Friday, October 4, 2024
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कश्मीर के शहीद जवान औरंगज़ेब के पिता BJP में होंगे शामिल

शहीद राइफलमैन औरंगज़ेब के पिता मोहम्मद हनीफ़, जो जम्मू-कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के पूर्व सिपाही रह चुके हैं, जल्द ही भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की 3 फ़रवरी की जम्मू-कश्मीर यात्रा के दौरान हनीफ़ के भाजपा में शामिल होने की सम्भावना है।

औरंगज़ेब शोपियाँ के शादीमर्ग में 44 राष्ट्रीय राइफल्स कैंप पर पोस्टेड थे जब पुलवामा में आतंकियों ने उनकी क्रूरता से हत्या कर दी। ईद मनाने के लिए औरंगज़ेब अपने घर जा रहे थे जब आतंकियों ने उनका अपहरण कर लिया। उसके बाद उनकी लाश गुस्सू गाँव से 10 किलोमीटर दूर पाई गई।

भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र देकर सम्मानित किया। उनकी हत्या वाली वीडियो, जिसमें उन्हें आतंकियों के द्वारा गोली मारी गयी, सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुई थी। वीडियो में औरंगज़ेब की आवाज़ सुनी जा सकती थी जब वो निर्भीक होकर आतंकी से बात कर रहे थे।

जब औरंगज़ेब के शहादत की ख़बर फैली तो, कहा जाता है कि लगभग 50 किशोरों ने गल्फ़ देशों में अपनी नौकरियाँ छोड़ दीं ताकि वो पुलिस या सेना की नौकरी कर सकें। उनके पिता ने घाटी से आतंकवाद के ख़ात्मे की मोदी से अपील की थी। रिपोर्ट के अनुसार उनके पिता का नाम भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को दिया जा चुका है।

कर्नाटक में देवगौड़ा ने कॉन्ग्रेस पर साधा निशाना, बोले – अब चुप नहीं रह सकता

कर्नाटक में आजकल सियासी तूफ़ान चल रहा है। कॉन्ग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) के बीच गठबंधन की सरकार में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के अपनी पीड़ा उजागर करने के बाद अब उनके पिता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने भी अपना मुँह खोला है।

पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने कर्नाटक में चल रही सियासत पर दुख जताया है। उन्होंने कहा, “मैं बहुत दुखी हूँ। एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बने हुए आज 6 महीने हो गए हैं, लेकिन मैंने अभी तक अपना मुँह नहीं खोला है, लेकिन मैं अब चुप नहीं रह सकता हूँ।” उन्होंने कहा कि इन 6 महीनों में सभी प्रकार की चीजें हुई हैं। अपना दुःख व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, “क्या यह गठबंधन सरकार चलाने का कोई तरीका है? जहाँ हर दिन आपको अपने गठबंधन के साथी से अनुरोध करना होगा कि वह कोई बेकार की टिप्पणी न करें।”

इस से पहले भी कर्नाटक में कॉन्ग्रेस व जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) के नेताओं के बीच आए दिन बिगड़ते रिश्ते की ख़बर पर ख़ुद राज्य के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी कॉन्ग्रेस पर भड़क गए थे। दोनों ही दलों के बीच रिश्ता इतना ख़राब हो चुका है कि ख़ुद मुख्यमंत्री को बयान देना पड़ा।

कुमारस्वामी ने मीडिया द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, “कॉन्ग्रेस के नेता अपनी सीमा को लाँघ रहे हैं। कॉन्ग्रेस को अपने नेताओं को कंट्रोल करना चाहिए। यदि कॉन्ग्रेस के नेता इस तरह के बयान देते रहे तो मैं मुख्यमंत्री पद से पीछे हटने के लिए तैयार हूँ।” मुख्यमंत्री ने अपने बयान में यह भी कहा कि कॉन्ग्रेस को इन मुद्दों पर नजर रखनी चाहिए, मैं इनके लिए जिम्मेवार व्यक्ति नहीं हूँ।

दरअसल कॉन्ग्रेस की तरफ़ से राज्य के उपमुख्यमंत्री बने जी परमेश्वरा ने बयान दिया था कि सिद्धरमैया सबसे अच्छे व्यक्ति रहे हैं। “वह हमारे नेता हैं। कॉन्ग्रेस विधायकों के लिए सिद्धरमैया ही मुख्यमंत्री हैं। हम उनके साथ खुश हैं।” राज्य के उपमुख्यमंत्री के इस बयान के बाद पत्रकारों ने जब मुख्यमंत्री से इस मामले में सवाल किया तो मुख्यमंत्री ने पद छोड़ने तक की बात कह दी।  

आलोक वर्मा पर सरकार ले सकती है एक्शन, बंद हो सकती है पेंशन

सीबीआई प्रमुख के पद से हटाए जा चुके आलोक वर्मा पर विभागीय कार्रवाई की जा सकती है। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें जब सरकार ने फ़ायर सर्विस, सिविल डिफेन्स और होम गार्ड्स के प्रमुख की ज़िम्मेदारी दी थी, तो उन्होंने ज्वाइन नहीं किया।

आज के ही दिन उन्हें ज्वाइन करना था। अगर विभागीय कार्रवाई में उन्हें दोषी पाया गया तो उनकी पेंशन और उससे सम्बंधित सुविधाएँ ख़त्म की जा सकती है।

