नागरिकता संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों में पास होता है। फिर यह नागरिकता संशोधन कानून बनता है। कानून के खिलाफ कुछ लोग, कुछ नेता (जो संसद में विरोध नहीं कर पाए, सड़कों पर कर रहे हैं) सड़कों पर उतरते हैं, विरोध के नाम पर दंगा करते हैं। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में आगजनी की जाती है, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया जाता है। बवाल इतना बढ़ जाता है कि पुलिस को यूनिवर्सिटी में घुसना पड़ता है, दंगाई हो चुके छात्रों पर लाठियाँ बरसाई जाती हैं।
जामिया मिलिया इस्लामिया चूँकि छात्रों की जगह है, इसलिए उन पर पड़ी लाठियों से देश के बाकी विश्वविद्यालयों के छात्र (सभी नहीं, सिर्फ वामपंथी और एंटी-BJP) खुद को जोड़ कर देखने लगे। उनके अंदर भी CAA विरोध के नाम पर मोदी-विरोध, हिंदू-विरोध का स्वर उबाल मारने लगा। इसी उबाल में IIT कानपुर के कुछ गिने-चुने छात्रों ने 17 दिसंबर को एक प्रदर्शन का आयोजन किया। आयोजन में फैज अहमद फैज की एक कविता (लाज़िम है कि हम भी देखेंगे… सब बुत उठवाए जाएँगे… सब तख़्त गिराए जाएँगे… बस नाम रहेगा अल्लाह का) गाई गई।
जब यह कविता गाई जा रही थी, उसी समय कुछ छात्रों ने इसे लेकर विरोध किया। बाद में इसको लेकर IIT प्रशासन को लिखित में शिकायत भी दी गई। इसी संबंध में की गई शिकायतों की जाँच के लिए प्रशासन ने 6 सदस्यी कमिटी का गठन किया। चूँकि फैज वामपंथियों के पसंदीदा नंबर 1 हैं, इसलिए मीडिया गिरोह ने IIT कानपुर की कमिटी वाली खबर को तड़का-मसाले के साथ चलाया। सबकी हेडिंग-रिपोर्टिंग देखकर आप चौंक जाएँगे। चौंक जाएँगे क्योंकि सबने बिना जाने फर्जी खबरें, फर्जी हेडिंग से चलाई।
सच क्या है?
Some media like to create spicy news. Take statements that (1) the complainants said poem hurt their sentiments, and (2) institute committee is looking into the complaint, add some tadka and viola, you have institute deciding if Faiz is communal. ?♂️
— Manindra Agrawal (@agrawalmanindra) January 1, 2020
IIT कानपुर में फैज अहमद फैज के नज्म का पाठ किया गया – सच यह है। सच यह है कि आईआईटी ने एक जाँच कमिटी का गठन किया है। लेकिन यह सच नहीं है कि कमिटी ‘फैज की नज्म हिंदू विरोधी है या नहीं’, की जाँच करेगी। क्यों यह सच नहीं है? क्योंकि जो इस कमिटी के अध्यक्ष हैं, वो खुद मीडिया गिरोह द्वारा चलाए जा रहे झूठ का पर्दाफाश कर रहे हैं। नाम है – मनीन्द्र अग्रवाल। प्रोफेसर हैं, डेप्यूटी डायरेक्टर हैं, वहीं IIT कानपुर में ही।
My last post in this conversation as it is fruitless convincing people whose mind is already made up. Multiple complaints have been made, including about the poem, and the committee has been formed to look at ALL of them and decide if there is value in ANY of them.
— Manindra Agrawal (@agrawalmanindra) January 1, 2020
मनीन्द्र अग्रवाल ने 16 दिसंबर मतलब कैंपस में कुछ छात्रों के द्वारा विरोध-प्रदर्शन के ठीक एक दिन पहले भी ट्वीट किया था। ट्वीट में कैंपस के अंदर पब्लिक प्रोटेस्ट को लेकर उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की थी। इसके बाद जब फैज की नज्म का पाठ किया जाता है, उसके खिलाफ शिकायत की जाती है और कमिटी का गठन होता है, तब जो रिपोर्टिंग मीडिया गिरोह द्वारा की जाती है, उस पर मनीन्द्र सिर्फ हँसते हैं, व्यंग्य के तौर पर जवाब देते हैं।
फैज, मुस्लिम और मीडिया
समुदाय विशेष नाम वाले कवि, पत्रकार, लेखक आदि सब अपना मजहब दिखाने में जुटे हुए हैं। इसी शृंखला में BBC, या बिग BC के इकबाल अहमद ने बिना IIT कानपुर की जाँच के आदेश को पढ़े अपनी हिन्दू घृणा उड़ेल दी है। जबकि जाँच उस आयोजन (मतलब बिना परमिशन के विरोध क्यों और आयोजन के पहले या बाद में सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डाली गई या नहीं?) को लेकर बैठी है। जबकि इकबाल अहमद लिखता है कि कमिटी को तय करना है कि ‘उनकी कविता कहीं हिंदू विरोधी तो नहीं।’ इस तरह की हिन्दू घृणा अजेंडाबाज़ पत्रकारों में सामान्य हो गई है।
#WATCH Javed Akhtar:Calling Faiz Ahmed Faiz ‘anti-Hindu’ is so absurd&funny that its difficult to seriously talk about it.He lived half his life outside Pakistan,he was called anti-Pakistan there.’Hum Dekhenge’ he wrote against Zia ul Haq’s communal,regressive&fundamentalist Govt pic.twitter.com/nOtFwtfjQ9
— ANI (@ANI) January 2, 2020
बॉलिवुड के लेखक और स्वघोषित क्रांतिकारी हैं जावेद अख्तर। सांसद भी रह चुके हैं। लेकिन सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं है इन्हें। होती तो प्रतिक्रिया देने से पहले IIT में फोन घुमाकर कमिटी की हकीकत जानने की कोशिश करते। लेकिन नहीं। आखिर हैं तो उसी मीडिया गिरोह के ये भी। और मजहबी तो खैर हैं ही। मजहबी तो फैज अहमद फैज भी थे। क्यों? क्योंकि जैसा उन्हें प्रचारित किया जाता है, अगर वो वामपंथी होते तो अपने नज्म में अल्लाह जैसे शब्द की जगह प्रकृति या इसके समान उर्दू शब्द का प्रयोग करते। यही कारण है कि मजहबी फैज के लिए मजहबी जावेद अख्तर डिफेंस में आते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि फैज तो ‘एंटि-पाकिस्तान’ थे और ‘जिया-उल-हक के खिलाफ’ थे।