Wednesday, November 6, 2024
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कॉन्ग्रेस नेता के बयान पर कुमार विश्वास ने कहा ‘ऊँचाई पाते ही लोग अपनी औकात भूल जाते हैं’

मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “टाइगर अभी जिंदा है।” उनके इस बयान पर पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “शेर अब बूढ़ा हो गया है। शेर के अब दाँत और पंजे भी काम नहीं करते हैं, ऐसे में हम शेर को सर्कस में काम दे सकते हैं।”

कांग्रेस नेता अरूण यादव के इस बयान पर कुमार विश्वास ने तंज करते हुए ट्वीट किया, “थोड़ी ऊँचाई मिलते ही लोग अपनी औकात भूल जाते हैं। कितने कर्ज माफ हैं ये गुब्बारे, चंद साँसों में ही फूल जाते हैं।” इतना ही नहीं अपने ट्वीट में कांग्रेस नेता ने यह भी लिखा कि सत्ता हर झंडू को भ्रम दे देती है कि वो च्यवनप्राश हो गया।

आपको बता दें कि राजनीति में वाक जंग शिवराज सिंह चौहान और अरूण यादव के बीच कोई नई नहीं है। अरूण यादव उसी बुधनी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते हैं, जहाँ से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लड़ते हैं। अरूण यादव राज्य के कद्दावर कांग्रेस नेता के रूप में जाने जाते हैं। अरूण यादव के बयान पर ट्वीट करके एक तरह से कांग्रेस पार्टी के नेताओं को कुमार विश्वास ने उनकी जगह और मर्यादा की दिलायी है।

कांग्रेस नेती के इस बयान पर कुमार विश्वास ने ट्वीट किया। इसके बाद कई सारे ट्वीटर यूजर ने कांग्रेस के ऊपर हामला बोल दिया। एक ट्वीटर यूजर मोहिताबी ने लिखा, “राहुल गांधी ने कल अपने भाषण में कहा की मेरे कारण कुछ चोरों की नींद उड़ी हुई है… और आज प्रियंका चतुर्वेदी ने बताया कि सोनिया जी को रात में नींद नही आती।”

एक दूसरे यूजर सचिन ने लिखा, “जनता सरकार बनाती है, 2019 में एक बार फिर से भाजपा की सरकार बनेगी।”

शामली में लव जिहाद: ‘बिंदास आशिक़’ ने शादी के बाद लड़की का किया 3 लाख में सौदा

दिल्ली की एक हिंदू लड़की और शामली का एक मुस्लिम लड़का! शुरुआती प्रेम के बाद युवती ने आरोप लगाया कि शामली के मुस्लिम युवक ने न सिर्फ पहचान छिपाकर उससे शादी की बल्कि उसका शारीरिक और मानसिक शोषण भी किया। इससे पहले कि वह उसे सऊदी अरब में बेच देता, लड़की को साज़िश की भनक लग गई और पीड़िता गढ़ीपुख़्ता से भागकर थाने पहुंच गई। पीड़िता ने थाने पहुँचकर पूरी घटना बताई और एसपी को प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की गुहार लगाई। जिसके बाद पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया है।

युवती ने बताया कि वह फेसबुक पर ‘निषाद’ नाम से आईडी चलाती थी और मुस्लिम लड़का ‘बिंदास आशिक’ के नाम से फेसबुक पर आईडी चलाता था। दोनों ने एक दूसरे को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी और बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया। धीरे-धीरे यह बातचीत प्यार में बदल गई और दोनों ने साथ जीने-मरने की कसमें खाई। युवती का आरोप है कि एक दिन इस लड़के ने एक्सीडेंट का बहाना बनाकर उसे दिल्ली के एक होटल में बुलाया और उसे नशीली दवा देकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए उसकी अश्लील एमएमएस बना ली। जिसके बाद से लड़का न सिर्फ उसे लगातार ब्लैकमेल करता रहा, बल्कि उससे मोटी रकम भी वसूली।

इतना सब होने के बावजूद लड़की लोक-लाज वश चुप रही। लड़के ने ऐसे मौके का फ़ायदा उठाते हुए उसे ब्लैकमेल कर शादी के लिए तैयार कर लिया। शादी के लिए युवती दिल्ली से शामली आ गई, जहाँ उसका निकाह करा दिया गया। जब निकाह हुआ तब उसे पता चला कि जिससे वह प्यार करती है, वह लड़का मुस्लिम है।

निकाह के बाद लड़के ने उसका मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न करना शुरू कर दिया। लड़की के साथ मारपीट की घटनाएँ बढ़ने लगी। इतना ही नहीं, अब आरोपित इस लड़की को सऊदी अरब में बेच देना चाहता था। यहाँ तक कि उसका तीन लाख में सौदा भी कर दिया था। लेकिन इससे पहले कि आरोपित लड़की को बेचता, उसे मोबाइल के जरिए पूरी कहानी पता चल गई। और उसकी साज़िश फेल हो गई।

