Monday, November 18, 2024
Home Blog Page 5206

12 वर्ष की बच्ची के साथ दर्जनों ने 1 साल तक किया Rape, अब्दुल व तवरेज की पुलिस को तलाश

एक 12 वर्षीय बच्ची के साथ ऐसी दरिंदगी की गई कि वह राँची स्थित राजेंद्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (RIMS) में लगभग 8 दिनों तक बेहोश रही। ‘हिंदुस्तान’ की ख़बर के अनुसार, मुंबई में दर्जन भर लोगों ने एक साल तक बच्ची का बलात्कार किया। पीड़ित बच्ची के बयान पर शमा परवीन, तबरेज आलम और अब्दुल रहमान के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई है। शमा महिला हैं। बरियातू पुलिस ने अधिक जानकारी देते हुए बताया कि पीड़िता कोडरमा की रहने वाली है। डेढ़ साल पहले उसकी मौसी शमा परवीन उसे लेकर मुंबई गई। उसकी मौसी उसे पढ़ाने व अच्छी शिक्षा-दीक्षा दिलाने के बहाने मुंबई ले गई। लेकिन मुंबई ले जाने के बाद बच्ची से नौकरानी की तरह काम कराया जाने लगा।

वहाँ बच्ची से घर का कामकाज कराया जाता और अगर वो विरोध करती तो उसके साथ मारपीट की जाती। हर रात बच्ची को नशे की दवा जबरन खिलाई जाती थी और उसके साथ बलात्कार किया जाता था। जब बच्ची सुबह उठती तो उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं होता था। बच्ची ने अपनी मौसी को कई बार इस बात से अवगत कराया लेकिन उसकी मौसी उसे डाँट-डपट कर चुप करा देती थी। फ़रवरी में जब एक रात बच्ची को होश आया तो उसने देखा कि अब्दुल रहमान उसके साथ रेप कर रहा है।

जब बच्ची ने इस बात की जानकारी अपने मौसी को दी तो मौसी ने उसे खूब मारा-पीटा। बच्ची के शरीर को कई जगहों से जला दिया गया, उसे प्रताड़ित किया गया। पुलिस व डॉक्टरों को भी बच्ची के शरीर पर कई जगह जले के निशान मिले हैं। अप्रैल में जब बच्ची की तबियत बहुत ज्यादा ख़राब हो गई, तब उसकी मौसी उसे लेकर कोडरमा पहुँची। जब बच्ची की माँ ने तबियत ख़राब होने का कारण पूछा तो मौसी ने बहाने बना दिए और कहा कि इलाज के लिए वह रुपए देगी। इसके बाद मौसी बिना रुपए दिए मुंबई लौट गई और बच्ची को कोडरमा छोड़ दिया।

बच्ची का इलाज कोडरमा में क़रीब 1 महीने तक चला लेकिन उसके साथ इतनी ज्यादतियाँ हुई थीं कि उसकी तबियत में तनिक भी सुधार नहीं हुआ। इसके बाद उसे राँची स्थित रिम्स में भर्ती करा दिया गया। पुलिस पिछले 8 दिनों से पीड़िता का बयान लेना चाह रही थी लेकिन उसकी स्थिति को देखते हुए यह संभव नहीं हो पा रहा था। बच्ची अभी भी बहुत ज्यादा डरी हुई है। वह किसी को भी देख कर ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लग रही है। महिला पुलिसकर्मियों द्वारा कोशिश करने के बाद बच्ची ने अपना बयान दर्ज कराया।

बरियातू पुलिस ने कहा कि मामले की प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए पुलिस की एक टीम को मुंबई भेजा जाएगा। बच्ची के परिजनों का बयान लेने के बाद पुलिस ने रिम्स प्रशासन से उसके इलाज के सम्बन्ध में भी बात की। रिम्स ने आश्वासन दिया है कि पीड़ित बच्ची का इलाज मुफ़्त में किया जाएगा और परिजनों से एक भी रुपया नहीं लिया जाएगा।

4 HoD व 3 Dean का इस्तीफा: TMC समर्थित छात्रों ने दलित प्रोफेसरों की जाति को लेकर कहे थे अपशब्द

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित रवींद्र भारती विश्वविद्यालय में बवाल खड़ा हो गया है। सोमवार को यूनिवर्सिटी के 4 विभागाध्यक्षों (HODs) और 3 डीन (Deans) ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद राज्य के शिक्षा मंत्री को वहाँ पहुँच कर स्थिति का जायजा लेना पड़ा। ये सामूहिक इस्तीफा 4 प्रोफेसरों को उनकी जाति को लेकर किए गए अपशब्दों के कारण दिया गया है। ये चारों अनुसूचित जाति से आते हैं। बताया जा रहा है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस के छात्र संघ समर्थित छात्रों ने इन प्रोफेसरों के साथ जातिसूचक अपमानजनक अपशब्द कहे थे।

हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मंत्री पार्थ चटर्जी ने यूनिवर्सिटी के कुलपति सब्यसाची बासु रे चौधरी और अन्य प्रोफेसरों एवं छात्रों के साथ बैठक कर उनकी बातें सुनी और मामले की जाँच का आदेश दिया। तृणमूल समर्थित छात्रों के इस व्यवहार के कारण पूरे कैंपस में विरोध-प्रदर्शन हुए और उनके ख़िलाफ़ नारे लगे। कहा जा रहा है कि कुछ छात्र बार-बार क्लास बंक कर रहे थे, जिस कारण प्रोफेसरों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था। इसके बाद छात्रों व प्रोफेसरों में तीखी बहस हुई थी।

चटर्जी ने कहा कि दोषियों को नहीं छोड़ा जाएगा। पिछले महीने दलित समुदाय से आने वाली भूगोल की प्रोफेसर सरस्वती केरकेटा ने आरोप लगाया था कि छात्रों व कर्मचारियों के एक वर्ग ने उनकी जातीय पृष्ठभूमि को लेकर अपशब्द कहे थे और क्लास में जानबूझ कर उन्हें बैठने के लिए कुर्सी नहीं दी थी। ऑर्थपेडिक समस्या से जूझ रही सरस्वती ने कहा कि इस बारे में लोगों को पता होने के बावजूद उन लोगों ने उन्हें बैठने नहीं दिया। इसके बाद कुछ अन्य प्रोफेसरों ने इसी तरह के आरोप लगाए कि उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार समय-समय पर किया गया है।