10 जनवरी, 2019 को सीबीआई निदेशक पद से हटाए जाने के बाद आलोक वर्मा ने शनिवार को नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था। उससे पहले प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले हाई पावर्ड समिति ने आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक पद से हटा कर उनका तबादला फ़ायर सर्विसेज में कर दिया था। इसके बाद वर्मा ने फ़ायर विभाग में चार्ज लेने से इनकार कर दिया और सर्विस से इस्तीफ़ा दे दिया। फरवरी 1, 2017 को सीबीआई डायरेक्टर बनाए गए वर्मा आज (जनवरी 31, 2019) रिटायर होने वाले थे। अपने इस्तीफ़े में उन्होंने कहा:

“मैं अपनी सर्विस 31 जुलाई 2017 को ही पूरी कर चुका था और सिर्फ सीबीआई डायरेक्टर के पद पर कार्यरत था। सिविल डिफेंस, फायर सर्विसेज़ और होमगार्ड का महानिदेशक बनने के लिए तय आयु सीमा को मैं पार कर चुका हूँ।”

बता दें कि सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और उनके डिप्टी राकेश अस्थाना के बीच हुए विवाद के बाद दोनों को ही पद से हटा दिया गया था। 23 अक्टूबर की आधी रात को केंद्र सरकार ने सीबीआई के भीतर बढ़ते विवाद को लेकर आलोक वर्मा को उनके पद से मुक्त कर लम्बी छुट्टी पर भेज दिया था। इसके करीब ढ़ाई महीने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को पलटते हुए वर्मा को फिर से बहाल कर दिया था। अदालत ने अपने इस निर्णय में कहा था कि इस मामले में आगे का फैसला चयन समिति करेगी। चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावे नेता प्रतिपक्ष और मुख़्य न्यायाधीश का शामिल होना था। शुक्रवार को हुई समिति की बैठक में मुख़्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि के रूप में न्यायमूर्ति एके सीकरी ने भाग लिया था।

1979 बैच के IPS अधिकारी आलोक वर्मा सीबीआई के 27वें निदेशक थे। सीबीआई निदेशक के रूप में उनका कार्यकाल काफी विवादित रहा और राकेश अस्थाना से उनके झगड़े के कारण सीबीआई भी कई दिनों तक सुर्ख़ियों में रही। वर्मा के खिलाफ केंद्रीय सतर्कता आयोग में भ्रष्टाचार संबंधी जाँच भी चल रहा है। वर्मा ने कहा कि उन्होंने सीबीआई की अखंडता बनाए रखने की पूरी कोशिश की लेकिन कुछ लोगों द्वारा इस संस्था को बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है।


जल्द ही भारत को विजय माल्या के स्विस बैंक खातों का विवरण दे सकती है स्विट्जरलैंड सरकार

भारत को जल्द ही भगौड़े कारोबारी विजय माल्या के स्विस बैंक खातों की जानकारी और अन्य विवरण प्राप्त हो सकते हैं। स्विटजरलैंड की शीर्ष अदालत द्वारा सूचना प्रदान करने को मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के अधिकारियों द्वारा पहल शुरू की जा चुकी है।

रिपोर्ट्स के अनुसार जेनेवा और नई दिल्ली के अधिकारियों ने मामले की जानकारी देते हुए कहा कि फ़ेडरल कोर्ट ने माल्या की अपील को रद्द कर दिया है।

विजय माल्या ने अगस्त 14, 2018 को स्विस बैंकों में उनके द्वारा रखे गए तीन बैंक खातों से संबंधित दस्तावेजों को भारतीय अधिकारियों को प्रेषित करने के लिए जेनेवा के सरकारी वकील के निर्णय को चुनौती दी थी।

जेनेवा के कार्यालय ने ईमेल द्वारा दिए जवाब में पुष्टि की है कि भारतीय अधिकारियों के अनुरोध को स्वीकार कर लिया गया है। स्विस फ़ेडरल कोर्ट के अनुसार, कार्यालय ने भारतीय जाँच एजेंसियों द्वारा माल्या के 3 स्विस बैंक खातों की जाँच शुरू कर दी है।

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने विजय माल्या से सम्बंधित बैंक खातों में धनराशि को अवरुद्ध करने के लिए स्विस अधिकारियों से अनुरोध किया था, साथ ही खातों का विवरण प्रदान करने की भी माँग की थी।

कुछ समय पहले सीबीआई ने स्विस अधिकारियों से इस बात का अनुरोध किया था कि वो भगौड़े व्यापारी विजय माल्या के चार बैंक अकाउंट में आने वाले फंड को रोक दें।

जिसके बाद जेनेवा के सरकारी वकील ने न केवल सीबीआई द्वारा किए इस अनुरोध का 14 अगस्त 2018 को पालन किया है, बल्कि माल्या के अन्य तीन बैंक अकाउंट की जानकारियों को भी साझा किया है। साथ ही उन पाँच कंपनियों की भी जानकारी दी है जिनका संबंध माल्या से है।

इन पाँच कंपनियों में लेडीवॉक इंवेस्टमेंट, रोज़ कैपिटल वेंचर्स, कॉन्टीनेंटल एडमिनिस्ट्रेशन सर्विसज़, फर्स्ट यूरो कमर्शियल इन्वेस्टमेंट्स और मॉडल सेक्योरिटी का नाम शामिल है। जिनकी जानकारी स्विस सरकार ने सीबीआई के साथ साझा की है।