केरल लव ज़ेहाद मामले से जुड़ी तस्वीर

वैसे इस तरह का मामला नया नहीं है। इससे पहले भी बंगाल, झारखण्ड, मुज़फ्फरनगर और केरल में लव जिहाद के कई मामले रिपोर्ट हो चुके हैं। अगर अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो इस तरह का छद्म प्यार, धोखे का रूप लेकर न जाने कितनी युवतियों का जीवन बर्बाद करेगा।  कहीं न कहीं  ऐसी घटनाओं की जड़ में एक गहरी रूढ़ मानसिकता है, आमतौर पर सोशल मीडिया पर छद्म नाम से बढ़ा प्यार का सिलसिला यौन शोषण, ब्लैकमेलिंग और धोखे से शादी तक पहुँचता है। बाद में जब सच्चाई का पता चलता है तो लड़की कहीं की नहीं रहती।

देश के सबसे संवेदनशील अयोध्या मामले पर एक बार फिर टली सुनवाई, 10 जनवरी को नई पीठ करेगी फैसला

देश के सबसे संवेदनशील राम जन्मभूमि मामले पर बढ़ते विवादों में दायर की गई अपीलों पर आज सुनवाई एक बार और टाल दी गई है। इस मामले पर अब 10 जनवरी को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने आज (4 जनवरी 2019, शुक्रवार) बताया कि आगे की सुनवाई नई पीठ द्वारा की जाएगी।

आपको बता दें कि इस मामले पर पहले पूर्व चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की तीन अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही थी। जिसकी वजह से इस विवाद पर दो सदस्यों की बेंच विस्तार से सुनवाई नहीं कर सकती है, इसलिए इस मुद्दे पर तीन या फिर उससे अधिक जजों की बेंच ही सुनवाई करेगी। ये सुनवाई इलाहाबाद हाइकोर्ट के 30 सिंतबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर की गई कुल 14 अपीलों पर होगी।

नवंबर 2018 में जनहित याचिका लगाकर वकील हरिनाथ राम ने इस मामले पर जल्द से जल्द हर रोज़ सुनवाई करने की मांग की थी। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने भी इस बात को कहा था कि केंद्र सरकार चाहती है कि अयोध्या मामले पर रोज़ाना सुनवाई हो।

चुनाव नजदीक होने की वजह से राम मंदिर मामले को हर पार्टी और राजनैतिक संगठन द्वारा उछाला जा रहा है। केंद्र में एनडीए के सहयोगी शिवसेना का कहना है कि अगर 2019 के चुनावों से पहले राम मंदिर नहीं बनता है, तो ये जनता के साथ धोखा होगा। वहीं केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने अध्यादेश लाने का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट का ही आदेश मानना चाहिए।

इन सबसे अलग आपको बता दें कि 2019 का ये शुरुआती महीना, सुनवाई के लिए एक ऐसा समय है जब चुनाव की गर्मा-गर्मी में सरकार पर तमाम संगठनों द्वारा अध्यादेश लाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन हाल ही में एएनआई को दिए इंटरव्यू में मोदी ने इस बात को कहा है कि मंदिर से जुड़ा अध्यादेश लाया जाएगा या फिर नहीं, इस पर फैसला कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही लिया जाएगा। साथ ही उन्होंने कानूनी प्रक्रिया के धीमा चलने का कारण कांग्रेस को ठहराया। इस इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने जनता के मन मे उठ रहे सवालों और खुद पर लगाये जा रहे आरोपों पर भी खुलकर बात कही।

इलाहाबाद कोर्ट का पुराना फैसला

साल 2010 में 30 सिंतबर को इलाहाबाद के हाइकोर्ट में 3 सदस्यों की बेंच ने 2:1 के बहुमत से फैसला लिया था कि 2.77 एकड़ की ज़मीन को तीनों पक्षों में यानि सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए। लेकिन हाई कोर्ट के इस फैसले को किसी भी पक्ष द्वारा नहीं स्वीकार गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को लेकर चुनौती भी दी गई, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने इन फैसले पर 9 मई 2011 में रोक लगा दी। इलाहाबाद उच्च न्यायलय से निकलने के बाद ये मामला सर्वोच्च न्यायलय पर बीते 8 साल से है।

2019 लोकसभा चुनाव में क्या होगा महागठबंधन का भविष्य ?

