कोरोना वायरस महामारी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर फंड बनाया। आम लोगों से निवेदन किया कि वह इसके लिए अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ दान और सहयोग करें।
27 मार्च को पीएम केयर फंड ट्रस्ट की आधिकारिक घोषणा हुई थी। प्रधानमंत्री इसके चेयरमैन हैं और गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री इसके सदस्य हैं। जैसे ही इस योजना का ऐलान हुआ वैसे ही विरोधी दलों ने इस पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए थे। उनके मुताबिक़ सरकार इस फंड का दुरुपयोग कर सकती है, क्योंकि उसका ऑडिट CAG नहीं करेगा। सोनिया गाँधी ने तो आरोपों की झड़ी ही लगा दी थी।
उन्होंने इस फंड के तहत इकट्ठा की गई राशि पीएम नेशनल रिलीफ फंड में स्थानांतरित करने की मॉंग की थी। जबकि इस कोष में भी इकट्ठा राशि का CAG ऑडिट नहीं करता। इसमें भी लोगों को अपनी मर्ज़ी से सहयोग करना होता है। पीएम केयर फंड के बारे में दुष्प्रचार यहीं पर खत्म नहीं होता।
हाल-फ़िलहाल में इस फंड के बारे में दुष्प्रचार का एक नया दौर चला है। द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि एक आरटीआई में पीएम केयर फंड से जुड़ी कुछ जानकारी माँगी गई थी। लेकिन ट्रस्ट ने किसी भी तरह की जानकारी साझा करने से साफ़ मना कर दिया है।
एक ट्वीट में उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक आरटीआई से जुड़ी जानकारी साझा करने से साफ़ मना कर दिया है। कार्यालय का कहना है कि इससे कार्यालय के संसाधन प्रभावित होंगे।”
Narendra Modi denies to reveal the amount of PM Cares Fund!
— anjan (@anjangreat) August 17, 2020
Why is he deliberately hiding? Is it not a cheat to one who belived him he’s a transparent & genuine?
One who cheats people in politics became history in the history books! https://t.co/SEAxRzWe4P
2 तोले सोने की खरीद औऱ 20000 के होटल बिल पर सरकार को जानकारी देनी होगी….
— Jitu Patwari (@jitupatwari) August 17, 2020
साहब पीएमकेयर्स का न ऑडिट होने देंगे न किसी को RTI का अधिकार है
क्या पीएमकेयर्स आय,व्यय जानने का हक देश को
नही है !#PMCares
इस ट्वीट से साफ़ तौर पर यही नज़र आता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने फंड से जुड़ी जानकारी साझा करने से साफ़ मना कर दिया है। कॉन्ग्रेस से जुड़े तमाम लोगों ने इस रिपोर्ट को बिना समझे कई गंभीर आरोप लगाना भी शुरू कर दिया। इस ख़बर को आगे रख कर ऐसा दुष्प्रचार किया गया जैसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई जानकारी देने से साफ़ मना कर दिया हो। जबकि इस पूरे मामले की सच्चाई कुछ और ही थी।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार एक्टिविस्ट लोकेश बत्रा ने एक आरटीआई दायर की थी। जिसमें उन्होंने पूछा था कि अप्रैल 2020 से अभी तक प्रधानमंत्री कार्यालय को कितनी आरटीआई मिली और उनमें से कितनी निरस्त की जा चुकी हैं। साथ ही उन्होंने अपनी आरटीआई में यह भी पूछा था कि पीएम केयर फंड और पीएम नेशनल रिलीफ फंड से संबंधित कितनी आरटीआई दायर की गई है। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि आरटीआई में फंड के इस्तेमाल से जुड़ी कोई बात नहीं पूछी गई थी। इसमें साफ़ तौर पर आरटीआई की संख्या के बारे में सवाल किया गया है।
जवाब में पीएमओ ने कहा कि ‘जिस तरह की जानकारी आरटीआई में माँगी गई है उसका कोई ब्यौरा अलग-अलग या खण्डों में नहीं रखा जाता है। जानकारी देने के लिए इसे अलग करना पड़ेगा और उससे कार्यालय के संसाधन प्रभावित होंगे। इसलिए अधिनियम की धारा 7 (9) को मद्देनज़र रखते हुए ऐसा नहीं किया गया है।
इसमें सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि आरटीआई में फंड के इस्तेमाल से संबंधित कोई सवाल ही नहीं था। बल्कि फंड का इस्तेमाल किस तरह किया जा रहा है इसकी जानकारी समय समय पर दी जा रही थी। 3100 करोड़ रुपए कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जारी किए गए थे। इस राशि का उपयोग वेंटिलेटर बनाने के लिए हुआ।
द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट की शुरुआत में ही आरोप लगा दिया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने जानकारी देने से साफ़ मना कर दिया है। रिपोर्ट में उच्च न्यायालय का हवाला देते हुए कहा गया है। इस तर्क के आधार पर जानकारी का प्रारूप ज़रूर बदला जा सकता है, पर जानकारी देने से मना नहीं किया जा सकता है। इसके बाद रिपोर्ट में कहा गया है कि विभाग कोई भी जानकारी खण्डों में नहीं बल्कि एक साथ रखता है। इसलिए जितनी जानकारी साझा की गई है वह संयुक्त रूप से की गई है।
पीएमओ द्वारा धारा 7 (9) का हवाला देने पर द हिंदू ने कई और आरोप लगाए हैं।
द हिंदू ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पीएमओ ने जिस धारा के आधार पर जानकारी देने से मना किया है वह गलत है। हिंदू के मुताबिक़ अगर पीएमओ कोई जानकारी देने से मना करता है तो उसके लिए धारा 8 (1) का प्रावधान है। धारा 7 (9) इस प्रक्रिया के लिए सही नहीं है। इसके अलावा द हिंदू की रिपोर्ट में जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, उससे ही मंशा स्पष्ट हो जाती है। पीएमओ द्वारा जिस धारा का इस्तेमाल किया गया है उसे गलत बता कर द हिंदू ने क़ानून का अपमान किया है। इतना ही नहीं द हिंदू ने जानकारी नहीं देने से जुड़े दावे करके भी नियमों की अनदेखी की है।
पीएमओ द्वारा रखे गए पक्ष में यह स्पष्ट किया गया है पीएमओ किसी भी आरटीआई का जवाब खण्डों में नहीं देता है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि पीएम केयर फंड और पीएम नेशनल फंड रिलीफ दोनों से जुड़ी जानकारी संयुक्त रूप से रखी जाती है। द हिंदू की रिपोर्ट में खुद उच्च न्यायालय के हवाले से लिखा गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय जानकारी का प्रारूप बदल सकता है, लेकिन जानकारी देने से मना नहीं कर सकता है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने ठीक ऐसा ही किया भी है। कार्यालय ने पूरी जानकारी दी है, लेकिन अलग प्रारूप में।
द हिंदू ने जिस तरह प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली पर आरोप लगाया। उसके आधार पर विरोधी दलों ने दुष्प्रचार शुरू कर दिया। उन्होंने यहाँ तक आरोप लगा दिया कि इस फंड के तहत भ्रष्टाचार हो रहा है। द हिंदू ने इसके पहले भी दस्तावेज़ों की गलत तरीके से व्याख्या करके सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए हैं। उसने राफेल डील में पीएमओ पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इस रिपोर्ट को आधार बनाते हुए राहुल गाँधी और उनकी पार्टी के तमाम लोगों ने भी आरोप लगाना शुरू कर दिया था। सही जानकारी सामने आने के बावजूद द हिंदू ने सुधार करने से साफ़ मना कर दिया था।