सोमवार को मामला तब प्रकाश में आया जब बंगाली, संस्कृत, अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान- इन चारों विभागों के प्रोफेसरों (HOD) ने अपने पद से सामूहिक इस्तीफा दे दिया। इनके अलावा स्कूल ऑफ लैंग्वेज एंड कल्चर, डिपार्टमेंट ऑफ़ विसुअल आर्ट और बी आर आंबेडकर स्टडी सेंटर के प्रोफेसरों ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। इस मामले पर बैठक करने के बाद पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा:

“मैंने इन प्रोफेसरों से निवेदन किया कि वे इस्तीफा न दें। मैंने उनसे कहा कि टैगोर के नाम पर स्थापित विश्विद्यालय में हमें इस तरह की घटनाओं को नहीं होने देना चाहिए। शिक्षक और छात्र के बीच के रिश्ते की हर क़ीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। मैंने शिक्षकों एवं छात्रों से भी कहा कि उन्हें सभी क्लासेज में उपस्थिति दर्ज करानी ही चाहिए। जाँच समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट सबमिट करेगी और उसे सार्वजनिक किया जाएगा। मैंने छात्रों से यह भी कहा कि अपमानित किए गए प्रोफेसरों से माफ़ी माँगें।”

प्रोफेसर सरस्वती केरकेटा ने तो यूनिवर्सिटी आना ही बंद कर दिया है। जब शिक्षा मंत्री ने उन्हें कॉल किया, तो उनका फोन ऑफ पाया गया। चटर्जी ने कहा कि अगर उनका फोन लग जाता तो वह उनकी बात सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कराते। तृणमूल शिक्षक संघ की सदस्य जोईता रॉय ने कहा कि उन्हें भी नहीं छोड़ा गया और जातिगत टिप्पणी करते हुए प्रताड़ित किया गया। शिक्षक संघ के सचिव ने बताया कि यह सब काफ़ी दिनों से चल रहा है और शिकायत करने के बाद ऐसी घटनाएँ बढ़ ही जाती हैं।

जय भीम जय मीम की कहानी 72 साल पुरानी… धोखा, विश्वासघात और पश्चाताप के सिवा कुछ भी नहीं

बांग्ला में योगेन्द्र को अक्सर जोगेंद्र कहा जाता है। बंगाल के दलित नेता थे जोगेंद्र नाथ मंडल। आपने उनका नाम नहीं सुना होगा। आम तौर पर दल हित चिन्तक उनका नाम लेने से कतराते नजर आएँगे। आजकल जो जय भीम के साथ जय मीम जोड़ने की कवायद चल रही है, ये नाम उसकी नींव ही खोद डालता है। इसलिए इनके बारे में जानने के लिए आपको खुद ही पढ़ना पड़ेगा।

उनका जन्म ब्रिटिश बंगाल में 29 जनवरी 1904 को हुआ था। पाकिस्तान के जन्मदाताओं में से वो एक थे। सन 1940 में कलकत्ता म्युनिसिपल कॉरपोरेशन में चुने जाने के बाद से ही मुस्लिम समुदाय की उन्होंने खूब मदद की। उन्होंने बंगाल की ए.के. फज़लुल हक़ और ख्वाजा नज़ीमुद्दीन (1943-45) की सरकारों की खूब मदद की और 1946-47 के दौरान मुस्लिम लीग में भी उनका योगदान खूब था। इस वजह से जब कायदे आज़म जिन्ना को अंतरिम सरकार के लिए पाँच मंत्रियों का नाम देना था तो एक नाम उनका भी रहा।

जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री थे। जोगेंद्र नाथ मंडल के इस पद को स्वीकारने से कॉन्ग्रेस के उस निर्णय की बराबरी हो जाती थी, जिसमें कॉन्ग्रेस ने अपनी तरफ से मौलाना अबुल कलाम आजाद को मनोनीत किया था।

आप सोचेंगे कि जोगेंद्र नाथ मंडल ने ऐसा क्या किया था कि जिन्ना ने उन्हें चुना? 3 जून 1947 की घोषणा के बाद असम के सयलहेट जिले को मतदान से ये तय करना था कि वो पाकिस्तान का हिस्सा बनेगा या भारत का। उस इलाके में हिन्दुओं और मुस्लिमों की जनसंख्या लगभग बराबर थी। चुनाव में नतीजे बराबरी के आने की संभावना थी। जिन्ना ने मंडल को वहाँ भेजा। दलितों का मत, मंडल ने पाकिस्तान के समर्थन में झुका दिया। मतों की गिनती हुई तो सयलहेट पाकिस्तान में गया। आज वो बांग्लादेश में है।

जोगेंद्र नाथ मंडल

जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान के पहले श्रम मंत्री भी थे। सन 1949 में जिन्ना ने उन्हें कॉमनवेल्थ और कश्मीर मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी भी सौंप दी थी। इस 1947 से 1950 के बीच ही पाकिस्तान में हिन्दुओं पर लौमहर्षक अत्याचार होने शुरू हो चुके थे। दरअसल हिन्दुओं को कुचलना कभी रुका ही नहीं था। बलात्कार आम बात थी। हिन्दुओं की स्त्रियों को उठा ले जाना जोगेंद्र नाथ मंडल की नजरों से भी छुपा नहीं था। वो बार-बार इन पर कार्रवाई के लिए चिट्ठियाँ लिखते रहे।

इस्लामिक हुकूमत को ना उनकी बात सुननी थी, ना उन्होंने सुनी। हिन्दुओं की हत्याएँ होती रहीं। जमीन, घर, स्त्रियाँ लूटी जाती रहीं। कुछ समय तो जोगेंद्र नाथ मंडल ने प्रयास जारी रखे। आखिर उन्हें समझ आ गया कि उन्होंने किस पर भरोसा करने की मूर्खता कर दी है। जिन्ना की मौत होते ही 1950 में जोगेंद्र नाथ मंडल भारत लौट आए। पश्चिम बंगाल के बनगांव में वो गुमनामी की जिन्दगी जीते रहे। अपने किए पर 18 साल पछताते हुए आखिर 5 अक्टूबर 1968 को उन्होंने गुमनामी में ही आखरी साँसें लीं।