प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने हाल ही में न्यूज एजेंसी एएनआई को करीब डेढ़ घंटे का इंटरव्यू दिया। उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि विरोधी पार्टियों के पास मोदी को हराने के लिए कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि महागठबंधन की आड़ में कुछ अवसरवादी पार्टियाँ और नेता अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। महागठबंधन के मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए और उनके नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाओं से सने हुए शब्दों को सुनकर यही लगता है कि मोदी को हराने के लिए ये नेता किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकते हैं।

यदि आप महागठबंधन के भविष्य के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हाल-फिलहाल की कुछ घटनाओं को समझना होगा। पहली घटना अक्टूबर 2018 की है जब तीन राज्यों में होने वाली विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही एक तरफ जहाँ वायुमंडल का पारा नीचे गिरने लगता है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक माहौल का पारा ऊपर चढ़ने लगता है।

ठीक इसी समय बसपा (बहुजन समाज पार्टी) सुप्रीमो मायावती ने कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए एक के बाद एक बयानों की मानो झड़ी ही लगा दी हो। उनके इन बयानों ने राजनीतिक माहौल को और अधिक गर्मा दिया है जो बहुतों के लिए सिरदर्दी का कारण भी बन गया है। अपने एक बयान में उन्होंने कड़े अंदाज़ में ये मांग की है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में यदि कांग्रेस या अन्य पार्टी उन्हें सम्मानजनक सीटें देती है तो ठीक, वर्ना वो किसी से भीख नहीं मांगेंगी।

दूसरी घटना इसके ठीक एक महीने बाद नवंबर की है जब ममता बनर्जी ने चंद्र बाबू नायडू से मिलने के बाद साफ शब्दों में कहा कि कोई एक नहीं हर कोई महागठबंधन का चेहरा होगा। इसके बाद अब बारी तीसरी घटना की जो कि दिसंबर 2018 की है। तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान महागठबंधन का हिस्सा बताए जाने वाले तीन बड़े नेताओं – ममता बनर्जी, अखिलेश यादव व मायावती – ने समारोह से नदारद रहकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी।

इन सभी घटनाओं से साफ है कि महागठबंधन में कोई एक मान्य नेता नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि महागठबंधन का माजरा बिन दूल्हा बारात जैसा ही है। कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखने के बाद पता चलता है कि केंन्द्र हो या फिर राज्य, जब कभी कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई, इस पार्टी ने अपने शर्तों और हितों को जरूर आगे बढ़ाया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मायावती ने 2 अप्रैल 2018 में कानून व्यवस्था बदहाल करने वाले दलितों के मुकदमे को वापस लेने की बात कही है।

इससे साफ हो गया कि यदि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन बनता है तो सभी पार्टियों द्वारा अपनी-अपनी शर्तें थोपी जाएँगी। इस गठबंधन की जिम्मेदारी किसी एक पार्टी के पास नहीं होगी। हर पार्टी लूट-खसोट में लग जाएगी। इस तरह हम कह सकते हैं कि हालात कुछ ऐसे होंगे कि, ‘तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊँगा’। महागठबंधन के बनने से देश कैसे प्रभावित होता है इसके बारे में इतिहास की कुछ घटनाओं को याद किया जा सकता है।

जब इंदिरा सरकार ने चरण सिंह पर थोपी स्वार्थी शर्तें

इमरजेंसी के बाद अगस्त 1979 की बात है। जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद केंन्द्र में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी। इस सरकार को बाहर से इंदिरा का समर्थन था। इंदिरा गांधी ने कुशल राजनीतिक व्यापारी की तरह चौधरी साहब से तोल-मोल करना शुरू कर दिया। इंदिरा चाहती थी कि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार ने संजय गांधी के उपर जो मुकदमें लगाए हैं, उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाए। किसान नेता चौधरी साहब ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के हितों को सरकार द्वारा किनारा किये जाने के बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इस तरह चौधरी साहब की नेतृत्व वाली सरकार गिर गयी।

भ्रष्टाचार के मामले पर राजीव गांधी का दबाव

यह बात उत्तर प्रदेश के बलिया वाले बाबू साहब के सरकार की है। बलिया के बाबू साहब इन दिनों राजीव गांधी की मदद से देश की सत्ता में बैठे थे। राजीव गांधी ने भी अपनी माँ की तरह ही मौका मिलते ही अपनी शर्तों को सरकार के ऊपर थोप दिया। अपने बिंदास अंदाज़ वाले बाबू साहब को यह शर्त नागवार गुजरी, उन्होंने राजीव के इस फैसले को ठुकरा दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन-सी शर्त थी जिसके चलते चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद तक की परवाह नहीं की। दरअसल राजीव बोफोर्स के मामले को दबाना चाहते थे। इस मामले को रफा-दफा करने से सरकार ने मना कर दिया जिसके बाद बाबू साहब को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।

