया, महंत की पिटाई की और तीन गायों को लेकर भाग गए। पुलिस ने आरोपितों को पकड़ने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। हालाँकि, स्थानीय निवासियों को लगता है कि पुलिस की लापरवाही के कारण पशु तस्करों के हौसले दिन-प्रतिदिन बुलंद होते जा रहे हैं।

एसएचओ विनोद सावरिया के अनुसार, “गौशाला के कार्यवाहक कन्हैया लाल, जिन्हें बाबाजी के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने शिक़ायत दर्ज की थी कि कुछ पशु तस्करों ने उन पर हमला किया और गायों को लेकर भाग गए।”

एसपी (एएसपी) देग महेश मीणा ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से कहा, “संदिग्धों की पहचान नहीं हो पाई है। कार्यवाहक ने कहा कि आरोपित एक वाहन में आया था, लेकिन वह उस वाहन का नंबर नहीं याद रख सके। कार्यवाहक ने आरोप लगाया कि जब वो उनसे भिड़ गया तो अभियुक्तों ने उनकी पिटाई कर दी। हमारी टीमें इस मामले को देख रही हैं और हमने राजस्थान गोजातीय पशु अधिनियम के तहत FIR दर्ज कर ली है।”

मेवात क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में कैटल स्मगलिंग हमेशा से ही एक बड़ी समस्या रही है। यह संगठित अपराध, मवेशी तस्करी, अवैध रोहिंग्या बस्ती और हिंसात्मक गतिविधियों का अड्डा है।

पिछले साल भी यूपी के औरैया में कुछ घटनाएँ हुई थीं, जहाँ साधुओं ने इलाक़े में गोहत्या को रोकने के लिए काम किया था, उनके आवासों में घुसकर क्रूरतापूर्वक उनकी हत्या कर दी गई थी।

इससे पहले की एक घटना में, अलवर ज़िले के तिजारा क्षेत्र में, जो मेवात के अंतर्गत आता है, पुलिस ने अरंडका गाँव में निषाद नाम के एक व्यक्ति के घर पर छापा मारा था और गायों का माँस और खाल बरामद की थी। पुलिस ने पास के खेत में 4-5 संदिग्धों को हिरासत में लिया था। जब पुलिस वहाँ गई तो उन्हें पास के खेत में मौजूद कुएँ से लगभग 20-22 किलोग्राम गोमाँस पड़ा मिला था और 5-6 गायों की खाल मिली। गुरुवार (20 जून) को भी, पुलिस ने 18 भैंसों को बचाने में क़ामयाबी हासिल की थी और दो दोषियों को गिरफ़्तार भी किया था।

बिहार: BJP सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में बच्चों के बेहतर इलाज के लिए देंगे ₹25-25 लाख की मदद

बिहार में चमकी बुखार का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है और मौत का आँकड़ा भी थमने का नाम नहीं ले रहा। शुक्रवार (जून 21, 2019) सुबह तक पूरे राज्य में इस बीमारी की वजह से मरने वालों की संख्या 142 हो गई है, जबकि सिर्फ मुजफ्फरपुर में मरने वालों का आँकड़ा 122 है। चमकी बुखार के कारण बिहार में हाहाकार मचा हुआ है और अस्पतालों में बच्चों के भर्ती होने की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण राज्य की नीतीश सरकार हर किसी के निशाने पर है।

इस बीच बिहार बीजेपी के 17 सांसदों ने राज्य के बच्चों के बेहतर इलाज के लिए ₹25-25 लाख रुपए देने का ऐलान किया है। इसकी घोषणा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और बिहार भाजपा प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय ने शुक्रवार को की। इन पैसों से बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए बिहार के प्रत्येक सांसद के लोकसभा क्षेत्र में पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआईसीयू) बनाए जाने की योजना है। जानकारी के मुताबिक, उत्तर बिहार के सभी सांसद इस पहल के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री और बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष नित्यानन्द राय ने इसकी शुरुआत भी कर दी है।

खबर के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से सभी सांसदों को दिए गए रात्रिभोज के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा की गई और सभी सांसदों ने बच्चों के बेहतर इलाज के लिए ₹25-25 लाख रुपए देने का फैसला किया। एक तरफ जहाँ पर ये बुखार मासूम बच्चों पर कहर बरपा रहा है, तो वहीं इस पर राजनीति भी तेज हो गई है।

नेहरूघाटी सभ्यता में पला BBC मोदी विरोध में बीमा और इलाज का अंतर भूला

बिहार में पिछले 20 दिनों में दिमागी बुखार के कारण 350 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें अब तक करीब 120 बच्चों की मौत हो चुकी है। मेडिकल की शब्दावली में इसी दिमागी बुखार का नाम है- एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) जिसे सामान्य भाषा में ‘चमकी बुखार‘ कहा जा रहा है।

यह इंसेफलाइटिस एक भीषण महामारी बनाकर सामने आया है और यह एकदम वाजिब बात है कि देशभर में शायद हर व्यक्ति इस महामारी के आतंक से भयातीत है। लेकिन, हर किसी का भय मानवीय संवेदना से उपजा हो यह आवश्यक नहीं है। कम से कम नेहरुघाटी सभ्यता के मीडिया गिरोह तो इस बुखार से बिलकुल भी चिंतित नजर नहीं आते हैं।

इसका उदाहरण हम BBC जैसे मीडिया गिरोहों की आजकल की गतिविधियों से देख सकते हैं। एक ओर जब सभी लोग इंसेफलाइटिस सिंड्रोम, यानी चमकी बुखार से प्रभावित बच्चों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, ऐसे समय में BBC अपने अन्नदाताओं की स्वामिभक्ति में मशगूल है और उनके दिशानिर्देशों पर ही आगे बढ़ रहा है।

यह कोई हवा में कही गई बात नहीं बल्कि BBC की ही पत्रकारिता का एक नमूना खुद इस तथ्य को साबित कर रहा है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद द्वारा त्यागी गई विष्ठा BBC को अब नेहरूवियन उपनिवेशवाद का कर्ज चुकाना है इसलिए राष्ट्रवादी सरकार के समय में वह पीड़ित, उपेक्षित और शोषित महसूस करने लगा है।

BBC की आज की सनसनाती हुई हेडलाइन का कहना है – “मुज़फ्फ़रपुर बुखार: मोदी के आयुष्मान भारत से क्यों नहीं बच रही बच्चों की जान”