अब आपको शायद ये सोचकर थोड़ा आश्चर्य हो रहा होगा कि कैसे आपने कभी इस नेता का नाम तक नहीं सुना? राजनीति में तो अच्छी खासी दिलचस्पी है ना आपकी? अपने फायदे के लिए कैसे एक समुदाय विशेष ने एक दलित का इस्तेमाल किया था उसका ये इकलौता उदाहरण भी नहीं है। बस समस्या है कि ना आपने खुद पढ़ने की कोशिश की और दल हित चिन्तक तो आपको सिर्फ एक वोट बनाना चाहते हैं! तो वो क्यों पढ़ने देते भला?

यही सिर्फ एक वोट बनकर रह जाने का अफ़सोस था जो आपने रोहित वेमुल्ला की चिट्ठी में लिखा पाया था। उनकी चिट्ठी में जो कुछ हिस्सा आप आज कटा हुआ देखते हैं वो कल कोई और लिखेगा। आप पढ़ने से इनकार करते रहेंगे उधर मासूम अपने खून से बार बार ऐसी चिट्ठियाँ लिखते रहेंगे। कभी सोचा है कि वो आपको जोगेंद्र नाथ मंडल का नाम क्यों नहीं बताते? कभी सोचा है कि वो आपको पढ़ने क्यों नहीं कहते? कभी सोचा है कि उन्होंने आपको चार किताबों का नाम बताकर खुद पढ़कर आने को क्यों नहीं कहा? वो खुद को आंबेडकरवादी कहते हैं ना? आंबेडकर और फुले दम्पति तो जिन्दगी भर शिक्षा के लिए संघर्ष करते रहे! फिर ये क्यों आपको किताबों से दूर करते हैं?

ऐसा वो इसलिए करते हैं क्योंकि पढ़ने के बाद आप सिर्फ एक वोट नहीं रह जाएँगे। पढ़ने के बाद आप दर्ज़नों तीखे सवाल हो जाएँगे। पढ़ने पर आप देखेंगे कि आंबेडकर खुद क्या कहते थे।

बाकी किसी विदेशी फण्ड पर पलने वाले की पूँछ पकड़ कर चलना है, या खुद से दलित चिंतन करना है, ये फैसला तो आपको खुद ही करना होगा।

ये फैसला भी आपको खुद ही करना होगा कि संसद में ‘जय भीम जय मीम’ का नारा लगा कर ओवैसी ने कोई इतिहास नहीं रचा है। और यह समझना भी होगा कि जिस जोगेंद्र नाथ मंडल ने इस तर्ज पर इतिहास रचा था, खुद उनका और उनके प्रयास का हश्र क्या हुआ। यह भी समझना होगा कि जोगेंद्र नाथ मंडल तो नेता थे, मंत्री थे – परिस्थितियाँ विपरीत हुईं तो गुमनामी में सही लेकिन वापस भारत आ गए – लेकिन उनका क्या जो मंडल जी के आह्वान पर मात्र एक वोट बनकर पाकिस्तानी हुए और अब बांग्लादेशी होकर भी कैसी जिंदगी जी रहे होंगे, यह सोचने के लिए किसी दिव्य-दृष्टि की जरुरत नहीं।

NDTV पर SEBI ने लगाया ₹12 लाख का जुर्माना, शेयर संबंधी जानकारी छुपाने का आरोप

बाजार नियामक The Securities and Exchange Board of India (SEBI) ने न्यू दिल्ली टेलीविज़न लिमिटेड (NDTV) पर 12 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना शेयर बाजार को समय पर जानकारी न देने के कारण लगाया गया। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पाया कि एनडीटीवी ने नियम के तहत सूचनाएँ सार्वजनिक करने के मामले में चूक की, जिसके बाद यह आदेश दिया गया। एनडीटीवी के ख़िलाफ़ शेयरों की बड़ी ख़रीद और अधिग्रहण के नियम का अनुपालन न करने का मामला पाया गया है। अपने आदेश में सेबी ने अधिक जानकारी देते हुए बताया:

“जनवरी 2018 में इंडियाबुल्स फाइनेंसियल सर्विसेज ने एनडीटीवी के 40 लाख शेयरों का अधिग्रहण किया था। यह कम्पनी की कुल शेयर पूँजी का 6.4% है। एनडीटीवी के प्रमोटर्स ने जुलाई 2018 में 20.28% शेयर पूँजी का अधिग्रहण किया। नियमानुसार, इस प्रक्रिया के बाद कम्पनी को सम्बंधित प्रावधानों के अंतर्गत इससे जुड़ी ज़रूरी जानकारियाँ देनी थीं, जो उसने नहीं की। एनडीटीवी को इस से जुड़ी जानकारियाँ बीएसई और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज से भी साझा करनी थीं। जबकि, कम्पनी ने इस बातों को छुपाया और जानकारी देने में देरी की।”

एनडीटीवी ने अपने शेयरों में हुए बदलाव व इंडियाबुल्स के साथ हुए समझौते के बाद समय पर सब कुछ खुलासा नहीं किया, इसीलिए उस पर 12 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का निर्णय लिया गया। इससे पहले एक मामले में NDTV के दोनों प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय पर कम्पनी में किसी भी प्रकार का पद लेने से 2 साल का प्रतिबन्ध लगा दिया था। नियामक ने दोनों के होल्डिंग्स और म्यूच्यूअल फंड को भी सीज कर दिया था। सेबी ने अपनी जाँच में पाया था कि इन्होंने आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रुपए का क़र्ज़ ले रखा था, जिसे बाद में वीसीपीएल से 350 करोड़ का क़र्ज़ लेकर चुकाया।