कर्नाटक में भी शर्तों पर ही समर्थन

2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा को कांग्रेस ने अपने दांव पेंच के जरिये सरकार बनाने से रोक दिया। कर्नाटक में जेडीएस (जनता दल सेक्यूलर) और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनने के बाद वेणुगोपाल ने कहा कि राहुल गांधी जी ने कहा है कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है। देश के बड़े हितों को ध्यान में रखकर कुछ फैसले लिए जाते हैं। इस तरह वेणुगोपाल ने माना कि कांग्रेस जेडीएस के सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार है।

यही नहीं राज्य के वित्त मंत्रालय और सिंचाई मंत्रालय जैसे रसूख वाले पद को भी कांग्रेस ने सिर्फ इसलिए हाथ से जाने दिया क्योंकि कांग्रेस जेडीएस को हर हाल में महागठबंधन में बनाए रखना चाहती है। इस तरह दोनों ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने –अपने हितों के लिए गठबंधन किया है। जिस दिन उनमें से किसी एक का हित नजरअंदाज होगा, इन पार्टियों का गठबंधन टूट जाएगा।

2019 कहीं अगस्ता एवम् अन्य घोटालों की जाँच दबाने की कोशिश न बन जाए

अगस्ता वेस्टलेंड मामले में सोनियां गांधी का नाम आने के बाद मामले में गांधी पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा शिकंजा मजबूत होता जा रहा है। ऐसे में यदि महागठबंधन की सरकार आती है तो पहले की तरह ही इस बार भी राहुल बाबा इस संगीन मामले को दबा सकते हैं। यही नहीं अपने जीजा के ऊपर चल रहे मामले को भी राहुल बाबा रफा-दफा कर सकते हैं। इस तरह एक तरह से मोदी के ख़िलाफ़ आने वाली यह महागठबंधन की सरकार भी हितों व स्वार्थ के आधार पर ही बन सकती है।

साथ ही, ऐसे लोगों के एक मंच पर आने से अर्थ यही निकलता है कि किसी भी तरह से एक ऐसी सरकार को सत्ता से बाहर फेंक दिया जाए जो भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख़ रखती है। मोदी सरकार ने न सिर्फ़ भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसा बल्कि अपने पूरे मंत्रीमंडल को बेदाग़ बनाए रखने की बात बार-बार कही है, साबित की है। यही कारण है कि अवसरवादी नेता, जिनमें से कई ज़मानत पर बाहर हैं, या जिन पर आरोप तय किए जा रहे हैं, एक साथ आकर ‘मोदी बनाम सारे’ की रट लगाकर, किसी भी क़ीमत पर सत्ता में आना चाहते हैं।

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना भड़काऊ, उकसाने वाला और गैरज़रूरी काम: शशि थरूर

अक्सर अपने विवादित बयानों और अजीबोगरीब अंग्रेजी शब्दावली के इस्तेमाल के लिए चर्चा में रहने वाले शशि थरूर ने सबरीमाला मंदिर विवाद पर अपना विचार रखकर सबको चौंका दिया है। शशि थरूर ने इस विषय पर बोलते हुए कहा, “सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना भड़काऊ, उकसाने वाला और गैरज़रूरी काम है।” साथ ही स्पष्टीकरण देते हुए शशि थरूर ने ये भी कहा है कि हालांकि वो महिला सशक्तिकरण के समर्थक हैं, लेकिन फिर भी सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का जाना उकसाने वाला काम है। अपने बयान में शशि थरूर ने ये आरोप भी लगाए हैं कि सी.पी.एम.और भाजपा द्वारा किसी पवित्र स्थान को राजनीति का मंच बना देना एक निंदनीय काम है।

शशि थरूर का ये बयान बुधवार को करीब 40 वर्ष की दो महिलाओं, बिन्दु और कनकदुर्गा के बुधवार सुबह 3.45 मिनट पर मंदिर में प्रवेश करने की घटना के बाद आया है। न्यूज़ चैनल ‘मिरर नाव’ को दिये गए अपने इंटरव्यू में शशि थरूर ने कहा है, “कोई भी महिला जो भगवान अयप्पा में श्रद्दा रखती है, अपनी पचास साल कि उम्र से पहले भगवान अयप्पा कि पूजा नहीं करना चाहेगी।” महिलाओं के प्रवेश के पश्चात मंदिर के ‘शुद्धिकरण’ के फैसले भी देशभर में, विशेषकर लिबरल मीडिया के लोगों ने नाराजगी व्यक्त की है।

क्योंकि सबरीमाला मंदिर विवाद आस्था से जुड़ा हुआ प्रश्न  है, इसीलिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा भगवान अयप्पा के मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को मंजूरी मिलने के बाद से ही इस बात पर लगातार बहस का माहौल बना हुआ है, कि क्या वाकई में महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश करना चाहिए या नहीं ?