इन कंपनियों ने स्विस कोर्ट की तरफ रुख़ करते हुए कहा है कि उनकी कंपनियों के अकाउंट वो अकाउंट नहीं थे जिसकी जानकारी सीबीआई द्वारा मांगी गई है तो फिर उनकी जानकारियाँ क्यों भेजी गई हैं।

इसके अलावा माल्या ने अपनी स्विस की कानूनी टीम की मदद से वहाँ के न्यायलय में सीबीआई को जानकारी देने के मामले पर सवाल उठाए हैं। माल्या का कोर्ट में कहना रहा कि भारत में पहले ही घोटालों से जुड़े मामलों पर गंभीर तनाव वाली स्थिति बनी हुई। क्योंकि सीबीआई के जिस अफसर को माल्या और राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ जाँच करनी थी वो खुद ही इस समय में भ्रष्टाचार के मामले में आरोपित है।

माल्या ने खुद के बचाव में यूरोपीय अदालत के अनुच्छेद 6 का हवाला देते हुए मानवाधिकारों के बारे में भी स्विस कोर्ट में बात की। माल्या ने अपने अधिकारों के बारे में बात करते हुए कहा कि जब तक वो दोषी नहीं साबित होते तबतक उनके अधिकारों के प्रति निष्पक्ष सुनवाई हो।

लेकिन, आपको बता दें कि संघीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 26 और 29 नवंबर, 2018 लिए फ़ैसलों ने माल्या की बात को ख़ारिज कर दिया और कंपनियों द्वारा अपील को अस्वीकार कर दिया और प्रत्येक असफल अपीलकर्ता को 2,000 स्विस फ़्रैंक (1.4 लाख रुपए) का भुगतान करने का आदेश दिया।

न्यूनतम आमदनी योजना: क्या मोदी सरकार बजट में लेगी यह रिस्क?

यूनिवर्सल बेसिक इनकम पूरी दुनिया में चर्चा का विषय है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड सहित कई यूरोपीय देशों के साथ-साथ ईरान और इराक़ जैसे मध्य एशिया के देशों में भी लागू है।

हो सकता है कि मोदी सरकार भी इस बजट सत्र में यूनिवर्सल बेसिक इनकम से जुड़ा कोई बड़ा ऐलान कर दे। माहौल भाँपते हुए राहुल गाँधी भी एक रैली में बेसिक इनकम से जुड़ी योजना की घोषणा को हवा दे चुके हैं। अब देखना ये है कि क्या ऐसी कोई योजना निकट भविष्य में लागू होती है, ज़रूरी होने के बावज़ूद संसाधनों के अभाव में टल जाती है या महज़ एक चुनावी घोषणा ही बनकर रह जाती है।

यूनिवर्सल बेसिक स्‍कीम की चर्चा लंबे समय से की जा रही थी। लेकिन मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कहा जा रहा है कि हाल ही में विभिन्न मंत्रालयों से इस संबंध में राय माँगी गई है। PMO, बेसिक इनकम पर अलग-अलग मंत्रालयों के साथ बैठकें कर उनकी राय के अनुसार इसकी रूप रेखा पर अंदरखाने काम भी कर रहा है। हालाँकि, अभी इस बात की ख़बर नहीं है कि कौन-कौन इसमें शामिल होगा और इसके लिए संसाधन कहाँ से जुटाए जाएँगे।

फिर भी, मीडिया के सूत्रों का ऐसा कहना है कि सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम के तहत जीरो इनकम वाले सभी नागरिकों के बैंक खातों में एक तयशुदा रकम सीधा ट्रांसफर करेगी। जीरो इनकम वाले नागरिकों का मतलब साफ़ है कि वो नागरिक जिनके पास कमाई का कोई साधन नहीं है। इसमें किसान, छोटे व्यापारी और बेरोज़गार युवा शामिल होंगे। इस योजना के तहत देश के हर साधनहीन नागरिक को 2,000 से 2,500 रुपए तक हर माह दिए जा सकते हैं।

बता दें कि इस स्कीम के तहत क़रीब 10 करोड़ लोग लाभान्वित हो सकते हैं, ऐसा अभी तक अनुमान है। साल 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार को इस योजना को लागू करने की सलाह दी गई थी। उम्‍मीद की जा रही है कि नए साल के बजट में मोदी सरकार इस बड़ी योजना का ऐलान कर सकती है।

UBI पर वैश्विक सोच क्या है

एक तरफ़ जहाँ अर्थशास्त्री आर्थिक असमानता, आय में धीमी वृद्धि के कारण UBI की वकालत कर रहे हैं। उनके हिसाब से आने वाले कई दशक विश्व भर में व्यापक बदलावों से भरे हैं। तकनिकी उन्नयन, ऑटोमेशन, बड़े मशीन, रोबोट, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के प्रयोग से नौकरियाँ के न सिर्फ़ भारत में बल्कि यूरोप, मध्य एशिया, रूस तथा अमेरिका में भी तेज़ी से कम होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। यही कारण है कि हाल के वर्षों में वैश्विक स्तर पर यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने की माँग तेज़ हुई है।

भारत में UBI लागू होने की सम्भावना

अगर भारत की बात करें तो यहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मज़बूर है। तमाम रक्षात्मक उपायों के बाद भी ग़रीबों को सब्सिडी एवं सहायता प्रदान करने वाली कई सरकारी योजनाएँ विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त हैं। इन योजनाओं में GDP का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च होने के बावजूद भी इनके क्रियान्वयन में समस्या आती है।