सेबी ने कहा कि बाकी शेयरधारकों से इन बातों को छुपाया गया क्योंकि लोन लेने के दौरान तय हुई शर्तों के तहत वीपीसीएल एनडीटीवी में 30% तक शेयर हासिल करने की क्षमता रखता था। बाद में मंगलवार (जून 18, 2019) को ‘The Securities Appellate Tribunal (SAT)’ ने सेबी द्वारा रॉय दम्पति के कोई पद न लेने वाले निर्णय पर रोक लगा दी। सैट ने कहा कि ऐसा करना कम्पनी के शेयरधारकों के हित में नहीं होगा। एजेंसी ने सेबी से रॉय दम्पति को प्रत्युत्तर देने के लिए तीन सप्ताह का समय देने को कहा।

रॉय दम्पति व एनडीटीवी की एक अन्य शेयरधारक कम्पनी आरआरपीआर होल्डिंग्स द्वारा इस तरह से क़र्ज़ लेने व समझौते करने से बाकी के निवेशकों को कम्पनी की माली हालत के बारे में अंदाज़ा नहीं लगा, जिस कारण सेबी ने एक्शन लिया। फिलहाल इस मामले में रॉय दम्पति के प्रत्युत्तर के बाद एजेंसियाँ आगे का निर्णय लेंगी। प्रणय रॉय और राधिका रॉय ने बयान जारी कर सेबी के आदेश को क़ानूनी रूप से ग़लत एवं नियमों के ख़िलाफ़ बताया था। उनका आरोप था कि जिन बातों को आधार बना कर ये आदेश दिए गए हैं, उसके बारे में उन्हें भेजे गए ‘कारण बताओ नोटिस’ में कोई चर्चा ही नहीं थी।

कॉन्ग्रेस से निलंबित किए गए पूर्व मंत्री रौशन बेग, पार्टी पर मुस्लिमों की उपेक्षा का लगाया था आरोप

कॉन्ग्रेस ने पूर्व मंत्री रौशन बेग को पार्टी-विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप में पार्टी से निलंबित कर दिया है। हाल ही में उन्होंने लोकसभा चुनाव में करारी हार को लेकर पार्टी के शीर्ष नेताओं की आलोचना की थी, जिस कारण उन्हें कर्नाटक प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी ने निलंबित करने का निर्णय लिया। कॉन्ग्रेस ने कहा कि प्रदेश यूनिट की तरफ से की गई सिफारिश को स्वीकार करते हुए रौशन बेग को निलंबित किया जाता है। पार्टी ने कहा कि यह निर्णय इस मामले की जाँच पूरी करने के बाद लिया गया। रौशन बेग ने पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया को ‘दम्भी’ बताया था और प्रदेश कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष दिनेश गुंडु राव को ‘अपरिपक्व’ कहा था।

रौशन बेग 7 बार विधायक रह चुके हैं और वह कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार में मंत्रीपद न मिलने से नाराज़ चल रहे थे। उनके क्षेत्र शिवाजीनगर में एक पोंजी स्कीम से भी उनका नाम जुड़ा है, जिसे आईएमए ज्वेल्स द्वारा शुरू किया गया था और इसके तहत सैकड़ों निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की गई थी। इन निवेशकों में अधिकतर मुस्लिम हैं। रौशन ने इन आरोपों से इनकार किया लेकिन सीनियर कॉन्ग्रेस नेताओं का कहना है कि रौशन ने आईएमए ज्वेल्स के संस्थापक मंसूर खान के साथ उन लोगों से संपर्क साधा था। एक ऑडियो क्लिप भी काफ़ी सर्कुलेट हुआ था, जिसमें मंसूर यह कहते पाए गए थे कि उन्होंने बेग को 400 करोड़ रुपए दे रखे हैं, जो उन्हें अभी तक नहीं लौटाया गया।

कर्नाटक कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष गुंडु ने मंगलवार (जून 18, 2019) को कहा कि इस स्कैम से रौशन बेग के साथ जुड़े तार को आलाकमान के ध्यान में लाया जाएगा। अभी एक स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम इसकी जाँच कर रही है और शिकायतकर्ता निवेशकों की संख्या 38,000 पार हो चुकी है। बताया जाता है कि यह 15,000 करोड़ का स्कैम है। लोकसभा चुनावों में राज्य में मिली बुरी हार के बाद कॉन्ग्रेस-जेडीएस गठबंधन की हालत ख़राब है और हाल ही में मंत्रिमंडल विस्तार कर के निर्दलियों को जगह दी गई ताकि सरकार को स्थिर रखा जा सके। एक अन्य पूर्व मंत्री रमेश जर्किहोली भी सरकार की आलोचना कर चुके हैं।

कॉन्ग्रेस ने रौशन बेग को निलंबित करने का निर्णय लिया

रौशन बेग ने हाल ही में अल्पसंख्यकों को ख़ास सलाह देते हुए कहा था कि अगर अगली बार भी राजग की सरकार बनती है तो वे लोग समझौता कर लें। उन्होंने कहा था कि राजग की सरकार बनने की स्थिति में उन्हें परिस्थितियों से समझौता कर लेना चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि अगर ज़रूरत पड़ती है तो मुस्लिमों को भाजपा से हाथ मिलाने से भी नहीं हिचकना चाहिए। रौशन बेग समुदाय विशेष के बीच राज्य में जाना-पहचाना चेहरा हैं। उन्होंने समुदाय विशेष को सलाह देते हुए कहा था कि उन्हें किसी ख़ास पार्टी का वफ़ादार नहीं बने रहना चाहिए। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर अल्पसंख्यकों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए यह भी कहा था कि पार्टी ने एक ही मुस्लिम को टिकट दिया है।

कहा जा रहा है कि रौशन बेग इसीलिए भी नाराज़ चल रहे थे क्योंकि राज्य के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बी जेड अमीर अहमद ख़ान का क़द राजनीति में लगातार बढ़ रहा है और वह उनकी जगह मुस्लिमों का चेहरा बन सकते हैं।

गैर-कानूनी मस्जिदों का निर्माण दिल्ली के लिए चिंताजनक: जाँच के लिए सांसद ने LG को लिखा पत्र