वहीं वामपंथी मीडिया इस बात से हैरान भी है कि अक्सर महिलाओं के समर्थन में बयान देने वाले शशि थरूर ने अचानक महिलाओं के प्रवेश को उकसाऊ कैसे बता दिया है। शशि थरूर के समर्थकों ने भी ट्वीटर पर शशि थरूर के महिलाओं के प्रति नजरिए के विरोध में ट्वीट कर उनसे अपनी नाराजगी व्यक्त की। कुछ लोगों ने प्रश्न किए कि अगर मंदिर मुद्दे पर भाजपा और सी.पी.एम. हीरो और विलेन का रोल निभा रही है तो फिर काँग्रेस का इसमें क्या योगदान रहा  है ? ट्वीटर पर शशि थरूर के प्रसंशकों ने उनपर अपनी ‘सुविधानुसार उदारवादी’ होने के आरोप भी लगाए हैं।

इस बयान पर बरखा दत्त ने ट्वीट कर के कहा है कि “शशि थरूर ने सबरीमाला पर अपनी स्थिति बदल दी है।”  शशि थरूर ने बरखा दत्त को दिये इंटरव्यू में ये भी कहा है, ” भले ही वो सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन फिर भी वो आस्था के मसले पर जनता कि भावनाओं के साथ हैं। “

शशि थरूर अक्सर सामाजिक और राजनीतिक घटनाक्रमों पर अपनी राय देकर चर्चा मे आ जाते हैं और महिला सशक्तिकरण पर जनता उनके बयानों को लेकर उत्साहित भी रहती है। इसलिए सबरीमाला विवाद पर शशि थरूर का बयान उनके समर्थकों के लिए हतोत्साहित करने वाली घटना रही है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप महिला विरोधी बयान के बाद अपने अगले बयान में शशि थरूर किस दिशा में राय रखते हैं ?

अंतरराष्ट्रीय नोबेल विजेता वैज्ञानिकों ने की पीएम की तारीफ; कहा मोदी समझते हैं विज्ञान का महत्व

विज्ञान के क्षेत्र में विश्व के दो प्रमुख नोबेल विजेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा है कि वो विज्ञान का महत्व समझते हैं और भारत में विज्ञान को बढ़ावा देने के लिए उनके पास नजरिया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि मोदी को ये बात पता है कि विकास के क्षेत्र में विज्ञान का क्या महत्व है। इजराइल के बायोकेमिस्ट अवराम हेर्शको और जर्मन साइकोलोजिस्ट थॉमस सूडहॉफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ एक अनौपचारिक ‘चाय पे चर्चा’ के बाद ये बातें कही। बता दें कि अभी पंजाब के फगवाड़ा में 106वां भारतीय विज्ञान कांग्रेस आयोजन किया जा रहा है जिसमे भाग लेने के लिए ये दोनों वैज्ञानिक भारत आये हुए हैं। ये कार्यक्रम लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 3 जनवरी को शुरू हुआ और 7 तक चलेगा।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक खबर के अनुसार समाचार एजेंसी से बात करते हुए इन दोनों ने ये बातें कही। 20014 में ubiquitin-mediated protein degradation की खोज के लिए रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीत चुके अवराम ने कहा कि सभी नेता विज्ञान के महत्व को नहीं समझते लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को इसकी समझ है। उन्होंने कहा;

“अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ये समझते हैं कि विज्ञान और अनुसंधान पैसों की बर्बादी है लेकिन इसके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी उनकी तरह नहीं सोंचते। मैंने आज उनसे मिलने के बाद यह निष्कर्ष निकाला।”

पहली बार भारत आए अवराम ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कुछ सुझाव भी मांगे और उनकी बातों को ध्यान से सुना। वहीं 2013 में नोबेल जीतने वाले सूडहॉफ ने कहा कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार विज्ञान और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए पैसे खर्च नहीं कर रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री मोदी का इस मामले में नजरिया काफी आशावादी है। उन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए आगे कहा;

“भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी काफी बुद्धिमान हैं। मुझे आज उनसे मिल कर यही लगा। मोदी ने इस कार्यक्रम के लिए जो तयारी की थी उस से और उनकी विज्ञान की समझ से मैं काफी प्रभावित हूँ।”