बता दें कि, वर्तमान में मोदी सरकार की देश की जनता के उत्थान के लिए कुल 950 फ़्लैगशिप योजनाएँ चल रही हैं। इन योजनाओं को चलाने के लिये GDP का करीब 5% ख़र्च होता है। ये योजनाएँ ग़रीबों, वंचितों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों को लाभ पहुँचा रही हैं या नहीं या कितना पहुँच रहा है। इसके भी कुछ योजनाओं को छोड़कर, कोई वास्तविक आँकड़े मौजूद नहीं है।

आर्थिक सर्वेक्षण- 2016-17 में भी इस बात को स्वीकार किया गया है कि इन सभी योजनाओं को यदि बंद कर इनमें ख़र्च होने वाले पैसे को UBI की ओर ले जाया जाए तो ग़रीबों तक डायरेक्ट पैसा पहुँचेगा और उनकी स्थिति में वास्तविक सुधार नज़र आएगा। लाख कोशिशों के बाद भी सिस्टम में अनेक खामियों के चलते जिन लोगों को वास्तव में सरकारी सहायता की ज़रूरत होती है, उन तक कई योजनाओं के लाभ नहीं पहुँच पाते। इसलिये यह तर्क दिया जाता है कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम देश के सभी ज़रूरतमंद नागरिकों को बेसिक आय प्रदान कर इन समस्याओं को दूर कर सकती है।

UBI लागू करने की राह में कौन-सी प्रमुख अड़चने हैं

दुनिया भर में उच्च असमानता की स्थिति और ऑटोमेशन के कारण रोज़गार के नुकसान की संभावना ने कई उन्नतशील अर्थव्यवस्थाओं को भी यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) पर विचार करने को प्रेरित किया है। ताकि, उनके नागरिकों को न्यूनतम स्तर की ज़रूरी नियमित आय की गारंटी दी जा सके। हालाँकि, कई विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सबके लिए बेसिक इनकम का बोझ कोई बहुत विकसित अर्थव्यवस्था ही उठा सकती है। जहाँ सरकार का ख़र्च सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 40% से ज़्यादा हो और सरकार का टैक्स से होने वाली आय का आँकड़ा भी इसके आसपास ही हो।

यदि हम भारत के सन्दर्भ में बात करें तो टैक्स और GDP का यह अनुपात 17% से भी कम बैठता है। समुचित टैक्स संग्रहण न होने के कारण, हम तो बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं और आधारभूत ढाँचे के अलावा बाह्य और आंतरिक सुरक्षा, मुद्रा और बाहरी वैश्विक संबंधों से जुड़ी संप्रभु प्रक्रियाओं का बोझ भी उठाने में कठिनाई महसूस करते हैं।

भारत सहित दुनिया के वो देश जहाँ UBI पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू है या लागू हो चूका है

बेसिक इनकम की जब भी बात होती है तो उसकी राह में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ‘बेसिक आय’ का स्तर क्या हो? अर्थात वह कौन-सी राशि होगी जो व्यक्ति की न्यूनतम ज़रूरतों को पूरा कर सके? चलिए मान लेते हैं यदि हम ग़रीबी रेखा का पैमाना भी लेते हैं, जो कि औसतन 40 रुपए रोज़ाना है (गाँव में 32 रुपए और शहर में 47 रुपए), तो इस हिसाब से प्रत्येक व्यक्ति को लगभग 14000 रुपए वार्षिक या 1200 रुपए प्रति माह की न्यूनतम आय की गारंटी देनी होगी।

पहली नज़र में यह न्यूनतम राशि व्यावहारिक प्रतीत हो रही है लेकिन यदि हम ग़रीबी रेखा की इन आँकड़ो की नज़र से ही देखें तो अपनी कुल जनसंख्या की 25% शहरी वंचितों को सालाना 14000 रुपए और अन्य 25% ग्रामीण आबादी को वार्षिक 7000 रुपए देने की ज़रूरत पड़े और बाकी आबादी को कुछ भी न दें तो भी योजना की लागत आएगी प्रति वर्ष 6,93,000 करोड़ रुपए। हालाँकि, इस तरह के भेदभाव से शहरों की तरफ़ पलायन बढ़ेगा, जो एक नई समस्या को निमंत्रण देना होगा, कहने का तात्पर्य यह है कि इस प्रकार के भेदभाव को व्यवहारिक नहीं कहा जा सकता।

ग़ौरतलब है कि यह राशि वित्तीय वर्ष 2016-17 में सरकार के भुगतान बज़ट के 35% के बराबर है। इस गणित के हिसाब से वर्तमान परिस्थितियों में यह आवंटन सरकार के लिये संभव नज़र नहीं आ रहा। हो सकता है सरकार इस बोझ को कम करने के लिए पायलट रूप में योजना को कई चरणों में लागू करे या और भी कोई नया प्रावधान कर सकती है। वो क्या होगा? सरकार कौन से क़दम उठाएगी, इस पर अभी कुछ और कहना जल्दबाज़ी होगी। फिर भी मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर पिछले लगभग पाँच सालों तक बारीक़ नज़र रखने के आधार पर अभी ऐसी भविष्यवाणी की जा सकती है।