सार्वजनिक या सरकारी जमीनों का धर्म के नाम पर अतिक्रमण होना आम है। छोटे-मोटे स्तर पर यह हर जगह देखने को मिल जाता है। लेकिन है यह गैरकानूनी। पश्चिम दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के सांसद प्रवेश साहिब सिंह ने अब इसके खिलाफ आवाज उठाई है। सांसद साहिब सिंह ने दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल को इस मामले से संबंधित एक पत्र लिखा है।

अपने पत्र में साहिब सिंह ने उप राज्यपाल बैजल को पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में सार्वजनिक भूमि पर मस्जिदों के गैर-कानूनी रूप से बढ़ते निर्माण को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने लिखा कि उनके संसदीय क्षेत्र में सरकारी जमीन, सड़कों, पार्कों और दूसरे अनुचित स्थानों पर मस्जिदों का निर्माण किया जा रहा है। इस ओर ध्यान दिलाते हुए सासंद ने उप राज्यपाल से इन गैर-कानूनी निर्माण कार्यों की जाँच की माँग की है।

सांसद प्रवेश साहिब सिंह ने अपने पत्र में गैर-कानूनी मस्जिद निर्माण से जुड़ी समस्याओं की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने लिखा कि सार्वजनिक जमीनों पर बनी मस्जिदों के कारण न सिर्फ ट्रैफिक की समस्या होती है, बल्कि आस-पास रहने वाले लोगों को भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इस समस्या के निदान के लिए सासंद साहिब सिंह ने एलजी से एक कमिटी गठित करने की माँग की। कमिटी की संरचना को लेकर उन्होंने सुझाव दिया कि इसमें एमसीडी, पीडब्ल्यूडी, एनडीएमसी, पुलिस, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग के प्रतिनिधि तक शामिल होने चाहिए ताकि हर दृष्टिकोण से इस पर जाँच हो और उसके अनुरूप आवश्यक कदम उठाए जाएँ। साहिब सिंह का कहना है कि इस गंभीर मामले की जाँच संबंधित इलाके के डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट करें। सांसद ने यह भी सुझाव दिया कि संबंधित विभाग के अधिकारी जिन इलाकों में मस्जिद बने हैं, वहां का सर्वे करें।

उप राज्यपाल अनिल बैजल को इस मामले से संबंधित जो पत्र सासंद साहिब सिंह ने लिखा है, उसमें उन्होंने आगाह किया है कि अगर इस समस्या का निदान नहीं किया गया तो यह मामला आगे चलकर बहुत मुश्किल पैदा कर सकता है।

कोलकाता की अराजकता: मिस इंडिया यूनिवर्स को 6 लड़कों ने घसीटा, ड्राइवर को पीटा

पूर्व मिस इंडिया यूनिवर्स उशोषी सेनगुप्ता ने फेसबुक पर अपनी दास्ताँ बयाँ की है, और बताया है कि कैसे 6 लड़कों ने उनकी गाड़ी के साथ अपनी बाइक भिड़ाने के बाद उनके ऊबर कैब के ड्राइवर को बेरहमी से पीटा, उसकी गाड़ी तोड़ दी और उशोषी के भी साथ बदतमीज़ी की। और इस दौरान कोलकाता की पुलिस मूकदर्शक बनी ज्यूरिस्डिक्शन-ज्यूरिस्डिक्शन (मेरा एरिया-उनका एरिया) खेलती रही। मामले की प्राथमिकी दर्ज करने से भी इनकार किया और मामला तूल पकड़ने के बाद ही ढंग से प्राथमिकी हुई।

फेसबुक पर सुनाया दर्द

उशोषी ने फेसबुक पर पोस्ट कर बताया कि कैसे देर रात जब वह एक समारोह में भाग ले कर ऊबर के कैब से निकलीं तो कैब में आकर कुछ लड़कों ने टक्कर मार दी। उसके बाद वे उनके ड्राइवर को निकाल कर पीटने लगे। जब ज़रा दूर खड़े पुलिस वालों से उन्होंने मदद माँगनी चाही तो उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि मामला उनके ‘अधिकार क्षेत्र’ के बाहर दूसरे थाने का है। उशोषी के दबाव बनाने पर जब पुलिस वाले आए तो वह लड़के भाग खड़े हुए।

लेकिन कैब का पीछा कर रहे लड़कों ने फिर से उन्हें रोका। इस बार उनका निशाना उशोषी थीं क्योंकि उन्होंने वारदात का वीडियो बना रखा था। लड़कों ने उशोषी को कार के बाहर घसीटा, और उनका फोन छीन कर तोड़ने की कोशिश की। स्थानीय लोगों के आ जाने पर उन्हें फिर भागना पड़ा। उशोषी ने अपने घर वालों और पुलिस को फोन किया। वहाँ पहुँची पुलिस ने फिर से ज्यूरिस्डिक्शन-ज्यूरिस्डिक्शन का नाटक शुरू कर दिया, और उशोषी की तो प्राथमिकी लिखी लेकिन ड्राइवर (जिसकी गाड़ी को बुरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिया गया था) की एफआईआर लिखने से मना कर दिया

उशोषी ने तंज कसते हुए कहा, “अगर आपके साथ मारपीट, बदसलूकी, छेड़खानी या फिर मर्डर की घटना हो, तब पुलिस के पास जाने से पहले उनके सीमा क्षेत्र के बारे में जान लें, क्योंकि घटनास्थल पुलिस थाने की सीमा से 100 मीटर भी बाहर हुआ, तो वे मदद नहीं करेंगे।”

लड़के के हेलमेट न लगाने को लेकर उन्होंने लिखा, “आखिर 15 बाइक सवार लड़के बगैर हेलमेट के कैसे आसानी से कैब ड्राइवर को सरेराह पीट सकते हैं और गाड़ी को नुकसान पहुँचा सकते हैं? मुझे लगता है कि उन्होंने ड्राइवर को भीड़ के सामने धमका कर पैसे ऐंठने के लिए ऐसा किया।”

उशोषी ने घटना का ब्यौरा और वीडियो फेसबुक पर पोस्ट करते हुए लिखा:

तूल पकड़ने के बाद जागी कोलकाता पुलिस

जब इंडिया टुडे ने इस मामले को उठाया और मामला तूल पकड़ने लगा तो कोलकाता पुलिस ने ट्विटर पर सूचना दी कि सात लोगों को मामले में गिरफ्तार कर लिया गया है, और मामले की एफआईआर ‘बहुत सीनियर लेवल’ पर की गई है। लेकिन मामले में पहले हीला-हवाली करने वाले पुलिस अफसरों पर किसी भी तरह की कार्रवाई की सूचना इसमें भी नहीं है।

मुफ्तखोर AAP के कारनामों से दिल्ली हो सकती है अँधेरी, 7 करोड़ का बिल भरना है बाकी

आने वाले चुनावों को देखते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने महिलाओं को मुफ्त मेट्रो सफर का वादा तो कर दिया है लेकिन हो सकता है कि केजरीवाल के इस ‘मुफ्त-मुफ्त-मुफ्त’ के चुनावी अजेंडे का दिल्लीवासियों को बड़ा भुगतान करना पड़े।

प्राइवेट पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कम्पनी टाटा पॉवर-DDL ने आम आदमी पार्टी सरकार को धमकी देते हुए स्पष्ट कहा है कि दिल्ली की सरकारी एजेंसियों द्वारा उनके साल भर से रोके गए करीब 7 करोड़ रुपए का भगुतान यदि नहीं किया गया तो वो अनाधिकृत इलाकों में लगी 50,000 स्ट्रीटलाइट्स की बिजली सप्लाई रोक देगी।

टाटा पॉवर-DDL ने, जो कि उत्तर दिल्ली में लगभग 10 लाख लोगों को बिजली सप्लाई दे रही है, जोर देते हुए कहा है कि वो 68 लाख रुपए हर महीने इन स्ट्रीटलाइट्स के रख-रखाव में ही खर्च करते हैं, लेकिन दिल्ली स्थित आम आदमी सरकार की एजेंसियों ने अभी तक उनके रुपयों का भुगतान नहीं किया है।

टाटा पॉवर-DDL के CEO संजय बंगा का कहना है, “कम्पनी ने दिल्ली मुख्य सचिव को इस मामले में संज्ञान लेने के लिए कह दिया है। उत्तर दिल्ली नगर निगम और दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन, दोनों ने ही इन स्ट्रीटलाइट्स की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया है, जिस कारण भुगतान की राशि बढ़ती ही जा रही है।”

आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा बकाया भुगतान ना किए जाने की वजह से स्ट्रीटलाइट्स की मेंटेनेंस प्रभावित हो रही है, जो कि इलाके चोरी, लूटपात, एक्सीडेंट और महिलाओं की सुरक्षा में एक बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है।

हालाँकि, टाटा पॉवर-DDL ने कहा है कि वो उन जगहों का नाम अभी नहीं बताना चाहते हैं जहाँ पर लाइट सप्लाई बंद की जा सकती है और कम्पनी कब इस पर काम करना शुरू करने वाली है यह भी अभी स्पष्ट नहीं है। संजय बंगा के अनुसार, “हमें इस बात का एहसास यह एक बेहद जरूरी व्यवस्था है, जो कई प्रकार के अपराधों को रोकती है। इसलिए यह आवश्यक है कि भुगतान के कारण होने वाली समस्याओं को जल्द सुलझाया जा सके।”

अरविन्द केजरीवाल को यह समझना चाहिए कि लोग अपने मेट्रो सफर का किराया देने में सक्षम हैं लेकिन उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार के हाथ में है। साथ ही, यदि टाटा पॉवर-DDL भुगतान ना किए जाने की दशा में स्ट्रीटलाइट्स की बिजली आपूर्ति बंद कर देती है, तो यह अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली के एकमात्र 24 घंटे बिजली आपूर्ति वाला शहर होने के दावे की भी पोल खोल सकता है।

लड़की पर पब्लिकली हस्तमैथुन कर फरार हुआ आदमी: मुफ्त मेट्रो से सुरक्षा नहीं मिलती

प्रिय दिल्ली मुख्यमंत्री केजरीवाल जी,

14 जून को रात 9.25 पर एक लड़की हुडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन में बने स्टोर से निकल कर स्वचालित सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी कि उसे ‘कुछ अजीब’ लगा। औरतों में सिक्स्थ सेन्स बहुत एक्टिव होता है, जिससे हम अमूमन खतरा भाँप ही लेतीं हैं। उस लड़की के ठीक पीछे एक लड़का हस्तमैथुन कर रहा था।

यह एक सार्वजनिक स्थान था- एक मेट्रो स्टेशन। वह समय देर रात का नहीं था (हालाँकि, रात होने से भी पुरुष शिकारियों को कोई छूट नहीं मिल जाती, लेकिन महिलाएँ जब यौन उत्पीड़न की शिकायत करतीं हैं तो अक्सर ऐसे बहाने दिए जाते हैं)। और यह ऐसे स्थान पर था जोकि सीसीटीवी की निगाह में था।

अपनी मानसिक पीड़ा सुनाते हुए वह लड़की बताती है कि कैसे वह आदमी एक बार फिर अपना गुप्तांग उसे दिखाकर भाग खड़ा हुआ। वह बयाँ करती है कि कैसे वह सन्न रह गई कि ऐसी घटना मेट्रो स्टेशन के अंदर भी हो सकती है, जो महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन के लिहाज से सबसे सुरक्षित माना जाता है और जिसका महिलाओं द्वारा इस्तेमाल बढ़ाने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री औरतों को मुफ्त की मेट्रो यात्रा से लुभा रहे हैं।

इसके बाद वह लड़की वही कहती है, जो केजरीवाल के इस चुनावी लोकलुभावन योजना से ज़्यादा ज़रूरी है। लगभग हर महिला की पहली प्राथमिकता है- हमें मुफ्त यात्रा नहीं, सुरक्षा चाहिए।

आप शायद ‘सुरक्षा’ के नाम पर महिलाओं को बस और मेट्रो में मुफ्त यात्रा करा सकते हैं, लेकिन आप यह कैसे सुनिश्चित करेंगे कि महिलाएँ यहाँ सुरक्षित हैं? हो सकता है कि मेट्रो बाकी सार्वजनिक परिवहन के साधनों से अधिक सुरक्षित हो लेकिन मेट्रो से घरों की कनेक्टिविटी पर आप क्या करेंगे? स्ट्रीट लाइट अक्सर काम नहीं करतीं अँधेरी गलियों में, और चेन-छिनैती या लूटपाट की घटनाएँ हो जातीं हैं। आप यह क्यों नहीं करते कि बिजली कंपनियों को उनकी बकाया राशि चुका दीजिए ताकि वह अपनी चेतावनी के मुताबिक स्ट्रीटलाइटों को बंद न कर दें क्योंकि आप उन्हें उनके पैसे नहीं दे रहे?