सूडहॉफ ने कहा कि पीएम मोदी की मुद्दों पर काफी अच्छी पकड़ है। उन्होंने कहा कि पीएम ने उनकी बातों को ध्यान से सुना और उनसे सहमत भी हुए। बकौल सूडहॉफ, उन्होंने पीएम मोदी को बताया कि देश में विज्ञान और अनुसंधान के लिए एक मौलिक संस्कृति का होना जरूरी है जिस पर प्रधानमंत्री ने हामी भरी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी देश के आर्थिक विकास के लिए ज्ञान पर आधारित संस्कृति के विकास का महत्व समझते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि मोदी के पास विज्ञान और अनुसंधान के महत्व को समझने के लिए बुद्धिमता और समर्पण है।

ज्ञात हो कि कल पीएम मोदी ने जालंधर में 5 दिनों तक चलने वाले 106वें विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन किया था। इस अवसर पर प्रधानमंत्री छात्रों से रूबरू भी हुए और उनके द्वारा बनाये गए रोबोट्स व अन्य उत्पादों को देखा। इस समारोह में देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर से कई शीर्ष वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं।

बिना फ़ीस लिए 1984 दंगा पीड़ितों का केस लड़ने वाले फुल्का ने दिया AAP से इस्तीफा

पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। एचएस फुल्का को 1984 सिख दंगा के पीड़ितों को इन्साफ दिलाने के लिए मुफ्त में केस लड़ने के लिए भी जाना जाता है। वो पिछले तीस वर्षों से इन मुकदमों में पीड़ितों की तरफ से पैरवी कर रहे हैं। गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल को एक पत्र लिख कर उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अपने पत्र में उन्होंने लिखा;

मैं आम आदमी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देता हूँ। मुझे पार्टी की सेवा करनेका मौक़ा देने के लिए आपका धन्यवाद।”

जब फुल्का से पूछा गया कि क्या आम आदमी पार्टी द्वारा राजीव गाँधी का भारत रत्न वापस लेने सम्बन्धी प्रस्ताव का समर्थन नहीं करने के कारण वो पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि उनके इस्तीफे का सिर्फ एक यही कारण नहीं है बल्कि कई और भी कारण हैं और वो शुक्रवार को एक प्रेस कांफ्रेंस कर बांकी बातों का खुलासा करेंगे। फुल्का के इस्तीफे को पंजाब में AAP के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि इस साल लोकसभा चुनाव भी होने हैं और इस से पार्टी की चुनावी तैयारियों पर भी असर पड़ सकता है। ज्ञात हो कि उन्होंने तीन महीने पहले विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया था। कई लोगों का मानना है कि 1984 सिख दंगा के पीड़ितों के मुक़दमे पर ध्यान देने के लिए उन्होंने ये कदम उठाया है।

एक ट्वीट के माध्यम से फुल्का ने अधिक जानकारी देते हुए कहा;

‘मैंने AAP से इस्तीफा दे दिया है और आज केजरीवाल जी को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। यद्यपि उन्होंने मुझे इस्तीफा न देने को कहा लेकिन मै अड़ा रहा। कल शाम 4 बजे प्रेस क्लब, रायसीना रोड में मीडिया से बात करूंगा जहां मैं AAP से अपने इस्तीफे की वजह और आगे के प्लान के बारे में बताऊंगा।’

कुछ दिनों पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बातचीत में फुल्का ने बताया था कि राजनीती में आना उनकी गलती थी। फुल्का ने कहा कि वो राजनीती में इस उम्मीद से आये थे कि कांग्रेस के खिलाफ कोई बड़ा मंच खड़ा हो सके। बता दें कि फुल्का जनवरी 2014 में AAP में शामिल हुए थे और उसी साल हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी की तरफ से उम्मीदवार भी थे। बाद में उन्होंने पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता के तौर पर कार्यभार सम्भाला लेकिन फिर उस पद से भी उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। अभी कुछ दिनों पहले सार्वजनिक तौर पर बयान देते हुए भी फुल्का ने कहा था कि अगर AAP का कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है तो वह पार्टी से इस्तीफा दे देंगे।

हलांकि अभी AAP और कांग्रेस में गंथान्बंधन को लेकर कोई खबर नहीं आई है, ऐसे में फुल्का के इस्तीफे की वजह आज होने वाले उनके प्रेस कांफ्रेंस के बाद ही पता चलेगा। इस बारे में पंजाब में विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि उन्हें फुल्का के इस्तीफे की खबर सोशल मीडिया से मिली है और पार्टी के साथ उनका कोई मतभेद नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि वो पार्टी के लिए पंजाब में एक मजबूत स्तम्भ रहे हैं।