सम्भावित राह: मोदी सरकार से उम्मीदें

अहम सवाल ये है कि सबको पैसा देने के लिये धन कहाँ से आएगा? मोदी सरकार एक झटके में नोटबंदी की तरह यदि फ़्लैगशिप योजनायें बंद करती है तो विपक्ष को चुनावी साल में फिर से बवाल काटने का हथियार मिल जाएगा। विपक्ष के पिछले प्रदर्शन को देखते हुए शायद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कोई क़दम उठाएँ। अब अगर वर्तमान में लागू जन-कल्याणकारी योजनाओं के साथ-साथ UBI को लागू करना हो, तो इसके लिए अनुमानित राशि कहाँ से आएगी, ये सवाल और भी स्वाभाविक और गंभीर रूप में हमारे सामने आता है।

इसीलिये, यह माना जाता है कि भारत जैसे देश में UBI तभी संभव है, जब कर संरचना (Tax Structure) में व्यापक बदलाव कर, उसे प्रगतिशील या रैडिकल बनाया जाए। टैक्स स्ट्रक्चर में परिवर्तन के संकेत मोदी सरकार पहले भी नोटबंदी जैसा बड़ा क़दम उठा के दे चुकी है। आँकड़ों के हिसाब से नोटबंदी के बाद से टैक्स से प्राप्त आय में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। साथ ही GST के लागू होने से भी भारत सरकार का कर संग्रह बढ़ा है।

बता दें कि विकसित देशों में न्यूनतम मानव श्रम के उपयोग के साथ उत्पादन करने वाली मशीनों पर टैक्स लगाने का विचार चर्चित रहा है। और लोग वहाँ स्वतः भी ईमानदारी से टैक्स भरते हैं। हमारे यहाँ सारे जतन कर चोरी के लिए किये जाते हैं। इन बातों से सीख लेते हुए भारत में भी ऑटोमेशन का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों पर ज़्यादा टैक्स लगाया जा सकता है तथा कर संरचना में सुधार कर, उस पैसे को UBI में इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालाँकि, पूरे भारत में एक साथ UBI लागू करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। फिर भी, कुछ आवश्यक रक्षात्मक क़दम उठाकर इस चुनौती का समाधान किया जा सकता है।

वर्तमान में मोदी के वैश्विक प्रयासों से दक्षिण एशिया में स्थिरता का माहौल है एवं चीन, पाकिस्तान तथा अन्य पड़ोसी देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध को देखते हुए, यदि तेल के आयात व रक्षा ख़र्च में कमी कर दी जाए तो शायद इतना पैसा बचाया जा सकता है कि भारत आने वाले समय में UBI पर गंभीरता से विचार कर सकता है। एक गणना के मुताबिक, UBI को यदि वास्तव में यूनिवर्सल रखना है तो उसके लिये जीडीपी का लगभग 10% ख़र्च करना होगा। यदि इसे सीमित दायरे में सिर्फ़ कुछ तबकों के लिये ही लागू किया जाता है, तो फिर इस योजना को ‘यूनिवर्सल’ न कहकर ‘बेसिक इनकम’ कहना ज़्यादा समीचीन होगा।

इसमें दो राय नहीं है कि बेसिक इनकम का विचार भारत की जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सुविधाओं में सुधार के साथ-साथ देश के वंचित, साधनहीन जनसँख्या के जीवन-स्तर को भी ऊपर उठाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास होगा लेकिन सबके लिये एक बेसिक इनकम तब तक संभव नहीं है जब तक कि वर्तमान में सभी योजनाओं के माध्यम से दी जा रही सब्सिडी को ख़त्म न कर दिया जाए। अतः सभी भारतवासियों के लिये एक बेसिक इनकम की व्यवस्था करने की बजाए यदि मोदी सरकार सामाजिक-आर्थिक जनगणना की मदद से समाज के सर्वाधिक वंचित तबके के लिये एक निश्चित न्यूनतम आय की व्यवस्था करती है तो यह कहीं ज़्यादा प्रभावी और व्यावहारिक होगा।

बेसिक इनकम के माध्यम से लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष सुधार की उम्मीद की जा सकती है, साथ ही इससे सामाजिक सुधार को भी बल मिलेगा। पिछले पाँच सालों में जिस तेज़ी से मोदी सरकार भारत के बुनियादी विकास की रूप रेखा बना रही है वह आशा कि किरण है। हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए, ‘सबका साथ, सबका विकास’ मूल मंत्र पर चलते हुए सूरत की एक रैली में देश के लोगों से पुनः बहुमत की सरकार चुनने की अपील की। जिस तरह से देश उनके विज़न के प्रति उत्साह दिखा रहा है, वह आने वाले भारत के लिए सुखद उम्मीदों से परिपूर्ण है।

‘मोदी हिटलर’, ‘राहुल मुसोलिनी’ कांड के बाद नीति आयोग ने लीक रोज़गार रिपोर्ट पर दी सफ़ाई

सरकार ने बृहस्पतिवार (जनवरी 31, 2019) को लीक हुए रोज़गार रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि रिपोर्ट अभी भी तैयार की जा रही है और पूरी तरह से तैयार होने पर जारी की जाएगी। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, “सरकार ने नौकरियों से सम्बंधित डेटा जारी नहीं किया, क्योंकि यह अभी तैयार किया जाना बाकी है। आँकड़े तैयार किए जाने के बाद ही सार्वजनिक किए जाएँगे।”