इस पूरे लेख में BBC ने यह साबित करने का प्रयास किया है कि किस प्रकार से मुज़फ्फरपुर में बुखार से हो रही बच्चों की मृत्यु लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना है। देश के वंचित वर्ग के लोगों को लाभ पहुँचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य’ योजना (आयुष्मान भारत योजना यानी ABY) की घोषणा की थी, जिसे गत वर्ष पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती पर 25 सितंबर से देशभर में लागू कर दिया गया था।

यह एक प्रकार की बीमा योजना है जो खासतौर से गरीब और वंचित वर्ग के लोगों को ध्यान में रखकर जारी की गई थी। सरकार का मकसद ABY के माध्यम से गरीब, उपेक्षित परिवार और शहरी गरीब लोगों के परिवारों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराना है। और यह बड़े स्तर पर लोगों को लाभ देने में सक्षम रही है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि यही बात BBC के लेख के आखिरी के पैराग्राफ में भी कही गई है। लेकिन जब BBC नामक संस्थान का पहला मकसद प्रोपगैंडा से लेकर झूठी ख़बरों द्वारा जनता के दिमाग को ब्रेनवॉश करना हो तब किसी भी प्रकार के तथ्य को बेहद सुविधाजनक तरीके से पेश करने में BBC जैसे मीडिया गिरोहों को महारत हासिल है। अपने झूठे नैरेटिव को जमीन देने के लिए BBC जैसे सूचना के स्थापित स्तम्भों के पास ऐसे मक्कार और धूर्त लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो महज देश विरोधी और सरकार विरोधी प्रपंच स्थापित करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं।

यदि देश में किसी भी प्रकार का कोई षड्यंत्र, प्रपंच, अराजकता और उन्माद फैलाना हो तो इस काम के लिए BBC जैसे मीडिया गिरोह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं। हालाँकि यह कहना निंदनीय है, लेकिन इसी देश का अन्न खाकर यहीं के खिलाफ प्रपंच रचने के लिए अगर बाहरी लोग किसी गन्दी चीज में भी रुपए फेंक दें, तो यही षड्यंत्रकारी, दुराग्रही, कपटी और लगभग प्रगतिशील लोग उसे मुँह से उठाने के लिए तैयार बैठे रहते हैं।

BBC को इस तथ्य के साथ बेहद सावधानी से खिलवाड़ करते हुए देखा गया है कि आयुष्मान भारत योजना का लक्ष्य वही लोग हैं, जो कि मुज़फ्फरपुर में दिमागी बुखार के लिए इलाज पा रहे हैं। चमकी बुखार जैसी किसी महामारी को कोई सरकार खुद बुलावा नहीं देती है और ना ही ऐसे हादसों से खुश होती है। लेकिन जो भी प्रयास ऐसे समय में किए जा सकते हैं, राज्य और केंद्र सरकारें कर रही हैं।

लेकिन इस सबसे हटकर, BBC को पहले यह तथ्य समझ लेना आवश्यक है कि बीमा योजना का उद्देश्य डॉक्टरों की भर्ती या फिर समाज में स्वच्छता कार्यक्रम चलना नहीं होता है। ना ही लोगों के घर घर जाकर किसी बीमा योजना के अंतर्गत आप सफाई और संक्रमण से बचने वाले रसायन छिड़क सकते हैं। यह संभव भी नहीं हैं, ना PM मोदी के लिए यह संभव है और ना ही नेहरू के लिए यह सम्भव हो पाता कि स्वच्छता मिशन चलाने के बाद हर आदमी के घर में सुबह शौचालयों की निगरानी करें और वहाँ पानी डालें। सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूकता के लिए अलग से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

हम इस सच्चाई को भी नहीं नकार सकते हैं कि भारत एक सीमित संसाधनों वाला देश है और इसे अपनी सीमाओं के भीतर ही हर प्रकार की त्रासदी से निपटना होता है। हम स्वीडन जैसे आर्थिक रूप से सशक्त देश नहीं हैं जहाँ पर नागरिकों को स्वास्थ्य सुरक्षा और रेगुलर हेल्थ चेकअप के मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। हमारे संसाधन इतने सीमित हैं कि कुल बजट का 2.5% हिस्सा स्वास्थ्य के लिए झोंकना अभी हमारा लक्ष्य ही है और वर्तमान सरकार इस लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रही है। लेकिन हमारा देश का अभी भी एक बड़ा वर्ग कुपोषित है और यही कुपोषण चमकी बुखार जैसी बिमारियों का पहला कारण है, ना की आयुष्मान भारत योजना।

सरकार जो कर सकती है वो कर रही है। पीड़ितों को स्वास्थ्य से लेकर आर्थिक मदद दे रही है। आज ही बिहार बीजेपी ने घोषणा की है कि उनका हर सांसद चमकी पीड़ितों को 25 लाख रुपए की मदद देगा। हम देख चुके हैं कि इस बीच BBC ही नहीं बल्कि अजीत अंजुम से लेकर अंजना ओम कश्यप जैसे पत्रकारों ने इस बाजी मारने के खेल में एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दी है। इन सभी मीडिया गिरोहों ने सिर्फ हल्ला करने और छपास के उद्देश्य से अपनी मौजूदगी दर्ज करने का पूरा प्रयास किया है। जाहिर सी बात है, हल्ला करने से भी दिमागी बुखार द्वारा गई जानें वापस नहीं आ सकती हैं। यह भी जरूरी है कि जनता प्रश्न करे। प्रश्न करने और सुरक्षा के लिए ही शासन और प्रशासन होते हैं। लेकिन कम से कम BBC जैसे मीडिया का लक्ष्य तो इस सबके बीच न्याय माँगना नहीं लगता है।

100 से ज्यादा बच्चों की जान चली जाना हर किसी के लिए एक भयावह घटना है, लेकिन ऐसे समय में तमाम घटनाक्रम को नजरअंदाज कर के एक ऐसी योजना पर जिम्मेदारी थोपना, जो कि उस सरकार द्वारा जारी की गई हो जिससे आप निरंतर दुखी रहने का प्रयत्न करते हैं, BBC की पत्रकारिता नहीं बल्कि पत्थरकारिता का ही सबूत है।

मूल विषय से भटककर आयुष्मान भारत योजना, जो कि मूल रूप से एक बीमा योजना है का पीछा करना तो यही सन्देश देता है कि BBC इस योजना में जवाहरलाल नेहरू या फिर राजीव गाँधी का नाम तलाशना चाहती है, शायद तभी वो अपने लेख में कोई तार्किक चर्चा चमकी बुखार को लेकर कर पाते, या फिर इस बारे में सोचते। लेकिन BBC का मर्म यही है कि यह जवाहरलाल नेहरू नहीं बल्कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर शुरू की गई एक बीमा योजना है। अगर यह ‘जवाहर आयुष्मान भारत’ योजना होती तो या फिर ‘राजीव गाँधी आयुष्मान योजना’ होती तो BBC अपने लेख और हेडलाइन में सम्बन्ध बैठा पाने में सक्षम होता।