लात मारकर अफसरों को बाहर किया जाएगा: मध्य प्रदेश श्रम मंत्री

15 साल के बाद मध्य प्रदेश की सत्ता हाथ में आते ही कांग्रेस पार्टी के नेता बेलगाम हो गए हैं। पार्टी के नेताओं का जोश में होश खो बैठने जैसा आलम है। मध्य प्रदेश के बमौरी से विधायक व राज्य के वर्तमान श्रम मंत्री महेंन्द्र सिंह सिसोदिया ने विवादास्पद बयान दिया है। अपने क्षेत्रीय दौरे के दौरान उन्होंने कहा, “किसी अधिकारी को फोन लगाओ यदि वह अधिकारी आपकी बात नहीं सुनता है, तो आप मुझे इस बात की जानकारी दो। मैं ऐसे अधिकारियों को राज्य से लात मारकर बाहर करूँगा।”

आपको बता दें कि महेंन्द्र सिंह सिसोदिया की गिनती राज्य के कद्दावर नेताओं में होती है। यही नहीं मध्य प्रदेश की राजनीति में सिसोदिया को ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे का मजबूत नेता माना जाता है। मंत्री साहब का यह बयान सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर ट्रेंड कर रहा है। मंत्री के बयान वाले वीडियो को ट्वीटर पर भी लोग खूब लाइक, डिसलाइक और कमेंट कर रहे हैं। आइए जानते हैं ट्वीटर पर लोगों की क्या प्रतिक्रिया है।

एमएनआई के ट्वीट पर कमेंट करते हुए वॉल्वरीन नाम के एक सोशल मीडिया यूजर ने कमेंट किया ‘साँप को चाहे जितना दूध पिलाओ वो साँप ही रहता है।’

ट्वीटर पर ही एक दूसरे यूजर अंशु चौधरी ने कमेंट किया है ‘देखिये फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात करने वाले लोग किस तरह की बात करते हैं। सत्ता में आने के बाद तरह विरोधी को दबाया जाता है, इस मामले में भाजपा को कांग्रेस से सीखने की जरूरत है।’

कुनाल सिंह नाम के एक यूजर ने कमेंट में लिखा है ‘अभी-अभी मंत्री बना है और इतने जल्दी घमंड चढ़ गया इसपे।’  

सुमित सिंह नाम के एक यूजर ने कमेंट में लिखा है ‘फिर तो पप्पू को पहले लात पड़ेगी।’

डरपोक सावरकर नाम के एक यूजर ने लिखा ‘और तुम काम नहीं करोगे तो जनता अगली बार तुम्हें लात मारेगी।’

बढ़ते विवादों पर अनुपम खेर ने तोड़ी चुप्पी, सिनेमा और राजनीति को बताया एक दूसरे का असली चेहरा

राष्ट्रीय अवार्डों से सम्मानित बॉलीवुड के दिग्गज कलाकार अनुपम खेर अपनी आने वाली फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की वजह से विवादों का हिस्सा बनते जा रहे हैं। कुछ समय पहले उनकी इस फ़िल्म का ट्रेलर लॉन्च हुआ था, जिसके कारण उन्हें काफी सोशल मीडिया पर काफी ट्रॉल किया जाने लगा।

बीते बुधवार, अनुपम खेर को और इस फ़िल्म में उनके साथी कलाकारों पर बिहार, मुजफ्फरपुर के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत भी दर्ज की गई है। जिसकी सुनवाई 8 जनवरी को होनी है। बता दें कि ये शिकायत उनके ऊपर दिग्गज राजनेताओं की छवि बिगाड़ने की वजह से की गई है।

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर बढ़ते विवादों की वजह से अनुपम खेर ने बयान दिया है, कि सिनेमा और राजनीति ऐसी चीजें नहीं हैं, जिन्हें एक दूसरे से अलग किया जा सके। अनुपम की माने तो ये दोनों (राजनीति और सिनेमा) एक दूसरे का प्रतिबिंब हैं। इन दोनों के प्रभावों का असर एक दूसरे पर हमेशा से देखने को मिलता रहा है। अनुपम का कहना है कि ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ किसी नेता की छवि बिगाड़ने के लिए बनाई गई फ़िल्म नहीं है, बल्कि इस फ़िल्म में ये दर्शाया गया है कि किस तरह एक साधारण व्यक्ति अपनी क्षमता और काबिलियत के आधार पर देश का प्रधानमंत्री बनता है।

अनुपम खेर ने आईएएनएस को दिए इंटरव्यू के दौरान कहा कि जब दर्शक सिनेमा हॉल में घुसता है तो वह सिर्फ दर्शक ही होता है, लेकिन जब वो बाहर आता है तब उनके मन में कई तरह की बातें घूम रही होती हैं, क्योंकि राजनीति और सिनेमा दोनों एक दूसरे का चेहरा दिखाती हैं।

अनुपम ने अपनी बात को बढ़ाते हुए कहा कि एक फ़िल्म निर्माता और कलाकार कभी इस बात को तय नहीं कर सकते कि जनता एक निश्चित पार्टी को क्यों वोट देती है। हर किसी के पास अच्छे और बुरे की सूची होती है, जिससे वो तय करते हैं कि वो किस पार्टी को वोट देंगे। अब इसमें कोई फ़िल्म अपना योगदान कैसे दे सकती है?

