Sunday, September 8, 2024

मीडिया हलचल

फ़ेक न्यूज़ का भस्मासुर अब नियंत्रण से बाहर हो चुका है

इंडिया टुडे जैसे प्रकाशनों से शुरू हुई ये व्यवस्था प्रचलित अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया में आई। अब तो इसमें “द हिन्दू”, जनसत्ता और “इंडियन एक्सप्रेस” जैसे तथाकथित विचारधारा वाले अखबार भी शामिल हैं।

परमादरणीय रवीश कुमार! अपना ‘कारवाँ’ रोक दीजिए, आपको हिंदी पत्रकारिता का वास्ता

अपने पिछले तमाम एजेंडों में मोदी सरकार और उससे सम्बंधित पदाधिकारियों को नीचा दिखाने और अपमानित करने के तमाम नाकाम प्रयासों के बाद रवीश कुमार एक बार फिर से एक काल्पनिक वाकया लेकर जनता के सामने आए हैं।

हेलो Quint, शरीरिक बीमारी तो ठीक हो सकती है, मानसिक बीमारी का क्या करें?

लोकतंत्र और FOE का मतलब वो लिबरल क्या जाने जो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी के मुखिया के लिए मौत माँगता हो। स्वाइन फ़्लू के सात हज़ार केस आ चुके हैं भारत में। क्या उन सबकी मृत्यु से स्तुति मिश्रा की क्षुधा शांत होगी?

‘द वायर’, NDTV किंकर्तव्यविमूढ़ हैं मोदी राज में, महँगाई बढ़े तब संकट, घटे तब संकट!

महँगाई घटने की ख़बर सकारात्मक है। लेकिन कुछ मीडिया पंडित (या मौलवी, जैसी आपकी श्रद्धा) इसे अब किसानों पर संकट के तौर पर देख रहे हैं।

गुप्ता जी का नया धमाका: सुप्रीम कोर्ट के जज ‘दि प्रिंट’ के रिपोर्ट को पढ़कर फ़ैसला लेते हैं!

दि प्रिंट को लगता है कि जस्टिस सीकरी मुख्यधारा के चैनल व अख़बारों को देखना-पढ़ना छोड़कर आजकल सिर्फ दि प्रिंट को पढ़ रहे हैं।

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