आपका विचार न केवल आर्थिक रूप से अव्यवहारिक है, बल्कि इसे ‘महिला सुरक्षा’ का कदम बताना आपकी पार्टी के अस्तित्व से भी ज़्यादा हास्यास्पद है।

भवदीया,
दिल्ली की एक नागरिक

(OpIndia.com पर अंग्रेजी में प्रकशित मूल लेख का अनुवाद मृणाल प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव ने किया है)

फ़र्ज़ी समाजशास्त्र के बाद अब झोलाछाप अर्थशास्त्र भी पढ़ाएगा The Wire, मेट्रो पर बाँटा ज्ञान

वामपंथी प्रोपेगैंडा पोर्टल The Wire ने आजकल नई ‘ब्रांच’ खोली है- झोलाछाप अर्थशास्त्र पढ़ाने की। और अपने पहले चैप्टर में लेकर आए हैं झोलाछाप नुस्खा, कि आखिर क्यों शर्तिया तौर पर वाहियात और आर्थिक रूप से बोझिल विचार होने के बावजूद महिलाओं को मेट्रो में मुफ़्त यात्रा करने देना चाहिए। इसमें अमेरिका में की गई एक रिसर्च को भारत में लागू कर देने से लेकर अर्थशास्त्रीय परिभाषाओं को शीर्षासन करा देने और टैक्स पर प्रवचन वगैरह काफी कुछ है। अगर किसी चीज़ की कमी है, तो केवल एक अदद तर्कसंगत वाक्य की, जिसे पढ़कर ऐसा लग सके कि हाँ भाई, मेट्रो महिलाओं के लिए मुफ्त कर दी जानी चाहिए।

सड़क के साथ तुलना कृत्रिम समानता (false equivalence), और स्पष्ट झूठ

लेखिका सानिका गोडसे यह तर्क करतीं हैं कि जिन लोगों को अपना टैक्स का पैसा महिलाओं की मुफ्त की मेट्रो यात्रा में ‘बर्बाद’ होता दिख रहा है, उन्हें आखिर इस पर क्यों शिकायत नहीं होती कि सड़क टैक्स के पैसे से बनती है, और उस पर बड़ी गाड़ियाँ लगभग मुफ्त में जगह घेर-घेर कर चलतीं हैं।

मुझे समझ नहीं आ रहा कि ऐसा तर्क देना वाला खुद अर्थशास्त्र में काला अक्षर भैंस बराबर है, या धूर्त वायर वाले अपने पाठकों को मूर्ख समझते हैं कि ज़रा सा विक्टिम-कार्ड खेल कर, महिला-सेंटीमेंट की अपील कर कुछ भी पढ़ा दो, पब्लिक इमोशनल मूर्ख है, पचा लेगी। गोडसे जी, पहली बात तो सड़कों पर यह गाड़ियाँ ‘लगभग मुफ़्त’ में नहीं चलतीं। वह रोड टैक्स देतीं हैं, टोल टैक्स देतीं हैं, उनके ईंधन पर टैक्स लगता है, और अगर ‘लग्ज़री’ गाड़ियाँ हैं तो ऊँची दर का जीएसटी और सरचार्ज भी लगता है।

इसके अलावा जिन टैक्स भरने वालों को अपने टैक्स के अनुपात में आउटरेज न करने और अपने टैक्स के बराबर ‘हिस्सेदारी’ न माँगने के लिए लताड़ रहीं हैं, अगर आपके इसी लॉजिक को वह हर जगह इस्तेमाल करने लगें तो आपकी रेवड़ी-नॉमिक्स धरी-की-धरी रह जाएगी। इस देश में आयकर देने वालों का अनुपात जनसंख्या के मुकाबले बहुत कम है- शायद 5% या 10%। आप जिस लॉजिक को ‘हर जगह लगाने’ की चुनौती दे रहीं हैं, अगर वह सच में ‘हर जगह’ लगने लगे, तो इस देश का गरीब कहाँ जाएगा? और तब आप ही यह प्रवचन भी लेकर आ जाएँगी कि टैक्स भरने वालों की ‘सामाजिक जिम्मेदारी’ है…

आपने कौन सा सर्वे किया जिससे आपको पता चला कि अधिकांश हिस्सा सड़कों पर निजी, महँगी गाड़ियाँ ही छेंक कर चलतीं हैं? या अपनी मर्जी से, शैम्पेन की चुस्की लेते हुए अपनी खिड़की के बाहर देखा और राष्ट्रीय सर्वेक्षण हो गया? शैम्पेन लिबरल्स का एसी में बैठकर गरीबनवाज़ बनना ही वामपंथ को लील रहा है। सुधर जाइए!

जवान, स्वस्थ पुरुषों ने आपका क्या बिगाड़ा है?

