प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने हाल ही में न्यूज एजेंसी एएनआई को करीब डेढ़ घंटे का इंटरव्यू दिया। उन्होंने इस इंटरव्यू में कहा कि विरोधी पार्टियों के पास मोदी को हराने के लिए कोई मुद्दा नहीं है, बल्कि महागठबंधन की आड़ में कुछ अवसरवादी पार्टियाँ और नेता अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। महागठबंधन के मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए और उनके नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षाओं से सने हुए शब्दों को सुनकर यही लगता है कि मोदी को हराने के लिए ये नेता किसी भी स्तर तक नीचे गिर सकते हैं।
यदि आप महागठबंधन के भविष्य के बारे में जानना चाहते हैं तो इसके लिए आपको हाल-फिलहाल की कुछ घटनाओं को समझना होगा। पहली घटना अक्टूबर 2018 की है जब तीन राज्यों में होने वाली विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही एक तरफ जहाँ वायुमंडल का पारा नीचे गिरने लगता है, वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक माहौल का पारा ऊपर चढ़ने लगता है।
ठीक इसी समय बसपा (बहुजन समाज पार्टी) सुप्रीमो मायावती ने कड़ा रुख़ अख़्तियार करते हुए एक के बाद एक बयानों की मानो झड़ी ही लगा दी हो। उनके इन बयानों ने राजनीतिक माहौल को और अधिक गर्मा दिया है जो बहुतों के लिए सिरदर्दी का कारण भी बन गया है। अपने एक बयान में उन्होंने कड़े अंदाज़ में ये मांग की है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में यदि कांग्रेस या अन्य पार्टी उन्हें सम्मानजनक सीटें देती है तो ठीक, वर्ना वो किसी से भीख नहीं मांगेंगी।
दूसरी घटना इसके ठीक एक महीने बाद नवंबर की है जब ममता बनर्जी ने चंद्र बाबू नायडू से मिलने के बाद साफ शब्दों में कहा कि कोई एक नहीं हर कोई महागठबंधन का चेहरा होगा। इसके बाद अब बारी तीसरी घटना की जो कि दिसंबर 2018 की है। तीन राज्यों में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान महागठबंधन का हिस्सा बताए जाने वाले तीन बड़े नेताओं – ममता बनर्जी, अखिलेश यादव व मायावती – ने समारोह से नदारद रहकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी।
इन सभी घटनाओं से साफ है कि महागठबंधन में कोई एक मान्य नेता नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि महागठबंधन का माजरा बिन दूल्हा बारात जैसा ही है। कांग्रेस पार्टी के इतिहास को देखने के बाद पता चलता है कि केंन्द्र हो या फिर राज्य, जब कभी कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई, इस पार्टी ने अपने शर्तों और हितों को जरूर आगे बढ़ाया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मायावती ने 2 अप्रैल 2018 में कानून व्यवस्था बदहाल करने वाले दलितों के मुकदमे को वापस लेने की बात कही है।
इससे साफ हो गया कि यदि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन बनता है तो सभी पार्टियों द्वारा अपनी-अपनी शर्तें थोपी जाएँगी। इस गठबंधन की जिम्मेदारी किसी एक पार्टी के पास नहीं होगी। हर पार्टी लूट-खसोट में लग जाएगी। इस तरह हम कह सकते हैं कि हालात कुछ ऐसे होंगे कि, ‘तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी पीठ खुजाऊँगा’। महागठबंधन के बनने से देश कैसे प्रभावित होता है इसके बारे में इतिहास की कुछ घटनाओं को याद किया जा सकता है।
जब इंदिरा सरकार ने चरण सिंह पर थोपी स्वार्थी शर्तें