अफवाह फ़ैलाने से ज्यादा हमें इस बुखार पर प्रकाशित शोध पढ़ने की आवश्यकता है

यह जानना आवश्यक है कि अभी तक अधिकतर बच्चों की मौतें हाइपोग्लाइसीमिया या लो ब्लड शुगर के कारण हुई हैं। डॉक्टर मौतों का कारण बताते हुए कहते हैं कि बिहार में दिमागी बुखार के 98% मरीज हाइपोग्लाइसीमिया से पीड़ित हैं। वर्ष 2014 में एक रिसर्च पेपर ‘एपिडेमियोलॉजी ऑफ एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम इन इंडिया: चेंजिंग पैराडाइम एंड इम्प्लिकेशन फॉर कंट्रोल’ में बिहार के मुजफ्फरपुर और वियतनाम के बाक गियाँग प्रांत के मामलों में समानता पाई गई थी।

दोनों ही जगहों पर पड़ोस में ही लीची के बाग थे। हमें TRP की रेस में भागते एंकर्स से प्रभावित होना छोड़कर इन शोध को पढ़ना चाहिए। यह शोध हमें विज्ञान से परिचित करवाकर जागरूक बनाते हैं और बीमारी का कारण जानने में मदद करते हैं ताकि हम किसी बीमा योजना को बीमारी का कारण न समझ बैठें।

इस अध्ययन में कहा गया था कि इस बीमारी का लीची या पर्यावरण में मौजूद किसी जहर के साथ संभावित संबंध को दर्ज किया जाना चाहिए। पशुओं पर किए गए परीक्षण में हाइपोग्लाइसीमिया होने का कारण लीची में मौजूद मेथिलीन साइक्लोप्रोपिल ग्लिसिन को पाया गया था। इस रिसर्च के अनुसार – “यह बहुत ही सामान्य है कि बच्चे जमीन पर गिरी हुई लीचियों को खाते होंगे और फिर बिना खाना खाए सो जाते होंगे। इसके बाद रात के समय लीची में मौजूद विषाक्त पदार्थ उनका ब्लड शुगर लेवल कम कर देता है और ये बच्चे सुबह के समय बेहोश हो जाते हैं।

इसमें बताया गया है कि जहाँ दिमागी बुखार के कारण पर अभी भी शोध किया जा रहा है तो वहीं हाइपोग्लाइसीमिक दिमागी बुखार कारण कुपोषण, गर्मी, बारिश की कमी और अंतड़ियों से संबंधित संक्रमण हो सकते हैं।

मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार का पहला मामला 1995 में सामने आया था। वहीं, पूर्वी यूपी में भी ऐसे मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। इस बीमारी के फैलने का कोई खास पैमाना तो नहीं है लेकिन अत्यधिक गर्मी और बारिश की कमी के कारण अक्सर ऐसे मामले में बढ़ोतरी देखी गई है।

प्रभावित एरिया में कुपोषण बहुत ही अधिक है और कुपोषित बच्चे जल्दी संक्रमित होते हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश भर में होने वाली बच्चों की कुल मौतों में से 35% उत्तर प्रदेश और बिहार में होती हैं। ये सभी आँकड़े हैं। आँकड़े मृतकों के साथ न्याय नहीं करते हैं लेकिन हमें भविष्य के लिए सावधान होने की राय जरूर देते हैं।

संयम और जागरूकता समाज के हर तबके के लिए आवश्यक है। खासतौर से तब, जब हम सूचना का एक साधन हों। संवाद की गुंजाईश के बीच BBC जैसे झूठे नैरेटिव और प्रोपेगैंडा विकसित करने वाले लोग तर्क को खोखला करते आए हैं और अब बेनकाब होने पर बौखला भी रहे हैं। फिलहाल पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखिए और उम्मीद करिए कि जल्दी ही समाज इस दुःस्वप्न से उबरने में कामयाब होगा। BBC से यदि ना हो पाए तो कम से कम दिखावा तो करे कि उसकी मुख्य चिंता बीमा योजना नहीं बल्कि नीतियों का ठीक से अनुसरण ना किया जाना है वरना मौन भी तो अभिव्यक्ति है।

भाटपारा में 2 लोगों की मौत के बाद उत्तर 24 परगना ज़िले में इंटरनेट सेवाएँ बंद

पश्चिम बंगाल सरकार ने भाटपारा में दो समूहों के बीच झड़प के बाद उत्तर 24 परगना ज़िले में एहतियात के तौर पर इंटरनेट सेवाओं को शुक्रवार (21 जून) मध्यरात्रि तक बंद कर दिया है।

गुरुवार (20 जून) को तृणमूल और भाजपा समर्थकों के बीच हुई झड़प में दो लोगों की मौत और तीन के घायल होने की ख़बर सामने आई थी। पुलिस अधिकारियों ने कहा, “मृतक की पहचान रामबाबू शॉ और धर्मेंद्र शॉ के रूप में की गई, जबकि घटना में घायल लोगों का विवरण अभी तक पता नहीं चल सका है।”

पश्चिम बंगाल में आए दिन होने वाली इन हिंसक झड़पों से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जिस कार्यशैली का प्रदर्शन होता है उसमें राज्य की बिगड़ती क़ानून-व्यवस्था की तस्वीर साफ़ दिखाई पड़ती है। 10 जनवरी को, मोहम्मद सईद की मौत के बाद कोलकाता के NRS मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टर्स और इन्टर्नस पर हमला करने के लिए ट्रकों में 200 लोगों की भीड़ पहुँची थी। इसके बाद पूरे राज्य में चिकित्सा संस्थानों पर व्यापक विरोध प्रदर्शन और हमलों का दौर शुरू हो गया था।

अभी हाल ही में, एक पूर्व मिस इंडिया यूनिवर्स पर उनके घर पर एक इस्लामी भीड़ ने हमला किया था। इन सभी मामलों में, पुलिस मूकदर्शक बनी रही। इस मामले में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अपराधियों के ख़िलाफ़ कठोर कार्रवाई करने की माँग की गई थी, क्योंकि यह एक आम धारणा है कि यदि अपराध करने वाले समुदाय विशेष से होते हैं तो उन्हें बच निकलने का मौक़ा दिया जाता है।