अनुपम की माने तो ये फ़िल्म मात्र एक साधारण व्यक्ति की कहानी है, जो मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मा और और अपनी काबिलियत की वजह से भारत का प्रधान मंत्री बन पाया।

ये फ़िल्म 2014 के चुनावों में मनमोहन सिंह के जीवन पर आई एक किताब पर आधारित है। जिसमें मनमोहन सिंह की जीवन यात्रा का विवरण दिया गया है। ये किताब संजय बारू ने लिखी है जो कि उनके प्रधानमंत्री काल में उनके मीडिया सलाहकार और मुख्य प्रवक्ता रह चुके हैं।

माकन का दिल्ली कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा, शीला ने कहा AAP से मिला सकती हैं हाथ

अजय माकन ने दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। एक ट्वीट के द्वारा अपने इस्तीफे की जानकारी देते हुए माकन ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया। अजय ने अपने बयान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।

ख़बरों के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के साथ दिल्ली कांग्रेस में पार्टी मामलों के प्रभारी पीसी चाको और अजय माकन की गुरुवार शाम को एक बैठक हुई जिसमे राहुल ने माकन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। अजय माकन को 2015 में दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था और पीछे साल सितम्बर में भी उनके इस्तीफे की खबर उड़ी थी जिसे कांग्रेस पार्टी ने उस समय नकार दिया था। यूपीए के शासनकाल में केंद्रीय मंत्री रहे अजय माकन दो बार लोकसभा सांसद और तीन बार दिल्ली से विधायक रह चुके हैं।

तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने एक बयान देते हुए कहा है कि अगर पार्टी आलाकमान उन्हें दिल्ली में कांग्रेस की टीम का नेतृत्व करने का मौका देता है तो वह उसके लिए पूरी तरह तैयार है। इंडिया टुडे के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा कि अगर पार्टी उन्हें उनके प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल के लिए प्रचार करने को कहती है तो वह उसके लिए भी तैयार हैं। ज्ञात हो कि 2013 के दिल्ली चुनावों में केजरीवाल ने शीला दीक्षित को ही मुख्यतः अपने निशाने पर रखा था और उनके खिलाफ धुआंधार प्रचार कर पहली बार सत्ता पर काबिज़ हुए थे।

अभी कुछ महीनों पहले ही फ्रांस में शीला दीक्षित की हार्ट सर्जरी हुई थी और वो काफी दिनों से बीमार भी थी। बीते अप्रैल में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल उनका हालचाल लेने उनके निवास पर भी पहुंचे थे। उस से पहले शीला ने अपनी हार्ट सर्जरी में हो रही देरी के लिए दिल्ली की आआप सरकार को जिम्मेदार ठहराया था और कहा था कि सरकार द्वारा समय पर खर्चे की मंजूरी न देने के कारण उनकी सर्जरी में विलम्ब हुआ। अब उनके नए बयानों से ये साफ़ हो गया है कि वो केजरीवाल के साथ हाथ मिलाने और उनके साथ अपनी राजनितिक दुश्मनी को भुलाने के लिए तैयार हैं।

दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस और AAP के बीच चुनावी गठबंधन के लिए अगर कोई बातचीत चल भी रही तो वह अभी उनसे अनभिज्ञ है लेकिन किसी भी अंतिम निर्णय तक पहुँचने से पहले सभी पहलू को ध्यान में रखा जायेगा। शीला दीक्षित ने चौंकाने वाला बयान देते हुए कहा कि इन सब मामलो में सामान्य पार्टी कार्यकर्ताओं की राय नहीं ली जा सकती है और हमे हर हाल में आलाकमान का जो भी फैसला हो उसे ही मानना पड़ता है।

हलांकि AAP से गठबंधन या अगले दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष के लिए कांग्रेस ने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है और इस बारे में कोई आधिकारिक बयान भी नहीं आया है। अब देखना यह है कि माकन के ताजा इस्तीफे के बाद पार्टी की दिल्ली में रणनीति क्या रहती है। इस साल लोकसभा के चुनाव भी होने वाले हैं और अभी दिल्ली की सात की सात लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में है, ऐसे में दिल्ली कांग्रेस में क्या बदलाव किया जाता है इसपर सबकी नजरें टिकी हुई है।