इमरजेंसी के बाद अगस्त 1979 की बात है। जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद केंन्द्र में चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी थी। इस सरकार को बाहर से इंदिरा का समर्थन था। इंदिरा गांधी ने कुशल राजनीतिक व्यापारी की तरह चौधरी साहब से तोल-मोल करना शुरू कर दिया। इंदिरा चाहती थी कि इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी की सरकार ने संजय गांधी के उपर जो मुकदमें लगाए हैं, उन सभी मुकदमों को वापस लिया जाए। किसान नेता चौधरी साहब ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद कांग्रेस के हितों को सरकार द्वारा किनारा किये जाने के बाद कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। इस तरह चौधरी साहब की नेतृत्व वाली सरकार गिर गयी।
भ्रष्टाचार के मामले पर राजीव गांधी का दबाव
यह बात उत्तर प्रदेश के बलिया वाले बाबू साहब के सरकार की है। बलिया के बाबू साहब इन दिनों राजीव गांधी की मदद से देश की सत्ता में बैठे थे। राजीव गांधी ने भी अपनी माँ की तरह ही मौका मिलते ही अपनी शर्तों को सरकार के ऊपर थोप दिया। अपने बिंदास अंदाज़ वाले बाबू साहब को यह शर्त नागवार गुजरी, उन्होंने राजीव के इस फैसले को ठुकरा दिया। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी कौन-सी शर्त थी जिसके चलते चंद्रशेखर ने प्रधानमंत्री पद तक की परवाह नहीं की। दरअसल राजीव बोफोर्स के मामले को दबाना चाहते थे। इस मामले को रफा-दफा करने से सरकार ने मना कर दिया जिसके बाद बाबू साहब को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।
कर्नाटक में भी शर्तों पर ही समर्थन
2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी भाजपा को कांग्रेस ने अपने दांव पेंच के जरिये सरकार बनाने से रोक दिया। कर्नाटक में जेडीएस (जनता दल सेक्यूलर) और कांग्रेस के साथ गठबंधन बनने के बाद वेणुगोपाल ने कहा कि राहुल गांधी जी ने कहा है कि गठबंधन सरकार देश की जरूरत है। देश के बड़े हितों को ध्यान में रखकर कुछ फैसले लिए जाते हैं। इस तरह वेणुगोपाल ने माना कि कांग्रेस जेडीएस के सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार है।
यही नहीं राज्य के वित्त मंत्रालय और सिंचाई मंत्रालय जैसे रसूख वाले पद को भी कांग्रेस ने सिर्फ इसलिए हाथ से जाने दिया क्योंकि कांग्रेस जेडीएस को हर हाल में महागठबंधन में बनाए रखना चाहती है। इस तरह दोनों ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने –अपने हितों के लिए गठबंधन किया है। जिस दिन उनमें से किसी एक का हित नजरअंदाज होगा, इन पार्टियों का गठबंधन टूट जाएगा।
2019 कहीं अगस्ता एवम् अन्य घोटालों की जाँच दबाने की कोशिश न बन जाए
अगस्ता वेस्टलेंड मामले में सोनियां गांधी का नाम आने के बाद मामले में गांधी पर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा शिकंजा मजबूत होता जा रहा है। ऐसे में यदि महागठबंधन की सरकार आती है तो पहले की तरह ही इस बार भी राहुल बाबा इस संगीन मामले को दबा सकते हैं। यही नहीं अपने जीजा के ऊपर चल रहे मामले को भी राहुल बाबा रफा-दफा कर सकते हैं। इस तरह एक तरह से मोदी के ख़िलाफ़ आने वाली यह महागठबंधन की सरकार भी हितों व स्वार्थ के आधार पर ही बन सकती है।
साथ ही, ऐसे लोगों के एक मंच पर आने से अर्थ यही निकलता है कि किसी भी तरह से एक ऐसी सरकार को सत्ता से बाहर फेंक दिया जाए जो भ्रष्टाचार पर कड़ा रुख़ रखती है। मोदी सरकार ने न सिर्फ़ भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसा बल्कि अपने पूरे मंत्रीमंडल को बेदाग़ बनाए रखने की बात बार-बार कही है, साबित की है। यही कारण है कि अवसरवादी नेता, जिनमें से कई ज़मानत पर बाहर हैं, या जिन पर आरोप तय किए जा रहे हैं, एक साथ आकर ‘मोदी बनाम सारे’ की रट लगाकर, किसी भी क़ीमत पर सत्ता में आना चाहते हैं।