इस सब के बीच, राज्य में राजनीतिक हिंसा बेरोकटोक जारी है और भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों की हत्याएँ लगातार चिंता का विषय बनी हुई हैं। यहाँ तक ​​कि महिलाओं को भी नहीं बख़्शा जा रहा है। हर दिन हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

मासूमों की मौत के बीच गायब हैं तेजस्वी, ढूँढकर लाने वाले को ₹5100 का ईनाम

बिहार की प्रमुख राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद अचानक से गायब हो गए हैं। इस बारे में सबसे आश्चर्य की बात ये सामने आ रही है कि राजद नेताओं को भी पता नहीं है कि वो कहाँ हैं? राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने बुधवार (जून 19, 2019) को मीडिया से बात करते हुए कहा, “मुझे स्पष्ट रूप से नहीं पता कि तेजस्वी यादव कहाँ हैं। शायद वह वर्ल्ड कप देखने के लिए गए हैं, लेकिन मुझे इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है।” तो वहीं राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा का कहना है कि तेजस्वी दिल्ली में ही हैं।

अब बिहार में तेजस्वी यादव को ढूँढ़ने की मुहिम शुरू की गई है। इसके लिए बिहार के मुजफ्फरपुर में तेजस्वी यादव का एक पोस्टर लगाया गया है जिस पर तेजस्‍वी यादव को ढूंढकर लाने वाले को ₹5100 का इनाम दिए जाने की घोषणा की गई है। ये पोस्टर तमन्ना हाशमी नाम के सामाजिक कार्यकर्ता की तरफ से लगाए गए हैं।

दरअसल, मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से लगातार बच्चों की मौत हो रही है और ऐसे में नेता प्रतिपक्ष का मृतक बच्चों के परिजनों से मिलकर सांत्वना देने और पीड़ितों का हाल ना पूछना और इस तरह से गायब हो जाना उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है। तेजस्वी ने पीड़ितों को सांत्वना देने के लिए एक ट्वीट तक नहीं किया है। ऐसे में विपक्ष को आम जनता की आवाज़ बनने की ज़रूरत थी, मगर उनकी आवाज़ को बुलंद कर सरकार तक पहुँचाने की बजाए ऐसे संवेदनशील मामले पर चुप्पी साध लेना, नेता प्रतिपक्ष का इस तरह अज्ञातवास पर चले जाना, विपक्ष की संवेदनहीनता को दर्शाता है।

बिहार में चमकी बुखार से मरने वाले बच्चों का आँकड़ा बढ़ने के बीच तेजस्वी की गैर-मौजूदगी से कई राजनीतिक चर्चाओं की शुरुआत हो गई है। एक ओर जहाँ प्रदेश में जदयू-भाजपा की सरकार लगातार आलोचना का शिकार हो रही है, वहीं तेजस्वी की गैर-मौजूदगी को भी आरजेडी के इस मामले के उदासीन होने के रूप में देखा जा रहा है।

सावरकर पर ‘नायक या खलनायक’ कार्यक्रम चलाना ABP माझा के लिए पड़ा महँगा

एबीपी समूह के स्वामित्व और नियंत्रण वाले मराठी क्षेत्रीय चैनल एबीपी माझा द्वारा वीर सावरकर की जयंती पर एक विवादस्पद शीर्षक, ‘सावरकर-एक नायक एक खलनायक?’ से एक विशेष कार्यक्रम (बहस) किया गया था। इस कार्यक्रम के शीर्षक पर वहाँ मौजूद पैनलिस्ट ने कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। ख़बर है कि एबीपी चैनल ने कार्यक्रम के विवादास्पद शीर्षक के लिए सार्वजनिक भावनाओं को आहत करने के लिए माफ़ी माँगी है।

एबीपी माझा ने एक स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा, “स्वातंत्र्यवीर वीर सावरकर की जयंती पर, ‘सावरकर-एक नायक या एक खलनायक’ शीर्षक से एक बहस का कार्यक्रम- एबीपी माझा पर प्रसारित किया गया था। इस शीर्षक से लोगों की भावनाओं को आहत करने या वीर सावरकर का अनादर करने का माझा (चैनल) का कोई इरादा नहीं था। वास्तव में, माझा ने 2 शो टेलीकास्ट किए थे कि वीर सावरकर का जीवन कितना प्रेरणादायक था। यदि बहस और शीर्षक ने दर्शकों की भावनाओं को आहत किया है, तो हमें इसके लिए खेद है और हम इसके लिए माफ़ी माँगते हैं।”

ख़बर के अनुसार, 28 मई 2019 को वीर सावरकर की जयंती के मौके पर कुछ हफ़्ते पहले, एबीपी माझा ने ‘सावरकर-एक नायक या एक खलनायक?’ शीर्षक से एक बहस शुरू की थी- जिसे लोगों ने वीर सावरकर के अपमान के रूप में लिया और अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज की क्योंकि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनका बहुत बड़ा योगदान था।

ABP के एक ग्राहक, कॉटन किंग, जो लंबे समय से एबीपी माझा पर विज्ञापन देते रहे हैं, उन्होंने चैनल से अपने सभी विज्ञापन वापस ले लिए और चैनल के विवादित कार्यक्रम के कारण चैनल का आर्थिक बहिष्कार शुरू कर दिया।

ब्रिटिश उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लड़ने व अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में सेलुलर जेल में क़ैद की सजा भुगतने वाले वीर सावरकर को अक्सर अपमानित किया जाता रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि वो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रबल सेनानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। वीर सावरकर विश्वभर के क्रांतिकारियों में अद्वितीय थे। उनका नाम ही भारतीयों के लिए उनका संदेश था। वे एक ऐसे महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, समाज सुधारक, विचारक, चिंतक और साहित्यकार थे। उनकी पुस्तकें क्रांतिकारियों के लिए गीता के समान थीं। उनका जीवन बहुआयामी था।

BBC की Fake News: संजीव भट्ट ‘whistle blower’ और कारसेवकों की मौत एक हादसा

गुजरात की घटना के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लिबरल गिरोह और मीडिया गिरोह के गले की फाँस बने हुए हैं, और खासकर बीबीसी जैसे विदेशी मीडिया ने पूरे देश में न केवल प्रधानमंत्री बल्कि हिंदू समुदाय की छवि को धूमिल करने की पुरजोर कोशिश की। अपनी इन्हीं कोशिशों के मद्देनजर बीबीसी ने पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को मिले आजीवन कारावास के बचाव में तमाम झूठी और ऐसी खबरें पेश की, जो अपने आप में ही बेहद उलझीं हुई थीं। साथ ही संजीव भट्ट पर रिपोर्टिंग करते हुए बीबीसी ने कारसेवकों को जिंदा जला देने की बात पर भी लगातार झूठ बोला।