इसके साथ ही राजीव कुमार ने कहा, “आँकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया अब भिन्न है, हम नए सर्वेक्षण में कंप्यूटर की मदद से व्यक्तिगत साक्षात्कारकर्ता के द्वारा सर्वे कर रहे हैं। 2 अलग तरह से जुटाए आँकड़ों की तुलना करना सही नहीं है। यह डेटा अभी सत्यापित नहीं है। इस कारण से इस रिपोर्ट को अंतिम रूप में उपयोग करना अनुचित है।”

उन्होंने कहा कि सरकार के थिंक-टैंक ने कहा है कि देश नए लोगों के लिए पर्याप्त नौकरियाँ पैदा कर रही है, भले ही वो अभी उच्च-गुणवत्ता वाले नहीं हैं। नीति आयोग के वीसी ने यह भी संकेत दिया कि अंतिम रिपोर्ट को मार्च के अंत तक अंतिम रूप दिया जा सकता है।

इन्फोसिस के पूर्व सीएफओ मोहनदास पई ने कहा है कि नौकरियों पर यह आधिकारिक डेटा नहीं है। हमें नहीं पता कि वह सही भी है या नहीं। ऐसे में जब तक सरकार आँकड़े जारी नहीं करती, तब तक इंतज़ार किया जाना चाहिए। आज हमारे पास डेटाबेस के लिए वैकल्पिक स्रोत हैं, जो कि बताते हैं कि पिछले साढ़े चार सालों में भारी संख्या में नौकरियाँ सृजित की गईं।

इससे पहले राहुल गाँधी ने ट्वीट करते हुए मोदी सरकार को घेरा था कि देश में बेरोज़गारी का स्तर 45 सालों में सबसे ज़्यादा है। राहुल गाँधी के ट्वीट का आधार नौकरी के सृजन से जुड़ा एक रिपोर्ट कार्ड था जो मीडिया में लीक हुआ था। इसमें 2017-18 में भारत में बेरोज़गारी दर 6.1% थी जो कि 1972-73 के बाद सबसे ज़्यादा है।

राहुल गाँधी ने मोदी को हिटलर कहते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा कहा, “फ़्यूहरर ने हर साल 2 करोड़ नौकरियों का वादा किया था। 5 साल बाद ये लीक हुई रिपोर्ट बताती है कि यह एक राष्ट्रीय आपदा बन चुकी है।”

भाजपा तुरंत बचाव में आई और इसे ‘फ़ेक न्यूज़’ कहकर राहुल गाँधी को मुसोलिनी कहा, “ऐसा ट्वीट वही आदमी कर सकता है जिसने पूरे जीवन में कभी भी ढंग की नौकरी न की हो और बिलकुल बेकार बैठकर फ़र्ज़ी ख़बरें शेयर करता रहता हो।”

नागरिकता संशोधन विधेयक पर हुई हिंसा, असम में BJP नेता की पिटाई

भारतीय जनता पार्टी के नेता और तिनसुकिया ज़िले के अध्यक्ष लखेश्वर मोरन पर नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे लोगों द्वारा हमला किया गया। यह घटना कथित तौर पर तिनसुकिया में घटित हुई है, जहाँ नेता लोक जागरण मंच की बैठक में भाग लेने के लिए पहुँचे थे। इसका आयोजन विवादास्पद बिल के बारे में ग़लत जानकारी से निपटने के लिए किया गया था।

नॉर्थ ईस्ट नाउ की रिपोर्ट के अनुसार, मोरन को प्रदर्शनकारियों द्वारा दिखाए गए काले झंडे के साथ स्वागत किया गया। इसके बाद, कुछ प्रदर्शनकारियों ने नेता का पीछा करना शुरू कर दिया। वीडियो में लोगों को बीजेपी नेता मोरन के ऊपर टायर और पत्थर फेंकते हुए देखा जा सकता है। इसके मद्देनज़र, पुलिस ने हस्तक्षेप किया और आगे की हिंसा से बचाते हुए मोरन को सुरक्षित बाहर निकाला।

बीजेपी नेता ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने उन पर लाठियाँ और लातें बरसाईं लेकिन पुलिस ने हस्तक्षेप नहीं किया। भीड़ के उपद्रव से बचने के लिए जब उन्होंने भागने का प्रयास किया तो प्रदर्शनकारियों द्वारा उनका पीछा किए जाने की वजह से वो गिर गए। उसके बाद मोरन फिर से भागने की कोशिश करने लगे लेकिन साइकिल से टकराने के बाद एक बार फिर से नीचे गिर गए।

घटना के बाद, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने इस घटना की निंदा की और यह भी कहा कि प्रदर्शनकारियों को ‘लक्ष्मण रेखा’ को पार नहीं करना चाहिए। उन्होंने राज्य सरकार से अपराधियों को बयाना देने की भी अपील की है। उन्होंने कहा कि बीजेपी प्रशासन को दबाने के लिए गुरुवार को अपने नेताओं को तिनसुकिया ज़िले में भी भेजेगी और हमलावरों को पकड़ने के लिए आग्रह करेगी।

नागरिकता संसोधन विधेयक एक नज़र में

राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद से समझौता हुआ था कि 1971 के बाद असम में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले बांग्लादेशियों को निकाला जाएगा। 1985 के असम समझौते (ऑल असम स्टूडेंट यूनियन ‘आसू’ और दूसरे संगठनों के साथ भारत सरकार का समझौता) में नागरिकता प्रदान करने के लिए कटऑफ तिथि 24 मार्च 1971 थी। नागरिकता बिल में इसे बढ़ाकर 31 दिसंबर 2014 कर दिया गया है। यानी नए बिल के तहत 1971 के आधार वर्ष को बढ़ाकर 2014 कर दिया गया है। नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई शरणार्थियों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर नागरिकता मिल जाएगी।