अगला आउटरेज गोडसे जी का यह है कि प्रधानमंत्री को हाल ही में पत्र लिखने वाले डीएमआरसी के पूर्व अध्यक्ष श्रीधरन इस पर चिंता क्यों जता रहे हैं कि आज महिलाओं को मुफ्त यात्रा करने की सुविधा दे दी गई तो कल बूढ़े, बीमार, विकलांग, छात्र आदि लगभग हर समूह पाने लिए मुफ्त यात्रा माँगने चला आएगा। इस पर वह यह आउटरेज करतीं हैं कि इसमें बुराई ही क्या है; सार्वजनिक स्थलों पर जवान, स्वस्थ पुरुषों की ‘ऐसी भीड़ जमा है’, सामाजिक न्याय के तहत सभी समूहों को बराबरी से सार्वजनिक स्थलों के इस्तेमाल का हक़ मिलने का स्वागत किया जाना चाहिए।

यह तर्क भी कोरी लफ़्फ़ाज़ी और अमेरिका से उठाए वामपंथी समाजशास्त्र को (जिसे वहाँ भी गालियाँ पड़ रहीं हैं, और दुत्कारा जा रहा है) धूर्तता से यहाँ लागू करने का प्रयास है। इसके लिए श्रीधरन के कथन को भी तोड़ने-मरोड़ने से गोडसे नहीं चूकतीं। न ही श्रीधरन ने जवान, स्वस्थ पुरुषों के अलावा बाकी सामाजिक समूहों के सार्वजनिक स्थलों के इस्तेमाल पर आपत्ति की थी, और न ही ऐसा है भी असल में कि जवान, स्वस्थ पुरुष सारी सार्वजनिक बेंचें, मेट्रो की सीटें, सड़क आदि घेर कर खड़े और बैठे हुए हैं, और औरों को आने नहीं दे रहे।

श्रीधरन ने यह चिंता जताई थी कि ऐसे हर समूह से माँग उठने लगेगी मुफ्त यात्रा की, और अगर सरकार उनकी माँगें मना करेगी तो किस न्यायसंगत आधार पर, और अगर मना नहीं करती तो आखिर मेट्रो चलाने का पैसा आएगा कहाँ से? क्या जवाब है गोडसे के पास? क्या यह कि सारा पैसा जवान, स्वस्थ पुरुषों की जेब से निकाला जाना चाहिए? क्यों? जवान, स्वस्थ पुरुषों ने ठेका ले रखा है बाकियों का?

और फिर वहाँ पर यह सनकी रुक जाएँगे इसकी क्या गारंटी है? कल को हो सकता है जवान, स्वस्थ हिन्दू-सवर्ण पुरुषों पर उतर आएं, परसों जवान, स्वस्थ हिन्दू-सवर्ण हिंदी-भाषी पुरुषों तक जाने लगें, परसों न जाने क्या ले आएं। विक्टिम-कार्ड और पहचान की राजनीति (idenity politics) का पागलपन एक बार शुरू ही जाए तो रुकता नहीं है…

क्रय-क्षमता (purchasing power) क्या पुरुषों में नहीं होती?

अगला वाहियात तर्क दिया जाता है कि महिलाएँ मुफ़्त यात्रा होने पर अधिक यात्रा करेंगी, उनके लिए अधिक आर्थिक मौके उत्पन्न होंगे, और उनके ज्यादा पैसा कमाने से उनकी क्रय-क्षमता बढ़ेगी (जिसे वह मानकर चलतीं हैं कि केजरीवाल सरकार किसी-न-किसी तरह चूस कर अपना घाटा पूरा कर लेगी)। लेकिन एक बार फिर से अपने ऐसा मान कर चलने के पीछे वह किसी अध्ययन, किसी डाटा, किसी ठोस आधार का हवाला नहीं दे पातीं।

ऐसा उन्हें किस पैगंबर ने (क्योंकि अगर मैं ‘किस देवता या देवी ने’ पूछूँगा तो मान लिया जाएगा कि मैं अपना धर्म थोप रहा हूँ) सपने में आकर ऐसा बताया कि महिलाएँ वह अतिरिक्त पैसा बचाकर म्यूचुअल फंड में नहीं डाल देंगी, लखनऊ (या दिल्ली और केजरीवाल के टैक्स-दायरे के बाहर के किसी भी अन्य क्षेत्र) में रह रहे अपने रिश्तेदारों को नहीं भेज देंगी या उसे महज़ नकद में नहीं रखे रहेंगी? ऐसी हवाई उम्मीदों के आधार पर ₹1500 करोड़ से अधिक का सालाना आर्थिक बोझ झेलने से ज्यादा वाहियात अर्थशास्त्रीय तर्क की सानी मिलना मुश्किल है।

इसके अलावा अगर उनके उपरोक्त तर्क को मान भी लिया जाए तो क्या पुरुषों को मुफ्त यात्रा देने से भी यही सब नहीं सम्भव हो जाएगा? क्यों न सभी के लिए मेट्रो यात्रा मुफ्त कर दी जाए, ताकि जो ‘फ़ायदे’ होने का दावा सानिका गोडसे कर रहीं हैं, वह दुगने हों?

अमेरिका की स्टडी यहाँ की नीतियों के आधार में लगाने का क्या तुक है?

अमेरिका में किए गए एक अध्ययन के आधार पर सानिका गोडसे यह तय कर देतीं हैं कि चूँकि अमेरिका में औरतें पुरुषों से अधिक यात्रा करतीं हैं, तो भारत में भी सभी महिलाएँ ऐसा करतीं ही होंगी, और अतः महिलाओं को मुफ्त मेट्रो दे देनी चाहिए। तो गोडसे जी, भारत अमेरिका नहीं है। अमेरिका में हो जाने भर से कोई चीज़ भारत का भी सत्य नहीं बन जाती। आपमें हिम्मत है तो ऐसा ही अध्ययन भारत में कर के आइए, तब आगे बात की जाएगी।

कुल मिलाकर यह लेख वायर ही नहीं, सभी वामपंथी-चरमपंथियों में बढ़ती हुई खीझ की नुमाईश भर है। मोदी के लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बन जाने से, इनका प्रोपेगैंडा धराशायी हो जाने से इनके दिमागों के फ्यूज़ बुरी तरह जल गए हैं। इसीलिए कभी जनेऊ के खिलाफ अनर्गल प्रलाप आता है, कभी राम नवमी को निशाना बनाया जा रहा है, और अब जेंडर-जस्टिस के नाम पर पुरुष-विरोधी नीतियों के ज़रिए पुरुष-घृणा (misandry) भड़काने का प्रयास हो रहा है। कॉमरेड लोग अब बस हिंसा पर नहीं उतर आए हैं, गनीमत यही है…