बीबीसी ने अपने लेख की शुरूआत में ही पाठकों को बरगलाना शुरू कर दिया। क्योंकि जिस मामले में संजीव भट्ट को दोषी करार दिया गया है उसका प्रधानमंत्री मोदी से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन फिर आर्टिकल में उनका नाम जबरदस्ती लिखा गया। 30 अक्टूबर 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद बुलाए बंद के बाद संजीव भट्ट ने जमजोधपुर शहर में करीब 150 लोगों को सांप्रदायिक दंगों के इल्जाम में गिरफ्तार किया था। इनमें एक प्रभुदास वैष्णवी नाम का भी व्यक्ति था, जिसकी हिरासत से छूटने के बाद मौत हो गई थी। प्रभु के भाई ने पुलिस में संजीव भट्ट समेत 6 पुलिस ऑफिसरों पर एक एफआईआर दर्ज करवाई थी। इस एफआईआर में शिकायत की गई थी कि संजीव भट्ट समेत 6 पुलिस कर्मियों ने शिकायतकर्ता के भाई को हिरासत में लेकर इतना मारा कि उसकी मौत हो गई।

बीबीसी के लेख का स्क्रीनशॉट

उल्लेखनीय है 1990 में नरेंद्र मोदी पार्टी को आगे लाने में प्रयासरत थे और 2001 में वो गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। अब ऐसे में बीबीसी या कोई अन्य मीडिया संस्थान बिना किसी सबूत के संजीव भट्ट के मामले में प्रधानमंत्री का नाम कैसे जोड़ रहे हैं ये अपने आप में एक रहस्य है।

बीबीसी ने अपने लेख में संजीव भट्ट को मामले को उजागर करने वाला यानी ‘whistle blower’ बताया जो कि बिलुकल गलत है। शायद बीबीसी को याद नहीं है या जानबूझकर अनजान बन रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संजीव भट्ट ने अपने ड्राइवर पर अपने ऐसा हलफनामा दायर करने के लिए दबाव बनाया था ताकि वो यह गवाही दे कि 27 फरवरी 2002 को भट्ट मोदी की एक मीटिंग में उपस्थित थे जहाँ मोदी ने (भट्ट के अनुसार) कहा था कि हिंदुओं को मुस्लिमों के प्रति अपना गुस्सा निकालने देना चाहिए। जबकि रिकॉर्ड्स के मुताबिक कांस्टेबल के डी पंथ (भट्ट के ड्राइवर) 25 फरवरी 2002 से लेकर 28 फरवरी 2002 गुजरात में ही नहीं थे।

भट्ट के कहने पर ड्राइवर ने पहले इस बारे में बयान दिया था लेकिन बाद में इससे इंकार कर दिया। इतना ही नहीं भट्ट ने इस बात पर भी दबाव बनाया था कि उसके ड्राइवर से SIT जाँच में पूछताछ उसकी देखरेख में हो। साथ ही भट्ट चाहता था कि पंथ ऐसी गवाही दे कि वो खुद भट्ट को मुख्यमंत्री मोदी के घर तक लेकर गया, जिसके लिए वो उसे गुजरात कॉन्ग्रेस अध्यक्ष और लीगल सेल के अध्यक्ष के घर भी लेकर गया।

इसके बाद भट्ट और एक पत्रकार के बीच में ईमेल के जरिए कुछ बातचीत हुई, जिसमें भट्ट ने यह दर्शाने की कोशिश की कि वह पत्रकार 27 फरवरी को हुई मीटिंग के दौरान भट्ट से मिला। इसके बाद भट्ट ने यह ईमेल टीवी चैनल के एक सदस्य को भेज दिया, ताकि वो हलफनामा दायर कर पाए कि वो उस दिन पत्रकार के साथ था। भट्ट की इन कोशिशों पर सुप्रीम कोर्ट ने संजीव भट्ट को कहा था कि उस रात हुए ईवेंट्स को दोबारा रिक्रिएट करने की कोशिश कर रहे हैं।

जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि संजीव भट्ट और हरेन पांड्या उस मीटिंग में मौजूद ही नहीं थे। उनकी सेल फोन लोकेशन ने इस बात को साबित किया कि वो भट्ट के सभी बयान झूठे हैं। खासकर ये कि वो प्रधानमंत्री मोदी के घर मीटिंग में गया था और प्रधानमंत्री ने हिंदुओं और मुस्लिमों को लेकर ऐसी टिप्पणी की है जिसका उपर उल्लेख है।

इन सभी आधारों पर किसी को भी हैरानी होगी कि बिना तथ्यों को जाने परखे, बीबीसी संजीव भट्ट के लिए ‘WHISTLEBLOWER’ शब्द का प्रयोग कैसे कर सकता है। बीबीसी का झूठ यही पर नहीं रुका।

बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया कि ट्रेन में लगी आग का कारण अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है, हिंदू समुदाय का कहना है कि ट्रेन में आग इस्लामी भीड़ ने लगाई है जबकि हाल ही में आई जाँच में खुलासा हुआ कि ये एक एक्सीडेंट था।

गोधरा कांड मामले पर बीबीसी ने अपने अनेक झूठ को दो छोटे वाक्यों में समेट दिया। 2011 में बीबीसी ने खुद रिपोर्ट की थी कि इस्लामी भीड़ ने साबरमती एक्सप्रेस पर हमला किया था, जिसमें 31 लोग दोषी पाए गए थे। इन सभी 31 लोगों को कारसेवकों को जिंदा जलाने के आरोप में अपराधी पाया गया था। खास बात ये थी कि ये सभी समुदाय विशेष से थे।

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इनमें से कुछ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई तो कुछ को सजा-ए-मौत मिली। इस दौरान कोर्ट ने माना था कि ये एक पूर्व तैयारी के साथ अंजाम दी गई घटना है क्योंकि इसमें पेट्रोल भी एक दिन पहले ही खरीदा गया था।

न्यायाधीश जी टी नानावटी और न्यायाधीस अक्षय एच मेहता के नानावटी आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में यही कहा कि कारसेवकों को जिंदा जलाना कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि इस्लामी भीड़ का किया काम है।

यह लेख www.opindia.com पर प्रकाशित नूपुर शर्मा के लेख पर आधारित है। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

संसद में कुछ बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं, योग उनका बचपना दूर करेगा: राम माधव

कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी गुरुवार (जून 20, 2019) को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के दौरान मोबाइल फोन पर बिजी नज़र आए। जिसको लेकर राहुल गाँधी से सोशल मीडिया पर भी सवाल किया गया कि वह अपना दायित्व भूलकर फोन में क्यों लगे हुए हैं? अब इस मामले में भाजपा महासचिव राम माधव ने राहुल गाँधी पर तंज कसा है। उन्होंने शुक्रवार (जून 21, 2019) को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर केरल के तिरुवनंतपुरम में भाजपा की ओर से आयोजित किए गए कार्यक्रम को संबोधित करने के दौरान राहुल को निशाने पर लेते हुए कहा कि संसद में कुछ बच्चे मौजूद हैं, योग उनका बचपना दूर करने में उनकी मदद करेगा।

योग दिवस कार्यक्रम में स्कूली बच्चों के बीच राम माधव ने कहा, “कई बार कक्षा में शिक्षक जो पढ़ा रहे होते हैं, उस पर फोकस करना कठिन होता है। परीक्षा के दौरान किताबों पर फोकस करना भी कठिन होता है। हमें नींद आने लगती है और हम सो जाते हैं। पर चिंता करने की कोई बात नहीं! स्कूली बच्चों की तरह संसद में भी कुछ बच्चे हैं। वो हमारे राष्ट्रपति के भाषण पर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। उन्हें अपना मोबाइल देखना होता है, मैसेज चेक करना होता है, या फिर वीडियो गेम खेलना होता है। अस्थिर दिमाग का यह अजीब स्वभाव है। ऐसे में इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है, जिसके लिए योग को अपनाना चाहिए। योग बचकानी हरकत दूर करने में योग उनकी मदद करेगा।”

इसके साथ ही भाजपा महासचिव ने सबरीमला मुद्दे पर भी बात की। उन्होंने कहा कि कुछ लोग सोचते हैं कि इस देश में हर परंपरा को या तो खत्म कर दिया जाना चाहिए या फिर उससे नफरत किया जाना चाहिए। चाहे वह सबरीमला वाला मामला हो या फिर योग का। वो लोग इससे नफरत करते हैं, क्योंकि ये भारतीय परंपरा है।

राम माधव ने कहा कि जो लोग इसे नष्ट करना चाहते हैं, उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि ये परंपरा, ये संस्कृति, ये वो मूल्य प्रणाली है जो अंततः दुनिया को बचाने और शांति, समृद्धि और विकास के रास्ते पर ले जाने वाली है। ऐसे लोगों को भी योग सिखाने की ज़रूरत है।

मौत तो केवल आँकड़ा है: क्या एक बुरी घटना के कारण सारे अच्छे कार्यों को रोक दिया जाए?

हाँ, मैं संवेदनहीन हो गया हूँ। मेरे देश में मौतें होती रहती हैं और जान महज एक संख्या बन कर रह गई है- चाहे वो किसी ग़रीब की हो, बच्चे की हो या फिर बलिदानी जवानों की हो। मैं संवेदनहीन हो गया हूँ क्योंकि हर दिन, हर पल, हर घण्टे और हर मिनट कोई न कोई मर रहा है। मेरे देश की बुनियाद ही मौत पर रखी गई थी। मेरा देश जब बँटा था, तभी 20 लाख लोग मारे गए थे। जब मेरे देश के राष्ट्रपिता की हत्या हुई थी, तब भी 10 हज़ार ब्राह्मणों को मार डाला गया था। मेरे देश में मौत महज एक आँकड़ा है, गणित है, अंक है।

मेरे देश में बच्चे जन्म लेते मारे जाते हैं। कई तो पैदा होने से पहले भी मार दिए जाते हैं। अरे, 10 लाख शिशु तो अकेले 2017 में मर गए थे। पानी, स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवा और अच्छा पोषण नहीं मिला था। ख़ैर, मुझे इसका बहुत दुःख हुआ। लेकिन हाँ, मेरा दुःख तभी गायब हो गया जब मुझे पता चला कि 2 लाख लड़कियाँ हर साल तो पैदा होने से पहले पेट में ही मार दी जाती हैं। मेरे देश में माँ-बाप ही ऐसे हैं तो सरकार की क्या तारीफ़ करूँ। मेरा देश महान है।

अब आप बताइए, मेरे देश में ये सब नॉर्मल है या नहीं? संवेदनाएँ क्यों जताएँ? कहाँ से लाऊँ मैं इतनी संवेदनाएँ? नहीं हैं, आती ही नहीं हैं। जनसंख्या ज्यादा है न। इतनी ज्यादा है कि 50 हज़ार माँए तो प्रत्येक वर्ष अपने बच्चे को जन्म देकर ही मर जाती हैं। बच्चे रह जाते हैं, जिनमें से बहुतेरे अनेक कारणों से बाद में मर जाते होंगे। मैं चैंपियंस ट्रॉफी देखता हूँ, आईपीएल देखता हूँ, वर्ल्ड कप देखता हूँ और कभी-कभी तो हॉकी-फुटबॉल वगैरह में भी रुचि दिखाते हुए भारत को चीयर करता हूँ।

हमारे यहाँ तो एक आंदोलन भी पैदा होता है तो कुछेक हज़ार को यूँ ही निगल जाता है। 35 हज़ार तो इस्लामिक आतंकियों ने स्वर्ग भेज दिए। बाकी जो कुछेक थे, उनमें से 15,000 से अधिक नागरिकों को तो नक्सलियों ने ही निपटा दिया। मेरे देश में पेट भरने वाला भी मरता है। मरता नहीं है, ख़ुद को मारता है। पिछले 25 वर्षों में 3 लाख किसानों ने आत्महत्या की। मौसम की मार, कम पैदावार, पानी की कमी, सरकार की अनदेखी- तमाम कारण है, क्या-क्या गिनाएँ? हाँ, मौतें गिनी जाती हैं हमारे यहाँ, कारण नहीं।

जब सरकारी डेटा ही कहता है कि पिछले 12 वर्षों में 40 लाख मौतें ऐसी थी, जो टाली जा सकती थीं। लेकिन यमराज की ग़लती, ले गए। 40 लाख अप्राकृतिक मौतें। क्या किया जाए? बारिश आती है तो मर जाते हैं, गर्मी बढ़ती है तो मरते हैं, शीतलहर से भी मरते हैं। जिनके आँकड़े अब सौ में गिनाउँगा तो शायद आपको अच्छे न लगें, इसीलिए मैनें ज्यादा खँगाला ही नहीं। अरे हाँ, हमारे यहाँ तो राजनीतिक पार्टियाँ भी मारती हैं। ना ना, बंगाल और केरल के आँकड़े कम हैं, चुभेंगे। 1984 में 20 हज़ार सिखों को काट डाला गया था।

इस्लामिक आतंक की पैरवी करने वाले भी बैठे हैं, नक्सलियों के भी हित चाहने वाले बैठे हुए हैं, ऐसे में स्वास्थ्य और स्वच्छता सेवाओं की हालत जर्जर होने से मरने वालों का पूछना ही क्या? स्वच्छता अभियान के दुश्मन बैठे हैं, आयुष्मान भारत के दुश्मन बैठे हैं, उज्ज्वला योजना के दुश्मन बैठे हैं और योग दिवस के दुश्मन तो आपको अभी दिखेंगे। क्या किया जा सकता है? जहाँ इतने लोग सिर्फ़ एक कारण से मर जाते हों, जितनी यूरोप के कई देशों की जनसंख्या है, तो कैसे होगा विकास?