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य के अनुसार इस विधेयक से असम के स्थानीय समुदायों के अस्तित्व पर ख़तरा हो गया है। वे अपनी ही ज़मीन पर अल्पसंख्यक बन गए हैं। कैबिनेट द्वारा नागरकिता संशोधन बिल को मंजूरी देने से नाराज़ असम गण परिषद ने राज्य की एनडीए सरकार से अलग होने का ऐलान किया है।

यह संशोधन विधेयक 2016 में पहली बार लोकसभा में पेश किया गया था। विधेयक के ख़िलाफ़ धरना-प्रदर्शन कर रहे लोगों का कहना है कि ये विधेयक 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा। इसके तहत 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई थी, भले ही उसका धर्म कुछ भी हो।

नया विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। बीजेपी ने 2014 के चुनावों में इसका वादा किया था। कॉन्ग्रेस, तृणमूल कॉन्ग्रेस, सीपीएम समेत कुछ अन्य पार्टियाँ लगातार इस विधेयक का विरोध कर रही हैं। उनका दावा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती है, क्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष देश है।

बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिवसेना और जेडीयू ने भी ऐलान किया था कि वह संसद में विधेयक का विरोध करेंगे। बिल का विरोध कर रहे बहुत से लोगों का कहना है कि यह धार्मिक स्तर पर लोगों को नागरिकता देगा। तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी के अनुसार केंद्र के इस फ़ैसले से क़रीब 30 लाख लोग प्रभावित होंगे।

विरोध कर रही पार्टियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाना संविधान के आर्टिकल 14 की मूल भावनाओं के खिलाफ है। जबकि भाजपा नागरिकता बिल को पारित करके असम व दूसरे राज्यों में रहने वाले बाहरी लोगों को देश से बाहर निकालना चाहती ताकि नॉर्थ ईस्ट के मूल नागरिकों को किसी तरह से कोई समस्या न हो।

₹614 करोड़: अगस्ता वेस्टलैंड+एयर इंडिया घोटाले का यह है कच्चा चिट्ठा – एकदम Exclusive

अगस्ता वेस्टलैंड मामले और एयर इंडिया घोटाले में दुबई से प्रत्यर्पण कर लाए गए दीपक तलवार और राजीव सक्सेना को कस्टडी में भेज दिया गया है। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने इन दोनों को ईडी (ED) को 4 दिनों की कस्टडी सौंपी है।

दीपक तलवार और उसका धंधा

दीपक तलवार उन आरोपितों में से एक है, जिसने तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री की सहायता से प्राइवेट एयरलाइंस को मदद उपलब्ध कराई थी। यह मदद एयर इंडिया के लाभ वाले रूटों को बंद करवा के की गई थी। ऐसा करने से इन रूटों पर निजी एयरलाइंस के विमान को सीधा-सीधा लाभ पहुँचा था।

दीपक तलवार को एयर इंडिया के द्वारा विभिन्न विमानों की ख़रीद पर मिली किक बैक्स की बैंक डिटेल्स

दीपक तलवार ने कैसे और किन-किन निजी एयरलाइंस को फ़ायदा पहुँचाया था, इस तथ्य की पुष्टि उन निजी एयरलाइंस द्वारा किए गए भुगतान से होता है। क़तर, इमिरेट्स और एयर अरबिया इस हवाला के माध्यम से फायदा लेने वालों में से थे। इसके एवज़ में एक विदेशी बैंक एकाउंट (बैंक ऑफ़ सिंगापुर) में ₹212 करोड़ की घूस (किक बैक्स) ट्रांसफर की गई थी। यह अकाउंट जिस कंपनी के नाम पर था, उसका मालिक दीपक तलवार ही था। इस ₹212 करोड़ के अलावा ऊपर जो स्क्रीनशॉट दिया गया है, उससे भी दीपक तलवार ने ₹88 करोड़ की कमाई की।

राजीव सक्सेना: बड़ी मछली, बड़ा पैसा

राजीव सक्सेना वो शख़्स है, जो स्विट्ज़रलैंड में अलग-अलग बैंक एकाउंट्स को चलाता है। इन बैंक अकाउंट्स में अगस्ता वेस्टलैंड से आई किक बैक्स की रकम डाली गई थी। 8 सितंबर 2017 (या यह 9 अगस्त 2017 भी हो सकता है) तक राजीव सक्सेना के इन बैंक अकाउंट्स में कुल ₹314 करोड़ की राशि जमा की गई थी। इस पर अभी जाँच जारी है कि आख़िर यह किक बैक्स किसके फायदे के लिए की गई थी और किसके इशारे पर इन बैंक एकाउंट्स को रखा गया था।

राजीव सक्सेना द्वारा संचालित स्विट्ज़रलैंड के बैंक अकाउंट्स और उसमें आई किक बैक्स के पैसे