मैंने देखा है मातृत्व मृत्यु दर में अभूतपूर्व कमी होते, मैंने देखा है शिशु मृत्यु दर को लगातार घटते, मैंने देखा है नक्सलियों-आतंकियों के कारण होती मौतों को घटते, मैंने देखा है आतंकियों और नक्सलियों का सफ़ाया होते। जिसके कारण यह सब देखने को मिल रहा है, उसका मनोबल कैसे तोड़ दूँ? किसी के घर में भी मृत्यु होती है तो रिश्तेदार 3 दिन बाद हाहा-हीही करते मिलते हैं, मैं अप्राकृतिक मौत की बात कर रहा हूँ। वो तो प्रधानमंत्री है, वो नहीं रुक सकता, एक पल भी नहीं, सब कुछ सामान्य रहेगा पहले की ही तरह।

मैंने देखा है उज्ज्वला के आने के बाद से फेफड़े व श्वास रोगों में कमी आते, देखा है छोटे बच्चों (चूल्हे की वजह से जिनकी श्वास नाली काली पड़ जाती थी) को लाभ होते। प्रधानमंत्री सब जानता होगा। शायद उसे मुजफ्फरपुर वाली घटना भी पता होगी, अगर ग़लती हुई है तो उसे एहसास भी होगा, लेकिन हाँ, फिर भी जो सारी अन्य प्रक्रियाएँ हैं, क्रियाकलाप हैं- सब सामान्य तरीके से पूर्ववत चलते रहेंगे। संसद भी चलेगी। सब अच्छे नहीं हैं, एक पर सब टिका है, कब तक टिका रहेगा यह समय बताएगा।

जनता को क्या करना चाहिए? शायद हमें अब सिर्फ़ और सिर्फ़ समाधान की चर्चा करनी चाहिए, कहीं उसके कानों तक पहुँचे। चीजें अस्पताल और संसद भवन से नहीं, किसी गाँव के गंदे मुसहरटोली से शुरू होनी चाहिए यह सरकार को बताना पड़ेगा। गोरखपुर व आसपास के 14 ज़िलों में जो इसी पार्टी की सरकार ने सिर्फ़ 1 साल में कर दिखाया है, बिहार में भी उसे कर दिखाना होगा। मेरे देश को ऐसा बनना पड़ेगा, जहाँ एक भी मौत पर पूरा भारत उस दिन के लिए बन्द रहे। उसके लिए स्वच्छता और स्वास्थ्य पर नीचे, बहुत नीचे, काफ़ी नीचे से काम करना होगा।

सरकार को दिक्कतें आती हैं। जब तक राज्य, जिला या फिर स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन कोई कार्ययोजना नहीं बनाएगा, तब तक केंद्र फंडिंग किस चीज के लिए करेगा? जहाँ तक मैंने देखा है, केंद्र ने रुपयों को लेकर अनदेखी नहीं की है। हाँ, ज़िम्मेदारियाँ नहीं निभाई गई हैं- स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा, प्रशासन द्वारा। अब केंद्र सरकार को मॉनिटरिंग की व्यवस्था करनी पड़ेगी, दिन दर दिन, हफ्ता दर हफ्ता। शायद तब कहीं बात बने। जहाँ कुछ भी नहीं है, सब कुछ जीरो है- वहाँ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का पीएम आकर भी कुछ नहीं कर सकता, वह लाचार है। उससे नहीं होगा। उससे कुछ नहीं होगा।

लेकिन अगर उसने जीवन स्तर बेहतर बनाने का वादा किया है तो वह कर के दिखा देगा, जैसा कि उसने कई क्षेत्रों में किया है। मैं अपने लिए कुछ नहीं माँगता, मेरे देश में ये जो मौतें सामान्य हो गई हैं, जो कारक इसके पीछे काम कर रहे हैं, उसे ठीक कर दो। तुम नहीं ठीक करोगे तो कोई ऐसा आकर बैठ जाएगा, जिससे लोग कुछ माँग ही नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें पहले से पता होगा कि कोई फायदा नहीं है जैसे 2014 के पहले 10 साल तक हुआ था।

योग ज़रूरी है, स्वच्छता ज़रूरी है- पीएम ने झाड़ू पकड़ा तो यह जनांदोलन बन गया। पीएम ने योगाभ्यास किया तो यह गलियों से लेकर संयुक्त राष्ट्र तक पहुँच गया। जैसे वित्त मंत्रालय में 30 के करीब सुस्त अधिकारियों को भगा दिया गया है, ऐसा ही आमूलचूल परिवर्तन स्वास्थ्य मंत्रालय में भी कर दो। काम कहाँ अटक रहा है, देखना पड़ेगा। कुछ ऐसा ही उठा लो हाथ में, जिससे स्वास्थ्य सेवाएँ भी जन आंदोलन बन कर घर-घर पहुँच जाए। हो सकता है, हुआ है, तुमने किया है, ये भी कर दो। क्योंकि मुझे पता है कोई और नहीं कर सकता।

नेताओं को तो जनता ने चुना है लेकिन परफॉरमेंस के आधार पर जयशंकर, हरदीप पुरी और अजीत डोभाल जैसे लोगों को आगे बढ़ा कर काम कराने वाला व्यक्ति यह भी कर देगा। अब देखना है, इस बजट में सुशील मोदी क्या कार्ययोजना बना कर जाते हैं और किस चीज के लिए फंडिंग बढ़ाने की बात करते हैं। जो भी हो, सुशील मोदी कुछ चूक करे या नीतीश कुमार, गाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही पड़नी है, पड़ती रही हैं, भले ही लोगों को यह तक न पता हो कि ये एकमात्र पीएम है जो अधिकारियों के साथ बैठक पर बैठक कर के 100 दिन का एजेंडा तय करवा रहा है।

चीजें अब मध्यम वर्ग से नीचे, ग़रीब, अत्यंत ग़रीब और धनहीनों तक पहुँचनी चाहिए। काम में रफ्तार चाहिए। कुछ मंत्री अच्छे हैं तो वहाँ काम सही से हो रहा और कुछ अगर औसत भी हैं तो काम ख़राब हो रहा। लेकिन सही कहते हैं लोग, जब वोट मोदी के नाम पर दिया है तो खोजेंगे भी मोदी को ही। धैर्य का बाँध टूटना नहीं चाहिए, क्योंकि कुछ आदमखोर और रक्तपिपासु दीमक इसी इंतजार में बैठे हैं। उन्हें रोकना पड़ेगा। इसके लिए मौतें रोकनी पड़ेंगी। भले ही यह दशकों से सामान्य हो, इस माहौल को बदलने के लिए वैसी परिस्थितियाँ पैदा करनी होंगी।

अब फिर कुछ फोटो शेयर होंगे कि बच्चे मर रहे हैं और पीएम हाथ-पैर हिला कर राँची में योग कर रहा है, लेकिन डिगने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि देश साथ खड़ा है एक भरोसा लिए, एक उत्साह लिए, एक ऊर्जा लिए- उसका समुचित उपयोग करना है और उस ऊर्जा को बचाए रखना है। अगर कहीं ग़लत हुआ है तो उसके लिए जो सही है, उससे पीछे हटने की ज़रूरत नहीं है। अगर वर्ल्ड कप को 15 मिलियन लोग देख रहे हैं तो प्रधानमंत्री उस बारे में कुछ ट्वीट करे, यह सामान्य है। पीड़ाएँ महसूस कर-कर के और करा-करा कर एक ही बात पता चली है- साम, दाम, भय, भेद कुछ भी अपनाओ पर समाधान करो।

ये दीमक काम पर लग गए हैं। इन मौतों को तमाम सरकारी योजनाओं से लेकर राम मंदिर और धारा 370 तक से जोड़ा जाएगा लेकिन कहीं से एक भी कदम पीछे खींचने की ज़रूरत है ही नहीं। सब अनवरत चलता रहे लेकिन जो भी इन मौतों के ज़िम्मेदार हैं, उनका भविष्य भी उसी अनुरूप ढाला जाए। हमने देखा है कि कैसे देश के कृषि मंत्री से मजदूरों की जान न बचाने की कीमत मंत्रिमंडल से हटा कर उससे बेहतर को शामिल कर चुकाई गई, शायद भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों। हमें अगले साल इस मौसम से 3 महीने पहले जागना पड़ेगा- रिमाइंडर सेट कर लीजिए- अभी के अभी।

मध्यावधि चुनाव होंगे इसमें कोई शक नहीं, उन्होंने 5 साल समर्थन देने को कहा था लेकिन उनका रवैया देखिये: देवगौड़ा

कर्नाटक में सियासी संकट गहरा गया है। जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने शुक्रवार (21 जून) को जो बयान दिया उससे यह संकेत मिलता है कि राज्य में कभी भी मध्यावधि चुनाव हो सकते हैं। फ़िलहाल, राज्य में कॉन्ग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार है।

पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा के इस बयान से यह संकेत स्पष्ट नज़र आता है कि कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार में सब कुछ ठीक नहीं है। दोनों दलों के बीच खटास उभरकर सामने आ रही है। ख़बर के अनुसार, कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने केंद्रीय नेतृत्व से कहा है कि कॉन्ग्रेस को इस गठबंधन का लाभ न होकर नुक़सान हुआ है। इस बात को ध्यान में रखते हुए जल्द से जल्द पार्टी नेतृत्व को निर्णय लेना चाहिए।

इससे पहले, कर्नाटक में कॉन्ग्रेस विधायकों के बीजेपी में शामिल होने की अटकलें भी लगती रही हैं। कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के बयान के बाद एचडी देवगौड़ा की यह प्रतिक्रिया बेहद अहम मानी जा रही है। देवगौड़ा ने कहा, “कुछ लोग जेडीएस के साथ कॉन्ग्रेस का गठबंधन नहीं चाहते। गठबंधन सरकार चलानी है अथवा नहीं, इसका फ़ैसला जनता को कर लेने दें।”

ऐसा पहली बार नहीं है कि जब गठबंधन सरकार में खींचतान की ख़बरें सामने आई हों, इससे पहले भी मुख्यमंत्री कुमारस्वामी कई बार गठबंधन सरकार चलाने का दर्द बयाँ कर चुके हैं। हाल ही में उन्होंने बयान दिया था कि वो रोज जिस ‘दर्द’ से गुज़रते हैं, वो उसे जनता से बयाँ नहीं कर सकते। एक रैली को संबेधित करते हुए उन्होंने कहा था, “मैं आपको बता नहीं सकता खुल के कि मैं किन समस्याओं का सामना कर रहा हूँ। मैं मुख्यमंत्री हूँ लेकिन मैं हर दिन जो दर्द सहता हूँ वह बाँट नहीं सकता। अगर मैं करूँगा (दर्द साझा) तो मुझ पर यह सवाल उठेगा कि मैं लोगों की समस्याएँ कैसे सुलझा रहा हूँ। एक ओर मुझे सरकार के शांतिपूर्वक चलते रहने का ध्यान रखना पड़ता है, दूसरी ओर नौकरशाहों को यह यकीन दिलाना पड़ता है कि यह सरकार सुरक्षित है। यह सब ज़िम्मेदारियाँ हैं मुझ पर।”

कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी इससे पहले भी कई बार अपना दुःख प्रकट कर चुके हैं। लोकसभा निर्वाचन के समय प्रचार करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे की कथित ‘वैक्सिंग’ पर नाराज़गी जताई थी, और कहा था कि मोदी को मीडिया अधिक इसीलिए दिखाता है क्योंकि उनके चेहरे पर वैक्सिंग की चमक है, जबकि कुमारस्वामी (और अन्य ‘आम’ नेता) एक बार सुबह नहा कर निकलते हैं तो फिर अगले दिन सुबह ही नहाते हैं। इसीलिए उनका चेहरा टीवी पर अच्छा नहीं लगता और मीडिया उन्हें दिखाना पसंद नहीं करता। इसके अलावा अपने गठबंधन साथी कॉन्ग्रेस के ‘दुर्व्यवहार’ से नाराज़ होकर वह इस्तीफे की भी धमकी दे चुके हैं,कॉन्ग्रेस पर खुद को ‘क्लर्क’ बना देने का भी आरोप उन्होंने लगाया था