आपको बता दें कि भारत ने अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले पर कार्रवाई तेज़ करते हुए क्रिस्चियन मिशेल के बाद दो अन्य दलालों को दुबई से प्रत्यर्पित करने में सफलता पाई है। घोटाले के सह-अभियुक्त राजीव सक्सेना को बुधवार (जनवरी 30, 2019) सुबह 9:30 बजे उनके आवास से UAE की सुरक्षा एजेंसी द्वारा उठा लिया गया और शाम 5:30 को भारत के लिए प्रत्यर्पित किया गया। वहीं एक अन्य सफल कार्रवाई में दीपक तलवार को भी भारत लाया गया है, जिसे दुबई के अधिकारियों ने पकड़ा था।


चाहे गोलियॉं खानी पड़े लेकिन 21 फरवरी से राम मंदिर बनाएँगे: शंकराचार्य स्वरूपानंद

धार्मिक नेता शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने बुधवार (जनवरी 30, 2019) को बयान दिया कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत 21 फरवरी को होगी, चाहे फिर वहाँ सभा करने वालों को गोलियों का सामना करना पड़े।

प्रयागराज में कुंभ मेले में 3 दिनों की मंडली के अंत में राम मंदिर शिलान्यास करने की योजना बनाई गई थी। शंकराचार्य ने कहा कि साधु बसंत पंचमी (10 फरवरी) के बाद प्रयागराज से अयोध्या के लिए मार्च शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि वे गोलियों का सामना करने के लिए तैयार हैं और गिरफ़्तारी या इस प्रकार की अन्‍य किसी कार्रवाई से संतों के इस अभियान पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

शंकराचार्य ने भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली सरकार की मंदिर निर्माण के लिए कानून नहीं लाने के लिए आलोचना की, उन्होंने कहा कि उनके पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत था फिर भी प्रयास नहीं किए गए। प्रयागराज में चल रहे कुंभ में आज वृहस्पतिवार से विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की दो दिवसीय धर्म संसद की शुरुआत होने जा रही है। धर्म संसद के दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद होंगे।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने यह घोषणा ऐसे समय में की है, जब केंद्र सरकार ने अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति माँगने के लिये उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। एक नई याचिका में केन्द्र ने कहा कि उसने 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था।

याचिका में कहा गया कि राम जन्मभूमि न्यास (राम मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन देने वाला ट्रस्ट) ने 1991 में अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की माँग की थी। शीर्ष अदालत ने पहले विवादित स्थल के पास अधिग्रहण की गई 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने 1991 में विवादित स्थल के पास की 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था।

ममता सरकार शारदा चिट फंड घोटाले की जाँच में बाधा उत्पन्न कर रही है : CBI

केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार पर करोड़ों रुपये के शारदा पोंजी घोटाले की जाँच में रुकावट डालने का आरोप लगाया है। सीबाआई ने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार के ‘शत्रुतापूर्ण’ व्यवहार के चलते अंतिम आरोप पत्र दाखिल करने में देरी हो रही है।

“राज्य सरकार सीबीआई से शत्रुतापूर्ण व्यवहार कर रही है और शारदा घोटाले मामले में, राज्य स्तर के सरकारी तंत्र ने सभी सबूतों को नुक़सान पहुँचाया है।” यह बात सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने रिपोर्टों के हवाले से कही थी। यही कारण है कि, अधिकारी ने कहा, चार्जशीट दाखिल करने में देरी हो रही है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि बैंकिंग सुरक्षा धोखाधड़ी शाखा, विशेष अपराध शाखा और प्रीमियर जाँच एजेंसी के आर्थिक अपराधियों को ग़ैर-संचालित करार दिया था, क्योंकि पश्चिम बंगाल ने पिछले साल सीबीआई से सामान्य सहमति वापस ले ली थी। अधिकारी ने आगे कहा “केवल आर्थिक अपराध IV (चिट फंड जाँच विंग) राज्य में काम कर रहा है।”

इस महीने की शुरुआत में, सीबीआई ने रोज़ वैली चिट फंड घोटाले के सिलसिले में श्री वेंकटेश फिल्म्स के प्रमुख श्रीकांत मोहता को नामजद किया था। ऐसा आरोप लगाया जाता है कि मोहता के प्रोडक्शन हाउस को रोज़ वैली द्वारा 17 फ़िल्मों के निर्माण के लिए ₹25 करोड़ का भुगतान किया गया था।

शारदा घोटाला 2013 में उजागर हुआ था। कई राजनीतिक नेता इस पोंजी योजना से जुड़े थे जो 200 से अधिक कंपनियों के सहयोग से चलाया गया था। शारदा समूह ने कथित रूप से लाखों छोटे निवेशकों से 200 बिलियन से अधिक रुपये इकट्ठे किए थे। यह समूह अप्रैल 2013 में ध्वस्त हो गया था और एक साल बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने CBI को राज्य स्तर की SIT द्वारा जाँच कराए जाने का आदेश दिया था।

बता दें कि CBI ने हाल ही में शारदा चिट फंड घोटाले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम की पत्नी नलिनी चिदंबरम के ख़िलाफ़ भी आरोप पत्र दायर किया है।

पश्चिम बंगाल में CBI एकमात्र संस्थान नहीं है, जिसने राज्य सरकार पर इसका अनुपालन न करने का आरोप लगाया है। पिछले साल, एक आरटीआई के माध्यम से भी यह ख़ुलासा हुआ था कि पश्चिम बंगाल सरकार भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) को योजनाओं और ई-ख़रीद से संबंधित विवरण साझा करने से मना कर रही थी।